India Travel Tales

दुबई घुमा लाऊं आपको भी? भाग 03

प्रिय मित्रों,

आज दुबई में हमारा दूसरा दिन था जिसमें हमें कई विश्व कीर्तिमान देखने का सौभाग्य मिला।   पिछली पोस्ट में  आप पढ़ चुके हैं कि  कल हमारा पहला दिन था जिसमें सुबह 11.30 तक का समय तो दिल्ली से दुबई तक की यात्रा में ही बीत गया था, फिर होटल पहुंचे।  मीना बाज़ार की पैदल यात्रा की, ज्यूलरी की कुछ दुकानों में  विंडो शॉपिंग की।  उसके बाद हमें dhow cruise dinner हेतु ले जाने के लिये मिनी बस आ गयी, जहां हमने दो घंटे दुबई क्रीक पर dhow में गीत – संगीत – नृत्य सुनते और देखते हुए गुज़ारे, खूब सारी फोटो खींची, खाना खाया और फिर मिनी बस हमें वापस हमारे होटल पर छोड़ गयी।  अब आगे का किस्सा खास तौर पर आप ही के लिये ।  🙂

जैसी कि मेरी आदत है, मैं सोने से पहले अपनी दिन भर की फोटो की एक डुप्लिकेट सैट तैयार करता हूं, कैमरा और मोबाइल चार्जिंग पर लगाता हूं और फिर सो जाता हूं।  सो यही सब करके सो गया।  हमारे तय कार्यक्रम के अनुसार कल दोपहर में हमें 3 बजे के लगभग दुबई मॉल दिखाया जाने वाला था।

दुबई मॉर्निंग वॉक – मैं, मेरा कैमरा और दुबई ( A Photo Walk in Dubai)

सुबह आदत के अनुरूप 5 – 5-1/2 बजे मेरी आंख खुल गयी।  मन में आया कि होटल के कमरे में क्या पड़े रहना, चलो बाहर निकल कर देखा जाये कि आस – पास क्या – क्या है।  होटल की छत से दो मुख्य चीज़ें दिखाई दे रही थीं – एक तो दुबई फ्रेम और दूसरे कई सारी गगनचुम्बी इमारतों के बीच में अपना अलग जलवा दिखाती हुई बुर्ज खलीफा टॉवर। ऐसा लग रहा था कि  दुबई फ्रेम बिल्कुल पास में ही है, शायद 1 किलोमीटर ही हो!  बस, कैमरा गले में टांग कर मैं लोअर और चप्पल डाले हुए ही होटल से बाहर निकल आया। मन ही मन मैने दुबई फ्रेम तक जाने का लक्ष्य बनाया था।  मॉर्निंग वॉक भी हो जायेगी और दुबई के अन्तरंग दर्शन भी।

सबसे पहले होटल के सामने ही एक सुन्दर सी मस्जिद दिखाई दी जिसे अल मनखूल मस्जिद कहते हैं।  कल दुबई के इस सिटीमैक्स होटल (Citymax Hotel) में आने के बाद से हम लोग जब भी सड़क पर आये तो इस मस्जिद की मीनारें हमें बार – बार दिखाई दे जाती थीं और अपनी ओर आकर्षित करने लगती थीं।  बाद में छः दिनों में हमें दुबई में सड़कों पर आते जाते सैंकड़ों मस्जिदें दिखाई दीं और सब का रंग व मौलिक डिज़ाइन एक जैसा ही लग रहा था। मस्जिद के भीतर जाने में तो मुझे संकोच हो रहा था, सो बाहर से ही दो – एक फोटो लेकर मैं आगे बढ़ा तो सड़क के किनारे लंबे – चौड़े फुटपाथ पर एक सुन्दर सा ग्लास का केबिन सा दिखाई दिया।  पास जाकर उसमें झांक कर देखा तो बेंच पड़ी हुई थीं।  यह लोकल बस का वातानुकूलित और स्वयंचालित बस-स्टैंड था।  स्वयंचालित इस दृष्टि से कि जब उसमें कोई यात्री बैठा होगा तो एयर कंडीशनर स्वयं चालू हो जायेगा और जब केबिन खाली होगा तो AC भी बन्द हो जायेगा।  इतना अमीर देश होकर भी इतनी कंजूसी !!!  हमारे देश में तो सार्वजनिक भवनों में कोई हो या न हो, गर्मियों में ए सी और सर्दियों में हीटर चलते ही रहते हैं। हमारे बैंक में मेरी इस बात पर झकझक हो जाया करती थी।  अस्तु।

सिटीमैक्स होटल से बाहर आते ही ये दृष्य देख कर हृदय गद्‍गद हो गया।

सिटीमैक्स होटल से बाहर आते ही ये दृष्य देख कर हृदय गद्‍गद हो गया।

बाईं ओर देखा तो दूर दुबई फ्रेम नज़र आ रहा था जो स्वयं में एक विश्व कीर्तिमान है।

बाईं ओर देखा तो दूर दुबई फ्रेम नज़र आ रहा था जो स्वयं में एक विश्व कीर्तिमान है।

आगे बढ़ते ही एक बड़ी शानदार बिल्डिंग दिखाई दी जो पब्लिक लाइब्रेरी थी।  इसी प्रकार आगे बढ़ता गया तो एक विशाल पार्क (अल मनखूल पार्क – Al Mankhool Park)  दिखाई दिया जिसमें जॉगिंग ट्रेक पर बहुत सारे स्त्री पुरुष तेज तेज कदमों से चहल कदमी कर रहे थे।  एक सड़क पर एक ट्रक दिखाई दिया जो वेक्यूम क्लीनर के सहारे सड़क साफ करता चल रहा था।  ट्रक में सड़क को छू रहे विशालकाय गोल झाडू तेजी से घूम रहे थे और अगर कोई धूल हो तो वेक्यूम क्लीनर उसे खींचता चल रहा था। वाह, जे हुई ना बात !

दुबई की एक विशेष व्यवस्था जो दिल को बहुत ज्यादा भा गयी, वह थी सड़कों के बीच में डिवाइडर!  संयुक्त अरब अमीरात जैसे रेगिस्तानी क्षेत्र में भी दुबई की सारी सड़कों के डिवाइडर पर फ़्लॉवर बेड विकसित किये गये हैं जिनको पानी देने के लिये भी बिल्कुल पतली पानी की ट्यूब बजरी के बीच में दिखाई देती हैं।  इस ट्यूब के छिद्रों में से रि-साइकिल किया हुआ पानी ड्रिप इरिगेशन पद्धति से इन फ़्लॉवर बैड को हरा – भरा बनाये रखता है।   सच में, बड़ी ईर्ष्या हुई कि हमारे शहर में नगर निगम के अधिकारी और जन-प्रतिनिधि इतने समझदार क्यों नहीं होते!

अल मनखूल मस्जिद, दुबई (Al-Mankhool Masjid, Dubai)
अल मनखूल मस्जिद, फ़्लॉवर बेड युक्त डिवाइडर और एयरकंडीशंड बस स्टॉप

अल मनखूल मस्जिद, फ़्लॉवर बेड युक्त डिवाइडर और एयरकंडीशंड बस स्टॉप

दुबई में हर गली मोहल्ले में ऐसे वातानुकूलित, स्वयं चालित बस स्टैंड बनाये गये हैं।

वातानुकूलित, स्वयं चालित बस स्टैंड दुबई में हर सड़क पर दिखाई दे जाते हैं।

अल मनखूल मस्जिद, बर दुबई जो सिटीमैक्स होटल के सामने है।

अल मनखूल मस्जिद, बर दुबई जो सिटीमैक्स होटल के सामने है।

अल मनखूल पार्क, बर दुबई जो सिटीमैक्स होटल के बिल्कुल पास में ही है।

अल मनखूल पार्क, बर दुबई जो सिटीमैक्स होटल के बिल्कुल पास में ही है।

वेक्यूम क्लीनर ट्रक जो दुबई की सड़कों को साफ करता हुआ चलता है।

दुबई ने और चाहे कितनी प्रगति कर ली हो, आज भी वहां सदियों पुराने टी वी एंटीना लगे देख कर आश्चर्य होता है।

दुबई ने और चाहे कितनी प्रगति कर ली हो, आज भी वहां सदियों पुराने टी वी एंटीना लगे देख कर आश्चर्य होता है।

ये नाव किसी मकान के आगे रखी थी। जब जी चाहे, इसे क्रीक या समुद्र पर ले जाओ!

ये नाव दुबई में किसी मकान के आगे रखी थी। जब जी चाहे, इसे दुबई क्रीक या समुद्र पर ले जाओ!

दुनिया गोल है! घूम फिर कर वापिस अपना सिटीमैक्स होटल आ गया।

दुनिया गोल है! घूम फिर कर वापिस अपना सिटीमैक्स होटल आ गया।

मैं यूं ही डेढ़ दो घंटे सड़कों पर घूमता – फिरता रहा।  बीच – बीच में दुबई फ्रेम भी दिखाई देता रहा पर वह वास्तव में काफी दूर था।  शायद दो किमी से भी ज्यादा।  सो मैं एक दूसरी सड़क पकड़ कर वापिस होटल में लौट आया।  पहले सबसे ऊपर के तल पर बने हुए विशालकाय स्विमिंग पूल पर गया तो वहां यूरोपियन महिलाएं जल परी बनी हुई पानी में छपाके लगा रही थीं।  अतः मैं चुपचाप वापिस अपने चौथे फ्लोर पर चला आया।    श्रीमती जी ने मुझ से कुछ नहीं पूछा कि कहां गये थे, क्यों गये थे? इतने दशक तक साथ रहते-रहते वह मुझे इतना तो समझ ही चुकी हैं कि हम जिस भी नये शहर में जाते हैं, मैं सुबह का समय पैदल घूमने फिरने में ही बिताना पसन्द करता हूं।  बस, वह बोलीं कि मैं तो तैयार हो चुकी हूं और भैया भाभी के कमरे में जा रही हूं।  आप भी तैयार हो कर वहीं आ जाना। अगर देर होने लगे तो ग्राउंड फ़्लोर पर ब्रेकफ़ास्ट के लिये आ जाना।

सिटी मैक्स होटल, बर दुबई (Citymax Hotel, Bur Dubai)

स्नान – ध्यान करके जब मैं ब्रेकफ़ास्ट के लिये पहुंचा तो लगा कि मैं किसी वैश्विक बिरादरी के बीच में आ गया हूं।  गोरे, काले, पीले, गेहुंएं हर प्रकार के रंग – रूप के, भिन्न – भिन्न देशों के नागरिक, जो इस होटल में ठहरे थे, वहां नाश्ता लेने के लिये एकत्र थे।  तीस-चालीस मेज़ पर सौ – सवा सौ लोग मौजूद थे।  हमारे साथी भी अपनी अपनी प्लेट लेकर, अपने – अपने मतलब का खाद्य व पेय पदार्थ तलाश रहे थे।  यद्यपि हर वस्तु के पास उसका नाम प्रदर्शित करने वाली नेम प्लेट मौजूद थी, पर कई सारे नाम ऐसे थे जो हमने पहले कभी सुने ही नहीं थे।  हमें शाकाहारी वस्तुओं की तलाश थी, सो पहले ताजे कटे हुए फलों पर धावा बोला, फिर ब्रेड सेक कर मक्खन, शहद आदि के पैक के साथ अपनी अपनी टेबिल पर ले आये। हम 9 लोग थे सो सबको एक ही टेबिल मिल पाये, इसकी कोई संभावना ही नहीं थी। जिसको जहां जगह मिली, वहीं बैठ गया।  मिनी स्कर्ट, शॉर्ट्स, सलवार सूट, जींस, साड़ी, अबाया तक पहनने वाले लोग वहां दिखाई दे रहे थे।  खैर, दूध – कॉर्नफ्लेक्स, कॉफी, इडली, टोस्ट – मक्खन आदि से अपना पेट भली प्रकार भर कर हम सब वापिस ऊपर आ गये और अपने अपने कमरे में जाने के बजाय एक साथ, एक ही कमरे में गप-शप करने हेतु डंट गये।  लंच के तुरन्त बाद हमें लेने के लिये मिनी बस आई और हम दुबई मॉल पहुंचा दिये गये।

दुबई के सिटीमैक्स होटल में नाश्ता !

दुबई के सिटीमैक्स होटल में नाश्ता !

दुबई मॉल : एक साथ अनेकों विश्व कीर्तिमान (Dubai Mall represents several world records)

मॉल का आम तौर पर हमारे लिये इतना ही मतलब होता है कि वहां पर बड़े – बड़े अन्तर्राष्ट्रीय ब्रांड्स के जगमगाते शो रूम, खाने पीने की दुकानें यानि फूड कोर्ट,  बच्चों को व्यस्त रखने के लिये कुछ खेल कूद का जुगाड़ (वीडियो गेम्स व ऐसी ही कुछ अन्य व्यवस्था), सिनेमा हॉल आदि होंगे।  यदि हम मॉल के बारे में बस इतनी ही सोच रखते हैं तो दुबई मॉल को देख कर हम पगला जायेंगे।

दुबई मॉल दुबई की उन महानतम उपलब्धियों में से एक है जिसने दुबई को एक गुमनाम सी, मछुआरों की बस्ती से उठा कर विश्व के सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक बना दिया है। दुबई को – The land of superlatives कहा जाने लगा है तो उसमें दुबई मॉल को बहुत बड़ा श्रेय जाता है।

दुबई की विश्वविख्यात मॉल - दुबई मॉल !

दुबई की विश्वविख्यात मॉल – दुबई मॉल जिसका निर्माण एमार ग्रुप ने किया है !

दुबई मॉल का अपना मैट्रो स्टेशन है, 1200 से भी अधिक विशालकाय शो रूम हैं।  22 सिनेमा हॉल, 250 कमरों का होटल, विश्व की सबसे ऊंची टावर यानि बुर्ज खलीफ़ा, विश्व की सबसे लंबा सफर तय करने वाली और सबसे तीव्र गति से चलने वाली लिफ्ट यहां पर है।  मानों इतना ही पर्याप्त न हो, दुबई मॉल में तीन मंजिला एक्वेरियम व underwater zoo है जिसमें 300 से भी ज्यादा वैरायटी के जलीय जन्तु प्रदर्शित किये गये हैं। शाम को म्यूज़िकल फाउंटेन का शो देखने के लिये भी वहां भारी भीड़ होती है।  बताया जाता है कि दुबई मॉल जितनी बड़े भूखंड पर बना हुआ है, उसमें फुटबॉल के चार मैदान आराम से समा जायेंगे।

दुबई मॉल में प्रवेश हेतु कई सारे द्वार हैं, उनमें से एक ये भी है।

दुबई मॉल में प्रवेश हेतु कई सारे द्वार हैं, उनमें से एक ये भी है।

दुबई मॉल के एक्वेरियम ने विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। प्रवेश द्वार।

दुबई मॉल के एक्वेरियम ने विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। प्रवेश द्वार।

सबसे पहले नंबर आया एक्वेरियम और underwater zoo देखने का। एक्वेरियम का टिकट 109 दिरहम है परन्तु यह टिकट हमारे पैकेज में ही शामिल था।  एक बात तो माननी पड़ेगी।  हम एक बार पैकेज ले लें और उसमें 58,500 रुपये का भुगतान कर दें तो तकलीफ़ नहीं होती।  पर अगर हम बिना पैकेज के आये होते तो 109 दिरहम वाले 9 टिकट खरीदते हुए संकोच करते।  एक्वेरियम देखने का टिकट लगभग 2000 रुपये!  मेरी श्रीमती जी तो कह देतीं कि मैं यहीं सोफ़े पर बैठी हूं। आपका मन है तो आप एक्वेरियम देख आओ।  पर अब एक बार पूरा भुगतान कर देने के कारण सब कुछ निःशुल्क जैसा सा अनुभव हो रहा था अतः सारे के सारे खुशी – खुशी एक्वेरियम का अपना अपना इलेक्ट्रॉनिक टिकट मशीन के सेंसर को दिखा कर गेट से प्रविष्ट होते चले गये।  वहां गेट के पास कुछ अति सुन्दर सी युवतियां खड़ी थीं जो हर परिवार को एक कैमरे के आगे खड़ा होने के लिये आमंत्रित कर रही थीं।  हम मियां बीवी की फोटो कहीं किसी विशाल LCD पैनल पर प्रदर्शित की जा रही होगी, जो हमने देखने की उत्सुकता प्रदर्शित नहीं की।

एक्वेरियम में एक सुरंग थी जो एक्रिलिक की पारदर्शी दीवारों और छत से बनी हुई है। दायें – बायें और ऊपर जिधर भी देखो, भांति – भांति की मछलियां चहल कदमी करती हुई नज़र आ रही थीं।  सुरंग में अपना कोई प्रकाश नहीं था;  जो भी नीले रंग का प्रकाश था, वह एक्रिलिक की दीवारों के पीछे ही झांक रहा था।  वहां से निकल कर आये तो लिफ्ट से ऊपर की मंजिल पर पहुंच गये और बस एक – एक मछली के रंग – रूप और चाल – ढाल पर मोहित होते रहे।  मैने सोचा कि अपनी श्रीमती जी से एक – एक मछली के बारे में पूछता चलूं क्योंकि मत्स्य विज्ञान उनके M.Sc. में विशेष रूप से लिया हुआ विषय था।  वह बोली, आप फोटो खींचते चलो बस, घर पर बात करेंगे।  वह बात आज तक तो हुई नहीं सो मछलियों के बारे में मैं उतना ही जानता हूं, जितना मछलियां मेरे बारे में जानती होंगी।

पता नहीं, कितनी देर बाद हम इस ज़ू और एक्वेरियम से बाहर निकले।  बाहर निकल कर आये तो देखा कि हम तीसरी मंजिल पर मौजूद हैं।  विभिन्न शो रूम्स में झांक – तांक करते हुए, सामान के रेट्स देख – देख कर हम एक दूसरे को देखते और आगे बढ़ जाते।  हद तो ये कि चाबी का जो गुच्छा सहारनपुर में 20 रुपये का मिल जायेगा, वह वहां पर 20 दिरहम का टैग लिये हुए था।  यानि लगभग 400 रुपये।

बाहर निकल कर हम उस इलाके में आये जहां पर म्यूज़िकल फाउंटेन का शो होने वाला था।  हम लोग भीड़ में बार – बार बिछड़ जाते थे।  फोटो खींचने के लिये बार – बार रुक जाने के कारण मैं ही सबसे ज्यादा बिछुड़ता था।  मेरी श्रीमती जी को तो अपनी सुरक्षा इसी में नज़र आ रही थी कि वह अपने भाई-भाभी, बहन और जीजाजी के साथ – साथ, कदम से कदम मिला कर चलती रहें वरना उनको तो ये लगता है कि अगर वह किसी दिन मेरे साथ घूमते हुए बिछुड़ गयी तो मैं बिना उनकी खोज – बीन किये, आराम से, खुशी – खुशी अपने घर वापिस आ जाऊंगा।   दर असल 25-26 साल पहले एक बार सहारनपुर के गुघाल मेले में हम चारों (यानि मियां बीवी और छोटे-छोटे दोनों बच्चे) घूमने गये थे। बड़ा बेटा मेरी उंगली थामे चल रहा था और छोटा कभी गोद में तो कभी पैदल मां की उंगली थामे हुए।  एक जगह मैने पीछे मुड़ कर देखा तो न पत्नी थी और न ही छोटा बेटा।  मैं बड़े बेटे को साथ लिये हुए उन दोनों को तलाशने के लिये इधर – उधर भटक रहा था।  तभी बड़ा बेटा जो शायद 5 साल का ही रहा होगा, बोला, “पापा, मम्मी तो खो ही गयीं, अब कम से कम झूले पर तो बैठा दो।“  मुझे तो लगा कि बच्चा सही कह रहा है सो उसे एक टॉय ट्रेन में पांच मिनट का चक्कर कटवा कर हम स्कूटर स्टैंड की ओर बढ़े ताकि प्रवेश द्वार पर खड़े होकर अपने खोये हुए परिवार की प्रतीक्षा कर सकें।  वहां जाकर देखा कि पत्नी छोटे बेटे के साथ हमारे स्कूटर के पास ही खड़ी हुई हमारी प्रतीक्षा कर रही थी।  तब से वह मेरे साथ कहीं अकेले जाते हुए घबराती है।

म्यूज़िकल फाउंटेन का जहां तक प्रश्न है, वह मुझे कोई खास प्रभावित नहीं कर पाया।  उसकी तुलना में अक्षरधाम मंदिर दिल्ली का म्यूज़िकल फाउंटेन और लेज़र शो सहस्त्र गुना बेहतर और अकल्पनीय रूप से सुन्दर हैं।  वृन्दावन गार्डन, मैसूर का म्यूज़िकल फाउंटेन भी मुझे बिल्कुल सामान्य सा लगा था।  शायद वज़ह ये है कि समय के साथ बेहतर तकनीक वाले म्यूज़िकल फाउंटेन भी भिन्न – भिन्न स्थानों पर लगाये जा रहे हैं।  अगर आपने नये वाले फाउंटेन देख रखे हैं तो पुराने वालों में कोई दिलचस्पी अनुभव नहीं होती।

फ़ाउंटेन के बाद अब नंबर था बुर्ज खलीफ़ा पर ऊपर जाने का।  पुनः मॉल के मुख्य भवन में प्रविष्ट हुए और संकेतक देखते – देखते हम बुर्ज खलीफा के लिये लगी हुई लाइन में जा खड़े हुए।  लाइन में लग कर अपनी बारी की इंतज़ार करना मेरे लिये हमेशा से ही कष्टकर होता है। कमर भी दुखती है, पैर भी दुखते हैं, दिमाग़ भी दुखता है!  पर अल्टीमेटली, जब हम लिफ़्ट में प्रविष्ट हुए और लिफ्ट 124 मंजिल की ओर तेजी से बढ़ने लगी तो सारी उदासी, थकन, चिड़चिड़ाहट छू-मंतर हो गयी और हम भौंचक्के से तेजी से बदल रही फ्लोर संख्या को देखते रहे।  जी हां, Observation Deck 124 वें फ्लोर पर है और जब वहां पहुंच कर हम लिफ्ट से बाहर निकले तो पुनः कुछ सुन्दरियों ने हम दोनों मियां – बीवी समेत बाकी 7 सदस्यों को भी घेर लिया और कहा कि यहां बैठिये, कपल्स की फोटो ली जायेगी।  फोटो खिंचवा कर हम ग्लास विंडो पर जाकर खड़े हुए तो नीचे देख कर सांस अटक गयी।  वाह, क्या नयनाभिराम दृश्य था! इस समय तक सूर्य अस्त हुए भी एक घंटे से अधिक हो चुका था। संध्याकालीन प्रकाश में दुबई के बड़े – बड़े टावर भी बौने होकर रह गये थे, सड़कें और फ्लाईओवर पर जाती हुई कारें जुगनू जैसी लग रही थीं।

बुर्ज खलीफ़ा से रात्रि में दिखाई दे रही दुबई की जगमगाती हुई सड़कें।

बुर्ज खलीफ़ा से रात्रि में दिखाई दे रही दुबई की जगमगाती हुई सड़कें।

बुर्ज खलीफ़ा के बारे में कुछ खास – खास बातें बताऊं आपको?  ये मीनार विश्व में सबसे ऊंची free standing tower है जिसकी ऊंचाई 2722 फीट (829.8 मीटर) है। दुबई मॉल और बुर्ज खलीफ़ा Emmar बिल्डर्स ने बनाये हैं।  यह व्यावसायिक व आवासीय भवन है जिसमें होटल हैं, ऑफिस हैं व अपार्टमेंट्स हैं।  बुर्ज खलीफ़ा का नाम आबू धाबी के शासक और संयुक्त अरब अमीरात के प्रेज़ीडेंट शेख खलीफ़ा के नाम पर रखा गया है जिन्होंने एमार ग्रुप को इस टॉवर के निर्माण हेतु आर्थिक सहयोग दिया।  इसके निर्माण के दौरान काम कर रहे विदेशी मज़दूरों (मुख्यतः भारत / पाकिस्तान / श्रीलंका / बांगलादेश आदि)  के पासपोर्ट कंपनी ने जब्त कर लिये थे और निर्माण पूरा होने से पहले वापिस नहीं किये थे।  वेतन कम मिलने की भी शिकायतें बहुत थीं।  कुछ मज़दूरों ने आत्महत्या भी की।  163 मंजिल वाली बुर्ज खलीफ़ा में 124 वीं मंजिल पर पर्यटक Observation Deck तक जा सकते हैं जहां हम भी गये थे।

इस बुर्ज खलीफ़ा में ऊपर आने – जाने के लिये लगाई गयी लिफ्ट विश्व की तीव्रतम गति से चलने वाली लिफ्ट हैं जो एक मिनट से भी कम समय में 124 वीं मंजिल पर पहुंचाती हैं।   चूंकि पूरी दुनिया में 163 मंजिल वाला और कोई भी भवन फिलहाल मौजूद नहीं है अतः ऐसी कोई लिफ़्ट भी दुनिया में और कहीं नहीं है जो 163 मंजिल का सफर तय करती हो।

बताया जाता है कि इस टॉवर को बनाने का उद्देश्य पूरे विश्व का ध्यान दुबई की ओर आकर्षित करते हुए उसे एक विश्वस्तरीय पर्यटन नगरी के रूप में स्थापित करना था ताकि तेल के कुओं पर निर्भर दुबई की अर्थव्यवस्था की निर्भरता तेल पर कम से कम करते हुए, उसे पर्यटन व सेवा क्षेत्र में अग्रणी बनाया जा सके।  इस बुर्ज खलीफा टॉवर को केन्द्र मानते हुए आस पास के क्षेत्र में कई सारी अन्य टावर भी बनायी गयी हैं ताकि इस क्षेत्र में 30,000 आवासीय भवन, नौ होटल व हज़ारों शो रूम्स बना कर इस क्षेत्र को विशालतम व्यापारिक केन्द्र बना दिया जाये।

दुनिया की सबसे ऊंची टॉवर से नीचे उतर कर हम आये तो लगभग 9 बज चुके थे और भूख लग रही थी।  आज का हमारा डिनर इसी दुबई मॉल के इंडिया पैलेस रेस्टोरेंट (India Palace Restaurant, Dubai Mall) में तय था।

डिनर के बाद हम अपनी मिनी बस पकड़ कर होटल पहुंच गये और अपने आप को अगले दिन के लिये रिचार्ज करने के लिये निद्रा के आगोश में समा गये।

इस प्रकार दुबई में हमारा आज दूसरा दिन था जो विश्व की अद्‍भुत इंजीनियरिंग कृतियों को देखने में बीत गया।  कल क्या – क्या करेंगे?   Well, हमारे तय कार्यक्रम के अनुसार कल हमारा आधे दिन का Dubai City Sight seeing tour है।  इसके बाद हमें होटल छोड़ दिया जायेगा।  दो घंटे बाद पुनः एक विशेष वाहन हमें लेने आयेगा जो रेत के टीलों पर कलाबाजी खिलाने में सक्षम है।  हे राम !   क्या होगा हमारा?   क्या हम बुढढे – बुढ़िया  रेत के टीलों पर की जाने वाली इस स्टंटबाजी को झेल पायेंगे?  इस स्टंटबाजी में से अगर सुरक्षित बच कर निकल आये तो फिर हमें 72 हूर तो नहीं, हां 2-3 अवश्य मिलेंगी जो हमें अपने बैली डांस से लुभायेंगी  (या लुभाने का प्रयास करेंगी!)

तो मितरों !   चलते चलिये मेरे साथ इस रोमांचक यात्रा पर  और देखिये कि क्या क्या अनुभव मिलते हैं!

इस यात्रा की विभिन्न कड़ियां इस प्रकार हैं: –

  1. दुबई यात्रा – भाग १  (नई दिल्ली से दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट)  (IGI International Airport (DEL) to Dubai International Airport (DBX) Spicejet flight SG-011)
  2. दुबई यात्रा – भाग २  (दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से होटल, मीना बाज़ार और धो क्रूज़ डिनर) (Dubai International Airport to Hotel Citymax, Bur Dubai, Walk to Meena Bazar, Dhow Cruise Dinner at Dubai Creek)
  3. दुबई यात्रा – भाग ३  (मॉर्निंग वॉक, दुबई मॉल, एक्वेरियम, फ़ाउंटेन, बुर्ज खलीफ़ा, डिनर) (Morning Walk, Dubai Mall, Underground Aquarium, Musical Fountain, Burj Khalifa, Dinner)
  4. दुबई यात्रा – भाग ४  (दुबई आधा दिन का सिटी टूर) (Half Day City Tour of Dubai)
  5. दुबई यात्रा – भाग ५  (दुबई डेज़र्ट सफ़ारी) (Dubai Desert Safari)
  6. दुबई यात्रा – भाग ६  (आबू धाबी – फ़रारी वर्ल्ड, मस्जिद) (Abu Dhabi – Farrari World, The Great Mosque)
  7. दुबई यात्रा – भाग ७  (दुबई मैजिकल गार्डन और ग्लोबल विलेज, मीना बाज़ार में डिनर) (Dubai Magical Garden & Global Village, Dinner at Meena Bazar)
  8. दुबई यात्रा – भाग ८  (लापिता रिज़ॉर्ट्स, दुबई पार्क्स) (Lapita Resorts Autograph Collection, Dubai Parks)
  9. दुबई यात्रा – भाग ९  आउटलेट मॉल, दुबई फ़्रेम, दुबई मेट्रो से दुबई मॉल,  दुबई मेट्रो से दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट, नई दिल्ली एयरपोर्ट पर वापसी (Outlet Mall, Dubai Frame, Dubai Metro Ride for Dubai Mall, Dubai Metro ride for Dubai Airport, Return journey to Delhi Airport)

10 thoughts on “दुबई घुमा लाऊं आपको भी? भाग 03

  1. Pingback: दुबई घुमा लाऊं आपको भी? भाग 2 - India Travel Tales

  2. SHUBHAM MISHRA

    एक से बढ़कर एक फाेटाेज़ 👌🏻👌🏻👌🏻 मैंने सबसे पहला म्यूज़िकल फा़उंटेन अक्षरधाम मन्दिर का ही देखा था दुबई वाला म्यूज़िकल फा़उंटेन बहुत ही बड़ा था साेचा था बहुत मज़ा आयेगा लेकिन अक्षरधाम मन्दिर वाला फा़उंटेन कई गुना बढ़िया था हालाँकि दुबई फा़उंटेन में बीच बीच में फ़व्वारे अच्छे थे.. बुर्ज ख़लीफ़ा की बात ही अलग एक मिनट में 124 मंज़िल पहुँचना साेच के डर सा लगा लेकिन लिफ़्ट के अन्दर पता भी नहीं लगा कि हम ऊपर काे जा रहे हैं… आपका धन्यवाद आपने ये सीरीज़ लिखी और दुबई की यादें ताज़ा कराई…. 🙏🏻 सर् वैसे एक नई बिल्डिंग दुबई क्रीक का निर्माण चल रहा था जाेकि बुर्ज ख़लीफ़ा से भी 200 मीटर ऊँची हाेगी.. क्या उसका निर्माण चल रहा है अभी..

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय शुभम मिश्रा! इस पोस्ट पर सबसे पहला कमेंट देने का एवार्ड आपके नाम पर! 😉 नयी टावर के बारे में मैने भी सुना है पर वह इससे कई मायनों में अलग होगी, ऐसा प्रतीत होता है। विकीपीडिया में भी पढ़ा था कि दुबई क्रीक टावर जापान की स्काई ट्री टावर से भी बड़ी होगी। परन्तु स्काई ट्री टावर तो सिर्फ 500+ मीटर ऊंची है। जब कि बुर्ज खलीफा 828 मीटर की है। वैसे भी स्काई ट्री टावर सिर्फ रेडियो और टी.वी. स्टेशन के ट्रांसमिशन के लिये उपयोग में आती है जबकि बुर्ज खलीफा में आवासीय भवन हैं, होटल हैं, कार्यालय हैं।
      जो भी हो, आगे आगे देखते हैं, होता है क्या! आते रहिये, लिखते रहिये और उत्साह बढ़ाते रहिये।

  3. Yogi Saraswat

    बहुत ही बेहतरीन ! क्या शानदार और रोचक विवरण किया है सपनों की नगरी दुबई का।

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय योगी सारस्वत भाई! आपका इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है। आपको ये यात्रा संस्मरण अच्छा लगा, ये बात मुझे भी बहुत अच्छी लगी ! कृपया आते रहें, अपनी प्रतिक्रिया देते रहें।

  4. Mukesh Pandey

    मजा आ गया आदरणीय । आपके साथ हम भी दुबई घूम लिए । फ़ोटो तो हर बार की तरह शानदार है ही ।

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय मुकेश जी, जब आप जैसे विशिष्ट व्यक्तित्व इस ब्लॉग पर आते हैं तो लिखते रहने का मूड तो स्वयमेव ही बन जाता है। अगली कड़ी लिखने का माहौल बनाने का शुक्रिया।
      सादर,
      सुशान्त सिंहल

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय मोनिका गुप्ता,
      सच में ही पढ़ ली इतनी लंबी कहानी? सिर्फ़ एक ही पोस्ट पढ़ी ना? बाकी भी पढ़ लेना, बहुत सारा आशीर्वाद मिलेगा। 🙂
      सस्नेह,
      सुशान्त सिंहल

  5. Pingback: दुबई घुमा लाऊं आपको भी? भाग - 01 - India Travel Tales

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