India Travel Tales

काश्मीर घूमने चलें?

  1. सहारनपुर से जम्मू रेल यात्रा के अद्‌भुत अनुभव
  2. जम्मू से श्रीनगर यात्रा – राजमा चावल, पटनीटॉप, सुरंग, टाइटेनिक प्वाइंट
  3. श्रीनगर के स्थानीय आकर्षण – चश्मा शाही, परी महल, निशात बाग, शालीमार बाग
  4. काश्मीर का नगीना डल झील – शिकारे में सैर
  5. गुलमर्ग – विश्व का सबसे ऊंचा गण्डोला और बर्फ़ में स्कीइंग
  6. काश्मीर – पहलगाम यात्रा डायरी और वापसी

मितरों ! मार्च के प्रथम सप्ताह की बात है, रात को मोबाइल पर एस.एम.एस. की टिक-टिक हुई। देखा तो एक संदेश था जिसमें मेरे एक टूर ऑपरेटर मित्र पंकज गोयल द्वारा “दो रात – तीन दिन” के मनाली टूर के बारे में जानकारी भेजी गई थी। मैने एक बार उसे पढ़ा और ये सोच कर डिलीट कर दिया कि जब जाना ही नहीं तो इस संदेश को फोन में रखने से फायदा ही क्या? पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था!

तो मितरों, हुआ ये कि इस SMS के बारे में मैने अपनी पत्नी को बताया जो मोबाइल लिये बैठी बड़े मनोयोग से कोई वीडियो गेम खेल रही थी खेल का एक राउंड पूरा हुआ तो रिमोट से टी.वी. का गला घोंटते हुए श्रीमती जी मेरी ओर उन्मुख हुईं और पूछा – “कौन सी तारीख का टूर है? चलो, चलते हैं।“ मैं खुश भी, परेशान भी और आश्चर्यचकित भी ! श्रीमती जी इतनी आसानी से घूमने जाने की सोच लेंगी, ये तो मेरे लिये कल्पना से भी बाहर की बात थी। SMS तो स्वर्ग सिधार चुका था और उसमें टूर की क्या तारीख थी, इस पर मैने ध्यान ही नहीं दिया था। पता नहीं, मेरी वाली ही unpredictable है या सारी बीवी ऐसी ही होती हैं!

“चलना है तो फोन करके पंकज से पूरी डिटेल ले लें?” मैने पूछा । श्रीमती जी ने कहा, “ठीक है, पता कर लो।”

अपनी वामांगिनी से NOC प्राप्त होते ही मैने पंकज को फोन लगाया। टूर के बारे में पूछा तो बोला, “ भैया, टूर को छोड़ो! वह तो फुल हो गया है। अगर आप दोनों की इच्छा हो तो हम दोनों परिवार अलग से चले चलते हैं। अकेले तो हमारा भी प्रोग्राम नहीं बन पाता है।“

पंकज मुझसे लगभग २० वर्ष छोटा है, अतः अगर मुझे अंकल जी कहता तो भी मैं उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता था पर वह मुझे बड़े भाई का दर्ज़ा देता है। उसकी पत्नी चीनू की भी मेरी पत्नी के साथ खूब अच्छी पटरी बैठती है। उन दोनों के पास ढाई वर्ष का एक बच्चा है। हम दोनों परिवार कभी एक साथ घूमने नहीं गये थे परन्तु हमें इतना विश्वास था कि अगर साथ-साथ जायेंगे तो सब का खूब मन लगेगा। छोटे बच्चे के कारण अकेले वह भी नहीं जाना चाहते थे और हमारी भी यही इच्छा रहती है कि कम से कम एक परिवार तो अवश्य ही साथ हो। अगर कभी आपस में किसी बात पर झगड़ पड़ें तो कोई बीच – बचाव कराने वाला तो हो! हमारे दोनों बच्चे स्कूल व कॉलेज में पढ़ रहे थे और उन दोनों के पास न तो समय था और न ही हमारे साथ जाने की उत्सुकता !

अगले दिन पंकज का फोन आया कि अगर हम दोनों परिवारों को ही चलना है तो मनाली ही क्यों, कश्मीर क्यों नहीं ! हमने फिर सोचा-विचारा कि बालक बात तो सही कह रहा है। क्यों न कश्मीर ही हो आयें। छः रात और सात दिन के लिये निकल चलते हैं। जब जाने का प्रोग्राम बन गया तो इस यात्रा की सारी तैयारियां करने की जिम्मेदारी हमने पंकज को ही सौंप दी क्योंकि बन्दा tour operator जो ठहरा। कहां ठहरेंगे, कहां कहां घूमने जायेंगे, क्या-क्या देखेंगे, इसका पूरा विस्तृत विवरण उधर पंकज ने तैयार करना आरंभ किया और मैने विभिन्न वेबसाइट्स पर जाकर कश्मीर के बारे में ऐसे पढ़ाई करनी आरंभ कर दी मानों बोर्ड की परीक्षा सर पर खड़ी हो और मास्टर जी ने बताया हो कि कश्मीर का चैप्टर इंपोर्टेंट है। हर किसी को कोई न कोई बीमारी होती ही है, सो मुझे भी ये बीमारी है।

तीन दिन बाद पंकज गोयल का फोन आया कि रिज़र्वेशन हो गया है, एक फोर्ड फियेस्टा Ford Fiesta टैक्सी भी जम्मू स्टेशन पर हमारी इंतज़ार करेगी जो हमें छः दिन बाद वापिस जम्मू स्टेशन पर ही छोड़ेगी। कश्मीर में कहां ठहरना है यह वहीं पहुंच कर देखा जायेगा। होटल ढूंढने में दिक्कत होने की संभावना नहीं थी क्योंकि कश्मीर में मार्च ऑफ सीज़न माना जाता है। उम्मीद थी कि सौदेबाजी करके अच्छा और सस्ता होटल मिल ही जायेगा।

यदि सौदेबाजी करने की कहीं कोई अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता होती हो तो आप लोग कृपया मुझे अवश्य ही सूचित करें। मैं उस प्रतियोगिता के लिये पंकज का नामांकन कराना चाहूंगा। सॉलिड बार्गेनर बन्दा है। मुझे तो शक है कि वह रेल और बस का टिकट खरीदते समय भी थोड़ी बहुत सौदेबाजी कर ही लेता होगा। उसका यह दुर्लभ गुण हमारी पूरी यात्रा में बहुत बहुमूल्य सिद्ध हुआ। हमने समझदारी का एक काम और भी किया । वह ये कि संपूर्ण यात्रा की अवधि के लिये खजांची की पदवी पंकज को सौंप दी।

बर्फ से ढके पहाड़ों पर यात्रा करनी थी अतः मैने श्रीमती जी से कहा कि सिर के लिये टोपी से लेकर पैर के लिये मौजे तक ऊनी वस्त्रों का प्रबन्ध करना होगा। पर वह इस हिसाब से तैयारी कर रही थीं जैसे अंतराष्ट्रीय सौन्दर्य प्रतियोगिता में भाग लेने जा रही हों। फेशियल, मैनिक्योर, पैडिक्योर तक तो फिर भी ठीक था, पर एक शाम वह अपने हाथों – पैरों पर ढेर सारा गाढ़ा सा चिपचिपा गर्म पदार्थ लेप कर मेरे पास आ बैठीं और एक सूती कपड़ा और संडासी देकर कहा कि इस कपड़े को उनके बांह पर संडासी से रगड़ – रगड़ कर ठीक से चिपकाऊं। मरता क्या न करता ! आदेश हुआ था तो पालन तो करना ही था। जब कपड़ा ठीक से चिपक गया तो बोलीं, “शाबाश ! अब इस कपड़े का एक सिरा पकड़ कर झटके से उखाड़ डालो। अपनी तो हवा गोल! कोई आपके हाथ में पिस्तौल देकर कहे कि मुझे ’ठां’ कर दो, तो क्या आप उसे खट से ’ठां’ कर देंगे?

“ये कैसे धर्मसंकट में डाल दिया, देवि ! मैं तुम्हें इतना कष्ट देने की तो स्वप्न में भी नहीं सोच सकता।“

“28 साल से आपको झेल रही हूं, आपकी रग-रग से वाकिफ़ हूं।“ अपना मुंह दूसरी ओर घुमा कर और कस कर दांत भींच कर श्रीमती जी बोलीं – “हे मेरे बेदरदी बालमा ! चलो, खींचो! बस, मैने भी दांत पीसते हुए कपड़ा त्वचा से ऐसे खींच दिया मानों कपड़ा नहीं, हाथ ही जड़ से उखाड़ने की तैयारी हो। वाह, क्या बात है! अन्दर से ऐसी हसीन, बिल्कुल मक्खन जैसी रोमरहित त्वचा निकल कर आई कि बस, क्या बताऊं ! मेरी उत्सुकता शांत करते हुए उन्होंने बताया, “इस प्रक्रिया को हिंदी में ’वैक्सिंग’ waxing कहते हैं। त्वचा से बाल गायब हो जाते हैं पर साली वैक्सिंग होती बहुत पेनफुल है।” मैने कहा भी कि इतना कष्ट उठाने की क्या जरूरत है, वहां सिर से लेकर पैर तक गर्म कपड़ों से ढंकी रहने वाली हो, फिर तुम्हारे इस कमल-कोमल-किसलय रूप की अद्भुत छटा को कौन निहारने जा रहा है? श्रीमती जी ने शरमाने का अभिनय करते हुए कहा, “अरे, ये सब आपके ही लिये तो कर रही हूं ! शादी के 28 साल बाद ही सही, पर जा तो कश्मीर रहे हैं ना! सुना है, बड़ी रोमांटिक जगह है।“ वाह, क्या बात है!

बस, ऐसे ही यात्रा की तैयारियां करते करते हमारे प्रस्थान की नियत तिथि 15 मार्च आ गई और हम दोनों (अर्थात् मैं और मेरी पत्नी) एक अटैची और चार बैग के साथ साइकिल रिक्शा पर लदे-फदे रात को 7.45 पर सहारनपुर स्टेशन पर पहुंच गये जहां से हमें शालीमार एक्सप्रेस जम्मू तक लेकर जाने वाली थी। पंकज गोयल मय बाल-बच्चे हमें प्लेटफार्म पर पूर्व नियत ओवरब्रिज के नीचे खड़े मिल गये। उनके पास दस बैग व तीन अटैची देख कर मैने पूछा कि कश्मीर में ही शिफ्ट करने का प्लान बना लिया है क्या? चीनू बोली, “नहीं भैया! छोटे बच्चे का साथ हो तो इतना सामान तो हो ही जाता है! बल्कि, पंकज ने दो बैग तो घर पर ही रखवा दिये हैं । मुझे तो डर है कि ट्रेन के टिकट कहीं उन्हीं में न रखे रह गये हों!” 😉 इतना सुनना था कि मेरी पत्नी तो माथा पकड़ कर अटैची पर ही बैठ गई और पंकज ने अपनी पत्नी के कंधे पर टंगे काले रंग के बैग पर जोर से झपट्टा मारा, चेन खींच कर खोली और पाकिट में से कुछ कागज़ बाहर निकाल कर उलटने – पुलटने लगा ! टिकट मिल गये तो उसने जोर से राहत भरी सांस ली। हमारी श्रीमती जी की भी जान में जान आई! अविश्वास में गर्दन हिलाते हुए बोली, “अभी तो शुरुआत है, आगे – आगे देखिये होता है क्या!”

मैने पंकज से पूछा, “कोच नंबर क्या है? जहां अपना डब्बा आकर रुकेगा, वहीं चल कर खड़े होते हैं, इतने सामान के साथ तो भागा भी नहीं जा सकता। पंकज ने कुली को रोक कर पूछा कि S-6 कोच कहां पर आयेगी? हमें गाड़ी में चढ़ाने का क्या लोगे? मैं अपनी सांस रोक कर सौदेबाजी का पहला शानदार नमूना देखने के लिये खुद को तैयार कर रहा था परन्तु तभी घोषणा हो गई कि शालीमार एक्सप्रेस प्लेटफार्म 6 पर आ रही है। अब सौदेबाजी का समय शेष नहीं रह गया था। कुली ने 300 रुपये बोले, पंकज ने 100 रुपये बताये ! साथ में, यह और जोड़ दिया कि गाड़ी आ गई है, अब कहां दूसरा ग्राहक ढूंढते फिरोगे? जितना मिल रहा है, जेब में डालो वरना 100 से भी जाओगे! कुली ने फाड़ खाने वाली दृष्टि से पंकज को देखा पर फिर हालात की गंभीरता को परख कर 200 रुपये कहते हुए सामान अपनी हाथ ठेली पर रखना शुरु कर दिया। गाड़ी प्लेटफार्म पर लगते ही सामान और हम सबको अन्दर ठेल दिया गया।

कोच नं० S-6 में प्रवेश कर के, मेरी पत्नी ने पूछा कि कौन – कौन सी बर्थ हैं तो पंकज का जवाब आया – “20 – 21” | मैने पूछा “और बाकी दो?” पंकज ने रहस्यवाद के कवि की सी भाव भंगिमा दोनों महिलाओं की ओर डाली और मेरे कान के पास आकर धीरे से बोला, “अभी दो ही कन्फर्म हुई हैं, बाकी दो यहीं गाड़ी में ले लेंगे।“ मेरी पत्नी को हमेशा से अपनी श्रवण शक्ति पर गर्व रहा है। बात कितनी भी धीरे से कही जाये, वह सुन ही लेती हैं! सिर्फ दो ही शायिकाओं का आरक्षण हुआ है, यह सुनते ही दोनों महिलाओं के हाथों के तोते उड़ गये। मेरी पत्नी तो बेहोश होते होते बची ! तुरन्त दीवार का सहारा लिया, बीस नंबर की बर्थ पर बैठी, फिर आहिस्ता से लेट गई। पानी का गिलास दिया तो एक – दो घूंट पीकर वापिस कर दिया और ऐसी कातर दृष्टि से मेरी ओर देखा कि मेरा भी दिल भर आया। पंकज की पत्नी ने भी तुरन्त 21 नंबर बर्थ पर कब्ज़ा जमाया और पंकज से बोली, “अब आप पूरी रात यूं ही खड़े रहो, यही आपकी सज़ा है। हम दोनों बेचारी शरीफ, इज्जतदार महिलाओं को धोखा देकर ले आये। हमें पता होता कि टिकट कन्फर्म नहीं हुए हैं तो घर से बाहर कदम भी नहीं रखते!”

अचानक मेरी छटी इन्द्रिय को कुछ खतरे का एहसास हुआ । धड़कते दिल से मैने पंकज से पूछा, “और वापसी का ? वह तो कन्फर्म है ना?” पंकज बोला, “वह तो कन्फर्म ही समझो! आर.ए.सी. में हैं, नंबर 1,2,3 और 4 ! अगर वह कन्फर्म न हों तो आप मेरा नाम बदल देना !“ सच, एक क्षण के लिये तो मेरा मन किया कि यहीं खड़े – खड़े पंकज का एन्काउंटर करवा दूं ! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वापिस लौट कर आकर मेरी बीवी मेरे साथ क्या सलूक करेगी ! रही बात पंकज का नाम बदल देने की तो मैं पंकज का नाम बदल कर क्या कर लेता?

इस खतरनाक विषय को बदलने के प्रयास में पंकज ने फटाफट अपना काला बैग फिर खोला और थर्मस निकाला, थर्मोकोल के दो गिलास निकाले, चाय गिलास में डाली और मेरी पत्नी से बोला, “भाभी, चाय ! घर की चाय अब आठ दिन बाद ही मिलेगी, यह सोच कर ले आये थे।

वाह, क्या ब्रह्मास्त्र चलाया था पंकज ने, एक तीर से दो शिकार! चाय का ज़िक्र कानों तक पहुंचते ही दोनों महिलाएं एक झटके से उठ बैठीं और अपने अपने गिलास लपक लिये! मेरी पत्नी ने पंकज से कहा, “वैसे भैया, आप बड़े धोखेबाज हो, फोन पर तो आपने कहा था, रिज़र्वेशन हो गया है। टिकट वेटिंग में मिले हैं, यह पता होता तो मैं घर से आती ही नहीं। प्रोग्राम कैंसिल कर दिया होता।“

“बस इसी डर से तो नहीं बताया। आपको कब-कब छुट्टी मिलती हैं, कब-कब घूमने के प्रोग्राम बनते हैं। साल भर आप मेहनत करती हैं, चीनू तो आपको अपना आइडल मानती है। ज़िन्दगी में पहली बार तो हमने आपके साथ जाने का प्रोग्राम बनाया, वह कैंसिल होने की सोच कर ही हमारा तो मन भर आता था। बस, सोचा कि हिम्मत करके चले चलते हैं, दो बर्थ तो मिल ही चुकी हैं, दो और भी मिल ही जायेंगी। अगर नहीं मिली तो भी कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा। अगर भैया भाभी गुस्सा भी करेंगे तो हंसते-हंसते सह लेंगे पर विश्वास रखिये, आप दोनों को हम कोई तकलीफ नहीं होने देंगे, भाभी ! जरूरत पड़ेगी तो हम दोनों बर्थ के बीच में फर्श पर ही बिस्तर फैला लेंगे। आप बिल्कुल भी चिंता न करें।”

पंकज के इन भावुकता पूर्ण उद्गारों को सुनकर चीनू ने भी पंकज के सुर में सुर मिलाया । मेरी पत्नी इतनी भावुकता कभी भी सहन नहीं कर पाती, तुरन्त दिल भर आया! चाय की सुड़की लेते हुए बोली, “अरे, नहीं, मैं तो मज़ाक कर रही थी ! घर से घूमने निकले हैं तो कष्टों की क्या चिन्ता करनी?” जो भी होगा, देखा जायेगा। वैसे, चाय बहुत अच्छी है।“

हमने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ! सामने वाली बर्थ पर एक महिला और एक पुरुष बैठे थे जिनके ’मास’ और ’वॉल्यूम’ को देखकर मैं भौंचक्का रह गया। मैने सहयात्रियों से बात शुरु करने के लिहाज से उनसे पूछा, “आपकी बर्थ कौन – कौन सी हैं? मुझे सीधे जवाब न देकर उस सहयात्री महिला ने मेरी पत्नी की ओर उन्मुख होकर उत्तर दिया, “हमारे पास भी एक ही बर्थ है। देवबन्द से बैठे हैं, जम्मू जा रहे हैं, वहां से कटरा, माता वैष्णो देवी के दरबार में ! टी.टी. की इंतज़ार कर रहे हैं, जो होगा देखा जायेगा। जैसी मातारानी की इच्छा होगी, हो जायेगा। इतना कह कर उन्होंने आकाश की ओर देख कर हाथ जोड़ दिये। उनकी देखा देखी, हम सब ने भी आकाश की ओर देखा और हाथ जोड़ दिये। आकाश की ओर देखने के प्रयास में ऊपर की बर्थ पर निगाह पड़ी तो एक नव-दंपत्ति अपर बर्थ पर बैठे हुए खुसर-पुसर के अंदाज़ में बातचीत में लीन दिखाई दिये। युवती के हाथों में कलाई से लेकर कुहनी तक चूड़ियां ही चूड़ियां थीं ! इससे पहले कि मैं उनसे भी अपना वही प्रश्न दोहराऊं, युवक ने इशारे से दोनों अपर बर्थ की ओर इशारा कर दिया कि वे दोनों उनकी हैं। दूसरी बर्थ पर उन्होंने अपनी अटैची – बैग सजाये हुए थे। मैने आहिस्ता से पत्नी से कहा कि तुम इन दोनों से पूछ लो, अगर ये एक बर्थ को खाली ही रखने वाले हों तो वह बर्थ हम इस्तेमाल कर लें ! पत्नी ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें तरेरीं और दोनों महिलाएं इस बात पर खी-खी कर हंस पड़ीं ।

मैने कोच से बाहर झांका तो देखा कि कोई परिचित सा स्टेशन है। जरा गौर से देखा तो दिल को धक्का लगा, अरे, यह तो सहारनपुर ही था। इसका मतलब अभी तक गाड़ी सहारनपुर में ही खड़ी हुई है? केवल दस मिनट का हाल्ट था, मगर आधा घंटे से अधिक हो चुका था और गाड़ी इंच भर भी आगे नहीं बढ़ी थी! मुझे लगा कि हो न हो, गाड़ी लोड मान रही है। शायद इंजन ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया हो! और भला क्यों नहीं ! चालीस किलो प्रति व्यक्ति की अधिकतम सीमा को लांघ कर पंकज कम से कम चार सौ किलो वज़न का सामान लिये हुए था। दो-दो सौ किलो के ये सामने वाले दंपत्ति भी होंगे!

मुझे परेशान देख कर, दो सज्जन जो अपने घुटनों पर ब्रीफ केस रख कर ताश खेल रहे थे और शक्ल सूरत से दैनिक यात्री लग रहे थे, बोले, अभी गार्ड के घर से टिफिन नहीं आया होगा। जब तक उसका खाना नहीं आयेगा, वह हरी बत्ती नहीं दिखायेगा। मुझे लगा ये जरूर लक्स का अंडरवीयर बनियान पहनते होंगे जो अन्दर की बात बता पा रहे हैं। खैर, पांच मिनट बाद गाड़ी ने रेंगना शुरु कर दिया तो हमने भी अपनी चिन्तनधारा का मुख अन्दर की ओर मोड़ लिया। अपना सामान अपनी दोनों बर्थ के नीचे सैट करने का प्रयास किया पर भला बर्थ के नीचे कितने अटैची – बैग समा सकते थे? बाकी बाहर ही रखे रहे। दोनों महिलाओं ने अपने – अपने खाने वाले बैग खोले। दोनों ही इतना सारा खाना बना कर लाई थीं कि हम अपने पड़ोसियों को भी निमंत्रित कर सकते थे। पर किसी अनजान सहयात्री को भोजन के लिये पूछना, वह भी यात्रा का शुभारंभ होते ही, उसे धर्मसंकट में डाल देने जैसा गुनाह है।

आमने सामने की दोनों बर्थ पर हमने अपना आसन जमाया और एक दूसरे के कटोरदान में से खूब प्रेमभाव से खाना खाया। दो सब्ज़ियां और पूरी हमारे पास, पनीर के पराठे, दो सब्ज़ियां और दही का टैट्रापैक उनके पास। जम कर दावत उड़ाई गई। हमें खाना खाते देख कर हमारे सहयात्रियों को भी भूख लग आई। उन्होंने भी अपना चार डब्बे वाला शाही आकार का टिफिन बैग में से बाहर निकाला, साथ में एक बड़ा कटोरदान भी। उन दोनों के आकार प्रकार को देखते हुए इससे छोटा टिफिन तो बेहूदा ही लगता। बचपन में हम ओम प्रकाश शर्मा के जासूसी उपन्यास पढ़ा करते थे जिसमें एक डायलॉग होता था – “जितना बड़ा जूता होगा, उतनी ज्यादा पालिश लगेगी!” तो बस, संदर्भ भले ही अलग हो, पर निहितार्थ तो वही था।

अम्बाला में टी.टी.ई. का आगमन हुआ तो पंकज उस से बिल्कुल ऐसे चिपक गया जैसे फेविक्विक लगा रखी हो ! टी.टी.ई. पहले तो भाव खाता रहा, इधर उधर घूमता रहा पर अपना पंकज भाई भी कम थोड़ा ही था, “तू जहां – जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा” वाले अंदाज़ में उसके आगे अपना पर्स हिलाता घूमता रहा और एक बर्थ आबंटित कराये बिना वहां से हिल कर नहीं दिया। अब दो लोअर बर्थ के अतिरिक्त एक मिडिल बर्थ भी हमारी हो गई थी। पंकज और मैं दोनों इस मिडिल बर्थ पर एक दूसरे की विपरीत दिशा में पैर करके लेट गये। मेरा एक बैग जिसमें मेरा कैमरा और लैपटॉप थे, मेरे से एक पल के लिये भी जुदा नहीं हो सकता था सो वह बैग भी मेरे सिरहाने में था। हालत ऐसी थी कि हम दोनों के लिये ही करवट बदलना भी असंभव था। मुझे बार-बार यही लगता रहा कि अपने ऊपर वाले युगल को प्रेरित करूं कि वह दोनों प्रेम भाव से एक ही बर्थ पर एडजस्ट हो जायें और एक बर्थ हमें दे दें। बिना मेरी प्रेरणा के भी वह शायद ऐसा ही करने वाले थे, पर अपने बेशकीमती सुझाव को मैने अपने तक ही रखा। आज कल किसी को अच्छी राय भी कब बुरी लग जाये, क्या पता।

हमारे दो सौ किलो वाले सहयात्रियों को टी.टी.ई. ने मांगने पर भी एक और बर्थ नहीं दी थी और उन दोनों का वृहत्त आकार इस बात की अनुमति नहीं देता था कि वह दोनों पूरी रात एक बर्थ पर किसी भी ढंग से विश्राम कर सकें। मैं तो यही सोच सोच कर परेशान था कि इनका दर्ज़ी इनकी कमर का नाप कैसे लेता होगा? एक टेप से तो काम नहीं चल सकता था और अगर दो टेप आपस में बांध दिये जायें और फिर नाप लेने की कोशिश की जाये तो दर्ज़ी के हाथ भी तो उतने लंबे होने चाहियें जो कमर का पूरा घेरा पार कर के पीछे एक दूसरे को छू लें। बस, नाप लेने की केवल एक संभावना हो सकती थी और वह ये कि दर्ज़ी अपने चेले से कहे कि तू इधर से टेप का एक सिरा पकड़ और मैं दूसरी तरफ से चक्कर लगा कर अभी आता हूं । खैर जी, हमें क्या?

हमारी दोनों लोअर बर्थ पर दोनों महिलाओं को सोते देख कर सामने वाली वृहत्ताकार महिला ने दोनों बर्थ के बीच में फर्श पर ही बिस्तर डाल लिया और सो गई। मुझे भी अब राहत थी, अगर पंकज या मैं सोते – सोते मिडिल बर्थ से नीचे गिरते भी तो चोट लगने का खतरा अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका था।

पूरी रात इसी प्रकार सोते-जागते बीती और सुबह पांच बजे जम्मू पहुंचे। बाहर आये तो टैक्सी ड्राइवर को फोन करके पूछा कि टैक्सी कहां खड़ी है। नई – नवेली फोर्ड टैक्सी देखी तो रात की कष्टकर यात्रा का ग़म कुछ कम हुआ। मेरा कैमरे का बैग और पंकज के बच्चे का बैग छोड़ कर बाकी सारा सामान टैक्सी ड्राइवर ने बड़े कलात्मक ढंग से कार की डिक्की में किस तरह से समा दिया, यह वास्तव में सीखने लायक था।

रेलयात्रा कैसी भी रही हो, पर अब हमें 2200 रुपये रोज़ की दर पर एक नयी नवेली वातानुकूलित टैक्सी और एक बहुत ज्यादा बोलने वाला ड्राइवर मिल गया था जिसने मेरी पत्नी के पूछने पर “भैया, आपका नाम क्या है?” अपना नाम प्रीतम प्यारे बताया तो मुझे धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन की “चुपके – चुपके” फिल्म की याद आगई जिसमें धर्मेन्द्र अपनी साली के घर में टैक्सी ड्राइवर की नौकरी पाने के लिये पहुंचता है और पूछने पर अपना नाम “प्रीतम प्यारे” बताता है और साथ में अपनी साली से यह भी कहता है, “आप चाहे तो प्रीतम कह लें या प्यारे कह लें – कुछ भी चलेगा। मुझे भी शक हुआ कि ये इसका वास्तविक नाम है या चुपके-चुपके फिल्म से प्रेरित होकर इसने अपना नाम प्रीतम प्यारे रख लिया है। खैर !

आज के लिये कहानी इतनी ही। अगली कड़ी में हम सड़क मार्ग से जम्मू से श्रीनगर तक का मजेदार किस्सा पढ़ने वाले हैं। तब तक के लिये नमस्कार !

11 thoughts on “काश्मीर घूमने चलें?

  1. SUNIL MITTAL

    वाह जी वाह मजा आ गया आपकी यात्रा के गुनगुने औऱ चुटकलों वाले भावार्थ। हंसी नहीं रूक रहीं हैं जी

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय सुनील मित्तल जी, चलिये कम से कम आपने तो सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत दिया! 😉 मेरा मतलब था कि ब्लॉग पोस्ट पढ़ कर अपना कमेंट छोड़ा। आपका हार्दिक आभार! अपने यात्रा संस्मरण लिखने का मेरा उत्साह कई गुना हो जाता है अगर मेरे पाठक ब्लॉग पर कुछ लिख कर जाते हैं। वरना तो ऐसा लगता है कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा! 🙂
      आते रहें, मैं इस यात्रा को प्रतिदिन आगे बढ़ाता रहूंगा जब तक कि वापिस सहारनपुर न पहुंच जाऊं।

  2. SUNIL MITTAL

    बिल्कुल। 🙏 🙏 दो बार स्वयं परिवार सहित यात्रा कर चुका हूँ। तीसरी बार आपके साथ।

  3. Rajesh Gupta

    मजा आ गया भाई. चुल्बुले अंदाज का जवाब नहीं. कहिं कहिं over explained लगा पर overall good very good.

    1. Sushant K Singhal Post author

      बहुत बहुत शुक्रिया राजेश भाई! इससे आगे की कड़ियां भी मौजूद हैं, अगर पढ़ने का मन हो तो!

  4. Rakesh Kumar Kataria

    वाह! बहुत ही व्यंग्यात्मक शैली में व कलात्मक रूप से आपने जम्मू तक की यात्रा का मजेदार फुल फैमिली यात्रा की सच्चाई पेश की।
    सच में पंकज भाई आगे यात्रा में क्या करने वाले है इसका तो आगे ही पता चलेगा लेकिन गुरुदेव, आपके लेखन शैली के तो हम कायल हो गए है।

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय राकेश कटारिया जी,
      आज संभवतः आप पहली बार ही इस ब्लॉग तक आये हैं और न केवल आपने मेरा यात्रा संस्मरण पढ़ा बल्कि अपनी मधुर वाणी में टिप्पणी भी दी है। किन शब्दों में धन्यवाद दूं आपको! बस यही अनुरोध है कि आते रहिये, पढ़ते रहिये, लिखते रहिये! साभार!
      सुशान्त सिंहल

  5. Mukesh Pandey

    आदरणीय पैसा वसूल पोस्ट लिखी है । जब शुरुआत ही इतनी जोरदार है, तो सफर कितना हसीन होगा !

    1. Sushant K Singhal Post author

      प्रिय मुकेश जी,
      जब आप जैसा धुआंधार घुमक्कड़ और लेखक तारीफ़ करे तो इंसान का फूल के कुप्पा हो जाना स्वाभाविक ही है। वही हाल मेरा भी है!
      🙂 🙂
      सादर सस्नेह,
      सुशान्त सिंहल

  6. vijaya pant Mountainneer

    वाह वाह बहुत ही रोचक पढ़कर बहुत मजा आया ❤️👍👍✍️✍️

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