वर्ष 2014 में मैने अपनी पुरानी मारुति ज़ेन को बदल कर ह्युंडई की i10 ली तो सबसे पहला सवाल ये उठा कि अब हम नई कार की खुशी कैसे मनाएं? संयोग से दोनों बेटे भी हमसे मिलने के लिये आये हुए थे तो हम दोनों ने निर्णय की जिम्मेदारी उन दोनों पर ही छोड़ दी। रविवार 1 जून 2014 यानि भयानक गर्मी को देखते हुए तय पाया गया कि रिवर राफ़्टिंग के लिये ऋषिकेश चला जाये। कई मित्रों से रिवर राफ्टिंग का बहुत ज़िक्र सुना था पर रिवर राफ्टिंग का इतना क्रेज़ क्यों है, यह मुझे मालूम नहीं था। मेरे सहारनपुर के एक मित्र तो रिवर राफ्टिंग के इतने दीवाने हैं कि हर वर्ष गर्मियों में चार-पांच बार तो किसी न किसी बहाने से राफ्टिंग के लिये ऋषिकेश पहुंच ही जाते हैं। ऋषिकेश में ससुराल होने का इतना फायदा तो उनको मिलना ही चाहिये।
नयी गाड़ी को ड्राइव करने का मुझे कोई मौका मिलेगा, ऐसी मुझे कोई संभावना नहीं थी। जब दो जवान बेटे साथ में हों तो वह भला मुझे क्यों स्टीयरिंग संभालने देंगे! बड़े बेटे ने कहा कि मम्मी – पापा! आप दोनों पीछे की सीट पर पहुंच जाओ और आराम फरमाओ! हम हूं ना! इंग्लैंड से 15 – 20 दिन को छुट्टी लेकर बेटा आया हुआ हो तो उसे चुपचाप कार की चाबी सौंप देने में कोई बुराई भी नहीं है।
यूं तो हम सहारनपुर से नाश्ता करके सुबह 8 बजे ऋषिकेश के लिये निकल पड़े थे पर हरिद्वार में प्रवेश करते ही जिस प्रकार के ट्रैफिक से सामना हुआ उससे लगा कि अगर हम शाम तक ऋषिकेश पहुंच गये तो गनीमत ही होगी। पर जैसे – तैसे 12 बजे तक हम ऋषिकेश को पार कर के उस इलाके में पहुंच गये जहां पर सैंकड़ों की संख्या में रिवर राफ्टिंग कराने वाले अपनी छोटी – छोटी दुकानें खोले हुए बैठे हैं।
दोनों बच्चे (अक्षत और आदित्य) उतर कर दो – एक दुकानों में रेट का आइडिया लेने के लिये गये, और बात तय करके ही आये। जब पार्किंग में कार खड़ी करके हम चारों उस दुकान में पुनः पहुंचे तो उस बन्दे ने हम दोनों की आयु को देखते हुए मना कर दिया कि दोनों बच्चे राफ्टिंग कर सकते हैं, पर आप नहीं कर सकते। स्वाभाविक रूप से मेरे दिमाग़ में ये सवाल आया कि अगर राफ्टिंग हमारे लिये खतरनाक है तो बच्चों के लिये भी तो खतरनाक होगी। मैने कहा कि चलो, कोई जरूरत नहीं है राफ्टिंग करने की, वापिस चलते हैं।
इस पर दुकानदार बोला कि अच्छा चलिये, एक काम करते हैं। आपको ब्रह्मपुरी से लक्ष्मणझूला तक की आसान वाली, यानि ग्रेड 1 व 2 वाली राफ्टिंग करा देंगे। आपके दोनों बच्चे शिवपुरी से जिस राफ्ट में बैठेंगे, वह जब ब्रह्मपुरी आयेगी तो आप दोनों को भी उसमें बैठा लिया जायेगा। ब्रह्मपुरी के आगे लक्ष्मण झूला तक 9 किमी की राफ्टिंग आप भी करेंगे जो comparatively आसान है। चलो ठीक है, ऐसा ही सही! पैसे जमा करा दिये गये। कितने जमा किये थे, ये अब याद नहीं है। वैसे भी 2014 के रेट आज भी लागू हों, यह तो संभव नहीं है।
हम चारों को एक जीप में बैठा दिया गया जिसमें पहले से ही कुछ सवारियां मौजूद थीं। एक जीप और भी साथ – साथ चली जिसमें खूब सारी लड़कियां भरी हुई थीं। दोनों ही जीप के ऊपर रबड़ की नाव यानि राफ्ट भी रखी हुई थी। पहाड़ी रास्ते पर चढ़ते चढ़ते हमारी जीप शिवपुरी पहुंच गयी और वहां हम सब उतरे।
एक बड़ा मोटा सा पंप लेकर एक बहुत दुबला पतला सा लड़का राफ़्ट में हवा भरने के काम में लग गया। मुझे लगा कि शायद कुछ हवा पंप में से और कुछ इसके शरीर में से भरी जाती होगी, इसीलिये बेचारा इतना दुबला – पतला सा है। हमारे दोनों जवान बेटों की खुशी का तो पारावार ही नहीं था। एक तो रिवर राफ्टिंग करने का आज पहला मौका मिला था, और दूसरे उनको राफ्ट में इतनी ’अच्छी कंपनी’ जो मिल रही थी!
जब सब ने लाइफ जैकेट पहन ली, हैल्मेट लगा लिये, तो राफ्ट को उन सब लोगों ने उठा कर नीचे बह रही गंगा नदी तक पहुंचाया। दो जैकेट और दो हैल्मेट और एक चप्पू देकर हमें भी कहा गया कि आप ये लेकर जीप में बैठ जाइये। जब ये राफ्ट पौना घंटे में नीचे पहुंचेगी तो आप भी उसमें सवार हो जाना। ’जो आज्ञा, श्रीमान्!’
हमें कुछ किमी नीचे तक लाकर एक जगह ड्राइवर ने जीप रोक दी और हमें सड़क के बाईं ओर से नीचे जा रही ऊबड़ खाबड़ सी पगडंडी दिखाते हुए कहा कि आप यहां से गंगा जी के तट पर इंतज़ार कर लें। लगभग 20 मिनट में राफ्ट आप तक पहुंचेगी।
गंगा तट पर हम खड़े होकर नदी के बहाव के साथ आ रहीं विभिन्न राफ्ट को और उनमें चिल्ला रहे, हू – हू करके मस्ती कर रहे युवकों – युवतियों को देखते रहे। कोई राफ्ट लाल रंग की, तो कोई पीली तो कोई हरी ! मुझे ध्यान था कि हमारे बच्चे नीले रंग की राफ्ट में बैठे थे और साथ में ढेरों युवतियां भी थीं। अंततः हमारी राफ्ट भी आई और फिर हमने 9 किमी का लक्ष्मण झूला / राम झूला तक का सफ़र कैसे पूरा किया, ये आप फोटो से ही देखें तो बेहतर !
इतने घंटे गंगा जल में धमाचौकड़ी मचाने के बाद यह तो स्वाभाविक ही था कि हम सब ने सहारनपुर में जो परांठे खाये थे, उनका कहीं कोई अता – पता नहीं था कि कहां गये। बहुत तेज़ भूख लगी हुई थी सो कार में बैठे और राम झूला तक पहुंचे। पुनः कार एक पार्किंग में खड़ी करके हम गीता भवन क्षेत्र में एक पूड़ी सब्ज़ी की दुकान में जा बैठे और दो – दो प्लेट पूड़ी – कचौड़ी और लड्डू का भक्षण करके वापिस अपने सहारनपुर चल दिये। हम चारों ही बहुत खुश थे और नयी कार का सेलेब्रेशन भी हो गया था।
बहुत सुंदर चित्र, और विवरण भी ।
फोटोग्राफी तो बेजोड़ हमेशा होती ही है ।
बहुत बहुत शुक्रिया प्रियवर !
सुशांत जी आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर व फ़ोटो देखकर उन यादों में डूब गया जब मैने भी गंगा के तेज बहाव में राफ्टिंग की थी। वैसे उन दिनों गंगा में बाढ़ जैसी स्तिथि थी और उसी दिन प्रसाशन ने राफ्टिंग रोक भी दी थी क्योंकि जल बहुत तेज़ बह रहा था जिससे कई जान भी जा चुकी थी।
Sachin3304.blogspot.in
प्रिय सचिन, आपका हार्दिक आभार कि आप यहां तक आये और ब्लॉग पोस्ट पढ़ कर अपना प्यारा सा कमेंट भी छोड़ा!
मैं खुद भी अनावश्यक जोखिम उठाने से डरता हूं। मुझे अपनी जान बहुत प्यारी है! रिवर राफ्टिंग के मजे मैने भी लिये पर चूंकि हमें सबसे सरल वाली राफ्टिंग की अनुमति मिली थी सो कोई समस्या नहीं आई। वैसे भी नदी में पानी इतना ज्यादा नहीं था कि एमरजेंसी प्रावधान लागू करने पड़ जायें।
कृपया स्नेह भाव बनाये रखते हुए आते रहें। अच्छा लगता है।