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हमारी हैदराबाद – महाराष्ट्र यात्रा – मल्लिकार्जुन दर्शन

प्रिय मित्रों,  आप मेरी पिछली पोस्ट में नई दिल्ली से श्री शैलम यात्रा का वृत्तान्त पढ़ ही चुके हैं।  अब आगे। श्री शैलम में जब हमें दो घंटे तक दर – दर  भटकने के बावजूद कोई भी होटल, धर्मशाला आदि नहीं मिला तो हम अत्यन्त निराश थे और अपने  महिला वर्ग को बोल दिया था कि टेम्पो ट्रेवलर में ही रात बिताई जायेगी, इसके लिये तैयार रहें।

ऐसे में, जब हमारे ड्राइवर ने हमें दो कॉटेज के बारे में जानकारी दी कि वह अभी आधा घंटा पहले ही खाली हुई हैं और उपलब्ध हो सकती हैं तो हमने बिना आगा – पीछा विचारते हुए तुरन्त 4000 रुपये देकर, बिना यह चेक किये कि कॉटेज कैसी हैं, बुक करा दीं और वैन में बैठ कर कॉटेज की ओर चल दिये।

हमें हमारी दोनों कॉटेज की चाबियां मिल चुकी थीं और एक केयर टेकर बन्दा हमारे साथ मार्गदर्शन हेतु था जिसने कॉटेज खोल कर हमें उनकी व्यवस्था समझाईं।

श्री शैलम : इस हाइवे पर ओल्ड एज होम का प्रवेश द्वार है, जिससे नीचे ढलान पर उतरते चले जाते हैं।

श्री शैलम : इस हाइवे पर ओल्ड एज होम का प्रवेश द्वार है, जिससे नीचे ढलान पर उतरते चले जाते हैं।

श्री शैलम : नीलम संजीवारेड्डी निलयम (Old Age Home) का प्रवेश द्वार

श्री शैलम : नीलम संजीवारेड्डी निलयम (Old Age Home) का प्रवेश द्वार

Sri Sailam : This old age home is a large complex consisting of several buildings erected at different levels on a continuous slope.

श्री शैलम : ये ओल्ड एज होम परिसर वास्तव में ढलान पर बने हुए कई सारे भवनों का समूह है।

Sri Sailam (Neelam Sanjeevareddy Nilayam - Old Age Home) : The beautiful park in front of our cottages.

श्री शैलम (नीलम संजीवारेड्डी निलयम – ओल्ड एज होम) : कॉटेज के सामने स्थित सुन्दर सा पार्क !

Sri Sailam : A park in front of our cottages in old age home. The life-size statue of the founder of this old age home can be seen here.

श्री शैलम : ओल्ड एज होम में हमारी कॉटेज के सामने एक बड़ा सा पार्क जिसमें इस ओल्ड एज होम के संस्थापक की आदमकद प्रतिमा स्थापित है।

श्री मल्लिकार्जुन मंदिर जाने के लिये नहा धो कर हमें तैयार होना था, पर उससे भी पहले हमें अपनी क्षुधा शांत करनी थी क्योंकि हमने सुबह वैन में नाश्ता करने के बाद से अब तक लंच नहीं लिया था।   डायनिंग टेबल पर अपने साथ लाया हुआ भोजन सजा कर हम सब उस पर टूट पड़े और फिर मंदिर जाने के लिये तैयार हो गये।  यद्यपि ओल्ड एज होम से मंदिर का रास्ता बमुश्किल 1.2 किमी था, हम सब नन्दी सर्किल चौराहे तक वैन से ही चले गये।  उसके आगे मंदिर तक वाहनों का प्रवेश निषिद्ध था।    मंदिर में  कैमरा  ले जाने की मनाही है, इसलिये मैने अपना कैमरा वैन में ही छोड़ दिया पर वहां पहुंच कर पता चला कि मोबाइल भी जमा कराने पड़ेंगे।  अतः हम सब के सारे मोबाइल इकट्ठे करके क्लोक रूम में जमा कराये गये।

दर्शनार्थियों की लाइन बहुत लंबी थी।   हर जगह तेलुगू में फ़्लेक्स लगे हुए थे जिनको हम पढ़ तो नहीं पा रहे थे पर पूछने पर पता चला कि 13 जनवरी से 18 जनवरी तक एक महोत्सव चल रहा है जिसके कारण श्री शैलम में अत्यधिक भीड़ है और इसीलिये होटल, धर्मशालाएं, ट्रस्ट के गेस्ट हाउस, डोर्मिटरी आदि सब भरे हुए हैं।   आज 18 तारीख थी, यानि महोत्सव का अन्तिम दिन।

हमने दर्शनार्थियों की लंबी लाइन देखते हुए 150/- रुपये प्रति दर्शनार्थी के हिसाब से स्पेशल लाइन वाले दान कूपन खरीद लिये और अपने जूते चप्पल निर्धारित स्थान पर रख कर लाइन में लग गये।  वहीं पता चला कि वरिष्ठ नागरिकों के लिये अलग से भी एक लाइन है जिसमें दान कूपन खरीदने की भी जरूरत नहीं है।   खैर, हम तो 1350/- रुपये खर्च कर ही चुके थे, अब क्या सोचना!

मन्दिर के गर्भगृह तक पहुंचते – पहुंचते लगभग आधा – पौना घंटा लगा और इस बीच में मैं मंदिर का सौन्दर्य ही निहारता रहा।  फोटो खींचने की तो सुविधा / अनुमति थी नहीं पर मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर उत्कीर्णित आकृतियां बहुत मनोहारी थीं।  अधिक भीड़ होने के कारण हमें एक मिनट का भी समय दर्शन हेतु नहीं मिला, जो मेरे लिये बहुत क्षोभ जनक था।   पर किया ही क्या जा सकता था।   वैसे अन्दर की बात बताऊं तो मुझे बिल्कुल सुनसान, शांत जगहों पर बने हुए ऐसे मंदिर बहुत पसन्द हैं जिनमें न कोई दर्शनार्थियों की भीड़ होती है, और न ही पंडित लोग धक्का दे देकर हमें आगे धकेलते हैं।  ऐसे मंदिरों में शांति से आधा दिन भी बिताया जा सकता है और कोई रोक टोक नहीं करता।   पर ज्योतिर्लिंग के दर्शन में तो धक्का – मुक्की अनिवार्य तत्व है!  🙁  खैर!

गर्भगृह से बाहर की ओर बढ़े तो एक विशालकाय तराजू लगी देखी जिस के एक पलड़े पर दान दाता बैठता है और दूसरे पलड़े पर आटा – दाल – चावल आदि तोला जाता है।  यह भोजन सामग्री मंदिर द्वारा चलाये जाने वाले सदाव्रत में उपयोग की जाती है।

बाहर मंदिर के प्रांगण में  बीस के लगभग युवतियां गोल घेरे में घूमती हुई गरबा नृत्य करती दिखाई दीं।   जब तक मेरे सहयात्री मुझे ढूंढते ढूंढते बाहर आये, मैं यह नृत्य ही देखता रहा।   सारी नृत्यांगनाओं ने एक जैसी आकर्षक वेशभूषा धारण की हुई थी जो बहुत आकर्षक लग रही थी।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का लघु परिचय

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। :उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्॥1॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।:सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।:हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।:सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥

सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ”, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा ममलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघृष्णेश्वर।

इस प्रकार हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार देश भर में 12 ज्योतिर्लिंग हैं जिनमें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के निकट श्री शैल पर्वत पर स्थित है जहां हम आज उपस्थित हैं।  सोमनाथ के बाद  इस ज्योतिर्लिंग का ही नंबर आता है।   मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता ये भी है कि ये पूरे भारत में अकेला ज्योतिर्लिंग है जो शक्तिपीठ भी है।  मल्लिका और अर्जुन पार्वती और शिव के ही नाम हैं।   इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की पीछे जो कहानी प्रचलित है वह हर जगह उपलब्ध है।   इसलिये उसको मैं यहां पुनः लिखने के बजाय आगे बढ़ना उचित मान रहा हूं।

अब बारी थी मां भ्रमरम्बा शक्तिपीठ के दर्शन हेतु पुनः लाइन में लगने की।  कुछ सीढ़ियां चढ़ कर इस मंदिर में प्रवेश किया तो ज्यादा देर नहीं लगी।  वहां पर सभी सुहागनें प्रसाद में सिंदूर लेने के लिये व्याकुल थीं।  इस मंदिर की भी वास्तुकला अत्यन्त चित्ताकर्षक थी।

अन्ततः जब हम मन्दिर से बाहर निकले तो वापसी का मार्ग एक सांस्कृतिक मंडप के बगल से होकर था।  यहां एक विशालकाय मंच पर कुछ बालिकाएं शास्त्रीय नृत्य कर रही थीं।  उनकी गज़ब की भाव भंगिमाएं और अंग संचालन देख कर मैं मुग्ध हो गया।  मेरे सहयात्री मुझे कह रहे थे कि चलो, चलो !   अनमने मन से मैं सांस्कृतिक मंडप से बाकी सब के साथ चल दिया और बाज़ार में एक रेस्टोरेंट में हम सब भोजन हेतु रुके जहां हमने अपने जीवन का सबसे अधिक स्वादिष्ट रवा मसाला डोसा खाया।  मुझे इस बात का अफ़सोस है कि मैने उस रेस्टोरेंट का नाम क्या है, इस बात पर ध्यान नहीं दिया।   बस इतना बता पा रहा हूं कि मंदिर से लौट कर जब नन्दी सर्किल चौराहे पर आते हैं तो दायीं ओर वाली सड़क पर पैदल चलें तो मुश्किल से 100 कदम चल कर यह दक्षिण भारतीय भोजन का रेस्टोरेंट था।

भोजन के बाद हमने नन्दी सर्किल पर आकर अपने ड्राइवर साहब को फोन लगाया और पूछा कि  भाई, कहां हो? गाड़ी कहां पार्क की हुई है?   दो मिनट में ही हमें अपनी वैन और ड्राइवर महोदय मिल गये तो मैंने अपने घरवालों को बोल दिया कि मैं होटल (यानि ओल्ड एज होम) थोड़ी देर में अपने आप पहुंच जाऊंगा, आप जाओ।  इतना कह कर मैं अपना कैमरा उठा कर पुनः मंदिर की ओर भागा और जो अपनी इस फोटो वॉक में कुछ किया वह ये रहा –

श्री शैलम का मुख्य चौराहा - नन्दी सर्किल जिसके मध्य में एक मंदिर बना हुआ है।

श्री शैलम का मुख्य चौराहा – नन्दी सर्किल जिसके मध्य में एक मंदिर बना हुआ है।   

Sri Sailam : An easily walkable distance - nearly 1.2 km. between Mallikarjuna temple and the Old Age Home where we had stayed in Srisailam.

श्री शैलम !   मंदिर से अपने होटल (ओल्ड एज होम) तक का पैदल रास्ता जो नंदी सर्किल और बस स्टैण्ड से होता हुआ जाता है । मंदिर से होटल तक की कुल दूरी लगभग 1.2 किमी है।

श्री शैलम ! जब मैं कैमरा लेकर पुनः सांस्कृतिक मंडप में पहुंचा तो ये नृत्यांगनाएं उपस्थित जन समुदाय को अपनी अद्‍भुत नृत्य साधना के बल पर सम्मोहित किये हुए थीं। मैने भी इनके नृत्य के लगभग २०० चित्र ले डाले।

श्री शैलम ! जब मैं कैमरा लेकर पुनः सांस्कृतिक मंडप में पहुंचा तो ये नृत्यांगनाएं उपस्थित जन समुदाय को अपनी अद्‍भुत नृत्य साधना के बल पर सम्मोहित किये हुए थीं। मैने भी इनके नृत्य के लगभग २०० चित्र ले डाले।

जब तक मैं कैमरा लेकर सांस्कृतिक मंडप में लौट पाता, ये बालिकाएं अपनी नृत्य प्रस्तुति देकर बाहर जा रही थीं। मैने उनको रोक कर उनको उनकी अद्‌भुत नृत्य प्रतिभा के लिये बधाई दी और उनके दो एक चित्र लिये।

Posing for me again, these classical dancers stole the show at Sanskritik Mandapam, Mallikarjuna Temple, Sri Sailam.

Posing for me again, these classical dancers stole the show at Sanskritik Mandapam, Mallikarjuna Temple, Sri Sailam.

लगता है इन बच्चों का आज ही मुंडन कराया गया है ! मंदिर के प्रवेश द्वार के निकट ही ज्योति स्तंभ के पास खड़े हुए ये बच्चे। श्री शैलम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग !

श्री शैलम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग ! लगता है इन बच्चों का आज ही मुंडन कराया गया है ! मंदिर के प्रवेश द्वार के निकट ही ज्योति स्तंभ के पास खड़े हुए ये बच्चे।

श्री शैलम ! सड़कों पर सजावटी बल्बों से की गयी सज्जा !

श्री शैलम ! सड़कों पर सजावटी बल्बों से की गयी सज्जा !

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रवेश द्वार !

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रवेश द्वार !

Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirling temple decorated on 18th Jan 2020.

श्री शैलम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – मंदिर का वाह्य स्वरूप 18 जनवरी 2020 की सज्जा !

घूम फिर कर और लगभग ३०० फोटो क्लिक करके मैं भी होटल पर लौट आया।  सब साथी लोग सोये हुए थे।  मेरे सोने की व्यवस्था कहां पर है, है भी या नहीं (!),  यह मोबाइल की टॉर्च ऑन करके तलाश किया और बाकी लोगों को डिस्टर्ब न करने के लिये अंधेरे में ही अपना कैमरा और मोबाइल चार्जिंग पर लगाये और सो गया।

अगले दिन सुबह हमें हैदराबाद वापसी करनी थी।  नाश्ता करके हम 8.30 तक तैयार हो गये।  मैं इस दौरान इस नीलम संजीवारेड्डी निलयम – ओल्ड एज होम का भूगोल देखता समझता रहा, इधर उधर फ़ोटो खींचता रहा।  एक बार तेज गति से पैदल ही नन्दी सर्किल तक भी हो आया जो मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बिल्कुल पास ही है।

जब तक मैं कैमरा लेकर सांस्कृतिक मंडप में लौट पाता, ये बालिकाएं अपनी नृत्य प्रस्तुति देकर बाहर जा रही थीं। मैने उनको रोक कर उनको उनकी अद्‌भुत नृत्य प्रतिभा के लिये बधाई दी और उनके दो एक चित्र लिये।

श्री शैलम - नीलम संजीवारेड्डी निलयम ओल्ड एज होम की कॉटेज से प्रस्थान।

श्री शैलम – नीलम संजीवारेड्डी निलयम ओल्ड एज होम की कॉटेज से प्रस्थान।

ड्राइवर महोदय की इंतज़ार में ! वह रिफ़ंडेबल सिक्योरिटी वापिस लेने और दोनों कॉटेज की चाबी सौंपने गया हुआ है। ओल्ड एज होम से प्रस्थान की तैयारी।

ड्राइवर महोदय की इंतज़ार में ! वह रिफ़ंडेबल सिक्योरिटी वापिस लेने और दोनों कॉटेज की चाबी सौंपने गया हुआ है। ओल्ड एज होम से प्रस्थान की तैयारी।

श्री शैलम से चलते समय मार्ग में श्री हनुमान साक्षी जी का मंदिर आया तो दर्शन करने हेतु हम सब उतर गये।

श्री शैलम से चलते समय मार्ग में श्री गणपति साक्षी जी का मंदिर आया तो दर्शन करने हेतु हम सब उतर गये।

गणपति जी के इस मंदिर के बारे में विख्यात है कि यहां गणपति जी सब की हाजरी लेते हैं – कौन कौन उनकी क्लास में उपस्थित हुआ, कौन – कौन गायब है।   इसीलिये उनका नाम गणपति साक्षी पड़ा ।

श्री शैलम में साक्षी गणपति मंदिर जहां गणपति जी महाराज सभी श्रद्धालुओं की उपस्थिति का रजिस्टर रखते हैं।

श्री शैलम में साक्षी गणपति मंदिर जहां गणपति जी महाराज सभी श्रद्धालुओं की उपस्थिति का रजिस्टर रखते हैं।

इस साक्षी गणपति मंदिर में भी अन्य मंदिरों की तरह, चित्र लेना मना है इसलिये मैने सबसे पहले यहां के पुजारियों की ही फोटो ले डालीं।  उसके बाद फिर अन्य चित्र बेखटके लेता रहा।  🙂

श्री शैलम - साक्षी गणपति मंदिर ! जब पुजारी ही सेल्फ़ी लेते पकड़े जायें तो फिर मुझे फ़ोटो लेने में क्या डर ? ;-)

श्री शैलम – साक्षी गणपति मंदिर ! जब पुजारी ही सेल्फ़ी लेते पकड़े जायें तो फिर मुझे फ़ोटो लेने में क्या डर ? 😉

श्री शैलम साक्षी गणपति मंदिर ! हवन कुंड सुन्दर है ना?

श्री शैलम साक्षी गणपति मंदिर ! हवन कुंड सुन्दर है ना?

श्री शैलम से हैदराबाद तक की यात्रा में नया कुछ देखने योग्य था नहीं सो हम सब अपनी वैन में ऊंघते – सोते हुए 1 बजे के लगभग हैदराबाद एयर पोर्ट पर पहुंच गये जहां हमें अपने परिवार के दो सदस्यों को नई दिल्ली की फ़्लाइट पकड़वानी थी।   हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लौटने के बाद हमारे पास आधा दिन शेष था जिसका उपयोग हमने चार मीनार, सालारजंग म्यूज़ियम, बिड़ला मंदिर, हुसैन सागर लेक आदि को देखने में उपयोग किया।  रात्रि में रुकने के लिये हमारी होटल में बुकिंग पहले से ही थी।   पर ये सब विवरण आप अगली पोस्ट में पढ़ पायेंगे।
फ़िलहाल विदा दें, नमस्कार !