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मित्रों ! आज 23 जनवरी 2020 को हम नाशिक में आये हुए हैं। श्री त्र्यंबकेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो चुके हैं। अब ड्राइवर महोदय हमें पंचवटी दिखाने के लिये पुनः नाशिक शहर में ले आये हैं। मेरे सभी साथी मंदिरों के दर्शन करने के लिये चले गये हैं। मेरी रुचि मंदिरों से अधिक गोदावरी तट को explore करने की थी सो मैं उनके साथ नहीं गया हूं। मेरी श्रीमती जी तो निश्चित रूप से नाराज़ ही होंगी, पर कोई बात नहीं !
पंचवटी का महत्व भगवान राम के वनवास काल से जुड़ा हुआ है। सुना है कि पांच वटवृक्षों के कारण इस स्थान को पंचवटी नाम मिला। स्वाभाविक ही है कि वनवास के दौरान भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने गोदावरी के तट के आस पास ही अपनी पर्णकुटी बनाने का निश्चय किया होगा।
पंचवटी क्षेत्र में हर बारह वर्ष में एक बार यहां पर कुंभ का मेला लगता है। गोदावरी तट पर छोटे – बड़े, प्राचीन और नये मंदिरों की भरमार है। काल के प्रवाह के साथ चलते – चलते अनेक मंदिर बाहर से काले हो चुके हैं। ये भी हो सकता है कि ये काले पत्थर से ही बने हों। कुछ मंदिर परम्परागत नहीं लग रहे हैं। लगता है कि ये 10-20 वर्ष से अधिक पुराने नहीं हैं।
लोगों का भविष्य बताने का दावा करने वाले कुछ लोग यहां पर फ़र्श पर ही चटाई बिछाये हुए ग्राहकों की इंतज़ार करते हुए व्हाट्सएप और फ़ेसबुक खोले बैठे हैं। कुछ महिलाएं अपने बच्चों के लिये नदी तट पर ही रसोई पका रही हैं। कुछ दुकानदार महिलाएं पूजा सामग्री, भगवान जी के चित्रों के कलेंडर व अन्य आकर्षक सामान बेचती दिखाई दे रही हैं। कुछ महिलाओं के पास ग्राहक नहीं हैं सो वह स्मार्टफोन पर कोई वीडियो देख कर खुश हो रही हैं। भगवा रंग की साड़ी पहने एक महिला गोदावरी तट पर सीढ़ियों पर बैठ कर स्नान का पुण्य बटोर रही है। कुछ अन्य परिवार भी स्नान के मूड से ही आये हुए हैं। गोदावरी नदी का जल अपेक्षाकृत साफ़ है, और उसमें रंगों का मेला लगा हुआ है। रंग – बिरंगे भवनों की, फूलों की, श्रद्धालुओं की बनती – बिगड़ती हुई छाया बहते हुए जल में बड़ी भली लग रही है। कुछ युवक अपना तैराकी का भी कौशल दिखा रहे हैं। एक युवक नदी में अपनी नाव लिये घूम रहा है, शायद मछली मकड़ने आया हो।
एक बड़ा प्राचीन सा मंदिर है जिस के शीर्ष पर भी छोटे – छोटे पेड़ उग आये हैं। इस मंदिर से बिल्कुल सटा कर तीन मंजिला हटड़ी जैसी इमारत देख कर मैं हक्का – बक्का हो रहा हूं। इस इमारत में दो मंजिलों में तो ऊपर जाती हुई सीढ़ियां ही दिखाई दे रही हैं। ऊपर पाण्डे मिठाई लिखा हुआ है। पता नहीं, ये अतिक्रमण है या मंदिर पर अपना अधिकार दिखाने की चेष्टा है! जो भी हो, यह सब कुछ बहुत अटपटा सा लग रहा है।
गोदावरी तट पर घूमते – घूमते मुझे भी थकान अनुभव होने लगी तो मैं भी नदी की पैड़ियों पर बैठ गया हूं। दो महिलाएं भी वहीं पास में बैठी हैं जो सास-बहू सी लग रही हैं। शायद बहू की ऊम्र भी 50 वर्ष तो होगी ही। नाक के मध्य में नथ डाला हुआ है जो मेरे लिये नयी बात है। अक्सर महिलाएं नाक के एक ओर – बायें या दायें – नथ पहनती हैं पर इस महिला का नाथ मध्य में है। मैंने नथ की फोटो लेने की इच्छा व्यक्त की तो सास ने अपनी बहू के गले में अपनी वाली माला भी डाल दी है ताकि फोटो में खूब सारी ज्वेलरी नज़र आये। सही बात है! घर की लक्ष्मी को बाहर वालों के सामने सजी संवरी हुई देखना हर सास को आवश्यक लगता है।
एक पुलिस कर्मी महिला फ़ुल वर्दी में सब्ज़ी वाले से सब्ज़ी खरीद रही है। उम्मीद करता हूं कि अपनी वर्दी का रौब गालिब करते हुए वह फ्री में ही सब्ज़ी नहीं ले जायेगी! उधर दाढ़ी वाले एक भगवा धारी सज्जन अपनी बाइक पर बैठे हुए राम नामी गमछे आदि बेच रहे हैं। उनकी भी एक फोटो क्लिक कर ली है पर उनके चेहरे की भाव – भंगिमा से लग रहा है कि उनसे बिना कुछ खरीदे, खाली – पीली फोटो खींच लेना उनको सरासर शोषण अनुभव हो रहा है।
लगभग 45 मिनट हो चुके हैं मुझे अकेले घूमते घूमते ! बाकी सहयात्री पता नहीं कहां हैं? कहीं मुझे ढूंढ तो नहीं रहे होंगे? अगर ऐसा ही हुआ तो फिर सबके चेहरे पर मुस्कान गायब ही मिलेगी। अपनी जेब से फोन निकाल कर देखता हूं कि कहीं कोई मिस्ड कॉल तो आई नहीं पड़ी है। अभी किसी ने कॉल नहीं किया इसका मतलब यही है कि वे सब लोग कहीं न कहीं, किसी न किसी मंदिर में लाइन में लगे खड़े होंगे। इसका मतलब मैं अभी और कुछ देर तक फोटो – शोटो खींचता रह सकता हूं।
गोदावरी के दायें तट पर एक अत्यन्त प्राचीन सी इमारत दिखाई दे रही है। पास जाकर देखता हूं तो पता चलता है कि यह बालाजी मंदिर है। मंदिर में प्रवेश के लिये जूते उतारने का उपक्रम कर ही रहा हूं कि फोन घनघनाने लगा है। साले साहब पूछ रहे हैं कि मैं कहां हूं। मैं बिना जूते उतारे, पार्किंग की ओर बढ़ चला हूं जहां हमारी टेम्पो ट्रेवलर खड़ी हुई है। पंचवटी दर्शन का मेरा प्रोजेक्ट भी पूरा हो चुका है। इस आधा घंटे में जो कुछ मैने देखा, वह आप सब को समर्पित है –
अब हम चल पड़े हैं मुक्तिधाम की ओर ! हमारे ड्राइवर साहब इस मंदिर की बहुत तारीफ़ कर रहे हैं सो हमें भी उत्सुकता है कि ऐसा क्या है वहां पर ! वैसे हमारे यहां तो मुक्तिधाम अक्सर श्मशान घाट को ही कहा जाता है पर यहां ये कोई ताज़ा तरीन मन्दिर है, ऐसा लगता है।
अब हम महात्मा गांधी मार्ग पर से होते हुए मुक्तिधाम के निकट आ चुके हैं। जैसा कि अक्सर हमारे मंदिरों में होता है, यहां पर भी फोटो लेना मना है। इसलिये बाहर के एक दो चित्र लेकर हम अपना आज का किस्सा यहीं लपेट देने वाले हैं। मुक्तिधाम की आयोजना ये है कि आगंतुकों को एक ही परिसर में देश भर के सारे प्रमुख मंदिरों, ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ और चार धाम के दर्शन हो जायें। दूसरे शब्दों में कहें तो यहां पर हर महत्वपूर्ण मंदिर की अनुकृति (replica) मौजूद है।
अब हम सब थके हुए हैं और होटल में जा कर आराम करना चाहते हैं। अभी शाम के छः बजे हैं, रात को आठ – नौ बजे खाना खाने के लिये आस पास के किसी रेस्टोरेंट में जायेंगे। इसके साथ ही आज की कहानी यहीं समाप्त होती है। आपने इस यात्रा में जो मेरा साथ निभाया है उसके लिये आपका हार्दिक आभार ।
क्रमशः