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18 मार्च 2012
प्रिय मितरों ! कैसे हैं आप? हम दो रातें श्रीनगर में बिता चुके हैं और आज हमारी काश्मीर यात्रा का तीसरा दिन है। हमारे सहयात्री और टूर डिज़ाइनर पंकज और चीनू ने आज गुलमर्ग चलने का प्लान बनाया हुआ है। पंकज का एक और खतरनाक सा प्लान ये है कि आज का नाश्ता हम अपने होटल के कमरे में खुद ही बनायेंगे। लो जी, फिर तो हो गयी गुलमर्ग की सैर ! 🙁
अब जब प्लान बना लिया तो बना लिया! पंकज और चीनू को तो बच्चे को तैयार करके खुद तैयार होने में बहुत समय लगने वाला था, सो मैं होटल से उतर कर निकट की ही एक दुकान से ब्रेड, टमाटर, खीरा, प्याज और मक्खन का एक पैक ले आया। श्रीमती जी तब तक बिजली की केतली में दूध और पानी गर्म कर चुकी थीं। यानि कॉफी, चाय और बच्चे के लिये दूध का इंतज़ाम किया जा चुका था। हम चारों ने मिल कर प्याज, टमाटर और खीरे की स्लाइस तैयार कीं और मक्खन लगा लगा कर सेंडविच तैयार कर लिये। 9 बजे तक हम सब तैयार होकर होटल से नीचे उतर आये ताकि गुलमर्ग के लिये प्रस्थान किया जा सके।
गुलमर्ग का असली नाम गौरी मार्ग बताया जाता है यानि गौरी देवी की यात्रा हेतु मार्ग जिसे बाद में गुलमर्ग कर दिया गया। गुल यानि फूल और मर्ग यानि चरागाह (meadow)। गुलमर्ग यानि फूलों की चरागाह ! समुद्रतल से श्रीनगर की औसत ऊंचाई 5100 फीट है तो गुलमर्ग की 8690 फीट ! अगर आप पूछेंगे कि भला इतनी चढ़ाई चढ़ने का क्या लाभ? तो मित्रों, आपको बताना चाहूंगा कि हमें प्रीतम प्यारे ने लिखित गारंटी दी थी कि वहां हमें चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ मिलने वाली थी।
अब ये तो आपको पता ही होगा कि इंग्लैंड से यहां हिन्दुस्तान में आकर अंग्रेज़ ’हाय गर्मी ! हाय गर्मी !! रोते रहते थे और इसीलिये यहां ठंडी – ठंडी जगह की तलाश में भटकते रहते थे। इसी चक्कर में इन अंग्रेज़ों ने शिमला, मसूरी, नैनीताल, ऊंटी जैसी जगहों की खोज कर डाली और जब भी मौका मिला, अपनी महारानी की निगाह बचा कर इन पहाड़ों पर सरक लेते थे। गुलमर्ग की कहानी भी कुछ जुदा नहीं है। गर्मियां यहां पर बिताने के लिये अंग्रेज़ों ने यहां पर तीन – तीन गोल्फ़ कोर्स बना डाले जिनमें एक तो सिर्फ उनकी मेम लोगों के लिये ही रिज़र्व था। जंगली जानवरों का शिकार करो और गोल्फ़ खेलो। गर्मियों में जो गोल्फ़ कोर्स है, सर्दियों के महीनों में बर्फ़ जमी हुई होने के कारण वह स्कीइंग और स्नो – बोर्डिंग के लिये आदर्श मैदान बन जाता था।
श्रीनगर से गुलमर्ग तक की यात्रा कुल 51 किमी बैठती है। इसमें शुरु के 38 किमी तो सीधी सादी सड़क पर ही चलना होता है। इस सड़क पर कहीं हमें सौन्दर्य के दर्शन नहीं हुए। वज़ह यही कि प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से यह पतझड़ का मौसम था। 38 किमी चलने के बाद आया तंगमर्ग जो पहाड़ की बिल्कुल जड़ में बसा हुआ एक छोटा सा कस्बा है। इसमें छोटा सा बाज़ार भी है। प्रीतम प्यारे ने यहां पर कार रोक कर कहा कि आप यहां से जूते ले लें।
“कमाल है भई! हम जो इतने अच्छे और महंगे जूते पहने हुए हैं, उनमें क्या खराबी है? हम क्यों लें और नये जूते?” पंकज ने तुनक कर कहा!
“साब जी, मैं नये नहीं पुराने जूते लेने को कह रहा हूं और वह भी कुछ घंटों के लिये किराये पर ! मेरा मतलब है स्नो बूट! गुलमर्ग में बर्फ़ में चलने के लिये आपको स्नो बूट की जरूरत पड़ेगी। बिना उनके आप बर्फ़ में चल ही नहीं पायेंगे। आपके ये चमड़े के जूते तो दो मिनट में ही बरबाद हो जायेंगे! और ये दोनों मैम तो हील वाली सेंडिल पहने हुए हैं, इनका क्या?” प्रीतम प्यारे ने प्यार से समझाया!
“ठीक है भई!” एक दुकान में गये तो वहां फर्श पर जूतों के ढेर में से हम चारों ने अपने – अपने साइज़ के रबड़ के जूते छांट लिये। हमारे से पहले भी, सैंकड़ों लोगों ने जिन जूतों को पहना होगा, उनको पहनना कतई अच्छा नहीं लगा पर ’मरता क्या न करता’ वाली स्थिति थी। प्रीतम प्यारे के कारण हमें कोई सिक्योरिटी जमा नहीं करानी पड़ी। परन्तु दोनों महिलाएं तंगमर्ग से लेकर गुलमर्ग तक के 13 किमी के सफ़र के दौरान नाक भौं सिकोड़ती ही रहीं, बड़बड़ाती रहीं ! इनकी फिटिंग सही नहीं है, बहुत uncomfortable हैं, बड़े गन्दे से हैं ” और भी न जाने क्या क्या !!! पर ऐसे जूते हम खरीदते तो जीवन भर शू रैक में पड़े ही रहते, किसी काम तो आने वाले थे नहीं।
तंगमर्ग से गुलमर्ग तक का मार्ग तीव्र मोड़ – तोड़ वाला पहाड़ी मार्ग है जिसकी लंबाई 13 किमी है। तंगमर्ग की समुद्र तल से ऊंचाई 7080 फीट है और गुलमर्ग की 8690 फीट ! यानि 13 किमी की इस यात्रा में हम लगभग 1600 फीट की चढ़ाई चढ़ गये थे। स्वाभाविक ही था कि इतनी चढ़ाई चढ़ते हुए हमें रास्ते में हमें अपने चारों ओर बर्फ़ भी दिखाई देने लगी। रास्ते में एक व्यू प्वाइंट मिला तो गाड़ी रोक कर फोटो भी खींच ली गयीं।
गुलमर्ग पहुंचे तो कार से बाहर आते ही मज़ा आ गया। भले ही मैं मसूरी में बर्फ़बारी होती हुई देख चुका था, पर यहां गुलमर्ग में तो जहां तक भी निगाह जा सकती थी, बर्फ़ ही बर्फ़ थी। पैर मारो तो पाउडर सी बिखरती हुई बर्फ़ ! सूर्य की किरणों को आंखों में reflect करती हुई बर्फ़ । सड़क पर, सभी मकानों, होटलों की छतों पर बर्फ़ ही बर्फ़ पड़ी हुई थी। सूर्य देवता कितना भी प्रयास कर लें, कई कई फुट ऊंची बर्फ़ पिघलाने की उनकी क्षमता नज़र नहीं आ रही थी। टैक्सी स्टैंड से हम सब पैदल – पैदल ही उस सड़क पर चल पड़े जिस पर आगे जाकर हमें गंडोला यानि रोप वे मिलने वाला था। वाहनों के व पैदल यात्रियों की सुविधा के लिये, उस सड़क पर बर्फ़ सड़क के दोनों किनारों पर सरका दी गयी थी।
स्कीइंग तो आप जानते ही होंगे, लकड़ी या लोहे के दो फट्टों के ऊपर खड़े हो जाते हैं और जूते उन फट्टों पर अच्छे से कस लेते हैं। हाथ में दो छड़ी लेते हैं जो नीचे से बहुत नुकीली होती हैं। जब पहाड़ से नीचे बर्फ़ के ऊपर इन फट्टों के सहारे रपटते हुए आते हैं तो ये दोनों स्टिक आपके लिये ब्रेक, क्लच, गीयर और स्टीयरिंग का काम करती हैं। पहाड़ से लेकर ढलान तक तय की जाने वाली ये दूरी कुछ ही मिनटों में सम्पन्न हो जाती है। पर एक बार रपटते हुए नीचे आने के बाद पुनः ऊपर कैसे जायें? इतना सामान कैसे ढोया जाये? इसका हल निकाला गया रोप वे बना कर !
- गुलमर्ग बेस प्वाइंट जहां से गोन्डोला शुरु होता है – समुद्र तल से 2600 मीटर / 8530 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है।
- पहली स्टेज कोंगडूरी पर्वत है जहां तक जाने के लिये आप टिकट खरीद सकते हैं। समुद्र तल से 3747 मीटर / 12,293 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जिन लोगों को स्कीइंग करनी हो, वह यहां गोण्डोला छोड़ देते हैं और स्कीइंग करते हुए वापिस गुलमर्ग पहुंच जाते हैं।
- जो ज्यादा तीसमारखां लोग होते हैं, उनका मन इतने से नहीं भरता और वह दूसरी स्टेज का टिकट लेकर और ऊपर Apharwat hill top तक जाते हैं। इस हिल टॉप की समुद्र तल से ऊंचाई 4200 मीटर यानि 13780 फीट है। हाय दैया !! वहां से स्कीइंग बोर्ड पर खड़े होकर रपटते हुए यानि “ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा” के फंडे में विश्वास करते हुए यूं ही रपटते – रपटते 5250 फीट नीचे गुलमर्ग तक उतर आते हैं। गुलमर्ग में ऐसे तीसमार खां लोग हमें विदेशी ही मिले जो अपनी एक ’जान’ को बगल में और दूसरी ’जान’ को हथेली पर लिये हुए स्किइंग कर रहे थे!
चार – पांच घंटे खूब मस्ती करके हम गुलमर्ग से श्रीनगर की ओर लौटने लगे तो देखा कि प्रीतम प्यारे के चेहरे पर चिन्ता की घनी लकीरें खिंची हुई हैं। पूछने पर उसने बताया कि ढाका में भारत – पाकिस्तान के बीच में एशिया कप का पांचवा क्रिकेट day & night मैच चल रहा है और पाकिस्तान ने भारत को 330 रनों का लक्ष्य दिया हुआ है। गौतम गंभीर सिर्फ 2 बॉल खेल कर 0 पर चलता बना ! अब अगर तेंदुलकर भी चल दिया तो मैच तो हाथ से जायेगा ही, श्रीनगर में दंगा – फसाद भी हो सकता है। जब पाकिस्तान हारे तो ये लोग दुबक जाते हैं और अगर कहीं पाकिस्तान मैच जीत जाता है तो फिर अपनी खुशी दंगा – फ़साद करके प्रकट करते हैं! आज का मैच तो भारत ने हारना ही है, तो जल्द से जल्द आप लोगों को होटल तक पहुंचा देने की जिम्मेदारी है। आप जल्द से गाड़ी में बैठो और चलते हैं!
श्रीनगर तक पहुंचते – पहुंचते दंगा – फसाद हो सकता है, ये सुन कर हम सब परेशान थे। कार में प्रीतम प्यारे ने रेडियो पर कमेंटरी चालू की हुई थी। सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली क्रीज़ पर थे। जब तक दोनों क्रीज़ पर थे, तब तक उत्साह बना हुआ था कि ये दोनों मिल कर इतना भारी भरकम लक्ष्य भी हासिल कर ही लेंगे। भारत ने 94 गेंदों पर पन्द्रह ओवर में 100 रन बना लिये थे और सचिन और कोहली दोनों अपना अपना अर्धशतक बनाने के करीब थे। पर जैसे ही सईद अजमल की गेंद पर यूनिस खान ने सचिन को लपक लिया, प्रीतम प्यारे सहित हम सब को एक – एक मिनी हार्ट अटैक आया। विराट का साथ देने रोहित शर्मा जी आ गये पर अब कार में हर कोई दम साधे कमेंटरी पर कान लगाये हुए चुपचाप सुन रहा था। जब शाहिद अफ़रीदी ने रोहित का कैच पकड़ा, रोहित शर्मा 83 बॉल पर 68 रन बना चुका था और दूसरे छोर पर विराट कोहली आज कुछ और ही प्रण किये दे दनादन चौके पर चौके उड़ाये चला जा रहा था।
जब 148 बॉल पर 183 रन बना कर विराट कोहली कैच आउट हुआ, भारत अपने लक्ष्य के काफी नज़दीक आ चुका था और केवल चार विकेट गिरी थीं। बाद का बचा हुआ खेल, जैसा कि अक्सर होता है, रैना और धोनी ने निपटा दिया। Winning stroke लगाने का विशेषाधिकार धोनी का था। ढाका के मैदान में दर्शकों का हल्ला ज्यादा था या हमारी कार में हम पांच लोगों ने ज्यादा आसमान सिर पर उठा रखा था, ये तो कभी निर्णय नहीं हो पायेगा पर प्रीतम का एक्सपर्ट कमेंट यही था कि अब कोई समस्या नहीं है। कोई दंगा – फसाद नहीं होने वाला है।
शान से श्रीनगर आकर हमने एक रेस्तरां में डिनर लिया और मूछों पर ताव देते हुए अपने होटल में आये और कैमरा व मोबाइल चार्जिंग पर लगा कर, व कैमरे के मैमोरी कार्ड को लैपटॉप में खाली करके सो गये।
क्रमशः
Very well written, quite comprehensive. You can indeed say those were the best days of my life.2012 Gulmarg looked beautiful, aaj pata nahi kya hal hai… Loved your blog sir.
Dear Ashish,
Thank you very much for your encouraging words. Coming from a celebrated blogger and travel writer, your visit to the blog and your beautiful words mean a lot to me. Please keep visiting and encouraging.
Best regards,
Sushant Singhal