- सहारनपुर से जम्मू रेल यात्रा के अद्भुत अनुभव
- जम्मू से श्रीनगर यात्रा – राजमा चावल, पटनीटॉप, सुरंग, टाइटेनिक प्वाइंट
- श्रीनगर के स्थानीय आकर्षण – चश्मा शाही, परी महल, निशात बाग, शालीमार बाग
- काश्मीर का नगीना डल झील – शिकारे में सैर
- गुलमर्ग – विश्व का सबसे ऊंचा गण्डोला और बर्फ़ में स्कीइंग
- काश्मीर – पहलगाम यात्रा डायरी और वापसी
मित्रों! हमारी काश्मीर की इस यात्रा श्रंखला की पहली कड़ी में आप पढ़ चुके हैं कि हम सहारनपुर से ट्रेन नं. 14645 शालीमार एक्सप्रेस से चल कर अगले दिन सुबह 5.30 पर जम्मू पहुंचे थे जहां प्रीतम प्यारे जम्मू स्टेशन के बाहर हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। इसी यात्रा श्रंखला की दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे हम जम्मू से श्रीनगर पहुंचे। आप यह भी जान चुके हैं कि श्रीनगर में हमने Boulevard Road के होटलों को अपने बजट से कहीं ऊपर महसूस करते हुए, डल झील की back में न्यू New Khonakhan Road पर एक छोटे से किन्तु साफ़ सुथरे होटल में 800 रुपये प्रतिदिन की दर से दो कमरे बुक किये और सामान होटल में टिका कर हम पुनः Boulevard Road पर जा पहुंचे और प्रीतम प्यारे द्वारा सुझाये गये वेजिटेरियन रेस्टोरेंट में बड़े आनन्द पूर्वक भोजन करके वापिस अपने होटल में आये और सो गये। अब आगे।
शनिवार, 17 मार्च : श्रीनगर स्थानीय भ्रमण
मित्रों, आप में से जो पाठक मुझे नियमित रूप से पढ़ते हैं, वह अब तक मेरी एक बीमारी से भली प्रकार परिचित हो चुके होंगे। बीमारी ये है कि मैं अगर किसी नये शहर में घुमक्कड़ी करने जाता हूं तो सुबह पांच बजे के आसपास ही कंधे पर कैमरा लटका कर नाइट सूट में चप्पल पहने हुए ही, होटल से बाहर निकल आता हूं और ठेठ लोकल इंसान की तरह से घंटे – दो घंटे इधर – उधर भटकता रहता हूं। अगर आपने मेरी नैनीताल यात्रा पढ़ी हो, या दुबई यात्रा में मेरे साथ रहे हों, इन्दौर, पौड़ी गढ़वाल, जयपुर, उदयपुर, अहमदाबाद, द्वारका, सासनगिर, दमन और दीव, श्रीशैलम, हैदराबाद, औरंगाबाद, शिरडी, नाशिक, लोनावला, माउंट आबू या अमृतसर की यात्राएं पढ़ी होंगी तो उन सब में भी मैने यही किया है। गूगल मैप इस मामले में मेरा सबसे अच्छा मित्र सिद्ध होता है।
अब यहां काश्मीर आकर भी इस बीमारी ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। सुबह पांच बजते ही, नित्य कर्म से निवृत्त होकर मैं कैमरा उठा कर होटल से बाहर निकल आया। हमारा होटल जिस New Khonakhan road पर था, वह कोई सुन्दर सी यानि glamorous सड़क नहीं थी पर श्रीनगर के जन-जीवन को और डल झील से उनके अन्तरंग रिश्तों को समझने के लिये बहुत अच्छी सिद्ध हुई। मैं क्या कहना चाह रहा हूं, वह आप इन चित्रों से भली प्रकार समझ सकेंगे।
दो घंटे इधर – उधर आवारा बादल की तरह से भटकने के बाद मैं होटल में चला आया। हमारी श्रीमती जी तो स्नान-ध्यान करके तैयार हो चुकी थीं। प्रीतम प्यारे सुबह 9 बजे तैयार रहने के लिये बोल गये थे सो मुझे भी हमारी अर्द्धांगिनी जी का आदेश हुआ कि अगर नहाने का मन हो तो मैं भी नहा धोकर तैयार हो जाऊं! उन्होंने ये ताकी़द भी कर दी कि अटैची में से मेरे कपड़े निकाल कर बाहर रखे जा चुके हैं अतः खबरदार! जो मैंने अटैची के सामान को हाथ भी लगाया तो! दर असल उनको ये भय लगा रहता है कि एक शर्ट खोजने के लिये, मैं इतनी मेहनत से प्रेस किये हुए बाकी सारे कपड़ों की वाट लगा दूंगा! यदि आप पाठकों में कुछ अविवाहित बंधु हों तो विवाहित जीवन के खतरों को समझने में मेरे अनुभव बहुत उपयोगी रहेंगे!
हमारी आज की लिस्ट में सबसे पहले Boulevard Road पर पंजाबी तड़का में नाश्ता, फिर वहां से शंकराचार्य पर्वत पर मंदिर के दर्शन, लौट कर परी महल, चश्मा शाही बाग, निशात बाग, शालीमार बाग, बाज़ार का भ्रमण तथा डल झील में शिकारे की सैर करना शामिल था।
श्रीनगर का भूगोल समझ लें तो अधिक आनन्द आयेगा।
मित्रों, मुझे स्कूल के दिनों में जिस विषय से सबसे अधिक डर लगता था, वह था भूगोल ! पर घुमक्कड़ी का शौक लगने के बाद मुझे गूगल मैप के सहारे किसी शहर को समझना अच्छा लगने लगा है। इसीलिये मैं आपको श्रीनगर का भौगोलिक सीक्रेट बताना चाह रहा हूं ताकि आपको एक झटके से सारी कहानी समझ में आ जाये!
बात कुछ ऐसी है कि श्रीनगर में एक 30 किमी लम्बी पर्वत श्रंखला है जिसे ज़बरवान पर्वत कहते हैं। बाई गॉड, बहुत ही सुन्दर पर्वत श्रंखला है ये जिसके एक ओर डल झील है तो दूसरी ओर झेलम नदी इठलाती बलखाती घूमती है। शायरों की भाषा में कहें तो “एक तरफ़ उसका घर, एक तरफ़ मयकदा !” अब ये तो कॉमन सेंस की बात हुई ना कि अगर इस पर्वत श्रंखला से पानी नीचे की ओर बहता हुआ आयेगा तो या तो वह डल झील में आयेगा या विपरीत दिशा में झेलम में चला जायेगा।
इस ज़बरवान पर्वत का जो ढलान डल झील की ओर है, उस पर तीन खूबसूरत बाग – चश्माशाही, निशात बाग और शालीमार बाग – बने हुए हैं जो जहांगीर और शाहजहां के समकालीन हैं। इनके अलावा वर्ष 2007 में इंदिरागांधी मैमोरियल ट्यूलिप गार्डन भी विकसित किया गया है जो एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन बताया जाता है। ये चारों बाग ज़बरवान पर्वत के ढलान पर बने हुए होने के कारण सीढ़ीनुमा शक्ल में बनाये गये हैं। हिन्दी में अगर कहूं तो ये सब के सब terraced garden हैं। पहाड़ से बह कर नीचे आने वाला जल जलाशयों में एकत्र करके इन बागों की सिंचाई के लिये उपयोग में लाया जाता है। इन सब बागों के प्रवेश द्वार डल झील के साथ – साथ चलने वाली Boulevard Road पर ही मौजूद हैं। इन सभी बागों के पृष्ठ भाग में ज़बरवान पर्वत दिखाई देता है।
इसी ज़बरवान पर्वत की अलग – अलग ऊंचाई वाली दो चोटियों पर परी महल और श्री शंकराचार्य मंदिर मौजूद हैं और उन दोनों पहाड़ियों तक पहुंचने के लिये जो सर्पिलाकार सड़क बनाई गयी हैं, वह भी Boulevard Road यानि डल झील से ही शुरु होती हैं। शंकराचार्य मन्दिर जिस चोटी पर है, उसे शंकराचार्य पर्वत कहा जाता है। परी महल की तुलना में शंकराचार्य मंदिर कहीं अधिक ऊंचाई पर स्थित है।
Boulevard Road श्रीनगर की सबसे अधिक महत्वपूर्ण और सुन्दर सड़क है जिस पर न केवल ये चारों विश्वप्रसिद्ध बाग स्थित हैं, बल्कि अनेकानेक होटल व सरकारी कार्यालय भी मौजूद हैं। और तो और गवर्नर साब का बंगला भी यहीं बुलेवर्ड रोड पर ही है। नेहरू पार्क के पास जिस रेस्तरां में हमने कल रात खाना खाया था और आज सुबह नाश्ता करने का भी प्रण किया था, वह भी इस Boulevard Road पर ही मौजूद है। इसी रेस्तरां के अड़ोस – पड़ोस में वह सड़क आरंभ होती है जो हमें ऊपर शंकराचार्य मंदिर लेकर जायेगी। सच पूछिये तो आज का पूरा दिन इस Boulevard Road, डल लेक और इसके आस पास मौजूद दर्शनीय स्थलों को ही समर्पित है।
हम दोनों मियां – बीबी तो सुबह 8.30 बजे ही सज – संवर कर बैठ गये थे। इंतज़ार थी तो बस अपने सहयात्रियों के तैयार होने की। ’छोटा बच्चा साथ में होने के कारण’ पंकज और उसकी पत्नी चीनू को अधिक समय लग रहा था। छोटे बच्चों को तीन ही काम आते हैं। रोना, फिर दूध पीना और फिर पॉटी करना। जब तक बच्चा पॉटी न कर ले, मां उसे अच्छे – अच्छे कपड़े नहीं पहना सकती। बच्चे को सजाने के बाद खुद के सजने संवरने की बारी आती है। कुछ बच्चे धोखा भी करते हैं। जब उनको सजा – संवार कर मां खुद के मेक अप में जुटती है तो बच्चे दूध उलट कर अपने कपड़े गंदे कर देते हैं। ज्यादा ही धोखा करना हुआ तो पुनः पॉटी भी कर देते हैं! आज भी ऐसा ही हुआ था। 🙁 ऐसे में हमारी श्रीमती जी उनकी सहायता को आगे बढ़ीं और मां – बेटे को तैयार होने में मदद की। जैसे – तैसे करके 9.15 तक हम सब लोग होटल से नीचे उतर आये जहां हमारे वाहन चालक प्रीतम प्यारे सड़क पर अपनी Ford Fiesta कार को चमकाने में लगे हुए थे और साथ – साथ चाय के गिलास में से सुड़की भी मारते जा रहे थे।
अब हमारा सबसे पहला लक्ष्य था – पंजाबी तड़का रेस्टोरेंट जो Boulevard Road पर Hotel Sun Shine होटल सन शाइन के भू तल पर स्थित है। वहां बैठ कर हम सब ने इतने भरवां परांठे खा लिये कि दोपहर को लंच की जरूरत अनुभव न हो। इसके बाद बाहर निकले, एक दूसरे की फोटो क्लिक कीं और चल पड़े आदि शंकराचार्य मंदिर की ओर!
आदि शंकराचार्य पर्वत पर स्थित शिव मंदिर
शंकराचार्य पर्वत श्रीनगर का सबसे ऊंचा स्थान है और श्रीनगर का विहंगम दृश्य देखना हो तो उससे बेहतर स्थान और कोई हो ही नहीं सकता। बस, समस्या एक ही है। पर्वत की चोटी पर स्थित शंकराचार्य मंदिर में कैमरा, मोबाइल, पान, बीड़ी, तंबाखू, गुटका, चाकू आदि ले जाना पूर्णतः निषिद्ध है। और जगह तो आप शायद चोरी छिपे फोटो खींचने का प्रयास कर भी लें, पर यहां भारतीय सेना का नियंत्रण कक्ष है जो मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने से पहले आपकी पूरी जामातलाशी लेते हैं। पर इंटरनेट पर शंकराचार्य मंदिर के चित्र और वीडियो उपलब्ध हैं जिसका अर्थ यही है कि कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को (यानि नेताओं को और उनके साथ चलते रहने वाले प्रेस फोटोग्राफ़र्स को) कैमरा ले जाने की और फोटो खींचने / वीडियो बनाने की अनुमति दे दी जाती है।
अपने होटल से सुबह 9 बजे पंजाबी तड़का रेस्तरां में सुबह भरवां परांठे खाये थे, उससे चंद कदम दूर पुलिस चौकी के सामने से ही शंकराचार्य पर्वत के लिये पहाड़ी सड़क आरंभ होती है। इस सड़क का निर्माण 1974 में हुआ था। भारतीय सेना का वहां बैरियर भी लगा हुआ है और हर ऐरे गैरे, नत्थू खैरे को ऊपर पर्वत शिखर पर जाने की अनुमति भी नहीं है। भारतीय सेना के जवान आपके credentials की जांच पड़ताल करने के बाद ही आपको बैरियर से आगे बढ़ने देते हैं।
इस सुनसान सर्पिलाकार मार्ग पर बीच – बीच में कुछ ऐसे व्यू प्वाइंट्स हैं जहां से श्रीनगर की बुलेवर्ड रोड, डल झील के शिकारे और हाउस बोट बहुत अच्छी प्रकार दिखाई देते हैं। ऐसे ही एक व्यू प्वाइंट पर प्रीतम प्यारे ने टैक्सी रोक दी। वहां से नीचे झांक कर देखा तो ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरी डल झील सैंकड़ों हाउस बोट और शिकारे से भरी पड़ी है। वहां हमने अपनी भी कुछ फोटो क्लिक कर लीं क्योंकि ऊपर मंदिर तक तो कैमरा या मोबाइल ले जाने की अनुमति थी ही नहीं!
श्रीनगर शहर समुद्र तल से 5200 फीट की औसत ऊंचाई पर बसा हुआ है। और श्रीनगर से शंकराचार्य पर्वत की ऊंचाई 1200 फीट और जोड़ दी जाये तो लगभग 6400 फ़ीट की ऊंचाई पर हम जा पहुंचे। अन्तिम 200-300 फीट मंदिर की ओर जा रही 243 सीढ़ियों के रूप में थे। इन सीढ़ियों का निर्माण डोगरा राजा गुलाब सिंह द्वारा कराया गया बताया जाता है। इतनी सारी सीढ़ियां चढ़ कर जब हमने मंदिर के प्रांगण में प्रवेश किया तो बिना धक-धक गर्ल को देखे भी हम सब के दिल जोर – जोर से धड़क रहे थे। उसके बाद मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिये लगभग 12-13 सीढ़ियां और थीं।
भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर वर्ष 371 ईसा पूर्व का माना जाता है। परन्तु इसमें समय – समय देश के विभिन्न राजा – महाराजाओं ने जीर्णोद्धार कराया है। पर्वत शिखर पर काले पत्थरों के इस विशाल मंदिर के निर्माण के लिये इतने भारी भरकम पत्थरों को कैसे ऊपर तक लाया गया होगा, कैसे मंदिर का निर्माण हुआ होगा, यह सब आश्चर्य में डाल देता है।
मंदिर में शिवलिंक का अभिषेक करके हम हम नीचे प्रांगण में उतरे तो मंदिर की बाउंडरी वॉल से श्रीनगर का अद्भुत नज़ारा देख कर हक्के – बक्के ही रह गये। श्रीनगर का 360 डिग्री नज़ारा वहां से उपलब्ध था। एक ओर इठलाती – बलखाती, शहर के बीच से निकल रही झेलम नदी तो दूसरी ओर डल झील, हज़ारों मकान, स्कूल आदि के भवन वहां से दिखाई दे रहे थे। शंकराचार्य मंदिर की एक वीडियो जो मुझे यूट्यूब पर मिली है, मैं आपको दिखाना चाह रहा हूं। हमें भले ही कैमरा लेकर जाने की अनुमति न मिली हो, पर मंदिर के ट्रस्ट ने जो वीडियो तैयार कराई है, उसमें कश्मीर के राजपरिवार के वंशज कर्णसिंह भी पूजा करते हुए दिखाई दे रहे हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं, कर्णसिंह काश्मीर के राजा हरि सिंह के पुत्र हैं। स्वाभाविक ही है कि उनके लिये तो वीडियो बनाने की अनुमति मिलनी ही थी। वर्ष 1961 में इस मंदिर में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा भी स्थापित की गयी है।
अब चलें परी महल की ओर
शंकराचार्य पर्वत से हम वापिस नीचे चले तो हमारा अगला पड़ाव था परी महल! ज़बरवान पर्वत की एक और चोटी पर बने हुए इस छः स्तरीय ढांचे का अधिकांश भाग खंडहर के रूप में है। इस ढांचे में न तो परियां हैं और न ही ये महल कहा जा सकता है। फिर भी इसका नाम परी महल किसने और क्यों रखा, इसकी खोज बीन चल रही है। इतना अवश्य है कि इसका निर्माण शाहजहां के सबसे बड़े पुत्र दारा शिकोह द्वारा वर्ष 1650 ई. में अपनी पढ़ाई लिखाई के लिये कराया गया था। जैसा कि इतिहास के विद्यार्थियों ने पढ़ा ही होगा, दारा शिकोह अपने अत्यन्त क्रूर, सत्ता लोलुप और धर्मान्ध छोटे भाई औरंगजेब से बिल्कुल अलग मानसिकता रखता था। उसकी रुचि विभिन्न धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन में बहुत थी। उसने यह स्थान इसलिये बनाया था कि यहां पर विद्वान, संत, फ़कीर आया करें, यहीं निवास करें और अध्ययन किया करें। ये अलग बात है कि औरंगजेब ने अपने जिन दो सगे भाइयों का कत्ल किया था उनमें एक उसका बड़ा भाई दारा शिकोह भी था, जिसके कत्ल के लिये शुभ दिन शनिवार, 30 अगस्त 1659 की तिथि सुनिश्चित की गयी थी। इस कत्ल की वज़ह सिर्फ इतनी थी कि औरंगज़ेब के पिता शाहजहां ने अपने बाद दाराशिकोह को मुगल साम्राज्य की बादशाहत सौंपने का मन बनाया हुआ था। इस कारण औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को मृत्यु पर्यन्त जेल में रखा और अपने दो भाइयों की हत्या की। मारने से पहले दारा शिकोह को जंजीरों में जकड़ कर पूरी दिल्ली में सड़कों पर पैदल घुमाया गया था ताकि जनता के दिमाग़ में ये बात बैठाई जा सके कि जो औरंगज़ेब सत्ता हासिल करने के लिये अपने बाप का और सगे भाइयों का बेरहमी से कत्ल कर सकता है वह आम जनता के साथ क्या बरताव करेगा। अब ये अलग बात है कि खुद को सेकुलर कहलाना पसन्द करने वाले कुछ इतिहासकार औरंगज़ेब की धर्मान्धता के गुण गाते नहीं थकते! उसे अत्यन्त ईमानदार, शरीफ़ और संत महापुरुष सिद्ध करने में लगे रहते हैं। मुगल साम्राज्य में बेटे राजपाट संभालने के लिये अक्सर अपने पिता के मरने की इंतज़ार नहीं किया करते थे, खुद ही उनको मार दिया करते थे और अगर बहुत दयालु स्वभाव के हुए तो उनको मारने के बजाय सारी ज़िन्दगी के लिये जेल में डाल देते थे। चलो, खैर! हमें इन सब बातों से क्या?
अब ये खंडहर भारतीय सेना के पूर्ण नियंत्रण में है और यहां के सर्वोच्च बिन्दुओं पर सेना ने मचान बनाई हुई हैं ताकि श्रीनगर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों पर निगाह रखी जा सके। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से श्रीनगर के शहरी इलाकों को, खास तौर पर डल झील को देखा जा सकता है। सबसे ऊपर वाली टेरेस पर एक जेल है जिसमें एक गुप्त कमरा भी है जिसे पूछताछ का कमरा कहते हैं। अब ये तो स्वाभाविक ही था कि इस जेल के द्वार हमें बन्द मिले। आजतक ऐसी कोई जेल हमें मिली भी नहीं जिसके द्वार खुले पड़े रहते हों!
कुल मिला कर हम घंटे दो घंटे तक वहां पर खोजबीन करते रहे कि कहीं परी या महल मिले पर नाकाम ही रहे। छः स्तरों वाली इस इमारत को आप terraced garden कहें तो बेहतर है। हमें वहां विभिन्न मंजिलों पर बारादरी, जलाशय, परकोटे, पेड़ व खंडहर दिखाई दिये। घास भी थी, बस अगर कहीं कुछ नहीं था तो परी और महल नहीं थे। कुछ लोगों का ये भी कहना है कि इस स्थान का सदुपयोग नक्षत्रशाला / वेधशाला के रूप में भी होता रहा है। यदि ऐसा है तो बड़ी अच्छी बात है! जब हम वहां पर पहुंचे तो काफी बड़ी संख्या में पर्यटक वहां मौजूद थे। मुझे भारी भरकम dSLR कैमरा लिये घूमते देख कर दो एक पर्यटकों ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं अपने कैमरे से उनकी और उनकी बेगम की फोटो खींच दूं। मैने कहा भी कि फिर ये फोटो आपको कैसे मिलेंगी तो बोले कि ये रही हमारी ईमेल आई डी! आप अपने घर जाकर ई-मेल कर दीजियेगा। चलो भई, ठीक है, ये भी सही! अब हम चलते हैं चश्मे शाही की ओर जो परी महल का निकटतम और तीनों मुगल बाग में सबसे छोटा है।
चश्मा शाही बाग
चश्मा शाही का मूल नाम चश्मा साहिबी था। काश्मीर की एक प्रसिद्ध संत रूपा भवानी साहिब ने इस झरने की खोज की और उनके नाम पर ये चश्मा (झरना) चश्मा साहिबी कहलाया गया। बाद में सन् 1632 में शाहजहां के एक सूबेदार अली मरदान खान ने दारा शिकोह के लिये यहां एक बाग का निर्माण किया जिसके केन्द्र में ये झरना रहा। उसके बाद से इसका नाम चश्मा शाही हो गया।
जैसा कि मैने ऊपर भी ज़िक्र किया, श्रीनगर के तीनों झरने पहाड़ी ढलान पर बने हुए होने के कारण सीढीनुमा आकार में निर्मित हैं। तीनों बागों के प्रवेश द्वार सबसे नीचे तल पर स्थित हैं यानि डल झील के साथ – साथ चल रही Boulevard Road पर। किसी बाग में 5 टैरेस हैं, किसी में 7 तो किसी में और भी अधिक! हर बाग के मध्य में ऊपर से जलधारा आती हुई दिखती है जो खूबसूरत फ़व्वारे की शक्ल में एक – एक सीढ़ी नीचे उतरती है। श्रीनगर की आबो हवा के अनुकूल पुष्प व अन्यान्य वनस्पति यहां मौजूद हैं। पर्यटक यहां पर आते हैं, घंटों घास पर रोमांटिक बातें करते हैं, फैंसी ड्रेस में फोटो खिंचवाते हैं और अपने घर की राह लेते हैं। हमने भी यही सब किया।
हमारे साथ घट गयी हृदय विदारक घटना
चश्मा शाही से हम बाहर निकले तो हमारे अगले पड़ाव थे – निशात बाग और उसके बाद शालीमार बाग! जब से हम जवाहर टनल पार करके श्रीनगर घाटी में प्रविष्ट हुए थे, मुझे यह बात निरन्तर परेशान किये हुए थी कि काश्मीर घाटी में कहीं भी प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शन नहीं हो रहे जब कि काश्मीर तो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिये ही विख्यात है। न तो चिनार के किसी भी वृक्ष पर एक भी पत्ता नज़र आया और न ही किसी पौधे पर फूल खिला हुआ दिखाई दिया। हमारे परम ज्ञानी प्रीतम प्यारे ने बताया कि हम मार्च के महीने में काश्मीर आये हैं जो यहां पतझड़ का मौसम होता है। इन दिनों पूरी कश्मीर घाटी उदास उदास सी नज़र आती है। 15 अप्रैल के बाद देखना आप यहां कैसी बहार आती है!
यह सुन कर मैं पंकज पर भड़क गया! सारी गलती उसकी ही निकाल दी ! क्या जरूरत थी हमें मार्च के महीने में कश्मीर लेकर आने की? मई के महीने में भी तो आ सकते थे! इससे पहले कि पंकज कुछ जवाब दे पाता, श्रीमती जी ने ही हमें आइना दिखा दिया – “आप कोई नये – नवेले हनीमूनर कपल तो हो नहीं जो सीज़न में ही आना था। शादी के 28 साल बाद आये हो, सर के बाल उड़े हुए हैं। ऐसे में अगर यहां पेड़ों पर भी पत्ते नहीं दिख रहे तो क्या परेशानी वाली बात है?”
अपना माथा तो हमने तब पीट लिया जब पता चला कि शालीमार बाग मेंटिनेंस के लिये बन्द है। निशात बाग में भी झरनों में जमा कीचड़ की वर्ष भर में एक बार सफाई की जाती है जब ऑफ सीज़न चल रहा होता है। पर फिर भी निशात बाग खुला हुआ था। हम वहां पर थोड़ी देर रुके और कुछ फ़ोटो खींच कर चल दिये। पर ये सच था कि जिन दिनों हम काश्मीर गये थे, वह पूरी तरह से ऑफ़ सीज़न था। हमें कहीं ज्यादा भीड़ नहीं मिली, ऑनलाइन बुकिंग नहीं करानी पड़ीं, लंबी – लंबी लाइनों में नहीं लगना पड़ा पर हमें कहीं कुछ बहुत आकर्षक देखने को मिला भी नहीं।
अब आज का हमारा अन्तिम काम था डल झील में शिकारे की सैर ! अच्छा हो, इस बारे में आपको कल को ही बताया जाये। तब तक के लिये नमस्कार दोस्तों !
रोचक सफर रहा। मेरा मानना है कि हर पर्यटक स्थल के अलग सीजन की अपनी अलग खूबसूरती होती है। यहाँ भी आपने अलग खूबसूरती देखी। आपको भीड़ भाड़ नहीं मिली। आराम से सब जगह घूम लिए। तो यह एक तरह से अच्छा ही हुआ। रोचक वृत्तांत। तस्वीरें बेहद खूबसूरत हैं।
प्रिय विकास नैनवाल,
अभी दो घंटे पहले भी मैने आपको आपके कमेंट का उत्तर दिया था, पर वह न जाने कहां गायब है, नज़र ही नहीं आ रहा है। आपकी ये बात बिल्कुल सही है कि ऑफ सीज़न में जाने के अपने अलग फायदे हैं और वह हमें मिले भी!
आपका इस ब्लॉग तक आना, पोस्ट पढ़ना और कमेंट छोड़ना मेरे लिये हमेशा ही आह्लादकारी होता है। कृपया स्नेह बनाये रखें।
कोई भी पर्यटक आपका ब्लॉग पढ़ कर श्री नगर की यात्रा ऐसे कर सकता है
जैसे कोई गाइड साथ में हो
एक एक जगह का शानदार व विस्तृत वर्णन किया है
एक बहुत उच्च कोटि का यात्रा वृतांत
प्रिय राकेश जी, आपके कमेंट इतने मनभावन होते हैं कि हर रोज़ आपका एक कमेंट पाने के लिये एक पोस्ट लिखने का मन करता है! जब मैने यात्रा वृत्तान्त लिखना आरंभ किया था तो उसका मूल उद्देश्य सिर्फ पाठकों का मनोरंजन होता था। फिर अनुभव हुआ कि सिर्फ मनोरंजन ही पर्याप्त नहीं है। जब लिख ही रहा हूं तो कुछ ऐसी बातें भी बताता चलूं जो भविष्य में इस स्थान पर जाने वालों के लिये सहायक व उपयोगी भी हों! अब अपनी हास्य-व्यंग्य की शैली और पाठकों का ज्ञानवर्द्धन – इन दोनों के बीच में संतुलन बनाये रखने का प्रयास करता हूं।
कृपया अपना स्नेह भाव बनाये रखें।
सुशान्त सिंहल