इस श्रंखला की समस्त कड़ियां
हमारी हैदराबाद - महाराष्ट्र तीर्थ यात्रा - पहला दिन
- श्री शैलम में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन
- हमारी हैदराबाद – महाराष्ट्र यात्रा का दूसरा दिन – चारमीनार की सैर
- हमारी हैदराबाद यात्रा का दूसरा दिन – सालारजंग म्यूज़ियम
- हमारी हैदराबाद यात्रा का दूसरा दिन – बिड़ला मंदिर / हुसैन सागर लेक और होटल वापसी
- हमारी हैदराबाद यात्रा का तीसरा दिन – रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर – भाग १
- हमारी हैदराबाद यात्रा का तीसरा दिन – रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर – भाग २
- हमारी हैदराबाद यात्रा का तीसरा दिन – रामोजी फ़िल्म सिटी और औरंगाबाद हेतु रेल यात्रा
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का पहला दिन – औरंगाबाद – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का पहला दिन – औरंगाबाद – बीवी का मकबरा व अन्य दर्शनीय स्थल
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का दूसरा दिन – औरंगाबाद – एलोरा की गुफ़ाएं
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का दूसरा दिन – शनि शिंगणापुर और शिरडी दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का तीसरा दिन – नाशिक – त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का तीसरा दिन – नाशिक – पंचवटी, मुक्तिधाम व अन्य दर्शनीय स्थल
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का तीसरा दिन – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन व लोनावला हेतु प्रस्थान
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का चौथा दिन – लोनावला व खंडाला, कार्ला गुफ़ाएं, टाइगर प्वाइंट
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का पांचवा दिन – लोनावला से मुम्बई और दिल्ली वापसी हेतु रेल यात्रा!
प्रिय मित्रों, हमारी हैदराबाद – महाराष्ट्र तीर्थयात्रा की इस श्रंखला की पिछली कड़ियों में अभी तक आप पढ़ चुके हैं कि हम कैसे नई दिल्ली से हैदराबाद होते हुए श्री शैलम पर्वतीय स्थल पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु पहुंचे और अगले दिन हैदराबाद वापसी की। आज हमारी यात्रा का दूसरा दिन है और श्रीशैलम से 210 किलोमीटर की यात्रा करने के कारण हमारे पास केवल आधा दिन ही शेष बचा है जिसमें हम हैदराबाद के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल देख सकते हैं। हम चारमीनार देख आये हैं जिसका विवरण आप पिछली कड़ी में पढ़ चुके हैं। अब हम सालारजंग म्यूज़ियम की ओर बढ़ रहे हैं।
सालारजंग म्यूज़ियम – एक अद्भुत खजाना
सालारजंग म्यूज़ियम हैदराबाद में मूसी नदी के तट पर स्थित एक विशिष्ट संग्रहालय है जिसमें उपलब्ध अधिकांश कलाकृतियों को संजोने का श्रेय मीर यूसुफ़ अली खान, जिसे सालारजंग तृतीय नाम से जाना जाता है, को जाता है। वैसे, इस संग्रहालय की स्थापना सालारजंग प्रथम यानि नवाब मीर तुराब अली खां और उनके पुत्र नवाब मीर लायक अली खां यानि सालारजंग द्वितीय के समय में ही हो गयी थी। इस संग्रहालय में 40,000 से भी अधिक कलाकृतियां प्रदर्शित की गयी हैं जिनको धैर्य पूर्वक देखने के लिये एक सप्ताह का समय भी कम ही है। धैर्यपूर्वक इसलिये क्योंकि जिस कलाकृति को बनाने में कलाकारों ने महीनों खर्च किये होंगे उसको निहारने के लिये पांच मिनट का समय तो जायज़ ही है ना!
बताया जाता है कि यह म्यूज़ियम जिन सालारजंग तृतीय ने बनाया था, वह हैदराबाद के निज़ाम के जमाने में राज्य के दीवान (प्रधानमंत्री) थे और अपनी अपनी आय का अधिकांश भाग देश विदेश से दुर्लभ कलाकृतियां खरीदने में ही व्यय करते थे। पहले ये म्यूज़ियम उनकी अपनी हवेली में था पर उनकी मृत्यु के बाद 1968 में उसे इस नये भवन में स्थानान्तरित किया गया। इस स्थानान्तरण की प्रक्रिया में बहुत सारी कलाकृतियां चोरी हो गयीं यानि एक भवन से दूसरे भवन ले जाते समय रास्ते में ही गायब कर दी गयीं। इस परिसर में एक श्रोतृशाला (जिसे हिन्दी में ऑडिटोरियम कहते हैं) भी है उसमें वर्ष 2006 में आग भी लग गयी थी पर शुक्र है कि इन कलाकृतियों को कोई हानि नहीं पहुंचने दी गयी। इस अग्नि कांड से शिक्षा लेकर यहां के ट्रस्टियों ने अग्नि रोधक सुविधाओं में काफ़ी इज़ाफ़ा किया है। अस्तु।
हम जब म्यूज़ियम पहुंचे तो प्रवेश द्वार बन्द होने में सिर्फ पन्द्रह मिनट शेष थे और 45 मिनट में हमें संग्रहालय में से वापिस निकल आना अपेक्षित था। ये स्थिति कुछ ऐसी ही थी जैसे किसी खाने – पीने के शौकीन व्यक्ति के सामने नानाविध पकवानों के सैंकड़ों स्टॉल सजा दिये जायें और कहा जाये कि सिर्फ़ दस मिनट में जो भी खाना चाहो, खा सकते हो! 🙁
मैने तो ऐसे में यही किया कि कैमरे के लिये भी 50/- का टिकट खरीद लिया और फिर हर हॉल में जाकर तूफानी गति से विभिन्न कलाकृतियों की फ़ोटो खींचता चला गया। फ़ोटो खींचते समय मन में यही विचार था कि मैं भले ही इन कलाकृतियों को अभी फ़ुरसत से न निहार सकूं, शायद मेरे कैमरे की लेंस इनकी बारीक से बारीक डिटेल को मैमोरी कार्ड पर संजो लेगी और फ़िर मैं फ़ुरसत से एक एक कलाकृति को घंटों निहारता रह सकता हूं। बस अगर मैने पूरी तरह से उदासीनता दिखाई तो उस हॉल की ओर जाने में दिखाई थी जिसमें नवाबों के फोटोग्राफ प्रदर्शित किये गये थे। “उनको क्या देखना!” 😉
जिन कलाकृतियों ने मुझे दीवाना बना दिया था वह या तो हाथीदांत की कलाकृतियां थीं या फिर आदमकद मूर्तियां थीं। न जाने अब उन जैसे कलाकार इस धरती पर मौजूद हैं या नहीं जो सिर्फ कलाकृति ही नहीं बनाते, बल्कि अपना दिल ही उड़ेल कर रख देते हैं। वैसे, इस म्यूज़ियम में पाषाण (stone sculptures), कांसे की मूर्तियां (Bronze artifacts), कपड़े पर छपाई (textile printing), काष्ठकला (woodcraft), धातु कला (metal art), फ़र्नीचर आदि के संग्रह भी उपलब्ध हैं। पोर्सलिन, एनामेल, लैकर, कढ़ाई व पेंटिंग के अलावा कुछ मूल पांडुलिपियां भी यहां मौजूद हैं। पर जैसा कि मैने पहले भी कहा, मेरा दिल तो हाथी दांत के संग्रह (ivory art) ने और यूरोपियन कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्तियों के संग्रह ने लूटा। प्राचीन भारतीय मूर्तियां तो अनेकानेक संग्रहालयों में मिल ही जाती हैं। नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय, इंदौर के संग्रहालय में भी पाषाण मूर्तियों का धुआंधार कलेक्शन उपलब्ध है। पर कुछ सौ मूर्तियां देख लेने के बाद सब एक जैसी ही दिखाई देने लगती हैं। हां, उदयपुर में भी संगमरमर की कुछ यूरोपियन / इटैलियन मूर्तियां चमत्कृत करने वाली उपलब्ध थीं।
अगर विश्वास न हो रहा हो तो मेरे 500 से भी अधिक चित्रों में से ये थोड़े से चित्र देख लीजिये –
सालारजंग म्यूज़ियम बन्द होने के समय हो गया था और वहां के कर्मचारी इशारा कर रहे थे कि कृपया हम हॉल से बाहर निकास द्वार की ओर निकलें। विवशता थी, सो हम सब निकास द्वार पर पहुंचे और अपने ड्राइवर महोदय को फोन करके कहा कि वह भी वैन लेकर बाहर आ जाये ताकि हम बिड़ला मंदिर की ओर प्रस्थान कर सकें।
आज की कहानी बस इतनी ही ! जल्द ही पुनः मिलेंगे, तब तक के लिये नमस्कार ।
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