1. उत्तर पूर्व की हमारी अद्भुत यात्रा
2. दिल्ली – मिरिक होते हुए दार्जिलिंग
3. दार्जिलिंग भ्रमण
4. दार्जिलिंग से कलिम्पोंग, नामची – चारधाम
5. गंगटोक
6. शिलौंग – चेरापूंजी
7. गुवाहाटी – कामाख्या देवी दर्शन – दिल्ली वापसी
नमस्कार मित्रों, पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस प्रकार हमारा उत्तर-पूर्व की यात्रा का कार्यक्रम बना और हम 7 मई को सहारनपुर स्थित अपने घर से इंदिरापुरम् गाज़ियाबाद पहुंचे और सुबह को एक महिला टैक्सी ड्राइवर हमें एयरपोर्ट टर्मिनल नं 3 तक लेकर गयी यहां हम छः परिवार यानि 12 व्यक्ति बागडोगरा वाली अपनी एयर इंडिया की फ्लाइट की इंतज़ार में बोर्डिंग गेट के निकट जाकर बैठ गये। चूंकि हमारे लिये तीन परिवार बिल्कुल अपरिचित थे, आहिस्ता – आहिस्ता हम सब ने एक दूसरे का परिचय प्राप्त करना आरंभ कर दिया। अब आगे !
नई दिल्ली एयरपोर्ट का टर्मिनल नं. 3 अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। सबसे पहली बात तो ये कि Vertical lift से तो हम सभी भली प्रकार परिचित हैं, और विद्युत चालित सीढ़ियां (escalators) भी अब हर एक मॉल में दिखाई देने लगी हैं। परन्तु horizontal lift जिनको travelators या Walkways कहा जाता है, उनके प्रथम दर्शन हमें नई दिल्ली एयरपोर्ट पर ही हुए। टर्मिनल में जिस फर्श पर आप चल रहे हैं, उसके बीचों बीच लंबाई में 96 walkways मौजूद हैं ताकि आप अपने सामान सहित उन पर खड़े हो जायें, वह स्वयं आपको लेकर आगे चलते रहेंगे। यदि आपका बोर्डिंग गेट काफी दूर है तो एक walkway के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा आपकी सेवा में उपलब्ध है। सबसे लंबा walkway 118 मीटर लंबा है। आपके बाईं और दाईं ओर बोर्डिंग गेट दिखाई देते रहते हैं जिन पर गेट नंबर लिखा हुआ रहता है। जब आपका मन पसन्द गेट आ जाये तो आप walkway का मोह छोड़ कर वापिस धरती पर आ जायें और गेट के पास रखी हुई कुर्सियों पर बैठ जायें और अपने जहाज की प्रतीक्षा करें। वैसे मुंबई एयरपोर्ट पर तो jet bridge से बाहर निकल कर टर्मिनल में प्रवेश करते ही इलेक्ट्रिक कार खड़ी मिल गयी थीं जो आपको baggage reclaim belt तक लेकर जाती हैं। अतः हमें नहीं पता कि मुंबई एयरपोर्ट टर्मिनल बिल्डिंग में भी walkways लगाये गये हैं या नहीं !
खैर, इन्हीं walkways को प्रयोग करते हुए हम अपने वाले बोर्डिंग गेट तक पहुंचे थे और अपने प्लेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। आखिरकार इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुईं और बोर्डिंग गेट पर खड़े एयर इंडिया के दोनों एक्ज़ीक्यूटिव ने अपने सभी यात्रियों को इशारा किया कि प्लेन हमारा स्वागत करने के लिये तैयार है। जैसा कि वायुयान से यात्रा करते रहने वाले सभी पर्यटक जानते हैं, कुछ बड़े एयरपोर्ट्स पर हवाई जहाज तक जाने के लिये एयरलाइन वाली बस की सेवाएं लेने की जरूरत नहीं पड़ती। उसके बजाय हवाई जहाज को ही टर्मिनल के बगल में लाकर खड़ा कर दिया जाता है और telescoping air bridge ramp यानि एक गली जैसा मार्ग उपलब्ध करा दिया जाता है, जिससे सीढ़ियों के उपयोग की जरूरत समाप्त हो जाती है। हम टर्मिनल की बिल्डिंग में से ही पैदल चलते हुए अपने आप को सीधे हवाई जहाज के अन्दर पाते हैं। इस Jet Bridge का आविष्कार यूं तो अमेरिका में 1959 में ही हो गया था परन्तु दिल्ली एयरपोर्ट पर हमें पहली बार ही एक jet bridge के सहारे प्लेन के अन्दर भेजा गया। फिलहाल ऐसे 78 jet bridge टर्मिनल नं. 3 पर उपयोग किये जा रहे हैं।
प्लेन में जाकर सबसे पहली बात तो ये अनुभव हुई कि एयर इंडिया वालों ने भारी भरकम आर्थिक हानि से उबरने का एक उपाय तो ये सोचा है कि अपने जहाज में कुछ अतिरिक्त सीटें लगवा ली जायें। दो पंक्तियों के बीच में अन्तर बहुत कम महसूस हुआ। गाज़ियाबाद और दिल्ली में चल रही कुछ प्राइवेट बसें भी ऐसी ही हरकतें करती हैं। खैर, हम 12 लोग अपनी अपनी निर्धारित सीटों पर विराजमान हो गये। हर सीट के पीछे टैबलेट के आकार का एक टीवी स्क्रीन लगा देख कर मन प्रसन्न हो गया पर बागडोगरा एयरपोर्ट पहुंचने तक हम इंतज़ार ही करते रह गये कि शायद कोई फिल्म या अन्य कार्यक्रम दिखाया जायेगा पर आया कुछ नहीं ! हां, याद आया, एक बार “असुविधा के लिये खेद है” स्लाइड आई थी जिसे देख कर हमें अपने दूरदर्शन की याद हो आई।
संभवतः किसी अन्य फ्लाइट के विलंब से आने के कारण हमारी फ्लाइट भी 15 मिनट विलंब से चली पर जब चली तो सीधी बागडोगरा जाकर ही रुकी। बीच में कैप्टन महोदय पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर न जाने क्या – क्या कहते रहे। शायद एयर इंडिया कैप्टन पद के इंटरव्यू के टाइम पर यह भी देखा जाता है कि कहीं कोई प्रत्याशी स्पष्ट तो बोलता है? यदि आवाज़ स्पष्ट हो तो रिजेक्ट! यही स्थिति उन भारी भरकम एयर होस्टेस की भी थी जो संभवतः 30 सेकेंड से भी कम समय में सुरक्षा संबंधी जानकारी देकर चली गयीं।
बागडोगरा एयरपोर्ट पर उतर कर अपना सामान लेकर हम बाहर निकले तो हमारे इवेंट मैनेजर साले साहब ने फोन लगाया और अपनी दोनों टैक्सियों का अता-पता पूछा। पता चला कि दो इनोवा हमारी प्रतीक्षा में बाहर ही खड़ी हैं। कार्ट पर अपना अपना सामान लेकर हम टैक्सी तक पहुंचे और सामान लदवा कर दार्जीलिंग की ओर बढ़ चले।
बागडोगरा वास्तव में सिलीगुड़ी का एयरपोर्ट है और यहां से दार्जीलिंग की दूरी 67 किमी के करीब है। जब हमने टैक्सी ड्राइवर से बातचीत शुरु की तो पता चला कि उसे सीधे दार्जिलिंग जाने की बात बताई गयी है जबकि हमें जो टूर प्रोग्राम दिया गया था, उसमें मिरिक झील (जिसे समेन्दु लेक भी कहा जाता है) होते हुए दार्जिलिंग जाने की बात लिखी गयी थी। काफी झिकझिक होती रही फिर दोनों टैक्सियों को 2000 अतिरिक्त देने की बात स्वीकार कर ली गयी और हम लगभग 40 किमी की यात्रा तय करके मिरिक लेक जा पहुंचे।
जैसा कि संलग्न नक्शे में भी दिखाई देता है, मिरिक लेक नेपाल की सीमा के बहुत पास स्थित है। एक सज्जन ने तो यहां तक कहा कि यहां से सिर्फ 750 मीटर की दूरी पर ही नेपाल की सीमा आ जाती है। इस स्थान पर बहुत खास तो कुछ नहीं दिखाई दिया, मुख्य आकर्षण यह झील ही है। यहां पर जो पैडल बोट थीं भी, वह उपयोग में आती हों, ऐसा नहीं लगा। जो भी हो, उस समय कोई भी बोट वहां चलती दिखाई नहीं दी। झील वास्तव में काफी बड़ी है और इसकी परिधि पर 3.5 किमी लंबी सड़क बनी हुई है। हम इस झील की गार्डन वाली साइड में थे और उस पार जाने के लिये पैदल पुल पर चढ़े अवश्य पर वर्षा की फुहार शुरु हो गयी तो एक रेस्टोरेंट की ओर शरण लेने के लिये वापिस भागे। चाय पीते हुए वर्षा के रुकने की इंतज़ार की गयी। सुबह जो पूरी – सब्ज़ी का नाश्ता बना कर साथ में लाये थे, उसका पूरा लाभ उठाया गया। वर्षा कुछ हल्की हुई तो वापिस टैक्सी में जा बैठे और दार्जिलिंग की ओर प्रस्थान किया।
मिरिक से दार्जिलिंग का मार्ग मुझे सबसे ज्यादा खूबसूरत और अविस्मरणीय लगा। सारे रास्ते चाय के बाग मिलते रहे, कभी धुंध तो कभी दूर तक का दृश्य एकदम साफ दिखाई देता हुआ।
सूर्यास्त होते – होते हमने दार्जिलिंग में प्रवेश किया। इतनी भीड़, इतनी टैक्सी और अन्य वाहन देख कर दिल को धक्का सा लगा। मिरिक की शांत झील का आनन्द लेने के बाद पर्यटन नगरी दार्जिलिंग का अस्त-व्यस्त रूप और भागमभाग भरी ज़िन्दगी देख कर मन कुछ खट्टा हो गया।
भीड़भाड़ भरी संकरी सड़कों से होते हुए हम सैंट्रल हेरिटेज होटल जा पहुंचे जहां हमारा रात्रि विश्राम तय था। हम छः परिवारों के लिये कुछ कमरे एक भवन में तो कुछ दूसरे भवन में बुक हुए थे। मैने अपने साले साहब से कहा कि मुझे तो बाईं ओर वाले इसी मुख्य भवन में रुकना है। उन्होंने कहा – नो प्रोब्लम और चेक इन कराने के बाद एक कमरे की चाबी मुझे थमा दी।
होटल सेंट्रल हेरिटेज के बारे में विस्तृत पोस्ट यहां पढ़ें !
हमारे छः परिवारों के लिये कमरे भले ही सड़क के आर-पार दो अलग-अलग भवनों में दिये गये थे, पर रात्रि में सोने के अतिरिक्त हर समय साथ-साथ ही रहे। डिनर का प्रबन्ध भी एक ही जगह पर था। डिनर के पश्चात् हमने सोचा कि इतना कुछ खा लेने के बाद तुरन्त सो जाना तो ठीक नहीं रहेगा अतः चलो, दार्जिलिंग का बाज़ार देखने चलते हैं। मार्किट की ओर गये तो अधिकांश दुकानें इस समय तक बन्द हो चुकी थीं। पर फिर भी महिलाओं को ऊनी कपड़ों की कुछ दुकानें मिल ही गयीं जहां वह रेट को लेकर काफी देर तक झक झक करती रहीं और अन्ततः एक-एक स्वेटर / जैकेट वगैरा सब ने खरीद ही लिया। वहीं हमें हेस्टी-टेस्टी रेस्टोरेंट भी दिखाई दिया, जिसका ज़िक्र हमारे कुछ घुमक्कड़ साथी अपने यात्रा संस्मरण में बड़े प्यार से करते रहे हैं। घंटा भर बाज़ार में बिता कर हम सब वापस होटल लौट आये और कुछ देर टीवी के चैनल उलट – पुलट कर अन्ततः सो गये। सोने से पहले हर किसी ने सुबह तीन बजे का अलार्म लगा लिया था क्योंकि टाइगर हिल्ज़ ले जाने के लिये टैक्सी 4 बजे तक आ जाने वाली थीं।
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Thank you so much for detailed traveling experience of such a beautiful place … incidentally I am at Kolkata today and it prompted me to move Itanagar or Bagdogra…
इस यात्रा के संस्मरण तक आने हेतु हार्दिक आभार, अग्रवाल साहेब। आपकी सुखद यात्रा हेतु हार्दिक शुभ कामनाएं !
बंधु.. हमे तो बेरा ही ना था कि आपने अपना ब्लाग चालू कर दिया है… एक घुम्मकड़ टाईप साईट ही चला दो ताकि कुछ गरीब बामण भी अपनी इश्टोरी लिख सके
सर जी, आपका हार्दिक स्वागत है! आप इस साइट पर कुछ लिखेंगे तो इस पर चार चांद लग जायेंगे! अकेले तो मुझमें इतनी क्षमता नहीं कि मैं घुमक्कड़ जैसा कुछ प्रयास कर सकूं! आप हिम्मत बंधाएं तो शायद कुछ संभव हो सके। आपको मैं यहां एडमिन बनाये देता हूं ! आज से ही अपनी गढ़वाल – कुमाऊं यात्रा पर पोस्ट भेजना शुरु कर दीजिये। एक और एक ग्यारह होते हैं, आप साथ खड़े हैं, यह देख व अनुभव करके मुझ में भी कुछ हिम्मत जाग जायेगी!
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बहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण लगा आपका….. दिल्ली से दार्जिलिंग का ….. मिरिक लेक तो हम भी जा चुके है है बोटिंग भी की हुई है …… बाकी आपको इवेंट के हिसाव से चलना था सो झिक झिक तो होती रही होगी
बढ़िया यात्रा संस्मरण ….पढ़कर अच्छा लगा दिल्ली से बागडोगरा … फिर मिरिक ..मिरिक तो हम भी गये थे और बोटिंग भी की थी…… दार्जिलिंग के हेस्टी टेस्टी में हम खाना खा चुके है
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आपका यात्रा वृतांत पढ़ कर पुरानी यादें ताजा हो गई। बागडोगरा-सिलीगुड़ी में बचपन के 3-4 साल गुजारे हैं, इस दौरान दार्जिलिंग भी जाना हुआ। mirik और darjeeling के बीच हेल्मेट नुमा चाय के बागान बहुत सुन्दर हैं।
प्रिय प्रकाश सिंह ’बोरा’
आपका मेरे इस ब्लॉग तक आना, पोस्ट पढ़ना और कमेंट छोड़ना बहुत आह्लादकारी रहा। आशा है, आप इस ब्लॉग के प्रति अपना स्नेह यूं ही बनाये रखेंगे।
हमारी उत्तर पूर्व की यात्रा अविस्मरणीय रही है। अपने देश के इस अत्यन्त सुन्दर क्षेत्र में इतना कुछ देखने और सराहने योग्य है कि उसके लिये 7 दिन तो बहुत ही कम महसूस हुए। हमने उन सात दिनों में चार प्रदेशों – पश्चिम बंगाल, सिक्किम, मेघालय और आसाम को सिर्फ स्पर्श भर किया था। आपने उत्तर पूर्व के बारे में यदि विस्तार से लिखा हो तो अवश्य पढ़ना चाहूंगा।
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बहुत ही सुंदर लिख रहे हो सर आप लिखने की लय बरकरार ह,मने तो सोच लिया था कि सर ने लिखना ही बंद कर दिया ह क्योंकि सबसे पहले म आपको उस साइट का क्या नाम था ,घुमक्कड़ डॉट कॉम ,पर पढता था लेकिन वो साइट भी शायद बंद हो गई, होनी भी थी क्योंकि राजनीती वहाँ पर ज्यादा होने लग गई ,और वसे भी वहाँ ज्यादा लोग अंग्रेजी में लिखते थे,खैर आपने शादी की साल ग्रह की बधाई दी तो फिर आपसे जुड़ने का मौका मिला और पता चला की आप अब भी लिख रहे हो आपने ब्लॉग का लिंक दिया इसके लिये आपका धन्यवाद,हम यात्रा में आपके साथ ह अगले भाग में भी
प्रिय अशोक जी, ऐसे सुन्दर सुन्दर कमेंट लिख कर आप मुझे मजबूर कर रहे हैं 😀 कि मैं लिखता ही चला जाऊं!
अगली वाली कड़ी भी आपको मिल गयी या नहीं?
अपना स्नेह यूं ही बनाये रखें! अगर आपको मेरे यात्रा संस्मरण अच्छे लगते हैं तो जयपुर, दुबई, नैनीताल, हैदराबाद, महाराष्ट्र आदि की यात्राएं भी ब्लॉग पर मौजूद हैं। उम्मीद है, आपका मन लगाये रखने में समर्थ होंगी।
आपका ही,
सुशान्त सिंहल
घुमक्कड़ डॉट कॉम बन्द तो नहीं हुई पर हां, वह हिन्दी को सपोर्ट नहीं कर रही। हिन्दी में लिखे हुए सारे कमेंट अब ????????? प्रश्नवाचक चिह्न बन गये हैं। पर वहां मुझे बहुत सारे पाठक मित्र मिल गये थे, जिनसे आजतक दोस्ती बदस्तूर जारी है।