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घुमक्कड़ी महाकुंभ – पर ये ओरछा है कहां?

संभवतः आठ-दस दिन पहले की बात है जब सहारनपुर के दो मित्रों ने कहा कि उन्होंने फेसबुक पर मेरे द्वारा लगाये गये कुछ चित्र देखे जो ओरछा नामक किसी जगह के हैं। चित्रों से लगता है कि काफी सुन्दर जगह है।  फिर उन्होंने पूछा कि ओरछा आखिर क्या है? कहां पर है?

अपने मित्रों की ओरछा के बारे में पूर्ण अनभिज्ञता को अनुभव करके मुझे यह आवश्यक लगता है कि और कुछ बताने से पहले मुझे इस पोस्ट में ओरछा का विस्तृत परिचय देना चाहिये।  (वैसे ओरछा का परिचय मुझ से बेहतर मेरे मित्र मुकेश पांडेय चन्दन दे सकते हैं जो कि ओरछा में ही पिछले तीन साल से कार्यरत हैं और ओरछा पहुंचने वाले अपने अनगिनत मित्रों को ओरछा घुमाने और सभी महत्वपूर्ण स्थलों को बार – बार दिखा कर लाने के कारण चलते-फिरते “ओरछा एनसाइक्लोपीडिया” बन चुके हैं। पर फिर भी, मुझे देश के इस भाग में रहने वाले अपने मित्रों को ओरछा का भूगोल तो बताना ही चाहिये जिन्होंने ओरछा का नाम भी पहली बार मुझ से ही सुना है।)

दुनिया भर में जितने भी महत्वपूर्ण नगर बसे हुए हैं उनमें एक साम्य अक्सर पाया जाता है और वह है उनका किसी न किसी नदी / समुद्र के तट पर उपस्थित होना।  इंसान हो, पशु हो या वनस्पति – जीवित रहने के लिये सबको पानी की आवश्यकता होती है।  ऐसे में नदी के तट पर बस्तियों का निर्माण किया जाना स्वाभाविक ही रहा होगा क्योंकि नदियां जीवन को सपोर्ट करती हैं और इसीलिये हमारे देश में नदियों को मां का दर्ज़ा दिया जाता है।   ओरछा नगर भी इसका अपवाद नहीं है।  बेतवा नदी के तट पर बसा हुआ ओरछा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले का अत्यन्त प्राचीन नगर है और बुंदेला राजाओं की राजधानी के नाते प्रसिद्ध रहा है।

ओरछा जाना हो तो झांसी निकटतम रेलवे स्टेशन पड़ता है जो ओरछा से मात्र 16 किमी दूर है।  सुना है, खजुराहो में अब एयरपोर्ट भी है। ओरछा में रेलवे स्टेशन भी है परन्तु यहां सिर्फ पैसेंजर ट्रेन रुकती है।  ओरछा  दिल्ली – झांसी – भोपाल रेलमार्ग पर न होकर  झांसी – इलाहाबाद रेल मार्ग पर स्थित है और इस मार्ग पर केवल तीन पैसेंजर ट्रेन हैं जो ओरछा रुकती हैं –

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झांसी इलाहाबाद पैसेंजर (54159) – झांसी प्रस्थान – 7.10 प्रातः,  ओरछा आगमन 7.23 प्रातः
झांसी बांदा पैसेंजर (51807) – झांसी प्रस्थान – 12.30 दोपहर,  ओरछा आगमन 12.42 दोपहर
झांसी मानिकपुर पैसेंजर (51805) झांसी प्रस्थान – 17.25 सायं  ओरछा आगमन 17.38 सायं

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अब अगर आप ये सोच कर परेशान हैं कि झांसी तो उत्तर प्रदेश में है और वहां से 16 किमी दूर ओरछा मध्य प्रदेश में बताया जा रहा है तो आपकी परेशानी जायज़ है।  सच तो ये है कि यदि हम दिल्ली से झांसी जाने वाली ट्रेन में यात्रा कर रहे हों तो इतनी तेजी से विभिन्न राज्यों की सीमाएं बदलती हैं कि यात्री कंफ्यूज़ होकर रह जाते हैं।  दिल्ली से बाहर निकलते ही हम फरीदाबाद और पलवल, यानि हरियाणा में प्रवेश कर जाते हैं।  हरियाणवी भाषा का आनन्द लेते हुए आगे बढ़ें तो बृज प्रदेश यानि पेड़ों की नगरी मथुरा, और उसके कुछ ही देर बाद पेठे और ताजमहल की नगरी आगरा में प्रवेश करते हैं – यानि पुनः उ. प्र. में आ जाते हैं।  और आगे बढ़ें तो धौलपुर आता है अर्थात्‌  ’पधारो म्हारो देस’ !  यानि अब हम राजस्थान में प्रवेश कर जाते हैं ।   वहां से आगे बढ़ते हुए हमारी गजगामिनी यानि ट्रेन चम्बल के बीहड़ों में प्रवेश करती है तो मुरैना, ग्वालियर और दतिया पहुंचती है।  इस समय हम मध्य प्रदेश की हवा में श्वास ले रहे होते हैं।  दतिया से आगे बढ़ें तो सिर्फ 25 किमी चलते ही आ जाता है झांसी, यानि एक बार फिर अपने अखिलेस भैया का उत्तर प्रदेश ! हद्द हो गयी !  दिल्ली से 414 किलोमीटर चल कर भी रहे यू.पी. के यू.पी. में ही !  बस, यहां से आगे बढ़ें तो हम ढंग से मध्य प्रदेश में प्रवेश करते हैं।  पर फिलहाल हमें तो झांसी में ही उतरना है।  भूल गये?  हमें तो ओरछा जाना है ना!

झांसी - ललितपुर प्रशासनिक दृष्टि से उ.प्र. में किन्तु भौगोलिक रूप से म.प्र. में !

झांसी – ललितपुर प्रशासनिक दृष्टि से उ.प्र. में किन्तु भौगोलिक रूप से म.प्र. में !

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यदि इस उलझन को सुलझाना हो तो साथ में लगा हुआ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का नक्शा जरा ध्यान से देखिये। आप देखेंगे कि कैसे बेतरतीब ढंग से उत्तर प्रदेश का दक्षिणी छोर एक शेर के पंजे की आकृति के रूप में मध्य प्रदेश में जा घुसा है।  यही नहीं, उत्तर प्रदेश के अंतिम शहर झांसी और मध्य प्रदेश के प्रथम शहर ओरछा की  सीमा रेखा इतनी टेढ़ी-मेढ़ी और अनियमित है कि झांसी-ओरछा सड़क पर चलते हुए याद ही नहीं रहता कि हम कितनी बार उ.प्र. में घुसे और कितनी बार म.प्र. में!  बार-बार बोर्ड लगे हुए मिलते हैं – म.प्र. आपका स्वागत करता है / उ.प्र. आपका स्वागत करता है।  गाय भी उ.प्र. में घास चरते चरते कब म.प्र. में गोबर कर आती है, यह खुद गाय को ही पता नहीं होता तो अखिलेस भैया और शिवराज सिंह चौहान साहब को कैसे समझ आयेगा?

झांसी और ओरछा की टेढ़ी-मेढ़ी सीमा रेखाएं

झांसी और ओरछा की टेढ़ी-मेढ़ी सीमा रेखाएं

खैर, अब हम बात करते हैं ओरछा की !   बेतवा तट पर ओरछा राज्य की औपचारिक रूप से स्थापना सोलहवीं शती में, यानि सन्‌ 1531 ई. में राजा रुद्र प्रताप द्वारा की गयी बताई जाती है।  यहां बेतवा सात धाराओं में विभक्त हो जाती है जिसे सप्तधारा भी कहा जाता है। जैसा कि अक्सर होता है, स्थानीय जनता उसका भी कोई न कोई मतलब निकाल ही लेती है।  यहां की जनता का विश्वास है कि बेतवा की ये सप्तधाराएं यहां के सात राजाओं के सम्मान में ही विभक्त होती हैं।  भौगोलिक कारण तलाशें तो नज़र आता है कि ओरछा के आस-पास बेतवा नदी बहुत सारे शिलाखंडों के बीच में से अपने लिये मार्ग बनाती हुई आगे बढ़ती है और ये शिलाखंड ही हैं  जो जल की धारा को विभक्त कर देते हैं। बेतवा की दो मुख्य धाराओं के बीच में तो एक विशाल टापू ही (लगभग 46 वर्ग किमी) बन गया है जिसको अभयारण्य यानि bird sanctuary का स्वरूप दे दिया गया है।  बेतवा नदी पर एक अत्यन्त संकरा पुल पार करते ही यह अभयारण्य (तुंगारण्य) यानि बर्ड सेंक्चुअरी आरंभ हो जाती है।

बेतवा नदी के बायें तट पर यानि उत्तर दिशा में बसा हुआ है प्राचीन ओरछा नगर

बेतवा नदी के बायें तट पर यानि उत्तर दिशा में बसा हुआ है प्राचीन ओरछा नगर

बेतवा नदी की दो धाराओं के मध्य में स्थित टापू पर ओरछा अभयारण्य (Bird Sanctuary)

बेतवा नदी की दो धाराओं के मध्य में स्थित टापू पर ओरछा अभयारण्य (Bird Sanctuary)

बेतवा की जलधाराओं के बीच में स्थित bird sanctuary. (आकार 46 वर्गकिमी)

बेतवा के पुल पर खड़े होकर जब मैं छतरियों की फोटो ले रहा था तभी टीकमगढ़ की ओर से आ रही एक बस ने हार्न बजाया।  इस अत्यन्त संकरे पुल की चौड़ाई और बस की चौड़ाई लगभग बराबर ही थी।  पुल के नीचे गहरी बेतवा नदी बहती देख कर मुझे पहले ही चक्कर आने को हो रहे थे क्योंकि बड़ी – बड़ी शिलाएं जलधारा को और विकराल रूप प्रदान करने लगती हैं।   इस अत्यन्त संकरे पुल पर न तो कोई रेलिंग हैं और न ही बचने का अन्य कोई उपाय।  ऐसे में जब मुझे लगा कि बचने की कोई स्थिति नहीं है, तो मैने बस के आगे – आगे ओरछा तट तक इतनी स्पीड से दौड़ लगाई कि मिल्खा सिंह मुझे देखते तो गर्व से उनका सीना 56 इंच का हो जाता। अफसोस, मिल्खा सिंह तो वहां थे नहीं, पर चलो कोई बात नहीं !  हमारे घुमक्कड़ साथियों ने ही हमें इस आयु में इतनी दौड़ लगाने के लिये 21 फोटो खींच कर सलामी दी और सड़क के किनारे एक कप कॉफी भी पिलवाई !   जय हो, यजमान की !

बरसात के दिनों में बेतवा का जल स्तर बढ़ जाने के कारण इस पुल पर यातायात बन्द करना पड़ता है क्योंकि नदी इस पुल के ऊपर से बहने लगती है। इस प्रकार ओरछा और टीकमगढ़ को जोड़ने वाला  यह मार्ग कुछ महीने बन्द रहता है।  अस्तु!

झांसी-टीकमगढ़ मार्ग के दोनों ओर प्रमुख दर्शनीय स्थल

झांसी-टीकमगढ़ मार्ग के दोनों ओर प्रमुख दर्शनीय स्थल

बेतवा नदी के पुल से छतरियां और ओरछा रिज़ार्ट

बेतवा नदी के पुल से छतरियां और ओरछा रिज़ार्ट  – छतरियों के पीछे सूर्यास्त होने वाला है। 

फॉरेस्ट रिज़ॉर्ट से सूर्यास्त का दृश्य !

फॉरेस्ट रिज़ॉर्ट से सूर्यास्त का दृश्य !

जैसा कि मैने बताया, इस पुल से दाईं ओर दृष्टि डालें तो नदी तट पर विशाल छतरियां यानि राजाओं की समाधियां दिखाई देने लगती हैं। छतरियों की वाह्य आकृति एक ऊंचे गुम्बदयुक्त मंदिर जैसी ही होती है। फोटो खींचते समय तो मैं यही सोच रहा था कि यह सामने चतुर्भुज मंदिर ही दिखाई दे रहा है क्योंकि दोनों भवनों के गुम्बद में काफी साम्य अनुभव हुआ था।  वह तो भला हो मुकेश पाण्डेय जी का जिन्होंने आगे चल कर हमारी इस गलतफैमिली, मेरा मतलब है, गलतफहमी को दूर करते हुए न केवल हमें बताया कि ये दिवंगत राजाओं के सम्मान में बनाई गई छतरियां हैं बल्कि अगले दिन हमें दिखाने भी ले गये।

बेतवा नदी पर संकरा पुल जिसमें कोई रेलिंग भी नहीं है।

बेतवा नदी पर संकरा पुल जिसमें कोई रेलिंग भी नहीं है।

इस संकरे से बेतवा पुल को पार करते ही दाईं ओर बेतवा तट पर फॉरेस्ट रिज़ोर्ट बनाया गया है। शाम को फॉरेस्ट रिज़ॉर्ट से देखने पर नदी के उस पार ये छतरियां अत्यन्त मनमोहक दिखाई देती हैं। बेतवा के जल में उनकी छाया पड़ रही होती है और गुम्बद के पीछे सूर्य देवता भी गुड नाइट कह रहे होते हैं। नदी के इस पार फॉरेस्ट रिज़ॉर्ट से उस पार छतरियों तक पैडल बोट भी उपलब्ध हैं जिनमें बोटिंग का आनन्द लिया जा सकता है।

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बेतवा नदी में बोटिंग ! फॉरेस्ट रिज़ॉर्ट से लेकर छतरियों तक नौकायन का मज़े लेते हुए घुमक्कड़ परिवार !

अरे हां, एक बहुत जरूरी बात तो बतानी भूल ही गया।   यदि आप फिल्म अभिनेत्री कैटरीना कैफ के दीवाने हैं तो आप को यहां फॉरेस्ट रिज़ॉर्ट में एक ’तीर्थ स्थल’ जैसी अनुभूति होगी क्योंकि इसी फॉरेस्ट रिज़ार्ट में एक पेड़ के नीचे कैटरीना ने स्लाइस मैंगो ड्रिंक के विज्ञापन की शूटिंग की थी।  अब वह पेड़ “कैटरीना ट्री” के रूप में जाना जाने लगा है।  हमारे घुमक्कड़ युगल मुकेश भालसे और कविता भालसे तो यहां इस पेड़ के नीचे आकर अत्यन्त भावुक हो गये थे और फोटो के रूप में यहां की मधुर स्मृति भी अपने साथ ले गये!   वैसे इस फॉरेस्ट रिज़ॉर्ट के बाहर लगाये गये बोर्ड के अनुसार वहां पर फोटोग्राफी का शुल्क केवल मात्र रु. 20,000/- है।  यह राशि पढ़ कर मेरी तो श्वास गले में ही अटक गयी थी जिसे मुकेश पाण्डेय जी ने ही – “सिंहल साहब, डोंट वरी, बी हैप्पी !  मैं हूं ना!” कह कर बाहर निकाला।

बेतवा की ’छोटी’ सी जलधारा !

बेतवा की ’छोटी’ सी जलधारा !  संकरे पुल से लिया गया एक चित्र जिसमें दाईं ओर छतरियां भी दिखाई दे रही हैं।

 

चट्टानों की अगल-बगल से रास्ता बनाती हुई बेतवा नहीं पूरे वेग से बहती है।

चट्टानों की अगल-बगल से रास्ता बनाती हुई बेतवा नहीं पूरे वेग से बहती है।

विकीपीडिया के अनुसार झांसी – ओरछा – टीकमगढ़ – जबलपुर राजमार्ग को मध्य प्रदेश प्रादेशिक राजमार्ग क्रमांक 37 के नाते चिह्नित किया गया है हालांकि गूगल मैप इसको राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 539 के रूप में भी चिह्नित करता है जो झांसी से शाहगढ़ तक जाता है और 173 किमी लंबा है।  हम झांसी से आते हैं तो इसी मार्ग से आते हैं और यहां दोनों गणेश द्वार क्रं. १ और २ घोषणा करते हैं कि अब हम ओरछा में प्रवेश कर चुके हैं।  कुछ ही कदम बढ़ते हैं तो हमारे बाई ओर यानि पूर्व दिशा में ओरछा फोर्ट का विशाल परिसर दिखाई देना आरंभ हो जाता है जिसमें अगर हम प्रवेश करें तो जहांगीर महल, शीश महल, राजा महल, राय परवीन महल आदि स्थित हैं।

ओरछा किले का विशाल परिसर झांसी - टीकमगढ़ मार्ग से

ओरछा किले का विशाल परिसर।  झांसी – टीकमगढ़ मार्ग से ऐसा दिखाई दिया था।

वहीं, अगर दाईं ओर यानि पश्चिम की ओर गर्दन घुमाएं तो जो गगनचुंबी गुम्बद दिखाई देती हैं वह चतुर्भुज मंदिर है।  चतुर्भुज मंदिर राजा राम मंदिर के प्रांगण में ही स्थित कहा जा सकता है। इसी परिसर में पालकी महल, हरदौल की समाधि, फूलबाग, सावन-भादों की मीनारें स्थित हैं।

झांसी - टीकमगढ़ मार्ग के दायीं ओर दिखाई दे रहा चतुर्भुज मंदिर !

झांसी – टीकमगढ़ मार्ग के दायीं ओर (पश्चिम दिशा में) दिखाई दे रहा चतुर्भुज मंदिर !

झांसी टीकमगढ़ मार्ग से राजा राम मंदिर का प्रवेश द्वार ऐसे नज़र आता है।

झांसी टीकमगढ़ मार्ग से राजा राम मंदिर का प्रवेश द्वार ऐसे नज़र आता है।

बेतवा नदी की एक धारा पर बने हुए अत्यन्त संकरे पुल को पार करते ही घना जंगल यानि तुंगारण्य अभयारण्य (bird sanctuary) शुरु हो जाती है।  टीकमगढ़ दिशा में कुछ किलोमीटर  आगे चलें तो बेतवा नदी की दूसरी धारा भी अवश्य होगी।  चारों ओर से बेतवा नदी से घिरे इस टापू का क्षेत्रफल 46 किमी बताया जाता है।  इस टापू को दो हिस्सों में बांटते हुए यह सड़क टीकमगढ़ की ओर निकल जाती है।

ओरछा शहर इतना छोटा है कि पूरे नगर में आराम से पैदल घूमा जा सकता है।  इतना अवश्य है कि अगर कोई दोपहिया वाहन या कार हो तो समय व श्रम की काफी बचत की जा सकती है।  दोनों ही दिन, हम गणेश दरवाज़े से लेकर तुंगारण्य तक बार – बार इसी राजमार्ग से आते जाते रहे – कभी पैदल, कभी कार तो कभी मोटरसाइकिल पर। ये बात अलग है कि कुल मिला कर 15-20 किमी की इस पैदल यात्रा के कारण मैं इतना अधिक थकान अनुभव करने लगा था कि बस, क्या बताऊं!  ओरछा फोर्ट में दिखाया जाने वाला साउंड एंड लाइट शो भी इसी वज़ह से नहीं देख पाया।   शाम तक घूमते घूमते मेरे शरीर की बैटरी पूरी तरह से डाउन हो चुकी थी।

तो भाइयों – बहनों, हमारी ये कथा आज यहीं विश्राम लेती है।  वज़ह ये है कि ओरछा के बारे में हमारे ज्ञान की सीमा बस यहीं तक थी।  इससे अधिक जानकारी चाहें तो कृपया हमारे चलते फिरते “ओरछा विश्वकोश” यानि मुकेश पाण्डेय जी से संपर्क साध लें। वही थे जो हमारे मेज़बान और स्थानीय संरक्षक के नाते हमें अपना ओरछा दिखाते रहे।

अगली पोस्ट में आपको अपने घुमक्कड़ साथियों का परिचय कराने का प्रयास करूंगा जिन्होंने इस ओरछा मिलन को एक अविस्मरणीय अवसर बना डाला।

क्रमशः

38 thoughts on “घुमक्कड़ी महाकुंभ – पर ये ओरछा है कहां?

    1. Sushant K Singhal Post author

      सहारनपुर वालों को ओरछा तो जाना ही चाहिये ! बस, वहां जाकर कुछ पेड़ लगा आयें तो बेहतर ! आपका आभार !

  1. Harshita joshi

    ओरछा के बहुत से चित्र देखे और छतरी शब्द भी कई बार पढ़ा लेकिन छतरी कहा क्यों जाता है मुझे समझ ना आया

    1. Sushant K Singhal Post author

      हर्षिता ! अब इस क्यों का तो मेरे पास कोई जवाब नहीं है ! मैं इन्दौर गया तो वहां पर भी छतरियां यानि राजाओं के देहावसान के बाद उनकी स्मृति में बनाई गई मंदिर नुमा समाधियां देखीं ! ओरछा गया तो वहां भी ऐसी ही छतरियां मिल गयीं। मैने अपनी इन्दौर यात्रा में इस बारे में कुछ कमेंट किये भी थे। पढ़े थे क्या?

    2. Mukesh Pandey

      हर्षिता जी, दरअसल प्रारम्भ महान लोगों या राजाओं के अंत्येष्टि स्थल जिसे समाधी कहा जाता था ,स्मृति या अपने पूर्वजों को सम्मान के लिए पत्थरो की आकृतियां बनाया गयी , जिन्हें महापाषाण कहा गया । फिर छाते जैसे आकृति भी बनाई जाने लगी , जिन्हें छत्रक शिला कहा गया । कालांतर में ये छत्री या छतरी कहलायी । क्योंकि इनसे छाते की तरह छाया भी मिलती थी । मध्यकाल में मुगलों के मकबरों की देखा देखी छतरियां भी भव्य बनाई जाने लगी ।

    3. Harshita joshi

      1-क्या इन छतरियों के नीचे कोई बैठता है?
      2-फिर तो ये जगह एक तरह से कब्र जैसी ही हुयी जैसे वहां पर क्रॉस या गुम्बद नुमा आकार देते हैं वैसे यहाँ पर ये छतरी बनाई गयी हैं?

    4. Sushant Singhal

      Chhatriyo ke neeche to nahin, haan ooper giddh (vultures) avashya baithte hain. Why don’t you visit Orchha or indoor and see for yourself, Harshita? Actually, no amount of words can take place of a personal experience.

    1. Sushant K Singhal Post author

      धन्यवाद, मनु भाई ! पर आप निःशब्द कब से होने लगे? आपके पास तो अक्षय भंडार है शब्दों का !

  2. Harender dharra

    कैमरा शुल्क का अब पता चला । काफी लोग ओरछा को नहीं जानते । जब झांसी के पास कहते हैं तो कहते हैं ठीक है , झांसी को सब जानते हैं ।

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय हरेन्द्र! Resort Entry Gate पर रेट वगैरा लिखे हुए थे। स्टिल फोटोग्राफी 20,000/- और वीडियो 35,000/- !!! हो सकता है ये बोर्ड कैटरीना के लिये शूटिंग से पहले दिन लगा दिया गया हो। 😉 आम जनता भला इतनी फीस क्यूं देने लगी?

  3. Mukesh Pandey

    आदरणीय सिंघल जी, इतनी भारी भरकम उपमाओं को झेल नही पाउँगा । जिस प्रकार से आपने ओरछा के बारे लिखा मेरा लिखना एक सपना था, जो आपने पूरा किया । आभार आपका जो इस सामान्य बुद्धि को अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन से एनसाईक्लोपीड़िया बना दिया । नमन आपकी लेखनी को , रामराजा आप पर सदैव कृपालु रहे ।

    1. Sushant Singhal

      प्रिय मुकेश जी, मुझे आपके बारे में सत्य ह्रदय से जो अनुभव हुआ, वही लिखा है। यह पोस्ट लिखते समय मन में यह विचार तो था ही कि आपके ब्लॉग पर भी ओरछा का विस्तृत परिचय अवश्य ही होगा। मनु त्यागी ने भी अभी सप्ताह भर पहले ओरछा का वर्णन अपने ब्लॉग पर किया। ऐसे में मैं सिर्फ यही चाहता था कि बिना repetition के कुछ ओरछा के बारे में बताऊँ। आप सब को अच्छा लगा तो मेहनत वसूल हो गयी। आभार।

    1. Sushant K Singhal Post author

      धन्यवाद प्रिय सचिन! आप इस ब्लॉग पर आने व कमेंट हेतु ! कृपया स्नेह बनाये रखें।

  4. Devendra Kothari

    ओरछा के बारे में सारगर्भित जानकारियों व सुन्दर तस्वीरों से युक्त पोस्ट शेयर करने के लिए धन्यवाद।

  5. Devendra Kothari

    ओरछा के बारे में सारगर्भित जानकारियों व सूंदर तस्वीरों से युक्त पोस्ट शेयर करने के लिये धन्यवादजी।

    1. Sushant K Singhal Post author

      आदरणीय कोठारी जी,

      आपका हार्दिक आभार कि आप इस ब्लॉग तक आये और अपने सारगर्भित विचार भी यहां कमेंट के रूप में छोड़े। कमेंट करने में आपको जो असुविधा हुई, उसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं। मुझे उम्मीद है कि अब एक कमेंट प्रकाशित हो जाने के बाद आपको भविष्य में कोई भी परेशानी नहीं आयेगी। कृपया स्नेह बनाए रखें। सादर,

  6. Ritesh Gupta

    वाह सर जी ..एक ही पोस्ट में “गागर में सागर” वाली बात हो गयी | व्यंग पुट के साथ जानकारी का अद्भुत भंडार से सजी आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी | ओरछा की जानकारी और भौगोलिक वर्णन आपने सटीकता से किया है ….

    और हाँ…. अब बात चित्रों को …

    उसका तो कोई जोड़ ही नहीं …बहुत खूबसूरत चित्र ..

    धन्यवाद …दिलसे

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय रितेश, आपका बहुत बहुत आभार! आप सब की पोस्ट देख-देख कर मुझे भी कुछ ज्ञान की प्राप्ति हुई है और मैने सोचा कि पोस्ट में कुछ जानकारी काम की भी होनी चाहिये, सिर्फ हा-हा, ही-ही से काम नहीं चलता! सादर,

  7. डॉ.प्रदीप कुमार त्यागी

    जितनी प्रसंशा करूँ कम है…..गज़ब लिखा है सुशांत सर..चुटीला व्यंग पुट तो आपकी लेखन शैली का आदित्य हिस्सा है ही…..लेकिन इस पोस्ट की ख़ास बात है ओरछा के बारे पर्यर्टको के लिए संपूर्ण जानकारी होना , ओरछा के बारे में बहुत सी पोस्ट लिखी गयी है पर आपकी पोस्ट उन सबसे थोड़ा हट कर है…..?

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय प्रदीप जी, आपने कुछ ज्यादा ही प्रशंसा कर डाली है! पर चलिये, जब कर ही दी है तो हम सहर्ष स्वीकारे लेते हैं। आपको हार्दिक आभार भी इन स्नेहपूर्ण भावनाओं के लिये। सादर,

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय विनोद, लगता है गलती से सबमिट का बटन कुछ जल्दी दब गया! है ना?

  8. Gaurav Chaudhary

    बहुत ही उम्दा पोस्ट है। मैंने सभी ओरछा की सभी पोस्ट एक बार में ही पढ़ डाली। शुक्रिया आपका

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय गौरव चौधरी, आपका हृदय से आभार कि आप न केवल इस ब्लॉग तक आये बल्कि रचनाएं पढ़ कर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया भी दी। कृपया अपना स्नेह इसी प्रकार बनाए रखें।

  9. Roopesh sharma

    गागर में सागर वाली कहावत चरितार्थ कर दी आपने।बहुत समय बाद पढ़ पाया,इतनी गहनता से अपने हर चीज़ का वर्णन किया भाव विभोर हो गया।इतनी सजीवता कि लगा अभी भी ओरछा में ही हों,बहुत शानदार लेख सर् जी।

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय रूपेश, आपका अपार स्नेह से लबालब भरा कमेंट पाकर मैं भी भाव विभोर हो जाता हूं। जल्द ही मिलते हैं, यानि 14 दिसंबर की सुबह!
      सादर सस्नेह,
      सुशान्त सिंहल

  10. Aashish chawla

    Very exhaustively written, supported by maps and beautiful maps. However iin this mountain of information I missed out ,if there is any reference to buses going from jhansi to orchha. Please help me with that. I loved the narrative, shivraj and akhilesh Wala. Loved your blog

    1. Sushant K Singhal Post author

      Dear Ashish Chawla,
      Delighted that you liked the post. Orchha is on Jhansi – Tikamgarh highway so there would be many buses every day. However, during monsoon, the service is suspended because it becomes impossible to cross the overflowing Betwa river. 3-wheelers have always been the most popular mode of transport even in 80s when I had visited Orchha for the first time. For this meet in 2016, Mukesh Pandey Ji had arranged a few cars for us.
      Though I haven’t been writing on regular basis on this blog, now I am feeling sufficiently motivated to write something at regular intervals. In fact, many of my trips undertaken during last several years are waiting to be narrated. Even Orchha trip is not concluded.
      Thanks again for your motivational comment.
      Warm regards,
      Sushant Singhal

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