क्या आपने आभानेरी नाम सुना है? नहीं सुना? चांद बावड़ी तो सुना होगा? वह भी नहीं? तो आइये, आज आपको लिये चलते हैं राजस्थान के दौसा जिले के आभानेरी गांव में जो हमारे देश के, यानि देसी पर्यटकों के लिये भले ही अनजाना हो, परन्तु विश्व के अलग अलग देशों से भारत भ्रमण हेतु आने वाले पर्यटकों के लिये राजस्थान का एक प्रमुख आकर्षण है जिसको देखे बिना वह भारत से वापिस नहीं जाना चाहते।
आभानेरी जयपुर से मात्र 90 किलोमीटर दूर है, और जयपुर – आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 पर स्थित है। ऐसे में हम जयपुर घूमने जाएं और आभानेरी में चांद बावड़ी और हर्षद माता मंदिर देखे बिना वापिस आ जायें, यह बात कुछ जमती नहीं है। बाय द वे, जैसा कि चांद बावड़ी परिसर में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा लगाया गया शिलापट्ट बताता है, आभानेरी का मूल नाम आभानगरी था जो काल के प्रवाह में बिगड़ते बिगड़ते आभानेरी हो गया।
आभानेरी स्वयं में एक छोटा सा गांव है किन्तु इस गांव को विश्व भर में पहचान देती है यहां मौजूद चांद बावड़ी! आठवीं शती में निकुंभ वंश के राजा चन्द्र द्वारा बनवाई गई चांद बावड़ी आज भी देश विदेश के हज़ारों पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाती है। हम अपने फरवरी 2016 के प्रवास के दूसरे दिन आभानेरी पहुंचे थे। हमें आभानेरी जाना है, यह हम सहारनपुर से ही तय करके चले थे और कुछ दिन पूर्व पुरातत्व विभाग को एक ई-मेल भेज कर प्रार्थना भी की थी कि हमें चांद बावड़ी में प्रतिबंधित क्षेत्र में (यानि रेलिंग से नीचे) जाने की अनुमति दी जाये। हमें ई-मेल का तो कोई जवाब नहीं मिला था, परन्तु जब हमने चांद बावड़ी पहुंच कर उसकी देख रेख के लिये जिम्मेदार अधिकारी से बात की और नीचे जाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने अपने एक सहायक को हमारे साथ कर दिया और कहा कि सावधानी से नीचे उतरियेगा क्योंकि एक बार लापरवाही और मस्ती में एक पर्यटक नीचे गिर गया था।
राजस्थान जैसे जल की कमी से जूझने वाले प्रदेशों में राजाओं ने अपने राज्य के जल संबंधी आवश्यकता की पूर्ति के लिये जल-संग्रह की व्यवस्था की और इसीलिये स्थान स्थान पर बावड़ियां बनवाईं, यह एक सामान्य सी बात लगती है, पर जल संग्रह हेतु बनाया गया कोई भवन इतने कलात्मक ढंग से बनाया जाये कि 1300 साल बीत जाने के बाद भी वास्तुकला के अद्भुत नमूने के रूप में दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता रहे, यह निश्चय ही अद्भुत है।
शिलापट हमें यह भी बताता है कि चांद बावड़ी का निर्माण राजा चन्द्र ने आठवीं शती में किया था। चांद चन्द्र का ही अपभ्रंश है। चांद बावड़ी भवन निर्माण और जल-संचय तकनीक का एक अद्भुत नमूना तो है ही, साथ ही यह इसके निर्माता की विराट् दृष्टि और कला प्रेम का भी शानदार नमूना है।
बावड़ी से तात्पर्य एक ऐसे विशाल चौकोर कुएं से है जिसमें से जल लेने के लिये उतरने हेतु विभिन्न दिशाओं में सीढ़ियां बनी हुई हों! चांद बावड़ी की यदि बात करें तो इसकी गहराई 7 मंजिल (लगभग 19.5 मीटर गहरा) के बराबर है। इसमें उतरने के लिये तीन दिशाओं में 3500 जुड़वां सीढ़ियां बनाई गई हैं। संपूर्ण निर्माण भूरे – काले पत्थर से हुआ है। जैसे – जैसे हम सीढ़ियां उतरते जाते हैं, बावड़ी का आकार संकुचित होता चला जाता है।
बावड़ी परिसर में प्रवेश करें तो सबसे पहले हमें अपने सामने व दायें-बायें लगभग 50 फुट चौड़े एक विशाल गलियारे के दर्शन होते हैं। जिस स्थान पर खड़े होकर हम गलियारे को देख पाते हैं, वह वास्तव में बावड़ी की सबसे ऊपर की मंजिल की छत है जिसके नीचे के विभिन्न तलों तक जाने के लिये सीढ़ियां हैं और हर तल पर कमरे, बरामदे व झरोखे हैं जो संभवतः राज परिवार के उपयोग के लिये थे।
बाईं या दाईं ओर से कुछ सीढ़ियां उतर कर हम गलियारे पर जा सकते हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है, इस गलियारे की तीनों दिशाओं से बावड़ी में उतरने हेतु 3500 जुड़वां पैड़ियां उपलब्ध हैं। इन पैड़ियों की ज्यामितीय संरचना तकनीकी रूप से अत्यन्त शुद्ध और कलात्मक है। इन पैड़ियों की छाया एक ऐसा सम्मोहक दृष्य उत्पन्न करती है कि पर्यटक इन पैड़ियों को घंटों निहारते रहते हैं और इनके निर्माताओं के तकनीकी ज्ञान और कुशलता के बारे में सोच – सोच कर चमत्कृत होते रहते हैं। मैं तो यही निश्चय नहीं कर पाया कि इसका निर्माण करने के लिये ऊपर से नीचे की ओर बढे होंगे या नीचे से बनाते बनाते ऊपर आये होंगे ! चौथी दिशा में बने हुए मंडप, गैलरी, झरोखे और सीढ़ियां मानों हमारी प्रतीक्षा करते हैं कि इन पैड़ियों को ही निहारते रहोगे या हमारी ओर भी निगाह डालोगे? वास्तव में इन झरोखों, और मंडप की आकृति व उन पर उत्कीर्णित मूर्तियां व अन्य कलाकृतियां देख कर हम भौंचक्के रह जाते हैं। 1300 साल बीत जाने के बावजूद उनकी वर्तमान स्थिति अभी भी हमें चमत्कृत कर देने के लिये पर्याप्त है।
इस बावड़ी का आकार इतना बड़ा है इसमें राज परिवार ही नहीं, पूरी प्रजा भी ग्रीष्म काल में राहत पाने के लिये आकर आराम से बैठती होगी। एक अनुमान के अनुसार इस बावड़ी की प्रथम मंजिल से नीचे उतरते – उतरते तापमान कम – से – कम पांच छः डिग्री सेल्सियस कम हो जाता है। यूं तो राजस्थान में और भी बावड़ी हैं परन्तु सबसे अधिक सुन्दर और सबसे बड़ी होने के कारण चांद बावड़ी राजस्थान में सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
आजकल चांद बावड़ी पुरातात्विक विभाग के नियंत्रण में है और पर्यटकों को बावड़ी में नीचे उतरने से रोकने के लिये विभिन्न तलों पर तीन रेलिंग लगाई गयी हैं। पुरातत्व विभाग के कर्मचारियों ने हमें बताया कि अपनी लापरवाही के कारण एक – दो पर्यटक ऊपर से सीधे तेरह मंजिल नीचे कुएं में गिर जाने के बाद विभाग की ओर से पर्यटकों की सुरक्षा के लिये रेलिंग लगा दी गई हैं और सीढ़ियों पर नीचे उतरना प्रतिबंधित कर दिया गया है। रेलिंग से दूसरी दिशा में गलियारे के साथ – साथ बरामदे व कमरे बने हुए हैं जो कलादीर्घा के रूप में उपयोग किये जा रहे हैं। यहां प्रदर्शित मूर्तियां आठवीं शती और उसके आस – पास की बताई जाती हैं। यद्यपि इन मूर्तियों में कुछ खंडित अवस्था में भी हैं पर इन सभी मूर्तियों को देख कर उस काल की मूर्ति और स्थापत्य कला की ऊंचाइयों का सहज ही आभास हो जाता है। चांद बावड़ी का निर्माण सफलतापूर्वक पूर्ण होने के बाद राजा चन्द्र ने इसे हर्षद माता को समर्पित किया था। बताया जाता है कि ये मूर्तियां मूलतः बावड़ी की नहीं हैं, बल्कि बावड़ी के ठीक सामने मौजूद हर्षद माता मंदिर से विदेशी आक्रमण के दौरान सुरक्षा की दृष्टि से यहां लाकर रखी गयी थीं। हर्षद माता मंदिर भी आठवीं शती का ही बताया जाता है और जीर्ण शीर्ण अवस्था में होने के बावजूद स्थापत्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।
हर्षद माता मंदिर
चांद बावड़ी के ठीक सामने मौजूद हर्शद माता मंदिर राजा चन्द्र के राजपरिवार की कुलदेवी का मंदिर माना जाता है। काल के थपेड़ों ने इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया है पर आज भी जो कुछ मौजूद है, वह अद्भुत है। ऊंचे आसन पर विराजमान गर्भगृह के चारों ओर पत्थर के परकोटे पर उत्कीर्णित मूर्तियां अपनी कलात्मकता से आपको आकर्षित किये बिना नहीं रह सकतीं !
आभानेरी कैसे पहुंचें ?
यदि आप जयपुर – भरतपुर – आगरा यात्रा पर निकले हैं तो इसके लिये राष्ट्रीय राजमार्ग 21 उपलब्ध है और इस राजमार्ग से अलवर के लिये जो मार्ग मिलता है, उस पर केवल 10 किमी चल कर आभानेरी पहुंचा जा सकता है। आप बड़ी सरलता से आभानेरी में चार-पांच घंटे रुकते हुए अपनी यात्रा जारी रख सकते हैं।
आभानेरी विभिन्न नगरों से कितना दूर है?
आभानेरी – जयपुर – 90 किमी.
आभानेरी – अलवर – 75 किमी
आभानेरी – भरतपुर – 110 किमी
आभानेरी – आगरा – 163 किमी
जयपुर से आभानेरी जाने आने के लिये आप फुल टैक्सी भी कर सकते हैं, टोल रोड होने के कारण आपको इस सड़क पर टोल टैक्स तो देना पड़ता है किन्तु यह राजमार्ग यात्रा की दृष्टि से बहुत आरामदेह और सुविधाजनक है। मौसम की दृष्टि से देखें तो राजस्थान घूमने हेतु अक्तूबर से फरवरी तक का समय सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यदि आप जयपुर पहले भी घूम चुके हैं किन्तु आभानेरी अभी तक नहीं गये हैं तो हमारी बात मानिये और आभानेरी भी अवश्य देख कर आइये। जयपुर शहर में मौजूद सिटी पैलेस, शीश महल, जन्तर मन्तर, अल्बर्ट म्यूज़ियम, आमेर फोर्ट, जयगढ़ फोर्ट आदि को देख कर ही अपनी यात्रा संपन्न हो गयी समझ लेना सही नहीं है। क्योंकि ऐसा करके आप भारत की अत्यन्त समृद्ध विरासत के एक छिपे हुए पहलू से अपरिचित ही रह जाते हैं।
बहुत सुंदर जगह बताई आपने… जयपुर व अलवर जाना हो चुका.. पता होता तो यहां अवश्य जाते.. पर एक बार जांगे जरुर.. थैक्स फार दिस
आदरणीय तिवारी जी,
सबसे पहले तो आपका आभार कि आप इस ब्लॉग तक आये, ये पोस्ट पढ़ी और उस पर अपना आशीर्वाद दिया। चांद बावड़ी वास्तव में ही मुझे बहुत सुन्दर व वैज्ञानिक संरचना लगी। वैसे मैने सुना है कि गुजरात और राजस्थान में और भी अनेक बावड़ी हैं जिनमें से कुछ तो बहुत अधिक सुन्दर हैं (जैसे रानी की वाव) पर जहां तक मेरी जानकारी है, आकार में सबसे बड़ी बावड़ी यही है। उस कालखंड के वास्तुविदों और उनको प्रश्रय देने वाले राजाओं को नमन करने को जी चाहता है।
कृपया अपना स्नेह यूं ही बनाये रखें ! आते रहें और अपने यात्रा संस्मरण प्रकाशित करने का भी हमें अवसर दें।
सादर,
सुशान्त सिंहल
सर जी आपकी दार्जलिंग की यात्रा को पढ़ते समय इसका लिंक मिला य मैने जिज्ञासा के लिये नही खोला बल्कि इसलिये खोला की ज जगह मेरे घर से 70 km दृर ह,बहुत सुंदर लिखा ह यहाँ के बारे में आपने यहाँ पर फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी ह,आप कभी दिल्ली से जयपुर जाओ तो NH 8 पर नीमराणा पड़ता ह वहाँ भी एक शानदार 8 मंजिल की बावड़ी ह.
प्रिय अशोक जी, आपने तो दिल ही लूट लिया है। चांद बावड़ी भी देख ली? धन्य हो प्रभु! अब एक कॉफी पिलानी तो बनती ही है! (मैं चाय नहीं पीता, पर अगर आप चाय ज्यादा पसन्द करते हैं तो चाय भी बनानी आती है मुझे!)
मैं जयपुर आजतक दो ही बार गया हूं, और दोनों बार ट्रेन से गया। नीमराणा के बारे में सुना है कि वह दिल्ली और जयपुर के बिल्कुल मध्य में है। अब तो मैं गुड़गांव में रहता हूं और दिल्ली-जयपुर हाइवे मेरे घर से पांच-सात किमी दूर ही है। इस बार जयपुर जाऊं या न जाऊं, पर कार लेकर आऊंगा और नीमराणा तथा अलवर जरूर देखूंगा। अलवर इसलिये कि वहां देखने को बहुत कुछ है, और नीमराणा इसलिये कि वहां आप हैं और जैसा कि आपने बताया, वहां पर भी एक बावडी है।
पढ़ते रहिये, लिखते रहिये! मेरी एक गन्दी आदत है और वह ये कि तीन – चार किश्तें लिख कर रुक जाता हूं। फिर नयी सिरीज़ शुरु कर देता हूं। (अगर सस्पेंस नॉवल लिखा करता होता तो मेरे पाठक यह जानने के लिये मेरा मर्डर कर देते कि मर्डर आखिर किसने किया था! )
अंकल जी कॉफी चलेगी आपके साथ और य तो मेरा परम सौभग्य ह जो आप मुझे अपने साथ काफी पिने का कह रहे हो,
और आप इस पोस्ट की क्यों कहा रहे हो हम तो बहुत पुराने ह आपको पढंने वाले,
“ऐसे पहुँचे हम मुम्बई क्या यात्रा लिखी थी आपने सुरेंद्र शर्मा को भी पीछे छोड़ दिया था आपँने व्यंग में.और हरिद्वार और देहरादून का तूफानी दौरा,कश्मीर चलना ह क्या सब पढ़ा ह सर बहुत मजा आता ह आपको पढ़ने में.हाँ अंग्रेजी में हाथ तंग ह,उसमे जो लिखते हो वो ऊपर से निकल जाता ह सब.