- यात्रा सहारनपुर से नैनीताल की
- काठगोदाम से भीमताल होते हुए नैनीताल
- नैनीताल – एक अलसाई हुई सुबह
- नैनी झील में बोटिंग, चिड़ियाघर, तल्लीताल, चांदनी चौक
काठगोदाम स्टेशन से बाहर आकर जब नैनीताल के लिये शेयर टैक्सी तलाशनी आरंभ की तो काफी देर तक कोई ऐसी टैक्सी नहीं मिली जो जाने के लिये तैयार खड़ी हो और एक सवारी की इंतज़ार में हो। सहारनपुर से काठगोदाम तक पूरे रास्ते मैं दोनों विकल्प खुले रखे हुए आया था कि काठगोदाम से सीधे नैनीताल भी जाया जा सकता है या रात को भीमताल में रुका जा सकता है। दूरी के हिसाब से देखें तो दोनों ओर से एक जैसी दूरी है। यानि काठगोदाम से भीमताल (20.1 km) और भीमताल से नैनीताल (20.5 km.) । अगर काठगोदाम से सीधे नैनीताल जायें तो 39.7 km.) |
वास्तव में नैनीताल झीलों की नगरी है जिसमें नैनी झील, सातताल, भीमताल, नौकुचियाताल, साढियाताल, खुरपाताल आदि प्रमुख हैं। भीमताल के बारे में विकीपीडिया के अलावा कई ब्लॉग पोस्ट भी पढ़ी थीं और काफी आकर्षण अनुभव हो रहा था। अन्त में यही मन बना कि अगर नैनीताल के लिये शेयर टैक्सी नहीं मिल रही और अकेले ही जाना है तो नैनीताल क्यों, भीमताल क्यों नहीं! आज भीमताल के सौन्दर्य को निहार कर कल सुबह नैनीताल के लिये प्रस्थान कर जाऊंगा।
बस, एक वैगन आर टैक्सी चालक से ३०० रुपये में भीमताल का सौदा तय करके मैने अपना सामान उसे गाड़ी में रखने को कहा और अपना कैमरा संभाल कर आगे की सीट पर जाकर बैठ गया। जब काठगोदाम में ट्रेन से उतरा था तो बारिश के दूर दूर तक आसार नहीं थे पर भीमताल पहुंचने से तीन-चार किमी पहले से ही मूसलाधार वर्षा शुरु हो गयी। भीमताल पहुंच कर मुझे समझ ही नहीं आया कि इतनी तेज बारिश में मैं यहां रुक कर क्या करूंगा! वैसे लगभग 4 बज रहे थे पर मौसम देख कर लग रहा था मानों शाम के 7 बज चुके हों। कोई होटल भी तय किया हुआ नहीं था और उस मौसम में दिमाग से सारे नाम उड़ गये जो मैं याद करके आया था। भूख भी लग रही थी। टैक्सीचालक ने पूछा कि कहां उतरेंगे तो उसे किसी ठीक-ठाक से रेस्टोरेंट पर रुकने को बोल दिया। उसने हलवाई की एक छोटी सी दुकान के आगे मुझे उतार दिया और अपने पैसे लेकर चलता बना। दुकान में घुसा तो पूछा कि खाने के लिये कुछ है क्या तो पता चला कि आलू / पनीर के परांठे मिल सकते हैं। दो परांठे और दही का आर्डर देकर मैं वहीं बैठ गया और दुकानदार से बात करने लगा। होटल के लिये उसने बताया कि 1500 से कम पर तो कोई कमरा नहीं मिलेगा तो दिमाग और परेशान हो गया। परांठे खाकर मैने अपनी छतरी खोल कर एक हाथ में पकड़ी और दूसरे हाथ से अटैची का हैंडिल बाहर को खींचा और उसे लुढ़काता हुआ भीमताल यानि झील की ओर पैदल ही चल पड़ा जो वहां से बमुश्किल 100 कदम दूर ही थी।
झील पर पहुंचा तो एक चौराहा दिखाई दिया जहां से एक सड़क नौकुचिया ताल की ओर, एक भुवाली की ओर, एक हल्द्वानी – काठगोदाम की ओर जा रही थी। (मैं इसी चौराहे से होता हुआ हलवाई की दुकान तक आया हूंगा परन्तु टैक्सी में बैठे हुए और बारिश के कारण उस समय ध्यान नहीं दे पाया था।)
हलवाई ने मुझे राय दी थी कि मैं इस चौराहे से नैनीताल के लिये कोई शेयर टैक्सी पकड़ सकता हूं। झील के किनारे एक काफी बड़ा सा शैड बना हुआ था। मैं वहीं जाकर खड़ा हो गया और इंतज़ार करने लगा कि या तो बारिश रुके या नैनीताल के लिये कोई टैक्सी मिले। बारिश तो नहीं रुकी पर हां एक टैक्सी मिल गयी जिसने मुझे नैनीताल के लिये बैठा लिया। शायद उससे 100 रुपये ही तय हुए थे। पूरे रास्ते वर्षा चलती रही और बहुत तेज गति से पानी सड़क पर भी बहने लगा था। सड़क पर जल का प्रवाह इतना तीव्र था कि बिल्कुल नयी सड़क भी शायद एक सप्ताह से अधिक न टिक पाती हो। रास्ते में भुवाली आया जिसके बारे में मुझे बचपन से बस एक ही स्मृति है कि यहां पर टी.बी. सैनिटोरियम है। मेरे पिताजी के एक मित्र यहां सैनीटोरियम में चिकित्सक हुआ करते थे। यहां पर टैक्सी से दो-तीन सवारियां उतर गयीं और हम आगे नैनीताल की ओर बढ़ चले।
अंततः टैक्सी ने मुझे मालरोड के तल्लीताल वाले प्वाइंट पर उतार दिया। नैनीताल में नैनी झील किडनी की रूपरेखा लिये हुए है और लंबाई में इसका एक सिरा तल्लीताल पर खत्म होता है और दूसरा मल्लीताल पर। झील की पूरी लंबाई में एक ओर माल रोड साथ साथ चलती है और दूसरी ओर ठंडी सड़क है। मैं माल रोड पर तीन-चार होटलों के रेट पता करता करता पैदल ही आगे बढ़ता रहा। तेज वर्षा अब बहुत हल्की बूंदाबांदी में परिवर्तित हो चुकी थी। सूर्य देवता भी हिम्मत करके बादलों को पीछे धकेल कर पुनः दर्शन देने को आगे आ गये थे। धूप भी और बूंदाबांदी भी यानि एकदम मस्त माहौल ! वर्षा में सारी सड़कें, सारे भवन, होर्डिंग्स आदि धुल – पुंछ कर एकदम साफ सुथरे और चमकदार हो रहे थे मानों मेरा स्वागत करने के लिये पूरे नैनीताल की ही धुलाई की गयी हो!
माल रोड के जिस होटल में भी मैं कमरे देखने के लिये गया, एक भी 3,000 से कम का कमरा नहीं बता रहा था। ऐसे ही चलते – चलते शीला होटल भी आ गया। उनको मैने अपना YHAI का आई.डी. कार्ड दिखाया और कहा कि हफ्ते भर पहले मेरी आपसे आज और कल के लिये एक कमरे के लिये फोन पर बात हुई थी। उन्होंने रजिस्टर पर मेरा नाम पता व सदस्यता क्रमांक लिखा और कमरा नं. 46 मुझे सौंप दिया। होटल का कमरा कोई ऐसा आलीशान नहीं था पर माल रोड पर एक होटल में 800 रुपये प्रतिदिन पर एक कमरा मिल गया तो मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मान रहा था।
रूम सर्विस से एक कप कॉफी मंगा कर जब मैं बाहर निकलने के लिये तैयार हुआ तो छः बज चुके थे और वर्षा भी बिल्कुल नहीं थी। कैमरा कंधे पर टांग कर मैं मल्लीताल की ओर निकल पड़ा और अंधेरा होते होते पं. गोविन्द वल्लभ पंत की मूर्ति तक जा पहुंचा। वहां अच्छा खासा बाज़ार है और मकानों के अगल बगल से कुछ सड़कें पहाड़ की ओर को भी जा रही थीं।
झील के किनारे आधा – पौन घंटा बिता कर मैने होटल की ओर वापसी यात्रा शुरु की। रास्ते में एक रेस्टोरेंट के बाहर बहुत भीड़ लगी देखी। झांक कर देखा तो फास्ट फूड काउंटर पर लोग टूटे पड़ रहे थे। मैने भी एक सैंडविच, एक टिक्की और एक चिला का आर्डर कर दिया और मशीन से एक कप कॉफी निकलवा ली। खा पी कर अपनी 3 mm. लंबी मूछों पर ताव देता हुआ वापिस होटल में अपने कमरे पर आया! 😉
कैमरे को चार्जिंग पर लगाया, मैमोरी कार्ड को लैपटॉप में लगाया और सुबह से अब तक की यात्रा के दृश्य देखते देखते जाने कब आंख लग गयी।
मैं भी पिछले साल नैनीताल गया था। हमने तो एक ही दिन में घूम लिया था। अब उधर रुकने का मन है। देखते हैं कब ये पूरा होता है। आपने काफी सुन्दर तसवीरें खींची। बस एक बात मुझे अजीब लगी। हम जब उधर घूम रहे थे तो हर पाँच मिनट में एक व्यक्ति हमसे टकरा जाता और हमे 1200 में 12 पॉइंट्स या कुछ ज्यादा पैसों में ज्यादा पॉइंट्स दिखाने का वादा करने लगता। काफी परेशान हो गये थे हम उनसे। आपको ऐसा अनुभव नहीं हुआ ?
प्रिय विकास नैनवाल,
नहीं, मुझे तो ऐसा याद नहीं पड़ रहा कि घुमाने फिराने के लिये किसी ने मुझे ज्यादा परेशान किया हो। हां, अपनी यात्रा के तीसरे और अंतिम दिन मैने एक टैक्सी को होटल के पास खड़े देख कर उससे स्वयं ही बात की थी। उसने आधा दिन और पूरा दिन – इस हिसाब से अपने रेट बताये थे। शायद 1200 रुपये में ही पूरे दिन घुमाने की बात तय की थी और मुझे यह अनुभव बुरा भी नहीं रहा। सुबह 7 बजे से शाम को 5 बजे तक मैने काफी सारी जगह देखीं । मुझे जहां जितनी देर रुकने की इच्छा हुई, मैं उतनी देर रुका। कितने प्वाइंट्स देखे, ये तो मैने गिनती नहीं की। वैसे भी ये लोग गिनती बढ़ाने के लिये ऐसे प्वाइंट्स भी बताते हैं, जो वास्तव में कुछ होते ही नहीं।
आप आये, बहुत अच्छा लग रहा है। आपको चित्र और वर्णन पसन्द आये, जानकर बहुत अच्छा लगा।
सादर,
सुशान्त सिंहल
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हमने काठगोदाम से 400 रु में कार ली थी 2012 में गई थी ओर झील के सामने जागृति होटल में रुकी थी जिसका किराया 1500 रु था। हमने भी 1200 रु में साईडसीन देखे थे ।सबकुछ मजेदार सफर था।
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Aapka cmt accha lga hum bhi jaane wale hai june me waha aap ka post pad kr acchi jankri mili thank u.very beautiful pix
प्रिय बरखा कक्कड़,
आप का हार्दिक धन्यवाद ! कृपया आती रहें, लिखती रहें। इस बार आपका कमेंट auto approve होकर स्वयं ही आ जायेगा।
सादर,
सुशान्त सिंहल
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