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फोटो स्कूल : शटर और एपरचर

मित्रों ! फोटो स्कूल में आपका स्वागत है। अपने घुमक्कड़ मित्रों के आग्रह पर , फोटोग्राफी, विशेषकर ट्रेवल फोटोग्राफी से सम्बन्धित जो भी टॉपिक हो सकते हैं, उनके बारे में क्रमिक रूप से यहां जानकारी देने का प्रयास रहेगा। आप अपने प्रश्न / शंकाएं / समस्याएं कमेंट के माध्यम से मुझे बतायेंगे तो मैं प्रयास करूंगा कि उनका समुचित समाधान कर सकूं।

क्या आप सिर्फ़ ऑटो मोड वाले फोटोग्राफर हैं?

यदि आपने आज तक सिर्फ स्मार्टफोन से चित्र लिये हैं या सिर्फ़ ऑटो मोड पर ही अपने कैमरे से फोटो लेते रहे हैं तो आपके स्मार्टफोन / डिजिटल कैमरे ने आपकी फोटो के लिये कितना एपरचर / शटर स्पीड और ISO तय की थी, आपको इसका पता नहीं होता है। यदि फोटो अच्छी आ गयी है तो आप को शायद इन सेटिंग्स को जानने की व उनमें कुछ हेर फेर करने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी। पर अगर फोटो अच्छी नहीं आई / वैसी नहीं आई, जैसी आप चाहते थे तो आपको अपने कैमरे द्वारा तय की गयी ऑटो सेटिंग्स को समझना और उनमें हेर फ़ेर करना आना चाहिये। तभी आप वह चित्र ले सकेंगे, जिसकी आपको तलाश है! इस पोस्ट में एपरचर और शटर को समझाने का प्रयास है।

हमारी आंख और कैमरा

कैमरे की तुलना अक्सर आंख से की जाती है।  कैमरे की लेंस हमारी eye ball मानी जा सकती है।जब हम अपनी पलकें मूंद लेते हैं तो समझिये कि हमने अपने कैमरे की लेंस पर cap लगा दी।

हमारी आंखों के आगे जो दृश्य होता है, हमारी eye balls उसकी इमेज आंख के पीछे रेटिना नामक पर्दे पर भेज देती हैं। उसी प्रकार कैमरे की लेंस जो कुछ देखती है, वह लेंस के पीछे लगे हुए सेंसर पर भेज देती है। रात के अंधेरे में न हमारी आंख काम करती है और न ही कैमरा।

जब प्रकाश बहुत कम हो तो हमारी eye ball में मौजूद खिड़की यानि iris ज्यादा खुल जाती है ताकि अधिकतम किरणें रेटिना तक पहुंच सकें। दूसरी ओर, यदि प्रकाश अधिक हो तो ये iris छोटी हो जाती है ताकि अनावश्यक प्रकाश हमारी आंखों में न पहुंचे। ठीक इसी प्रकार, कैमरे की लेंस में भी एक खिड़की बनाई गयी है जिसे एपरचर aperture कहते हैं। जब कैमरा ऑटो मोड में होता है तो ये एपरचर उपलब्ध प्रकाश के साथ समायोजन करता रहता है और एपरचर नामक यह खिड़की कम या अधिक खुल जाती है ताकि कैमरे के सेंसर तक सही मात्रा में प्रकाश पहुंचे।

एपरचर का कलात्मक उपयोग

परन्तु इस एपरचर का काम सिर्फ इतना ही नहीं है कि वह सेंसर तक पहुंचने वाले प्रकाश को नियंत्रित optimize करे। एपरचर को कम या अधिक करके कुछ कलात्मक परिणाम (creative results) भी हासिल किये जा सकते हैं। यही कारण है कि हमें एपरचर का उपयोग करना आना चाहिये और इसे नियंत्रित करने का काम कैमरे के ऊपर नहीं छोड़ देना चाहिये। यह कलात्मक उपयोग क्या हैं, इनके बारे में अगली पोस्ट में बताया जायेगा। 🙂

कैमरे की लेंस से सेंसर तक प्रकाश की किरणें इस खिड़की से होती हुई पहुंचती हैं। इस खिड़की को ही एपरचर कहते हैं। कैमरा एपरचर को खुद भी सैट कर सकता है और यह काम फोटोग्राफर मैनुअली भी कर सकता है।

कैमरे में शटर क्या करता है?

हमें जब फोटो खींचनी हो तो हम उसके लिये शटर नामक बटन दबाते हैं। स्मार्ट फोन में ऐसा कोई बटन अलग से दिया हुआ नहीं होता बल्कि फोन की टच स्क्रीन पर ही एक आइकन दबा कर फोटो खींच लेते हैं। क्या ये शटर सिर्फ फोटो क्लिक करने का बटन मात्र है? जी नहीं !

आपको जान कर आश्चर्य होगा कि पुराने जमाने के कैमरों में शटर होते ही नहीं थे। स्कूल की फ़ेयरवैल पार्टी के बाद ग्रुप फोटो के लिये एक फोटोग्राफर को बुलाया जाता था जो एक ट्रायपॉड पर भारी भरकम कैमरा कपड़े से ढंक कर रखता था और खुद भी उस कपड़े के अन्दर छिप जाता था। फिर ये फोटोग्राफर लेंस के आगे लगी हुई कैप को हटाने से पहले हमें कहते थे – “इस लेंस के अन्दर देखो, अभी इसमें से चिड़िया उड़ेगी!” कुछ क्षण तक चिड़िया उड़ने की इंतज़ार करने के बाद लेंस पर कैप वापिस लगा दी जाती थी। यही काम मेलों में भी होता था जहां आप मधुबाला या वैजयंतीमाला के आदमकद कट आउट के बगल में खड़े होकर धूप का चश्मा लगा कर शान से फोटो खिंचवाते थे।

वास्तव में उन दिनों के कैमरों में जो फ़िल्म होती थी, वह फोटो रिकार्ड करने में कुछ सेकेंड का समय लेती थी। लेंस की कैप हटाते ही लाइट (यानि ग्रुप में खड़े हुए छात्र – छात्राओं की इमेज) फिल्म पर बननी शुरु हो जाती थी। लगभग 5 सेकेंड के बाद फोटोग्राफ़र कैप वापिस लेंस के ऊपर लगा देते थे।

शटर की जरूरत क्यों है?  

आप यह बात सुन कर शायद खी – खी करके हंसेंगे पर सच यही है कि जब सन् 1876 में फोटोग्राफी के इतिहास की सबसे पहली फोटो खींची गयी थी तो फिल्म पर इमेज बनने में कुल जमा आठ घंटे लगे थे। इस experiment की सफ़लता से उत्साहित वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि इस आठ घंटे के समय को घटा कर आठ मिनट तक कैसे लाया जाये। जब आठ मिनट में फोटो खींचना संभव होने लगा तो वैज्ञानिक बोले – “ये दिल मांगे मोर !” हमें तो आठ सेकेंड में फोटो चाहिये! जब वह भी संभव कर दिखाया तो बात 1/8 सेकेंड की आ गयी। अब आप सोचिये कि साइंस इतनी प्रगति कर चुकी है कि आज कल के कैमरे 1/20,000 सेकेंड में भी गज़ब की फोटो खींच लेते हैं।

तो बात हो रही थी कि शटर की जरूरत क्यों है? भाइयों – बहिनों ! जब तक 8 सेकेंड में फ़ोटो खिंच रही थी, तब तक तो कैमरे की लेंस से ढक्कन हटा कर स्टॉप वाच / सामान्य घड़ी / मन ही मन गिनती करते हुए फ़ोटोग्राफर फ़ोटो खींच लेते थे। पर जब ऐसी फिल्म आ गयीं जो 1/8 सेकेंड या 1/60 सेकेंड या 1/125 सेकेंड में फ़ोटो रिकार्ड करने लगीं तो फ़ोटोग्राफ़र बोले कि हम 1/125 सेकेंड के लिये लेंस कैप भला कैसे हटायेंगे और वापिस लगायेंगे? इसका भी कुछ जुगाड़ करो वैज्ञानिक भाइयों !!! तो कैमरा निर्माताओं ने फोटोग्राफ़र भाइयों की बात पर गौर फरमाते हुए शटर का आविष्कार कर डाला। यह शटर लगभग उसी ढंग से काम करता था, जैसे पिस्तौल या रिवाल्वर से फ़ायर किया जाता है। यानि, स्प्रिंग सिस्टम ! बटन दबाते ही शटर एक पूर्व निश्चित समय के लिये अपने स्थान से हटता और वापिस आता है। फोटोग्राफर लोग ये शटर मेकेनिज़्म अलग से खरीद कर लाते थे और लेंस की कैप के बजाय इस डिब्बी को लेंस के बैरल के ऊपर पहना देते थे। जब शटर इतना छोटा बना पाना संभव हो गया कि वह कैमरे की बॉडी के अन्दर ही समा जाये तो फिर फोटोग्राफर को कैमरे के बाहर ही एक बटन दे दिया गया। इस बटन को दबाओ और अन्दर शटर रिलीज़ हो जायेगा। जय हो!

तब से अब तक कितनी प्रगति हो गयी है, ये मैं क्या बताऊं? ये तो जग जाहिर है। आज के कैमरों में इलेक्ट्रॉनिक शटर हैं जो स्माइल देने पर ही काम करते हैं!!! 🙂 पर एक सबसे बड़ा फ़ायदा शटर के आगमन का ये हुआ कि फोटोग्राफर को, सेंसर तक पहुंचने वाले प्रकाश को नियंत्रित करने का एक और तरीका हासिल हो गया। चाहो तो एपरचर कम ज्यादा करके प्रकाश नियंत्रित कर लो, या फिर शटर का समय घटा – बढ़ा कर प्रकाश नियंत्रित कर लो।

फिल्म वाले कैमरों में शटर आम तौर पर इस प्रकार का पर्दा होता था, आजकल इलेक्ट्रॉनिक होने लगा है। कितनी देर के लिये पर्दा खुले, कैमरा खुद भी तय कर सकता है और फोटोग्राफर भी !

इससे भी बड़ा एक और फायदा जो हुआ वह भी बताऊं!! जब 1/500 सेकेंड या 1/2000 सेकेंड का समय दे सकने में समर्थ शटर कैमरों में आने लगे तो फोटोग्राफरों ने ये कहना बन्द कर दिया कि “बहिन जी, हिलना नहीं !” 1/2000 सेकेंड में कोई महिला / पुरुष / खिलाड़ी / शेर / हिरण कितना हिल पायेगा? स्वाभाविक ही था कि अब हमारे सब्जेक्ट के हिल जाने से फोटो खराब होने की समस्या से छुटकारा मिल गया। पर आपको ये तो पता होना ही चाहिये कि ऑटो मोड में कैमरा जो फोटो ले रहा है, वह कितना शटर टाइम सेट कर रहा है? अगर बहुत कम लाइट में फोटो खींची जाये तो आज भी आपका कैमरा 1/4 सेकेंड या इससे भी अधिक समय देने की गुस्ताखी कर सकता है और ऐसे में आपकी फोटो हिल जाने के पूरे चांस हैं!!!

सही एक्सपोज़र कितना होता है?

Accurate colours and fine details in a picture are largely dependent on correct exposure.
Accurate colours and fine details in a picture are largely dependent on correct exposure.

लाइट अगर बहुत कम हो तो आंखें फाड़ – फाड़ कर देखने के बावजूद हम अंधेरा अनुभव करते हैं, ठीक से नहीं देख पाते!  दूसरी ओर अगर प्रकाश बहुत अधिक तीव्र हो तो आंखें सिकोड़ कर मिचमिचाते रहते हैं।  हमारी आंखों को यदि आदर्श मात्रा में प्रकाश मिले, तभी वह सुखी और प्रसन्न रहती हैं।  ठीक यही स्थिति कैमरे के साथ भी है।  सेंसर को जितना प्रकाश चाहिये, उससे बहुत कम मिले तो फोटो काली रह जाती है; वहीं दूसरी ओर, अगर प्रकाश बहुत अधिक हो जाये तो फोटो में सब कुछ bleach out हो जाता है।   कैमरे को यदि आदर्श मात्रा में प्रकाश मिले तो हमारे कैमरे के सेंसर को optimum exposure मिलता है और फोटो में सब रंग सही आते हैं।

सही फोटो के लिये चार निर्णायक तत्व

इस प्रकार हम देखते हैं कि कैमरे के सेंसर पर कितना प्रकाश पहुंचेगा, यह चार बातों पर निर्भर करता है –

  1. प्रकाश कितना है?  (how much light is available to us)
  2. एपरचर कितना खोला गया है?  (what is the effective size of aperture?)
  3. शटर कितनी देर के लिये खुलेगा?  (what duration is set for the shutter?)
  4. कैमरे में जो सेंसर लगा हुआ है, उसकी प्रकाश ग्रहण करने की क्षमता कितनी है? इसको हम ISO इकाई से नापते हैं।   (how much sensitive is the sensor of our camera? This is measured in ISO unit)

जब कैमरा फुल ऑटो मोड (Full Auto Mode) में हो तो उसका एपरचर aperture, शटर shutter और ISO सब कुछ ऑटो हो जाता है और उम्मीद की जा सकती है कि सेंसर sensor को उतना प्रकाश मिल जायेगा, जितना उसे चाहिये।  पर अगर आप अपने कैमरे का पूरा सदुपयोग करना चाहते हैं तो आपको अपने कैमरे के शटर, एपरचर और ISO का कलात्मक उपयोग करना सीखना चाहिये।  

अगली कड़ी में आप अपने कैमरे के सेंसर की ISO स्पीड (यानि सेंसर की प्रकाश ग्रहण करने की क्षमता) को जानेंगे। यदि ऊपर दी गयी जानकारी में आप को कुछ शंका / समस्या हो तो कृपया कमेंट के माध्यम से अवश्य बतायें। तब तक के लिये अनुमति दें। नमस्कार !

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