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एलोरा की गुफ़ाओं के रूप में हम सब को आश्चर्यचकित कर देने वाली 1500 साल पुरानी विरासत को देख कर हम बाहर निकल कर आये तो हमारा अगला लक्ष्य – शनि शिंगणापुर हमें पुकार रहा था।
शनि शिंगणापुर
औरंगाबाद से 84 किमी दूर शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का एक छोटा सा गांव है जहां हम लगभग 2 घंटे की यात्रा करके पहुंचे थे। शनि शिंगणापुर की प्रसिद्धि मुख्यतः दो कारणों से है।
शनि देव का यहां पर मौजूद तीर्थस्थल हज़ारों – लाखों श्रद्धालुओं को यहां पर आमंत्रित करता है। शनि देव यहां पर स्वयं भू रूप में हैं यानि स्वयं प्रकट हुए थे, और यह जागृत देवस्थान है, यानि शनि देव वहां पर हर समय मौजूद रहते हैं। प्रसिद्धि का दूसरा अत्यन्त महत्वपूर्ण कारण, जो मुझे घर वापिस आकर ही पता चला वह ये है कि इन गांव में घरों और दुकानों में न दरवाज़े होते हैं और न ही ताले लगाये जाते हैं।
बताया जाता है कि शनि देव की कृपा से, या दूसरे शब्दों में कह लें कि शनि देव के प्रकोप के भय से यहां कोई अपराध करने की हिम्मत नहीं करता। डाकखाना भी दिन रात खुला पड़ा रहता है। हद तो ये है कि यहां यूको बैंक की एक शाखा खोली गयी तो उसको भी रात्रि में बन्द करने का कोई इंतज़ाम नहीं है। बीमा कंपनी की शर्तें व भारतीय रिज़र्व बैंक की गाइडलाइंस आड़े न आतीं तो शायद स्ट्रॉंग रूम में भी ताले न लगाये जाते। यदि शनि शिंगणापुर के इस वैशिष्ट्य की मुझे पहले से जानकारी होती तो मैं बिना यूको बैंक की इस अद्भुत शाखा को देखे वहां से आगे जाने वाला नहीं था, पर मेरी हार्ड किस्मत!
वैसे, इस बात से मेरी इस धारणा को और मजबूती मिली है कि ईश्वर के न्याय का भय इंसान को अपराध की दुनिया से दूर रख सकता है। ट्रेन में अक्सर लोग किसी स्टेशन के आने पर अपने अनजान सहयात्री को कह देते हैं, “भाई साहब, मैं दो मिनट में आया, जरा सामान का ध्यान रखियेगा।” हम भी उसके सामान का पूरा खयाल रखते हैं। क्यों? आखिर ऐसा हमारे अन्दर क्या है कि अगर कोई अनजान व्यक्ति हमें एक इज़्जतदार, शरीफ़ और ईमानदार इंसान मानते हुए हम पर विश्वास कर रहा है तो हम भी उस अपरिचित व्यक्ति द्वारा हम पर किये गये उस विश्वास की रक्षा करना अपना धर्म समझते हैं? हमारे देश में अपराधों का ग्राफ निरन्तर बढ़ता जा रहा है इसकी वज़ह शायद यही है कि हमारे भीतर से ईश्वर के न्याय का भय निरन्तर कम होता चला जा रहा है! हम मानते थे कि भगवान अन्तर्यामी हैं, हर जगह मौजूद हैं, हम उनको नहीं देख सकते पर वह हमें देख सकते हैं ! ऐसे में भीड़ हो या सुनसान जंगल, दिन हो या रात – हम कोई भी आपराधिक कृत्य करते हुए डरते थे कि और कोई न भी देख रहा हो, भगवान तो देख ही रहे हैं और वह हमारे इस अपराध का दण्ड हमें जरूर देंगे! पर अब तो हमें पुलिस और कानून का भी डर नहीं है ! पुलिस हर जगह मौजूद नहीं हो सकती और अगर कहीं कोई दिख भी गया तो उसे हम पैसे से खरीद लेंगे!
खैर मितरों! ये सारी बातें ’मन की बात’ जो मैं आपसे शेयर कर रहा हूं ये शनि शिंगणापुर गांव के इस वैशिष्ट्य के बारे में जान कर ही निकली हैं। कहा जाता है कि इस गांव की अपराधों से रक्षा करने का वचन खुद शनिदेव ने दिया हुआ है। यह भी हो सकता है कि किसी ने चोरी – डकैती डालने की कोशिश की हो और उसे अपने अपराध की सज़ा पुलिस और कानून तक बात पहुंचने से भी कहीं पहले, भगवान की ओर से मिल गयी हो! पर इतना सत्य है कि सैंकड़ों साल से ये गांव अपराध मुक्त है! भगवान करे, यह आदर्श स्थिति हमेशा बनी रहे!
शनैश्वर मंदिर का इतिहास
ये मंदिर यहां कब और क्यों आया? शनि देव के मंदिर पर कभी छत क्यों नहीं होती? जब इस बारे में खोजबीन की कोशिश की तो विकीपीडिया ने अनेकानेक पीढ़ियों से चली आ रही एक कथा का ज़िक्र किया जिसके अनुसार शनि देव ने एक गरीब गाय चराने वाले को स्वप्न में दर्शन देकर अपनी उपस्थिति से अवगत कराया था और दैनन्दिन पूजा व हर शनिवार को तेल से अभिषेक की आज्ञा दी थी। शनि देव की कोई मूर्ति नहीं होती, वह काले पत्थर के रूप में ही खुद को अभिव्यक्त करते हैं और सरसों के तेल का अभिषेक स्वीकार करते हैं। उन्होंने स्वप्न में ही अपने ऊपर यह कहते हुए छत न बनाने की भी ताकीद की थी कि पूरा आकाश ही उनकी छत है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया था कि इस क्षेत्र को अब किसी भी चोर – उचक्के – डकैत का भय नहीं रहेगा। यदि कोई ऐसा अपराध करेगा तो मैं स्वयं उसे दंडित करूंगा। मैने सहारनपुर, गुड़गांव व अन्य शहरों में भी जो शनि देव के मंदिर देखे हैं, उन पर छत नहीं होती है।
जब हम शनि शिंगणापुर गांव में पहुंचे तो प्रसाद की डलिया खरीद कर, जूते-चप्पल आदि स्टैंड पर उतार कर लाइन में लग गये। यह एक विशाल भवन था जहां से अनेकानेक सेवा गतिविधियां संचालित की जाती हैं। हॉल में व सभी कक्षों में सर पर छत थी, वह जब हम लाइन में आगे बढ़ते बढ़ते शनैश्वर देव के निकट पहुंचे तो देखा कि वह खुले प्रांगण में एक ऊंचे से चबूतरे पर उपस्थित हैं। हमने जो प्रसाद की डलिया ली थी, उसमें सरसों के तेल की शीशी भी थी और एक काले कपड़े का छोटा सा गुड्डा जैसा था जो शनि देव की मूर्ति / प्रतिनिधि के रूप में हमें ही दे दिया गया था। सरसों के तेल से अभिषेक के लिये भी विशेष व्यवस्था की गयी है। स्टेनलैस स्टील के लंबे – लंबे विशाल चौकोर बर्तन स्टैंड के ऊपर स्थापित किये गये हैं जिनका ढक्कन भी एक विशाल जाली ही है। श्रद्धालु लाइन में आगे बढ़ते – बढ़ते उस जाली पर तेल की शीशी खाली कर देते हैं। शीशी व ढक्कन भी जाली के ऊपर ही छोड़ दिये जाते हैं जो सेवादार हर दो मिनट में हटाते रहते हैं। सरसों का तेल जाली में से होता हुआ नीचे कंटेनर में एकत्र होत रहता है। हम आगे बढ़े तो मुझे नज़र आया कि उन दोनों कंटेनर का तेल एक पाइप के माध्यम से लगभग चार फ़ीट ऊंचे चबूतरे पर स्थित साढ़े पांच फ़ीट ऊंची शनि देव की ’प्रतिमा’ के ऊपर पहुंचता है और इस प्रकार शनि देव का सरसों के तेल से स्वयमेव अभिषेक होता रहता है। हर शनिवार को अभिषेक करने वालों का वहां तांता लगा रहता है और शनि त्रयोदशी को यहां मेला लगत है। हर वह अमावस्या जो शनिवार को पड़े, उस दिन श्रद्धालुओं की संख्या लाख तक पहुंच जाती है।२
महिलाओं का शनि देव के मंदिर में प्रवेश
एक और महत्वपूर्ण बात ये कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का अनुपालन करते हुए मंदिर ट्रस्ट ने अपनी 400 साल पुरानी परम्परा को तिलांजलि देते हुए महिलाओं को भी शनि देव के पूजन की अनुमति प्रदान कर दी है।
चबूतरे पर शनि देव के निकट से दर्शन करते हुए हम नीचे उतर आये तो वहां एक हॉल था जिसमें शिव जी और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित थीं। मंदिर परिसर से प्रसाद में नारियल की बर्फ़ी खरीदते हुए हम बाहर आये, हल्का फुल्का भोजन लिया और अपनी वैन में आकर बैठ गये। अब हमारा अगला पड़ाव था – शिरडी साईं बाबा का देवस्थान ! आगे की यात्रा का वर्णन कल को ही करें तो शायद बेहतर रहेगा। तब तक के लिये नमस्कार, आज्ञा दीजिये मित्रों!
बहुत अच्छी जानकारी मिली
शुक्रिया, मोनालिसा जी, मैं जब शनि शिंगणापुर मंदिर में पहुंचा था तो मेरे मन में कोई विशेष भावनाएं रही हों, ऐसा नहीं लगता। पर मुझे आज लग रहा है कि भगवान व मंदिरों का वास्तविक कार्य तो यही है कि वह – यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः का अपना वचन निभायें! दुष्ट जनों का संहार करें और जन सामान्य को धर्म की राह दिखाएं।
यही तो धर्म है।
वाह श्रीमान!
ऐसा सिलसिलेवार वर्णन कि कुछ क्षण के लिए मै वहीं पहुंच गई।लगा मै स्वयं ही साक्षी हूं उस देवस्थान की।
आभार एवं नमन इतने सुंदर वर्णन के लिए।
आप का आज पहली बार इस ब्लॉग पर आगमन हुआ इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ! आपने जिस अपनत्व के साथ प्रोत्साहित किया है वह मेरे लिए बहुत प्रेरणादायक है और आगे भी लिखते रहने के लिए उत्साहित कर रहा है!
आशा है स्नेह बनाए रखेंगी!