इस श्रंखला की सारी कड़ियां इस प्रकार हैं –
हमारी हैदराबाद - महाराष्ट्र तीर्थ यात्रा - पहला दिन
- श्री शैलम में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन
- हमारी हैदराबाद – महाराष्ट्र यात्रा – चारमीनार की सैर
- हमारी हैदराबाद यात्रा – सालारजंग म्यूज़ियम
- हमारी हैदराबाद यात्रा – बिड़ला मंदिर / हुसैन सागर लेक और होटल वापसी
- हमारी हैदराबाद यात्रा – रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर – भाग १
- हमारी हैदराबाद यात्रा – रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर – भाग २
- हमारी हैदराबाद यात्रा – रामोजी फ़िल्म सिटी और औरंगाबाद हेतु रेल यात्रा
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – औरंगाबाद – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – एलोरा की गुफ़ाएं
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – शनि शिंगणापुर
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – शिरडी में साईं धाम दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – नाशिक – त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग व अन्य आकर्षण
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन व लोनावला हेतु प्रस्थान
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – लोनावला व खंडाला, कार्ला गुफ़ाएं, टाइगर प्वाइंट
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – लोनावला से मुम्बई और दिल्ली वापसी हेतु रेल यात्रा!
प्रिय मित्रों,
हमारी हैदराबाद – महाराष्ट्र तीर्थयात्रा की पहली दो कड़ियों में आप पढ़ चुके हैं कि हम कैसे दिल्ली से हैदराबाद और फिर हैदराबाद से श्री शैलम स्थित श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु पहुंचे और कैसे दर्शन किये और कैसे अगले दिन दोपहर तक हैदराबाद वापसी की। अब आज का आधा दिन हमारे पास बाकी है, दोपहर का भोजन एक होटल में करने के बाद इस आधे दिन में हमने सबसे पहले चार मीनार की ओर प्रस्थान किया। एक स्थान पर वैन के लिये पार्किंग के लायक स्थान उपलब्ध देख कर हमारे पायलट महोदय ने अपना टेम्पो ट्रेवलर वहीं लगा दिया और हमें कहा कि चारमीनार यहां से बिल्कुल पास है, आप होकर यहीं वापिस आ जायें। जहां हमारी वैन खड़ी की गयी थी, वहीं उसके सामने एक विशाल प्राचीन द्वार था जिस पर एक घड़ी भी लगी हुई थी। यह प्राचीन भवन मुझे निरन्तर आकर्षित कर रहा था पर मुझे यह पता नहीं था कि ये है क्या? आज ये कथा आपके लिये लिखते समय मैने गूगल मैप पर चारमीनार से यहां तक लाने वाली सड़क देखी तो पता चला है कि जो विशाल गेट सड़क से दिखाई दे रहा था, उसके अन्दर चौमहला परिसर है जो बहुत विशाल और बहुत खूबसूरत है। 🙁 आह !!! यदि हमें उस दिन पता भी होता कि ये चौमहला भवन अत्यन्त आकर्षक परिसर है, तो भी समय की कमी के कारण हम इसे देख नहीं सकते थे।
बावजूद इसके कि ड्राइवर महोदय ने बता दिया था कि चारमीनार यहां से बहुत नज़दीक है, हमने महिलाओं के कहने पर दो ऑटोरिक्शा कर लिये और उनको चारमीनार चलने के बोला ! स्वाभाविक रूप से वह भी समझ गये कि ये बाहर से आये हुए टूरिस्ट हैं और इनको इस स्थान का भूगोल बिल्कुल भी ज्ञात नहीं है। वह हमें इधर उधर बाज़ारों में घुमाते फिराते रहे और एक विशाल शोरूम के आगे ले जाकर खड़ा कर दिया कि जबरदस्ती कोई नहीं है, अगर कुछ पसन्द आये तो लें, न पसन्द आये तो न लें। पर हम भी अड़ गये और रिक्शा से उतरने से साफ़ इंकार कर दिया और कहा कि सीधे चारमीनार चलो। अजीब सी निगाहों से देखते हुए वह हमें चारमीनार के पास लेगये और दोनों रिक्शा ने अपने 40/- – 40/- रुपये लेकर विदा ली।
ये बाज़ार जिसमें हमें छोड़ा गया था, मोतियों और मोतियों से बने हुए आभूषणों के लिये विख्यात है। स्वाभाविक रूप से हमारे साथ मौजूद पांच महिलाओं ने आभूषण सूंघ लिये और एक दुकान में घुस गयीं और मेरे अलावा तीन पुरुष भी उनके पीछे – पीछे उस शोरूम में चले गये। मैं अपना कैमरा लेकर चारमीनार की ओर बढ़ गया।
चार मीनार के बारे में (A little about Charminar)
चारमीनार का हैदराबाद के लिये वही महत्व है जो आगरा के लिये ताजमहल का, या पेरिस के लिये आइफिल टावर का। सन् 1591 में नव सृजित हैदराबाद शहर के बिल्कुल मध्य में चारमीनार बनाने वाले सज्जन का नाम था मुहम्मद कुली कुतुब शाह जो कुतुब शाही खानदान के वारिस थे और गोलकोण्डा से हैदराबाद अपनी राजधानी लाने के उत्तरदायी भी वही थे! अगर मैं आपको बताऊं कि चारमीनार को चारमीनार इसलिये कहते हैं कि इसमें चार मीनारें हैं तो आप मुझ पर हंसेंगे इसलिये मैं आपको ऐसी कोई बात नहीं बताऊंगा। पर फिर भी इतना बताना तो मेरा फ़र्ज़ बनता है कि चारमीनार मूसी नदी के पूर्वी तट की ओर स्थित है। चारमीनार तक आ रहा लाड बाज़ार मोतियों और हीरे जवाहरात के शोरूम के लिये विख्यात है।
चारमीनार की सबसे ऊपरी मंजिल पर एक मस्जिद भी बताई जाती है पर जब हम 19 जनवरी को बाज़ार में टहल रहे थे तो अचानक सायरन की आवाज़ें आनी शुरु हो गयीं और उसके साथ ही अनेकानेक देशी – विदेशी कारों का काफ़िला हमारे सामने से चारमीनार की ओर निकला और सारी कारें चारमीनार के सामने खड़ी हो गयीं। कोई मर्सिडीज़ तो कोई बी.एम.डब्लू, कोई लिमोसिन ! पता चला कि शायद थाईलैंड के प्रधानमंत्री चारमीनार देखने आये हैं अपने पूरे लाव – लश्कर के साथ ! अतः आम जनता के लिये घंटे – दो घंटे तक चारमीनार से दूरी बनाये रखने का हुक्म है।
इस वास्तुकला को इण्डो-इस्लामिक आर्किटेक्चर का नाम दिया गया है।
आजकल चारमीनार के रंगरूप को निखारने का कार्य पूरे जोर – शोर से चल रहा है जो कि समय – समय पर होना भी चाहिये। मौसम व समय की मार से चारमीनार की दीवारों पर जो काई आदि जमी हुई दिखती है, उसे साफ करके पत्थर को चमकाया जा रहा है।
मीनार से लगा हुआ लगभग 60 वर्ष पुराना एक भाग्यलक्ष्मी मंदिर भी है जिसको लेकर जब – तब विवाद खड़ा होता रहता है। भारतीय पुरातत्व विभाग का स्पष्ट मत है कि यह चारमीनार के प्रतिबंधित क्षेत्र का अतिक्रमण करके कुछ लोगों द्वारा सन् 1960 के आसपास बना लिया गया है। इस मंदिर को बनाये रखने / हटाये जाने को लेकर सांप्रदायिक दंगे भी होते रहे हैं।
बताया जाता है कि इस मंदिर को लेकर न्यायपालिका में मामला विचाराधीन चला आ रहा है और फैसला होने तक न्यायपालिका के आदेश से इस मंदिर में कोई भी विस्तार करना या परिवर्तन करना एकदम मना है।
एक आम पर्यटक की दृष्टि से देखें तो चारमीनार से सटा कर बनाया गया ये मंदिर totally out of place अनुभव होता है।
चार मीनार के आस पास जाने से रोकने के लिये पुलिस सन्नद्ध थी, और हम ज्यादा समय तक रुक नहीं सकते थे क्योंकि हमें आज ही हैदराबाद के अन्य आकर्षण भी तो देखने थे। सो, हम बाज़ार में से होकर पैदल ही अपनी वैन की ओर चल दिये और जितनी जल्दी हम वैन तक पहुंच गये उससे हमें अहसास हुआ कि हमें ऑटो वाले अनावश्यक रूप से लम्बे रास्ते से घुमा फिरा कर ले गये थे।
जब हमने अपने ड्राइवर से कहा कि हमें पहले सालारजंग म्यूज़ियम, फिर बिड़ला मंदिर और फिर हुसैन सागर लेक जाना है तो उसने हमें झूठ बोल कर बहलाने की कोशिश की कि बिड़ला मंदिर तो रविवार को बन्द होता है। फिर हमने फोन पर अपने एक स्थानीय मित्र से पता किया तो पता चला कि ऐसा कुछ नहीं है। फिर हमारा ड्राइवर बोला कि मंदिर तो पांच बजे तक ही खुलता है। हमने नेट पर चेक किया तो यह बात भी गलत निकली! ऐसा लगा कि वह हमें जल्द से जल्द होटल पर छोड़ कर अपने घर जाना चाह रहा है।
खैर, सालारजंग म्यूज़ियम बन्द होने का समय होने वाला था सो हम तेजी से उस ओर बढ़ चले और फटाफट टिकट खरीद कर प्रवेश द्वार से अंदर प्रविष्ट हो गये। अब हमारे पास लगभग आधा घंटा था जिसमें हमें म्यूज़ियम देखना था। उस आधा घंटे में मैं जो कुछ भी फोटो खींच पाया उनमें से कुछ आपके लिये प्रस्तुत हैं।
पर रुकिये, पोस्ट ज्यादा लम्बी हो जाने का खतरा है। क्यों न सालारजंग म्यूज़ियम की फोटो आपको कल दिखाई जायें? तब तक के लिये विदा दीजिये ! नमस्कार !
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