- यात्रा सहारनपुर से नैनीताल की
- काठगोदाम से भीमताल होते हुए नैनीताल
- नैनीताल – एक अलसाई हुई सुबह
- नैनी झील में बोटिंग, चिड़ियाघर, तल्लीताल
- नैनीताल में चांदनी चौक?
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जन्म लेने और 1980 में बैंक सेवा में आने तक देहरादून में ही रहने के बावजूद मुझे कभी भी नैनीताल दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला था। वज़ह ये कि जब भी कभी हिल स्टेशन जाने की बात मन में आती तो मसूरी दर्शन कर आते थे। छात्र जीवन के दौरान कभी पैदल, तो कभी बस से तो कभी मोटरसाइकिल से मसूरी आना जाना हो जाता था । अपने घर से सिर्फ 25 किलोमीटर की दूरी पर एक विश्वविख्यात हिल स्टेशन मौजूद हो तो कहीं और क्यों जाना? शायद यही विचार मन में रहा।
पर मई 2015 में अचानक नैनीताल का प्रोग्राम बना और वह भी अकेले भ्रमण का ! हुआ यूं कि Youth Hostel Association of India (YHAI) के बारे में किसी मित्र से पता चला तो मैने भी लैपटॉप पर बैठे बैठे उसकी सदस्यता ग्रहण कर ली। अब सदस्यता का उपयोग करने की बेचैनी मन में होनी शुरु हुई तो उनकी वेबसाइट पर जाकर देखना शुरु किया कि आस-पास में किन दर्शनीय स्थलों में होस्टल सुविधा है। नैनीताल में दो होटलों के नाम सामने आये तो उनमें से एक शीला होटल, जो माल रोड पर स्थित है, उस का नंबर लेकर फोन पर बात की। उन्होंने कहा कि आप आ जाइये, कमरा मिल जायेगा। इसके बाद फिर ट्रेन तलाश की गयी। पता चला कि जम्मूतावी से काठगोदाम तक जाने वाली 12208 गरीब रथ सुपरफास्ट एक्सप्रेस जो जम्मू (Station Code – JAT) से हर रविवार को 23.15 पर चलती है, अगले दिन सुबह सहारनपुर 7.20 पर आती है और 10 मिनट का हाल्ट लेकर यहां से लक्सर (Station Code – LRJ), मुरादाबाद (Station Code – MB), रामपुर (Station Code – RMU), बिलासपुर रोड (Station Code – BLQR), रुद्रपुर सिटी (Station Code – RUPC), लालकुआं (Station Code – LKU) और हल्द्वानी (Station Code – HDW) रुकते हुए काठगोदाम (Station Code – KGM) पर दोपहर 2.40 पर पहुंचती है। काठगोदाम अन्तिम स्टेशन है जहां से 100 रुपये में शेयर टैक्सी लेकर नैनीताल आसानी से शाम को 4.00 बजे तक पहुंचा जा सकता है। आप चाहें तो काठगोदाम से नैनीताल जाने के बजाय थोड़ा अलग सड़क पकड़ कर भीमताल भी जा सकते हैं। भीमताल से भुवाली होते हुए नैनीताल पहुंचा जा सकता है।
जब मुझे लगा कि नैनीताल पहुंचने का बहुत सुविधाजनक इन्तज़ाम है तो मैने गरीबरथ सुपरफास्ट ट्रेन से अपना जाने और वापसी का रिज़र्वेशन करा लिया । प्रोग्राम कुछ यूं बना कि शाम को नैनीताल पहुंच कर होटल में चैक इन करूंगा। उस के बाद शाम को, देर रात तक माल रोड घूमा – फिरा जाये। अगला दिन भी लोकल घूमने फिरने के लिये रखा जाये। और तीसरे दिन टैक्सी लेकर आस-पास के जितने भी दर्शनीय स्थल हैं, वह सब देखे जायें। शाम को लालकुआं से वापसी की गरीब रथ मिलेगी जो अगले दिन सुबह सहारनपुर पहुंचा देगी।
मेरी इस यात्रा में मेरी पत्नी भी साथ चलें, ये स्वाभाविक रूप से मेरी इच्छा थी । पर वह अपना कोचिंग सेंटर तीन दिन के लिये बन्द करने को तैयार नहीं थीं अतः मैने भी जिद नहीं की। वैसे भी, उनको मेरे साथ घूमने में कोई विशेष मज़ा नहीं आता क्योंकि मैं घूमने – फिरने जाता हूं तो फोटोग्राफी को बहुत महत्व देता हूं। यदि मुझे फोटो खींचने के लिये सुबह 4 – 4.30 बजे या रात को 9 – 10 बजे सड़कों पर भटकना है तो ऐसे में अकेले जाना या अपने किसी फोटोग्राफर मित्र को साथ लेना ही उचित रहता है। पत्नी को यदि रुचि नहीं है तो उनको क्यूं साथ में भटकते रहने के लिये विवश किया जाये?
नियत दिन अल सुबह मैं सहारनपुर स्टेशन पर गरीबरथ पकड़ने के लिये जा पहुंचा। मेरे लिये श्रीमती जी ने लंच पैक करके दे दिया था अतः कैमरा, लैपटॉप और कपड़े की अटैची लेकर प्लेटफॉर्म पर ट्रेन की प्रतीक्षा करता रहा। गरीबरथ ट्रेन देश को लालू प्रसाद यादव की देन मानी जाती है जो उनको रेल मंत्री रहते हुए आरंभ हुई थी। ये रेल सेवा समय तो लगभग उतना ही लेती है जितना समय राजधानी एक्सप्रेस में लगता है परन्तु न तो इसमें किराये में खाना शामिल होता है और न ही सीटें उतनी सुविधाजनक होती हैं। आखिर गरीब रथ जो ठहरी !
ट्रेन आई और मैं अपनी सीट पर लैपटॉप खोल कर बैठ गया। वातानुकूलित कोच में खिड़की के शीशे गन्दे हों, आप अकेले यात्रा कर रहे हों तो कैमरा बैग में से निकालने का कोई औचित्य नहीं बनता। एक फोटो जो सहारनपुर में प्लेटफार्म पर बैठे – बैठे ली थी, पाठकों के लिये प्रस्तुत है। मेरे कुछ सहयात्री हल्द्वानी स्टेशन पर उतरे तो स्टेशन को देखने की इच्छा से मैं भी ट्रेन से बाहर आया। सूर्य बादलों के पीछे ही कहीं छिपा हुआ था । रेलवे ट्रैक पर गन्दगी का साम्राज्य था सो देख कर दुःख हुआ।
ट्रेन में अन्दर वापिस आकर यूं ही चहल-कदमी करता रहा। मेरी कोच लगभग खाली हो चुकी थी क्योंकि ज्यादातर सवारियां मुरादाबाद, रामपुर और रुद्रपुर में उतर चुकी थीं और जो थोड़ी बहुत बची थीं वह अब हल्द्वानी में उतर गयी थीं। मात्र छः किमी की दूरी के लिये ट्रेन को 27 मिनट किस लिये लगने वाले हैं, यह जानने की उत्सुकता थी सो मैं अपना सामान समेट कर दरवाज़े पर ही आ खड़ा हुआ।
पहाड़ी टेढ़े-मेढ़े रेलमार्ग पर 13 किमी की मंथर गति से यह गजगामिनी अपने अंतिम गंतव्य यानि काठगोदाम की ओर बढ़ी चली जा रही थी और अन्ततः वह समय भी आ गया जब मुझे ट्रेन छोड़ कर रेल ओवरब्रिज से बाहर सड़क पर आना था। ओवरब्रिज पर एक टी.टी.ई. महोदय मिले जिन्होंने मेरा टिकट देखना चाहा तो बड़ी खुशी हुई। चलो, टिकट के पैसे वसूल तो हुए ! बाहर आकर टैक्सी देखनी शुरु कीं।
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सुंदर वृत्तांत। आपने सही कहा स्टेशन में मौजूद गंदगी सचमुच मन को दुःख देती है। टीटी वाली बात रोचक थी। अगर टिकेट चेक न हो तो मन में कहीं ये ख्याल आता ही है कि बिना टिकेट भी यात्रा हो सकती थी। :-p :-p YHAI की सदस्यता मैं भी लेने की सोच रहा हूँ। शायद इस साल ले ही लूँ। घुमक्कड़ी में आसानी होगी।
प्रिय विकास नैनवाल,
आपका हार्दिक आभार कि आप न केवल यहां ब्लॉग तक आये, बल्कि अपने विचार भी व्यक्त किये। कृपया भविष्य में भी आते रहें! एक बार पुनः आभार !
सुशान्त सिंहल
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आज से आपकी नैनीताल यात्रा को चला जाय
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