प्रिय पाठकों,
इससे पहले कि मैं अपनी नवीनतम दास्तान – ए – सोलो – घुमक्कड़ी पेश करूं, कुछ आत्म – स्वीकृति (confession) करना आवश्यक है!
- मैं उन लोगों में से हूं जिनको अपनी जान बहुत प्यारी होती है! (’जान’ से मेरा तात्पर्य ’जीवन’ या ’ज़िन्दगी’ से है, उस दूसरी वाली ’जान’ से नहीं जिसका ज़िक्र कवि और शायर लोग किया करते हैं ! 😉 अगर दो फिट ऊंची और एक फ़िट चौड़ी मुंडेर पर भी चलना पड़े तो दिल में ’कुछ कुछ होता है!’ ऐसे में पहाड़ों पर जाकर नीचे गहरी खाई में झांकते हुए संकरी पगडंडियों पर चलना is not my cup of tea.
- अब जबकि कोरोना पुनः सिर उठा रहा है और हर किसी को घर में ही रहने की, और अनावश्यक यात्राओं से बचने की सलाह दी जा रही है, मेरे परिवार के समस्त सदस्य मेरी इस घुमक्कड़ी के बिल्कुल खिलाफ़ थे और मेरी श्रीमती जी तो कोप भवन में प्रविष्ट कर गयी थीं ! पर फिर भी मैने घूमने जाने का निर्णय लिया। पांचवे दिन मुझे सकुशल लौट आया देख कर मेरे बच्चों की माता भी कोप भवन से वापिस लौट आई हैं! हो सकता है कि कोप भवन के एकान्त में वह भगवान जी को अपने करवा चौथ के 37 व्रतों का वास्ता देती रही हों और मेरी कुशलता की दुआ मांगती रही हों!
- मेरा परिवार मेरी इस यात्रा के विरुद्ध था, इसकी एक प्रमुख वज़ह ये थी कि मैं 63 वर्ष की आयु में अपनी कार से अकेले पहाड़ों पर घुमक्कड़ी करने जा रहा था। ये ठीक है कि मैने आज से 45 साल पहले स्कूटर और कार ड्राइविंग देहरादून – मसूरी और मोहंड की सर्पीली सड़कों पर ही सीखी थी तो भी उनको मेरा अकेले जाना अनावश्यक खतरा मोल लेना ही लग रहा था। मैने अपने जीवन में किसी भी दिन 200 किमी से अधिक दूरी की ड्राइविंग नहीं की थी ! मगर गुड़गांव से चल कर मेरा पहला पड़ाव 350 किमी दूर कानाताल में होने जा रहा था!
इस पृष्ठभूमि में देखें तो मेरी ये सोलो-घुमक्कड़ी ’अजब प्रेम की गज़ब कहानी’ ही है जिसमें मैं गुड़गांव से दिल्ली – मेरठ – मुज़फ़्फ़रनगर – रुड़की – हरिद्वार – ऋषिकेश – नरेन्द्र नगर – चंबा वाले रास्ते से कानाताल और धनौल्टी के निकट सुरकंडा देवी तक गया। वहां से टिहरी, टिहरी से श्रीनगर, श्रीनगर से देवलगढ़, देवलगढ़ से खिरसू, खिरसू से पौड़ी और वापिस श्रीनगर! यात्रा के अंतिम पायदान पर पग रखते हुए श्रीनगर से देवप्रयाग – सतपुली – गुमखाल – कोटद्वार – नजीबाबाद – बिजनौर – मीरापुर – खतौली – मुरादनगर – गाज़ियाबाद – दिल्ली होते हुए गुड़गांव वापिस आ गया!
26 मार्च 2021
यात्रा की तैयारी में सबसे प्रमुख काम कोरोना निगेटिव रिपोर्ट सुनिश्चित करना लग रहा है। लैब पर गया तो उन्होंने कहा कि सैंपल लेने के लिये अभी आधा घंटे में एक बन्दा आपके घर भेजते हैं! 27 मार्च को लैब वालों ने मेरे व्हाट्सएप पर मुझे रिपोर्ट की pdf file भेज दी! धड़कते दिल से फाइल खोली और जब Negative लिखा दिखाई दिया तो लगा कि ’किला फ़तह कर लिया!’ वरिष्ठ नागरिक होने के नाते मैने कोविड वेक्सीन की पहली डोज़ भी कुछ दिन पहले ली ही थी! इस प्रकार पहली बाधा दूर हुई !
28 मार्च होलिका दहन और 29 मार्च को फ़ाग की छुट्टी रहेगी! ऐसे में कानाताल के लिये नटवर लाल भार्गव से और जयालगढ़ के लिये बीनू कुकरेती से फ़ोन पर बात कर ली है ! दोनों ने पुष्टि कर दी है कि कैम्प खुला मिलेगा और मेरा स्वागत है!
27 मार्च 2021
मेरी पुत्रवधु डॉ. प्रियंका अस्पताल जाने आने के लिये मेरी कार उपयोग करती हैं और आज उनकी ड्यूटी भी है! अतः मैं उनको उनके अस्पताल पहुंचा कर कार वापिस ले आया हूं क्योंकि कल को उनके वापिस आने से पहले मुझे अपनी यात्रा पर निकलना है!
एक बैग कैमरे का तैयार कर लिया है जिसमें मेरा निकॉन D7200 dSLR और उसकी कुछ लेंस (18-140 mm., 10-24 mm, 35 mm., 70-300 mm) रख ली हैं! दो हल्के से ट्राइपॉड भी रख लिये हैं जिनमें एक तो मेज पर रखने के लायक छोटा सा ही है! वीडियो के लिये अपने Samsung M31s स्मार्टफोन पर भरोसा कर रहा हूं! वैसे बैग में gopro भी रखा हुआ है पर उसकी बैटरी अचानक ही खत्म हो जाती है अतः उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता!
एक बैग पहनने के कपड़ों का भी चाहिये ! कानाताल में सुबह शाम गर्म कपड़ों की जरूरत के लायक ठंड रहती है, ऐसा बताया गया है सो जो कपड़े ओडोनिल लगा कर अगली सर्दियों तक के लिये पैक करके रख दिये गये थे, उनमें से एक इनर, एक जैकेट, फर वाली एक टोपी और दस्ताने बाहर निकाल लिये हैं और ये भी बैग में सजा लिये हैं!
अब रही बात कार की! मुझे लग रहा था कि पहाड़ों पर यात्रा के लिये निकलने से पहले इसकी सर्विसिंग करा लूं पर आलस्य में बैठा रह गया और पूरा दिन यूं ही निकल गया ! सच बात ये भी है कि मुझे अपनी छः साल पुरानी ह्युंडई i10 पर पूरा भरोसा था कि वह अच्छी हालत में है और निस्संकोच, निष्कंटक यह पूरी यात्रा सम्पन्न करा देगी! इन छः सालों में वह 31000 किमी ही चली है अतः आयु में पुरानी भले ही हो, पर इंजन उतना पुराना नहीं है! उसने भी मेरे भरोसे की लाज रखी और पूरी यात्रा के दौरान पैट्रोल के अलावा कोई भी डिमांड नहीं रखी !
28 मार्च 2021
मेरी घड़ी में छः बजे का अलार्म स्थाई रूप से सैट है पर आज पांच बजे ही उठ कर नहा – धो लिया हूं! अपनी रूठी हुई भार्या और बेटे को ’फिर मिलेंगे’ आश्वासन देकर मैं सुबह पौने सात बजे अपना सारा सामान कार में रख कर गुड़गांव से जयपुर – दिल्ली हाई वे की ओर चल पड़ा हूं!
गूगल मैप मुझे जो रास्ता सुझा रहा है, वह मेरी उम्मीद के खिलाफ़ है! मैं अपने परम्परागत रास्ते से, यानि एन.एच. 24 से एलिवेटेड रोड पकड़ कर राजनगर एक्सटैंशन पहुंचता हूं और फिर वहां से मेरठ रोड पर चल पड़ता हूं! मगर मैप हिंडन पुल, जी.टी. रोड पर आने के बावजूद मुझे वापिस एन.एच. 24 ले जाना चाह रहा है! मैने उसका दिमाग सनक गया मान कर नेविगेशन बन्द कर दिया है और रैपिड मैट्रो का कार्य प्रगति पर होने के कारण संकरी हो गयी सड़क पर मुरादनगर की ओर बढ़ा चला जा रहा हूं!
संभावनाओं का नियम कहता है कि मुरादनगर तक जाम मिलेगा ही मिलेगा ! आज भी सड़क पर वाहन तो काफ़ी हैं मगर जिसे ’जाम ’ कहते हैं, वह स्थिति अभी नहीं आई है! अतः मैं मुरादनगर से गंग नहर मार्ग पर आ चुका हूं!
सोच रहा हूं कि खतौली में एक्सप्रेस हाइवे पर जाने के बजाय आज रुड़की तक इसी गंग नहर वाली सड़क पर चलता चला जाऊं ! पर ये प्लान खतौली से कुछ पहले ही टांय – टांय फिस्स हो गया है। एक तगड़ा वाला जाम लगा देख कर लोग अपने – अपने वाहन वापिस घुमा रहे हैं सो महाजने येन गता स पंथाः ! (बड़े लोग जिस रास्ते पर चलें, उसी को हमें भी रास्ता मान लेना चाहिये!) इससे पहले कि कार को वापस घुमाना असंभव हो जाये, मैने भी अपनी कार घुमा ली है और पुनः गूगल मैप की शरण में आ गया हूं! “भाई अब क्या करें!” वह कह रहा है कि 800 मीटर आगे बायें को एक रास्ता है, उस पर चलूं ! आगे बढ़ कर देखता हूं कि ये तो खेतों के बीच में कच्ची पगडंडी ही है! कहीं ऐसा तो नहीं कि गूगल मैप अपनी अवहेलना का बदला ले रहा हो? पर कुछ ट्रक और लक्ज़री कार वाले भी उस पगडंडी पर उतर रहे हैं अतः बिना कुछ ज्यादा सोचे विचारे मैं भी उनके पीछे पीछे खेतों – खलिहानों – बागों और बगीचों में से होते हुए और शायद कुछ घरों के आंगन में से होते हुए अन्ततः मेरठ – मुज़फ़्फ़रनगर एक्सप्रेस वे पर आ गया हूं! बल्ले – बल्ले !
मुज़फ़्फ़रनगर पहुंच कर मैं हमेशा रामपुर तिराहे से सहारनपुर की ओर मुड़ जाया करता हूं पर आज तो मुझे ऋषिकेश तक इसी एक्सप्रेस वे का हाथ थामे रखना है सो एक टोल प्लाज़ा पर 50 रुपये और दूसरे पर 75 रुपये फ़ास्ट टैग से भुगतान कराते हुए ऋषिकेश आ पहुंचा हूं! बाई गॉड, क्या शानदार सड़क बनाई है गडकरी साब ने ! 100 किमी की गति का भी आभास नहीं होता !
स्टफ्ड कुलचा, मोनेको बिस्कुट, डायट मिक्सचर वाली चिवड़ा नमकीन, पानी की बोतल और 700 एम.एल. की कोल्ड ड्रिंक मेरे बगल वाली सीट पर कैमरे के साथ ही रखे थे सो उन पर भी हाथ साफ़ करता चल रहा हूं!
मैं चंबा – टिहरी रोड पर बढ़ता चला जा रहा हूं ! पर ये क्या? ऋषिकेश रेलवे स्टेशन तो ऋषिकेश शहर के मध्य में हुआ करता था, तो फिर ये योग नगरी ऋषिकेश के नाम से यहां पर ये सुन्दर सा रेलवे स्टेशन कैसे? कार रोक कर दो – तीन फोटो क्लिक करने को उतरा तो एक पुलिस वाली मुझे मना करने आ गयी है कि आप रेलवे स्टेशन की फोटो क्लिक नहीं कर सकते! अजीब मूर्खतापूर्ण नियम बना रखे हैं! जब मैने कहा कि अगर गलत इरादे से किसी इंसान को फोटो खींचनी होंगी तो आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब फोटो खिंच गयीं ! वह बोली कि आपकी बात सही है पर हमें तो आदेश का पालन करना है!
एल एल. बी. की पढ़ाई के दिनों में मेरा एक नवनीत नागलिया नामक दोस्त हुआ करता था जो ऋषिकेश में रहता था, उसके साथ LML Vespa स्कूटर पर एक दिन मैं नरेन्द्र नगर आया था और महल भी देखा था। इस दृष्टि से देखूं तो आज मैं दूसरी बार नरेन्द्र नगर पहुंचा था पर अब न तो कहीं महल दिखाई दिया और न ही उस जमाने की टूटी – फूटी, गढ्ढों वाली सड़क ! आलीशान सड़क बन चुकी है जो इस हद तक काली है कि मुझे लग रहा था कि शायद मैं ही इस सड़क का लोकार्पण कर रहा हूं! चंबा तक पूरी सड़क इतनी चौड़ी है कि उस पर दो ट्रक आराम से बिना एक दूसरे को डिस्टर्ब किये अगल – बगल से निकल सकते हैं ! बीच बीच में व्यू प्वाइंट भी बनाये गये हैं जहां से आप नीचे घाटी के विहंगम दृश्य देख सकते हैं! एक जगह ’सेल्फ़ी प्वाईंट ढाबा’ दिखाई दिया तो एक दूसरे स्थान पर – गूगल पे ढाबा देख कर मुझे विश्वास हो रहा है कि मोदी जी का डिजिटल इंडिया का स्वप्न यही लोग साकार करेंगे। 🙂
चंबा में गूगल मैप कानाताल के लिये चंबा – मसूरी रोड पर बाईं ओर मुड़ने के लिये कह रहा है पर ये तो एक व्यस्त बाज़ार है! एक दुकानदार से पूछ लिया है और उसने बताया है कि हां, ये मसूरी रोड ही है। बाज़ार में से अपने लिये रास्ता बनाता हुआ आगे बढ़ रहा हूं! और चंबा पार हो जाने के बाद 20 किमी की prescribed speed पर आगे बढ़ता रहा। ये सड़क सिंगल लेन सड़क है जिसकी चौड़ाई अधिक नहीं है। अगर आप पहाड़ी ड्राइविंग के नियमों का पूरी निष्ठा से पालन करते रहें तो कतई कोई समस्या नहीं आती है।
पहाड़ों पर सुरक्षित ड्राइविंग ! नियम ये रहे –
- नज़र हटी और दुर्घटना घटी ! यातायात विभाग के ये स्लोगन बिल्कुल सही है! न मोबाइल देखें और न ही कार स्टीरियो के साथ कोई छेड़खानी करें! एक क्षण के लिये भी अपना ध्यान सड़क से न हटने दें!
- पूरे रास्ते अंधे मोड़ आते हैं जिनमें से बहुत सारे तो हेयर पिन बैंड हैं ! मोड़ शुरु होने से पहले ही निरन्तर हॉर्न बजाते रहें ताकि सामने से कोई वाहन आ रहा हो तो उसे आपकी उपस्थिति का आभास हो जाये।
- भले ही सड़क सुनसान क्यों न लग रही हो, सड़क के बीचों – बीच में अपना वाहन न चलायें बल्कि बायीं ओर ही चलें। ना जाने किस मोड़ पर नारायण मिल जायें ! इतना समय नहीं मिलेगा कि आप सड़क के मध्य से बाईं ओर हो पायें !
- यदि आपने शराब ली हुई है तो स्टीयरिंग किसी और को सौंप दें! या यात्रा स्थगित कर दें! अपने ’शौक’ को ’शोक सन्देश’ न बनायें!
- सड़क कम चौड़ी हो तो वाहन की गति 20 या 25 km. से अधिक भूल कर भी न रखें! हो सकता हो कि आपको लगे कि सड़क पर ट्रैफिक न के बराबर है अतः तेज़ चलने में कोई हानि नहीं ! पर यही बात अन्य वाहन के ड्राइवर भी सोच सकते हैं! दूसरे की गलतियों के लिये भी मार्जिन रखते हुए स्वयं को सुरक्षित रखें!
- पहाड़ी सड़क पर चलते समय ईगो के लिये कोई स्थान नहीं होता ! सड़क बहुत कम चौड़ी हो और सामने से चढ़ाई की ओर बढ़ रहा कोई वाहन आता दिखाई दे तो तुरंत कोई ऐसा प्वाइंट देखें जहां पर सड़क सबसे अधिक चौड़ी हो और वहां पहुंच कर उसकी प्रतीक्षा करें! यदि आप चढ़ाई चढ़ रहे हैं तो बिल्कुल यही काम वह भी करेगा। ये पहाड़ी सड़कों पर ड्राइविंग के मैनर्स हैं ! आमने सामने से आ रहे वाहनों में उस वाहन को वरीयता दी जाती है जो ऊंचाई चढ़ रहा है ताकि उसे ब्रेक न लगाने पड़ें ! पहाड़ी मार्ग पर ऊपर चढते समय यदि ब्रेक मार कर खड़ा होना पड़ जाये तो पुनः आगे बढ़ना अत्यन्त कठिन होता है, खास तौर पर ट्रक या बस जैसे किसी भारी वाहन के लिये!
चंबा से कानाताल कैम्प सिर्फ़ 12 किलोमीटर की दूरी पर ही है! मेरी अब तक कुल यात्रा 300 किमी से अधिक हो चुकी है। चंबा तक आते हुए रास्ते में जहां भी मुझे फ़ोटो लेने लायक दृश्य दिखाई दिये तो मैं बार – बार सड़क के किनारे कार रोकता रहा और फ़ोटो क्लिक करता रहा हूं। इस चक्कर में मुझे अपनी इस यात्रा में आवश्यकता से अधिक समय भी लग रहा है! पर जब घुमक्कड़ी ही यात्रा का उद्देश्य हो तो गति के बजाय आनन्द पर फ़ोकस करना चाहिये! है ना?
चंबा से कानाताल तक सड़क इतनी कम चौड़ी है कि उस पर कार रोकना या फ़ोटो खींचना व्यावहारिक नहीं था। बाइक पर होता या कोई कार ड्राइव करता रहता तो अलग बात होती! मैं शाम को 5.20 पर Stay in Camp Kanatal पहुंच गया हूं, जो चंबा – मसूरी रोड पर सौड़ जड़ीपानी कानाताल नामक गांव में सड़क के दायें किनारे पर स्थित है।
स्टे इन कानाताल कैंप के बारे में अलग से रिव्यू लिखने वाला हूं !
नटवर भाई लंच हेतु मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे अतः अपने बैग टिका कर हम दोनों तुरन्त ही डायनिंग हॉल में आ गये! दाल – सब्ज़ी – रायता – रोटी – अचार का स्वादिष्ट भोजन खाने को मिला और उसके बाद सूर्यास्त देखने के लिये थोड़ी देर में और ऊंचे पहाड़ी पर चलेंगे, यह तय कर मैं अपनी झोंपड़ी में आ गया।
जंगल ट्रेल और सूर्यास्त
यदि हम पगडंडी पकड़ कर अपने Stay in Kanatal Camp के 20 टैंट से भी ऊपर बढ़ते चलें तो ऊपर एक खुला और काफी कुछ समतल मैदान सा आ जाता है जहां से 360o दृश्य मिलता है। मैं चूंकि पहाड़ पर संकरी पगडंडियों पर चलने के मामले में अनाड़ी हूं और तीखी चढ़ाई के कारण मेरा दिल नामक पंप भी फुल स्पीड से धकधकाने लगता है, ऐसे में नटवर जी तो राजस्थानी होने के बावजूद ठेठ उत्तराखंडी युवकों की सी गति से चल रहे थे पर उन के मुकाबले में मेरी स्पीड बहुत कम थी! परिणाम ये कि जब हम ऊपर पहुंचे तो सूर्य देवता अस्त होने से जस्ट पहले मेरी इंतज़ार कर रहे थे।
इस पहाड़ पर एक कार और एक परिवार को मौजूद देख कर मेरे तो हाथों के तोते ही उड़ गये! अगर यहां तक आने का कार का रास्ता भी है तो नटवर जी मुझे इस संकरी पगडंडी से क्यों लेकर आये? अगर मैं उस संकरी पगडंडी से गिर जाता तो? मर जाता तो? फिर मैं अपनी बीवी – बच्चों को क्या मुंह दिखाता? पर नटभर भाई ने बताया कि जंगल ट्रेल के प्रोग्राम के अन्तर्गत यहां तक आने का आधिकारिक रास्ता तो बहुत महंगा है, वन विभाग प्रति व्यक्ति 1500 के करीब चार्ज कर लेता है! बस, मैने 1500 रुपये बचा लिये हैं, यह जानकारी पाकर तो मैं गद्गद हो गया हूं ! यहां आकर सूर्यास्त के अलावा हिमालय के झकाझक सफ़ेद बर्फ़ से लदे पर्वत शिखरों के भी दर्शन किये जा सकते हैं ! वास्तव में हिमालय दर्शन ही यहां तक आने का प्रमुख आकर्षण है। पर नटवर भाई ने बताया कि जंगलों में आग लगी हुई है जिसके कारण वातावरण में इतना अधिक धुआं है कि जो हिमालय बिल्कुल सामने मौजूद रहते हैं, वह आजकल नज़र ही नहीं आ रहे हैं!
अंधेरा होने लगा है, अपने अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन करके हम आहिस्ता – आहिस्ता कैंप तक पहुंच गये और हट में पहुंच कर अपनी ओरछा की पुरानी यादें ताज़ा करते रहे! आज की फोटो भी लैपटॉप में ट्रांसफ़र करनी थीं ! जब एक लड़के ने आकर बताया कि भोजन तैयार है तो हम डाइनिंग हॉल में जा बैठे ! खाना खाकर बाहर आये तो मौसम में काफ़ी ठंडक थी ! शायद यही सोच कर नटवर जी ने पहले से ही बोन फ़ायर का प्रबन्ध किया हुआ था! आग के पास बैठ कर हमारी देश विदेश की, घुमक्कड़ी की और फोटोग्राफ़ी की चर्चा का बाज़ार भी गर्म रहा !
आज की कहानी बस इतनी ही ! कल फ़ाग वाला दिन है जो स्कूल कॉलिज के दिनों में मेरे लिये बहुप्रतीक्षित दिन हुआ करता था ! पर समय के साथ – साथ बहुत कुछ बदल जाता है! अब तो माथे पर गुलाल का एक टीका लग जाये तो भी काफ़ी है! देखें, कल क्या – क्या होता है!
आपने यहां तक साथ दिया, इसके लिये हार्दिक आभार ! अपना स्नेह आगे भी बनाये रखेंगे यही सोच कर पुनः उपस्थित हो जाऊंगा ! नमस्कार मित्रों !
पुराने हरिद्वार के बोर्ड के नीचे से निकल चुकी हूं अपनी रांशी यात्रा के दौरान में😊😊
शानदार यात्रा लिखी हैं। आगे चलने को हम भी बेताब है।
आपका हार्दिक आभार दर्शन बुआ ! अगला भाग लेकर जल्द ही हाज़िर हो जाऊंगा !
वाह ! पढ़कर मजा आ गया । अपनी कानाताल यात्रा का बड़ी ही खूबसूरती से बखान किया आपने, पहाड़ो में ड्रायविंग गुण बतलाये आपने । पहुचते जंगल ट्रेक नटवर भाई के साथ .. अलग ही आनन्द आया होगा ।
बहुत – बहुत धन्यवाद रितेश ! नटवर भाई से तीन दिन की ओरछा वाली मुलाकात ही तो थी जो मुझे उनकी ओर और उनको मेरी ओर खींच रही थी ! उनके साथ कानाताल में दो दिन खूब व्यस्त व मज़ेदार रहे! खूब घुमाया फिराया उन्होंने !
मैने अक्सर देखा है कि मैदानी इलाकों से पहुंचने वाली प्राइवेट कारों के ड्राइवर पहाड़ों में ड्राइविंग को भी दिल्ली – गुड़गांव – चंडीगढ़ जैसी ड्राइविंग समझने की गलती कर बैठते हैं ! अगर एक भी व्यक्ति इन नियमों को समझ कर अपनी ड्राइविंग को सुधार सका तो मेरा प्रयास सफ़ल हो गया समझूंगा !
बहुत दिनों बाद आपका लेख पढ़ने को मिला।वही चिर परिचित चुटीला अंदाज।ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कि कोई बिना मुस्कुराए रह सके।सोलो घुमक्कड़ी पढ़कर आनन्द की अनुभूति हुई।लगता है बहुत समय से सोलो घूमने का जो सपना हम पाले हुए थे अब उसे मूर्त रूप देने का समय आ गया है।पर हाय रे कोरोना।आपने जो पहाड़ पर ड्राइविंग के नियम बताये उनसे अक्षर: सहमत हूँ।अब आगे आपको जाम में नहीं फँसना होगा इसके लिए भी गडकरी जी ने इंतजाम कर दिया है।दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे अभी दो दिन पहले ही उसकी यात्रा की है।एक नंबर रोड बनी है।
बहुत बहुत आभार है आपका प्रिय रूपेश ! आपके ऐसे मधुर विचार और भावनाएं ही तो हैं जो मुझे अपने संस्मरण लिखने के लिये प्रेरित करते हैं ! स्नेह बनाये रखें !
दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे का शुभारंभ हो गया है, ये मेरे लिये बहुत सुखद समाचार है! अगली बार सहारनपुर जाऊंगा तो इसी सड़क को पकडूंगा ! टोल देकर यदि सरदर्द से मुक्ति मिले तो समझ लेंगे कि क्रोसिन का पत्ता खरीद लिया था! 🙂
आपका यह शायद पहला यात्रा संस्मरण पढ़ रहा हूं, और मंत्र मुग्ध हो गया आपकी लेखन शैली और सजीव वर्णन पढ़कर। अंत में ऐसा लगा जैसे आपको यह भाग जल्द पूरा करना हो। आपसे यह मेरी दूसरी यादगार मुलाकात रही। आगे भी चाहूंगा कि किसी यात्रा में आपसे उम्दा फोटोग्राफर और सहयात्री का साथ फिर मिले।
प्रिय नटवर जी,
मेरी ये कानाताल यात्रा निश्चय ही आपको ही समर्पित की गयी है! मैं गुड़गांव से चल कर ऋषिकेश तक भी यह निर्णय नहीं कर पाया था कि मुझे आखिर जाना कहां है! पर आपका चेहरा बार – बार सामने आ रहा था, सो स्टीयरिंग कानाताल की ओर घूम गया! और मेरा ये प्रवास इतना सुखद व स्मरणीय रहा, इसके लिये आपको शाब्दिक धन्यवाद देना पर्याप्त नहीं है! अगला भाग जल्द ही प्रस्तुत करूंगा!
एक बार पुनः आभार!
शानदार यात्रा रही आपकीं , बहुत अच्छा लिखा आपने यात्रा को।
प्रिय वीरेन्द्र शेखावत,
आपका इस ब्लॉग तक आने के लिये बहुत बहुत आभार! लगता है, यात्रा आगे बढ़ाने का वक्त आ ही गया है! 🙂
सादर सस्नेह,
सुशान्त सिंहल
सरजी बहुत बढ़िया मुझे लगता था कि भार्या मेरी ही गुस्सा होती है घूमने का नाम सुनकर
मौके मौके की बात होती है, भाई! कभी गुस्सा तो कभी साथ घूमने को उत्सुक!
आपका ये पोस्ट पसन्द आई, इसले लिये हार्दिक आभार!
लगे हाथ स्टे इन का भी रिवीयू भी कर देते
बिल्कुल सही बात ! सच कहूं तो मैने कुछ पंक्तियां Stay in Camp Kanatal के संबंध में लिखी भी थीं पर फ़िर लगा कि ये कैंप एक पूरी पोस्ट मांगता है! आजकल माइक्रो ब्लॉगिंग का जमाना है, ऐसे में बहुत लंबी – लंबी पोस्ट लिख भी दो तो उनको पढ़ेगा कौन? पोस्ट छोटी – छोटी हों, जानकारी व चित्रों से भरपूर हों, तो हम आशा कर सकते हैं कि पाठक उन तक पहुंच जायेंगे!
आपने तो इतनी लंबी यात्रा की । मुझे यह पोस्ट पढ़ने में बहुत समय लगा, सारे चित्र देखता गया, कल्पना भी करता रहा कि यदि मैं भी साथ होता तो आपकी ड्राइविंग में कुछ मदद करता और फोटोग्राफी के कुछ गुर भी आपसे सीखता ।
सच कहूं तो ईर्ष्या होती है । इस विपरीत परिस्थितियों में भी आपने साहस किया ।
एक बार पूछ ही लेते कि चलोगे क्या ?
पूरी यात्रा सकुशल सम्पन्न हुई यह सुखद है ।
ऐसी ही अन्य अनेकों यात्राओं के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
कश्मीर सिंह
आप सच मुच में ही साथ चलते या सिर्फ़ मेरा दिल रखने के लिये कह रहे हैं? 🙂 सच में, आप हैदराबाद से वापिस उत्तर भारत कब तक आ रहे हैं? इस बार हम इकठ्ठे ही चलेंगे और एक सप्ताह को चलेंगे! वो कहते हैं ना १ और १ ग्यारह हो जाते हैं ! आप तो अकेले भी ११ से ज्यादा हैं !
आपके कमेंट्स के व्यग्रता से प्रतीक्षा रहती है और ये मेरा सौभाग्य ही तो है कि आप कभी न तो अपनी अनुपस्थिति से निराश करते हैं और न ही अपने हृदय को प्रफुल्लित करने वाले कमेंट देने में कंजूसी करते हैं! स्वाभाविक है कि आगे ही आगे लिखते रहने के लिये ऊर्जा मिल जाती है बहुत सारी !
बहुत सारा आभार और शुभ कामनाएं हम दोनों की प्रस्तावित सामूहिक यात्रा के लिये !
बहुत सुंदर लिखा है आपने, मज़ा आया पढ़ कर, अगले भाग का इंतजार है
आपका हृदय से आभार मोनालिसा जी ! मुझे भी अगले दिन की यात्रा का इंतज़ार है कि कब वह पूरी हो और आप सब सुधीजनों के सम्मुख प्रस्तुत कर सकूं !
हार्दिक मंगल कामनाओं सहित,
वही चुटीला हास्य। बहुत समय बाद आपको पढ़ा, मुस्कुराते हुए। एकल यात्रा और कोप भवन का एकल वास, नॉर्थ साउथ पोल हो गए आप तो। उम्र थोड़ी और दुनिया बड़ी , इसलिए जो काया वही अपना।
प्रिय जयश्री, आपका इस ब्लॉग तक आगमन मेरे लिये सदैव आह्लाद का विषय होता है और उस पर आपके गागर में सागर जैसे हृदयस्पर्शी कमेंट और मिल जायें तो पूरा दिन सुखमय हो जाता है। जब तक पन्ना – जबलपुर – खजुराहो के घुमक्कड़ी महामिलन में चलने का कार्यक्रम था, तब तक श्रीमती भी साथ चलने वाली थीं पर जब कोरोना के कारण उस पर ग्रहण लग गया तो फिर पहाड़ों में ’झोंपड़ियों’ में जाकर रहने का आइडिया उनको रास नहीं आया! वह पर्यटक हैं और मैं घुमक्कड़! मैं उनके पर्यटन में सहभागी होता हूं पर वह घुमक्कड़ी की रिस्क नहीं लेतीं! 😉 😀
सुशांत जी आपका आत्म बल और पर्यटन के प्रति आत्मिक लगा है दोनों का अभिनंदन है। वास्तव में उम्र कोई मायने नहीं रखती अवसर की समझ और जीने की ललक बहुत महत्वपूर्ण होती है। आप प्रकृति और संस्कृति दोनों के प्रेमी हैं अतः आपका जीवन आनंद और अपनत्व से सदैव पूरित रहेगा । आपका यात्रा वृतांत पठनीय और प्रेरणास्पद है। अपने संस्मरण हम सब लोगों से साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हालांकि आपके ऐसे प्रयासों से हमारे सुप्त मन में परिस्थिति वश जो रुकावट आई है उसका धैर्य कुछ जवाब देने लगा है हो सकता है किसी सफर में हम साथ साथ हो।
प्रिय डा. दीपेन्द्र जी, सादर सस्नेह नमस्कार!
आज अपनी ब्लॉगपोस्ट पर आपका स्नेह परिपूरित कमेंट पाकर बहुत उल्लसित हूं! आप संभवतः पहली बार ही मेरे ब्लॉग तक आये, यात्रा संस्मरण न केवल ध्यान से पढ़ा बल्कि कमेंट भी किया! हर लेखक की भांति यह मेरे लिये भी बहुत महत्वपूर्ण है और लिखते रहने के लिये वांछित इच्छा और ऊर्जा प्रदान करता है! ये बिल्कुल सही कहा आपने कि आजकल की असामान्य परिस्थितियों में हमें अपनी घुमक्कड़ी की चाहत पर नियंत्रण करना पड़ रहा है। पर इस रात की कभी तो सुबह होगी! घुमक्कड़ी में आपका साथ मिले तो यह तो सोने में सुहागे जैसी बात हो जायेगी।
कृपया अपना स्नेह आगे भी बनाये रखें! सस्नेह,
सुशान्त सिंहल