दोस्तों,
कल रात सिकन्दराबाद Secunderabad से ट्रेन नंबर 17213 पकड़ कर हम आज सुबह 7.30 पर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित औरंगाबाद Aurangabad आ पहुंचे हैं। औरंगाबाद महाराष्ट्र के प्रमुख महानगरों में से एक है जो रेलमार्ग, वायु मार्ग व सड़क मार्ग से देश के अन्य भागों से भली भांति जुड़ा हुआ है और अपनी सिल्क की साड़ियों, अजन्ता एलोरा की गुफ़ाओं, दौलताबाद फोर्ट, बीबी का मकबरा आदि के लिये जाना जाता है। 52 दरवाज़ों के इस शहर में आने का हमारा मुख्य ध्येय घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग Ghrishneshwar Jyotirlingam के दर्शन करना है। पर जब औरंगाबाद आये हैं तो एलोरा की गुफ़ाएं व यहां के अन्य आकर्षण देखे बिना भला कैसे जा सकते हैं! आइये, इस आनन्ददायक यात्रा में आप भी हमारे साथ चलते चलिये।
औरंगाबाद आते ही हमें एक नयी टेम्पो ट्रेवलर और एक नया चालक मिला है जो मराठी भाषी है, किन्तु हिन्दी भी आसानी से बोलता और समझता है। हैदराबाद में भी तीन दिन तक हमारे पास एक टेम्पो ट्रेवलर रही थी, पर उस वाहन चालक की तुलना में इस नये वाहन चालक का स्वभाव बहुत बेहतर है। हमारी आज की बुकिंग होटल ग्लोबल इन Hotel Global Inn में है जो FabExpress group का होटल है और OYO से भी जुड़ा हुआ है। औरंगाबाद – जालना हाई वे पर कुशल नगर में स्थिति इस होटल में हमारे लिये सुबह 8.30 पर ही चार कमरे खोल दिये गये हैं जिनमें हम 9 तीर्थ यात्री रात भर की रेल यात्रा के बाद नहा धोकर, तैयार होकर, नाश्ता करके वापिस वैन में आ बैठे हैं और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर जा रहे हैं।
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इस श्रंखला की पिछली कड़ियां ये रहीं।
- हमारी हैदराबाद यात्रा का पहला दिन – मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हैदराबाद यात्रा का दूसरा दिन – चार मीनार आदि
- सालारजंग म्यूज़ियम – अद्भुत कलाकृतियों का संग्रहालय
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – औरंगाबाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन, भद्र मारुति मंदिर व बीबी का मकबरा
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – औरंगाबाद – एलोरा गुफाएं
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – बिना दरवाज़े और ताले वाला अद्भुत शनि शिंगणापुर
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – शिरडी का कण – कण साईं बाबा के निमित्त है।
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – गोदावरी के तट पर बसा नासिक और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – गोदावरी के पंचवटी तट पर एक शाम
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – लोनावला, खंडाला, एकविरा मंदिर, कार्ला गुफाएं, लॉयन प्वाइंट
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – श्री सिद्धि विनायक मंदिर मुम्बई और दिल्ली वापसी
घृष्णेश्वर या घुष्मेश्वर?
जैसा कि अक्सर होता है, पौराणिक स्थलों के साथ कई सारी किंवदंतियां जुड़ जाती हैं। उन्हीं किंवदंतियों के कारण इन पौराणिक स्थलों के नाम भी एक से अधिक हो जाते हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की ही बात करें तो घुष्मेश्वर नाम के पीछे भी घुष्मा नामक एक तपस्वी महिला की कथा मैने सुनी है जिसके पुत्र को घुष्मा की बड़ी बहिन और सौत द्वारा ईर्ष्यावश मार दिये जाने के बाद शिव जी ने पुनः जीवित कर दिया था। शिव जी ने घुष्मा की सौत सुदेश को उसके इस कुकर्म की सज़ा देने की बात कही तो घुष्मा ने मना कर दिया और शिव जी से कहा कि अगर आप मुझे से प्रसन्न हैं तो यहीं बस जाइये। ऐसे में शिव जी घुष्मेश्वर के रूप में यहां स्थापित हो गये। हालांकि, हमें हर जगह घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग ही लिखा हुआ मिला है, घुष्मेश्वर नाम कहीं नज़र नहीं आया।
औरंगाबाद से घृष्णेश्वर मंदिर की यात्रा
औरंगाबाद से घृष्णेश्वर मंदिर लगभग 30 किमी दूर है और औरंगाबाद – धुले हाईवे पर स्थित है। औरंगाबाद से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग आते समय हमारे बाईं ओर एक पहाड़ी पर दौलताबाद किला भी था पर हम उसे नहीं देख पाये। घृष्णेश्वर मंदिर से सिर्फ 1 किमी की दूरी पर विश्व प्रसिद्ध एलोरा गुफाएं भी हैं। एलोरा गुफ़ाएं और ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने का मार्ग घाट एरिया कहलाता है यानि पहाड़ी मार्ग। मुंबई में जब मैं किसी से घाट एरिया की बात सुनता था तो मुझे लगता था कि शायद किसी नदी के किनारे की सड़क को ’घाट’ कहते होंगे जैसा कि उत्तर भारत में कहते हैं। पर बाद में स्पष्ट हुआ कि महाराष्ट्र में घाट एरिया पहाड़ी मार्ग को कहते हैं। औरंगाबाद में ही नहीं, महाराष्ट्र के अन्य शहरों में भी मुझे बरगद के पेड़ों की बहुतायत मिली! औरंगाबाद से एलोरा / घृष्णेश्वर जाते समय भी औरंगाबाद धुले मार्ग पर सड़क के दोनों ओर विशाल वट वृक्ष हैं जो सड़क को छायादार और बहुत सुन्दर स्वरूप देते हैं। दोनों ओर के वृक्ष सम्मिलित रूप में सड़क पर एक के बाद प्राकृतिक तोरण बनाते चलते हैं।
सड़क पर बाईं ओर पार्किंग हेतु एक संकेतक लगा देख कर वैन वहीं मैदान में खड़ी कर दी गयी है और हम 9 तीर्थ यात्री पैदल – पैदल मंदिर की ओर बढ़ चले हैं। रास्ते में प्रसाद की डलिया लिये हुए बहुत सारी महिलाओं ने हमारी पांचों महिलाओं को घेर लिया है जो प्रसाद हमें बेचना चाह रही हैं। काफी झकबाजी और मोल भाव करके मेरी पत्नी ने भी एक डलिया ले ली और हमने अपने जूते – चप्पल भी उसकी नन्हीं सी दुकान के बाहर उतार दिये हैं। मंदिर पर पहुंच कर पता चला है कि हमें अपने मोबाइल और कैमरे भी बाहर एक दुकान पर ही जमा करने हैं जिसके लिये 5/- प्रति मोबाइल / कैमरा शुल्क है और रसीद मिलेगी। पैसे देकर और रसीद लेकर हमने संभाल कर जेब में रखी और मंदिर के द्वार पर लाइन में लग गये हैं। लाइन में लगे – लगे पता चला कि सभी पुरुषों को अपनी शर्ट व बनियान भी उतार कर ही मंदिर में प्रवेश करना है। यदि किसी ने चमड़े की बेल्ट लगाई हुई है तो वह भी उतार कर बाहर ही रखनी होगी। बाकी सबकी देखा देखी हमने भी अपनी शर्ट और बनियान उतारे और पैंट के ऊपर बेल्ट के ढंग से बांध लिये हैं।
मंदिर का क्षेत्र बहुत विशाल नहीं है किन्तु मंदिर का स्थापत्य बहुत आकर्षक है। मंदिर का निर्माण काले पत्थर से हुआ है। गर्भगृह में घृष्णेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है। आराम से, बिना धक्का – मुक्की के हम सब ने दर्शन कर लिये हैं और गर्भगृह से बाहर आकर देखते हैं कि एक और लाइन लगी हुई है और लाइन में लगे हुए प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में कागज़ की एक प्लेट भी है। अरे वाह, लगता है भंडारा चल रहा है। यूं तो हम होटल से निकलते समय नाश्ता कर चुके हैं, पर भंडारे का लालच भला कहां छूटता है! प्रसाद में पुलाव (तहरी) और गर्मा गर्म हलवा प्लेट में लेकर हम चबूतरे पर बैठ कर प्रसन्न मन से भोग लगा रहे हैं।
ओफ़! आज तो मंगलवार है, एलोरा गुफ़ाएं नहीं देख सकते!
मंदिर में होने को तो एक तालाब भी है पर हमें वापिस जाने की जल्दी है क्योंकि औरंगाबाद के अन्य दर्शनीय स्थल भी तो देखने हैं। वैन में बैठ कर हम पुनः औरंगाबाद की ओर बढ़ चले हैं। ड्राइवर महोदय बता रहे हैं कि आज मंगलवार है और मंगलवार को एलोरा गुफाएं पर्यटकों के लिये बन्द रहती हैं। इसे कहते हैं, जोर का झटका धीरे से लगे! पर एक कहावत ये भी तो है – “जब तक सांस, तब तक आस! एलोरा गुफ़ाओं के प्रवेश द्वार पर पहुंच कर हमारे ड्राइवर महोदय ने अपनी जान – पहचान के किसी व्यक्ति से मिल कर कोशिश की कि शायद गुफाओं के दर्शन की अनुमति मिल जाये, जो नहीं मिली। ऐसे में यह तय किया गया है कि हम कल पुनः एलोरा दर्शन के लिये यहां आयेंगे। अब कहां चलें?
भद्रा मारोति मंदिर
ड्राइवर महोदय हमारे लिये अच्छे गाइड भी साबित हो रहे हैं। जो स्थान हमारी लिस्ट में शामिल नहीं हैं, वह भी हमें दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा ही एक मंदिर है भद्र मारुति का मंदिर यानि हनुमान जी का मंदिर। इस मंदिर तक आने के लिये हमें अपने औरंगाबाद – धुले हाइवे को छोड़ कर सिर्फ दो-तीन किमी ही अलग सड़क पर जाना पड़ा है। यह स्थान खुल्दाबाद कहलाता है। यहां पर हनुमान जी की शयन मुद्रा में मूर्ति है। इस मंदिर के विस्तार का कार्य बड़े जोर – शोर से चल रहा है। अत्यन्त विशाल सभा गृह का निर्माण कार्य चल रहा है। यहीं पास में शनि देव का भी एक मंदिर है शनि देवता पर चढ़ाने के लिये सरसों के तेल की विभिन्न आकार की शीशियां भी बिक रही हैं।
भद्रा मारोति मंदिर संभवतः भद्र मारुति मंदिर का मराठी नाम है! हिन्दी और मराठी – दोनों ही भाषाएं देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं अतः मराठी उच्चारण के अनुरूप कई बार स्पेलिंग वह नहीं होतीं जो हम हिन्दी में लिखते हैं। पर की फ़रक पेंदा है जी! वो शेक्सपियर ने कहा था ना? गुलाब को गुलाब न कह कर कुछ और कहो तो भी रहेगा तो वह गुलाब ही!
भद्रा मारोति मंदिर का इतिहास यहां एक फ़्लेक्स पर लिखा हुआ है। इसके अनुसार राजा राजशी भद्रसेन हनुमान जी के परम भक्त थे और बड़े मगन होकर तालाब के किनारे बैठे हुए हनुमान जी के भजन गाया करते थे। किंवदन्ती है कि उनके भजन – गायन की प्रसिद्धि खुद हनुमान जी तक पहुंच गयी और वह भी एक दिन भजन सुनने के लिये तालाब के किनारे आ कर बैठ गये और वहीं उनको नींद आ गयी! जरूर पक्के राग होंगे क्योंकि मुझे भी पक्के राग सुनने सुनते नींद आ जाती है। 🙂
अस्तु ! समझने लायक मुख्य बात ये है कि हनुमान जी की जो प्रतिमा यहां स्थापित है, वह उनकी शयन मुद्रा में है। सुना है कि देश में कुल मिला कर ऐसे 7 मंदिर हैं जिनमें हनुमान जी की शयन मुद्रा में प्रतिमा स्थापित हैं – गुजरात के राजकोट में, उत्तर प्रदेश के इटावा में, इलाहाबाद में संगम तट पर, चंदौली जिले में और मध्य प्रदेश के जाम सावली में भी हनुमान जी की शयन मुद्रा में प्रतिमा हैं। पता नहीं कलाकार ऐसा क्यों करते हैं! मैने पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा की जनसभाओं के जितने भी फोटो अखबारों में देखे हैं, वह सब चित्रों में सोते हुए ही दिखाई दिये। ऐसा नहीं कि वह हमेशा सोते ही रहते होंगे पर प्रेस फोटोग्राफ़र उनकी शयन मुद्रा में ही फोटो लेना पसन्द करते थे। खैर जी, हमें क्या?
मंदिर के दर्शन करके हम वापिस हाई वे पर बढ़ चले हैं। होने को तो यहां मुगल साम्राज्य के अंतिम शासक औरंगजेब का भी मकबरा है जिसने औरंगाबाद के पुराने नाम फ़तेहनगर को अपने नाम के आधार पर औरंगाबाद नाम दे दिया था। खैर, हमें औरंगज़ेब के मकबरे को देखने में कोई विशेष रुचि नहीं थी, अतः हम आगे बढ़ लिये हैं।
औरंगाबाद की प्रसिद्ध हिंगरू और पैठानी सिल्क साड़ियां
रास्ते में हमारे ड्राइवर महोदय ने चाय पीने व लघु शंका से निवृत्त होने के बहाने से गाड़ी एक सिल्क फैक्ट्री के प्रांगण में लाकर रोक दी है। छः सात हथकरघे लगे हुए हैं जिनमें से सिर्फ एक पर ही एक कारीगर साड़ी बना रहा है। औरंगाबाद में सिल्क पर हिमरू और पैठानी शैलियों में बेहद बारीक काम करते हुए आकर्षक कारीगरी की जाती है। हमारे साथी, विशेषकर महिलाएं, अन्दर शो रूम में साड़ियों को देख – देख कर प्रसन्न हो रहे हैं परन्तु फैक्ट्री आउटलैट होने के बावजूद कीमत में कोई अन्तर अनुभव न करते हुए आगे चल पड़े हैं।
बीबी का मकबरा
ड्राइवर महोदय ने बताया है कि हमारा अगला पड़ाव बीबी का मकबरा है। औरंगाबाद के कैंट एरिया में एक अलग सड़क बीबी के मकबरे की ओर जाती है। हम वहां वैन से बाहर निकले तो देखते क्या हैं कि ताजमहल की एक हास्यास्पद सी नकल हमारे सम्मुख मौजूद है। शायद मुगल बादशाह अपनी बेगमों को हर समय गर्भावस्था में ही रखते थे जिसे हमारे इतिहासकार इन बादशाहों के अपनी बेगमों के प्रति अपार प्रेम का सुबूत मान कर वर्णन करते नहीं अघाते हैं। आगरा के ताजमहल और बीबी का मकबरा में सिर्फ यही बात समान नहीं है कि उनका मूलभूत डिज़ाइन एक जैसा है, बल्कि ’अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी !’ वाला मामला भी एक जैसा ही है। शाहजहां की बेगम मुमताज और औरंगजेब की बेगम दिलरास बानो बेगम – दोनों ही बेचारी गर्भभार सहते सहते युवावस्था में ही अल्लाह को प्यारी होगयी थीं। मुमताज महल के बारे में तो इतिहासकार बड़े गर्व से बताया करते हैं कि वह 14 वें बच्चे को जन्म देने के प्रयास में स्वर्गवासी हो गयी थी। कितना प्यार करते होंगे शाहजहां अपनी फ़ेवरिट बेगम को ! वहीं दूसरी ओर, दिलरास बानू यानि औरंगजेब की बेगम पांचवे बच्चे के जन्म के समय बहुत बीमार रही और बच्चे के जन्म के एक महीने बाद चल बसी थी। शाहजहां ने तो आगरा में ताजमहल को अपनी ’जान से प्यारी’ मरहूम बेगम को समर्पित कर दिया था पर उसकी नकल करके बनाये गये बीबी के मकबरे का निर्माण औरंगजेब के बेटे आज़म शाह द्वारा सन 1660 में किया गया बताया जाता है।
हर वह व्यक्ति जो आगरा के ताजमहल को देख चुका हो, वह कभी भी बीबी के मकबरे से प्रभावित नहीं हो सकता। जिस किसी ने मौहम्मद रफ़ी को सुना हो, सराहा हो, वह सोनू निगम द्वारा गाये गये मौहम्मद रफ़ी के गीतों को भला कैसे सराहे? बीबी के मकबरे की भी यही विडंबना है। काश इसको ताजमहल की नकल के बजाय कोई और स्वरूप दिया गया होता। तब इस मकबरे का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन होता। अब चूंकि इसे ताजमहल की नकल के तौर पर बनाया गया था तो मूल्यांकन करते समय ताजमहल से तुलना की जानी अनिवार्य ही है।
आगरा के ताज महल के रख रखाव पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है, देश विदेश के सभी प्रमुख पर्यटक ताजमहल के नाम पर खिंचे चले आते हैं अतः इस स्मारक को टिप – टॉप स्थिति में रखना सरकार की और पुरातत्व विभाग की मजबूरी है वरना पर्यटक आकर निराश होंगे, सौ बातें कहेंगे! पर वही पुरातत्व विभाग बीबी के मकबरे का टिकट तो वसूलता है पर उसके रख रखाव पर ताजमहल पर होने वाले खर्च का सौवां भाग भी खर्च नहीं करता।
खैर, जब हम यहां औरंगाबाद आये हुए हैं तो बीबी का मकबरा भी देखते चलें। आप भी देख लीजिये कुछ चित्र जो मैं वहां से खींच कर लाया हूं, आप भी देखिये और आगरा के ताजमहल से इस स्मारक का तुलनात्मक अध्ययन करते चलिये।
बीबी के मकबरे से बाहर आकर अब हम पुनः अपनी वैन में बैठ कर चल पड़े हैं। मैं बार – बार ड्राइवर महोदय से अनुरोध किये जा रहा हूं कि जहां भी कहीं बाज़ार दिखाई दे, रोक लें क्योंकि मुझे एक चश्मा खरीदना है। दर असल मेरा लिखने पढ़ने वाला चश्मा गुड़गांव में घर पर ही छूट गया है और मैं चश्मे का खाली केस लिये चार दिन से घूम रहा हूं। मोबाइल के उपयोग में सबसे ज्यादा दिक्कत आ रही है। ड्राइवर महोदय का वायदा है कि अब पनचक्की से होते हुए हम बाज़ार की ओर ही जायेंगे। आप औरंगाबाद का बाज़ार भी देख लीजिये और जो भी शॉपिंग करनी हो, वह सब भी कर लीजियेगा।
पनचक्की आखिर क्या है, बाज़ार में हमने क्या – क्या देखा, क्या क्या खाया पिया, ये सब वर्णन अगली ही पोस्ट में किया जाये तो बेहतर ! है ना? फ़िलहाल आज्ञा दीजिये । नमस्कार। ये पोस्ट आपको कैसी लगी, अगर नीचे कमेंट के माध्यम से बतायेंगे तो अनुगृहीत रहूंगा।