1. उत्तर पूर्व की हमारी अद्भुत यात्रा
2. दिल्ली – मिरिक होते हुए दार्जिलिंग
3. दार्जिलिंग भ्रमण
4. दार्जिलिंग से कलिम्पोंग, नामची – चारधाम
5. गंगटोक
6. शिलौंग – चेरापूंजी
7. गुवाहाटी – कामाख्या देवी दर्शन – दिल्ली वापसी
अपनी उत्तर-पूर्व की यात्रा का हमारा पहला पड़ाव 8 May 2016 को होटल सैंट्रल हेरिटेज, दार्जिलिंग में था। प्रस्तुत है, इस होटल के बारे में हमारे व्यक्तिगत अनुभव व वहां लिये गये कुछ चित्र ! इस होटल के बारे में मैं www.tripadvisor.in पर भी अपना रिव्यू दे चुका हूं !
भीड़भाड़ भरी संकरी सड़कों से होते हुए हम सैंट्रल हेरिटेज होटल जा पहुंचे जहां हमारा रात्रि विश्राम तय था। होटल में प्रवेश किया तो नैसर्गिक साज सज्जा देख कर तबीयत प्रसन्न हो गयी। यह होटल दार्जिलिंग के सबसे पुराने होटलों में से एक है और बहुत लोकप्रिय है। वास्तव में यह होटल सड़क के आमने सामने दो भवनों में स्थित है। हम छः परिवारों के लिये कुछ कमरे एक भवन में तो कुछ दूसरे भवन में बुक हुए थे। मैने अपने साले साहब से कहा कि मुझे तो बाईं ओर वाले इसी मुख्य भवन में रुकना है। उन्होंने कहा – ’नो प्रोब्लम’ और चेक-इन कराने के बाद एक कमरे की चाबी मुझे थमा दी। वेटर हम दोनों को लेकर लकड़ी के फर्श, लकड़ी के जीने से नीचे उतरते हुए दो मंजिल नीचे ले गया और एक कमरे का द्वार खोल कर उसमें हमारा सामान टिका कर सारी सुविधाएं दिखाने लगा कि ये डबल बैड है, ये सोफा है, ये टी.वी. का स्विच है, ये रूम हीटर है, ये वाशरूम का गीज़र है, ये शू रैक है, ये छतरी है, वगैरा – वगैरा। कमरे का फर्श भी लकड़ी का ही बना हुआ था। बगल का कमरा हमारी श्रीमती जी की बहिन को मिल गया।
ये होटल बाज़ार में स्थित है और वर्ष 1905 से यहीं मौजूद है। आस-पास अन्य अनेक भवन खड़े हो जाने के कारण अब कमरे से बाहर के दृश्य देखने की उम्मीद करना बेकार है। परन्तु इस होटल की साज सज्जा और भोजन की गुणवत्ता ने मुझे बहुत प्रभावित किया। रेसेप्शन पर, डायनिंग हॉल में हमें होटल का जो भी स्टाफ मिला, वह सहायता के लिये आतुर था। यद्यपि हमें बफेट डिनर उपलब्ध कराया गया था, जिसमें सेल्फ सर्विस व्यवस्था होती है, तो भी एक बार अपनी थाली लेकर बैठ जाने के बाद, बार – बार उठ कर टेबल तक नहीं जाना पड़ा। हमें जो भी चाहिये था, वह हमें तुरन्त मिलता रहा।
मैने कई सारे होटलों के रिव्यू पढ़े हैं और कुछ नकारात्मक रिव्यू देख कर मन में असमंजस जैसी स्थिति हो जाना स्वाभाविक ही है कि यहां पर रुकें या न रुकें। इस होटल में कार पार्किंग की कोई व्यवस्था है या नहीं, कहना कठिन है। शायद नहीं ही होगी । हमारी दोनों टैक्सी तो हमें रात्रि में ही होटल छोड़ कर चली गयी थीं और हमारे टूर ऑपरेटर ने हमारे लिये अगले दिन के लिये दो और इनोवा की व्यवस्था की हुई थी। अतः हमें पार्किंग की समस्या से दो-चार नहीं होना पड़ा। हां, अगर आप अपनी कार लेकर यात्रा कर रहे हैं तो ऐसे में कार कहां पर खड़ी की जाये, यह अवश्य विचारणीय होता है।
फ्रेश होने के बाद हम सभी डायनिंग हॉल में एकत्र हुए जहां बफेट डिनर की व्यवस्था थी। हमें सहारनपुर में किसी ने कह दिया था कि उत्तर पूर्व में जाओगे तो सिर्फ मोमोज़ ही खाने को मिलेंगे। एक दृष्टि से देखें तो यह सच भी है। जैसे उत्तर भारत में आपको सड़क किनारे नाश्ता बना रहे हर दुकानदार के यहां समोसा, खस्ता कचौरी और पकोड़े मिल जायेंगे, इन्दौर जाओ तो वहां पोहा और जलेबी हर कहीं मिल जायेंगे, धनोल्टी जैसे पर्वतीय स्थलों पर जगह-जगह मैगी खाते हुए लोग दिखेंगे, वैसे ही उत्तर पूर्व में मोमोज़ एक आम व्यक्ति का नाश्ता है जो हर ठेले पर, हर रेस्टोरेंट में मिल जायेगा। पर इसका ये अर्थ नहीं है कि वहां पर मोमोज़ के अलावा कुछ मिलेगा ही नहीं। होटल सेंट्रल हेरिटेज में डिनर में और सुबह नाश्ते में वह सब कुछ उपलब्ध था, जो एक उत्तर भारतीय खाता है या खाना चाहता है। सिर्फ दार्जिलिंग में ही नहीं, बल्कि गंगटोक, शिलोंग, गुवाहाटी, कलिम्पोंग और नामची में भी ।
हमारे छः परिवारों के लिये कमरे भले ही सड़क के आर-पार दो अलग-अलग भवनों में दिये गये थे, पर रात्रि में सोने के अतिरिक्त हर समय साथ-साथ ही रहे। डिनर का व सुबह घूमने जाने से पहले नाश्ते का प्रबन्ध भी एक ही जगह पर था। जो सुखद अनुभव हमें डिनर के दौरान हुए थे, वही सब ब्रेकफास्ट के समय भी हुए। विशालकाय मैन्यू जिसमें फल, ताज़ा फ्रूट जूस, बटर टोस्ट, ऑमलेट, खीर, दही, परांठे-मक्खन, सब्ज़ी, छोले, चाय-कॉफी, दूध – कॉर्नफ्लेक्स आदि आदि शामिल था। शायद इडली-सांभर भी ! हम 12 लोगों में केवल एक ही परिवार ऐसा था जो नॉन-वेज का शौकीन था। अतः उनके लिये एक डिश नॉन-वेज भी थी।
खूब छक कर हम लोग लगभग 9 बजे अपने – अपने कमरों में पहुंचे और सामान पैक कर के रिसेप्शन की घंटी बजाई ताकि हमारा सामान सब रिसेप्शन पर पहुंचा दिया जाये। 9.30 पर हम लोग दार्जिलिंग स्थानीय भ्रमण हेतु निकल गये। परन्तु इस होटल में रात्रि विश्राम ने हमारी यात्रा का आगाज़ अच्छा कर दिया था और हम आने वाले दिनों में और सुखद अनुभव की आशा करते हुए अपनी यात्रा पर बढ़ चले !
मेरा मानना है कि अगर हम किसी को इज़्ज़त देते हैं तो बदले में हमें भी इज़्ज़त मिलती है। सैंट्रल हैरिटेज़ होटल के बारे में दो – तीन लोगों के रिव्यू मुझे नकारात्मक भी मिले जिसमें स्टाफ के व्यवहार को लेकर असंतोष जाहिर किया गया था। हमारे साथ ऐसा कोई भी अनुभव नहीं रहा और होटल के सभी स्टाफ सदस्यों ने हमसे बहुत आदर – सम्मान के साथ बात की और पूरा सहयोग दिया। जो कर्मचारी हमारा सामान कमरे तक लेकर गया था और सुबह वापिस ऊपर लाया था, उसने भी ऐसा जाहिर नहीं किया कि वह हमसे टिप की उम्मीद कर रहा है। फिर भी, हमने 50 रुपये उसके हाथ पर रख दिये तो उसने विनम्रता से स्वीकार कर लिये और सैल्यूट भी दे दिया।
यदि आप होटल के कमरे से बाहर पहाड़, बर्फ, बादल, नदियां और खेत देखना चाहते हैं (मैं भी ये सब देखना चाहता हूं।) तो निश्चय ही दार्जिलिंग के मार्किट में स्थित यह होटल आपके लिये नहीं है क्योंकि यहां से ऐसे दृश्य दिखाई देने अब बन्द हो चुके हैं। पर अगर आप दिन भर पहाड़, बर्फ, बादल, नदियां और खेत देखते- देखते थक चुके हैं और अब शानदार भोजन और शानदार नींद चाहते हैं तो सैंट्रल हैरिटेज आपको पसन्द आयेगा, ऐसी मुझे आशा है।
होटल का पता – रॉबर्ट्सन रोड, दार्जिलिंग-734101
Phone : 090079 95888
Website : Hotel Central Heritage
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आपने इस होटल का बढ़िया से रिव्यू दिया है जो को भी मार्गदर्शन के रूप में बहुत ही साहयक होगे…
शुक्रिया रितेश जी ! सच यही है कि खाने के मामले में इंसान बहुत सेंसिटिव होता है। अगर कहीं इज्जत से, स्वादिष्ट भोजन ऑफ़र किया जा रहा हो तो मन प्रसन्न हो जाता है। अगर खाना खराब, नींद भी खराब तो समझो पूरी यात्रा का ही बाजा बज जाता है। हम जिस – जिस होटल में भी रुके, कहीं हमारा मूड खराब नहीं हुआ, यह हमारी यात्रा की सबसे बड़ी सफलता रही।
कृपया आते रहें, लिखते रहें। अच्छा लगता है।