हमारी हैदराबाद - महाराष्ट्र तीर्थ यात्रा - पहला दिन
- श्री शैलम में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन
- हमारी हैदराबाद – महाराष्ट्र यात्रा का दूसरा दिन – चारमीनार की सैर
- हमारी हैदराबाद यात्रा का दूसरा दिन – सालारजंग म्यूज़ियम
- हमारी हैदराबाद यात्रा का दूसरा दिन – बिड़ला मंदिर / हुसैन सागर लेक और होटल वापसी
- हमारी हैदराबाद यात्रा का तीसरा दिन – रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर – भाग १
- हमारी हैदराबाद यात्रा का तीसरा दिन – रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर – भाग २
- हमारी हैदराबाद यात्रा का तीसरा दिन – रामोजी फ़िल्म सिटी और औरंगाबाद हेतु रेल यात्रा
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का पहला दिन – औरंगाबाद – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का पहला दिन – औरंगाबाद – बीवी का मकबरा व अन्य दर्शनीय स्थल
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का दूसरा दिन – औरंगाबाद – एलोरा की गुफ़ाएं
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का दूसरा दिन – शनि शिंगणापुर और शिरडी दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का तीसरा दिन – नाशिक – त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का तीसरा दिन – नाशिक – पंचवटी, मुक्तिधाम व अन्य दर्शनीय स्थल
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का तीसरा दिन – भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन व लोनावला हेतु प्रस्थान
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का चौथा दिन – लोनावला व खंडाला, कार्ला गुफ़ाएं, टाइगर प्वाइंट
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा का पांचवा दिन – लोनावला से मुम्बई और दिल्ली वापसी हेतु रेल यात्रा!
प्रिय मित्रों,
अभी तक आप पढ़ चुके हैं कि हम नई दिल्ली से हैदराबाद व महाराष्ट्र की 9 दिन की यात्रा पर कल 18 जनवरी को निकले थे और कल श्री शैलम में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद आज हम 210 किमी यात्रा करके वापिस हैदराबाद में आये हैं और शेष बच रहे इस आधे दिन में अभी तक हम चारमीनार और सालारजंग म्यूज़ियम देख चुके हैं।
वैसे एक बात बताऊं आपको! हमारी वैन के ड्राइवर महोदय ने हमें बहकाने की पूरी कोशिश की कि रविवार को बिड़ला मंदिर बन्द रहता है और बाकी दिन भी पांच बजे बन्द हो जाता है, पर भला हो हमारे मित्र श्री कश्मीर सिंह का, जो हैदराबाद में ही रहते हैं और सुबह से ही हमसे निरन्तर फोन से सम्पर्क बनाये रखते हुए हमें गाइड कर रहे थे। दोपहर को भोजन के लिये भी उन्होंने बताया था कि एयरपोर्ट से बाहर आते हुए हमें ’चटनी’ वेजिटेरियन रेस्टोरेंट की जो भी शाखा मिले, हम वहां पर अत्यन्त सुस्वादु भोजन कर सकते हैं। ’चटनी’ न दिखे तो ’कामत’ भी बहुत अच्छा रेस्टोरेंट है।पर ड्राइवर ने इन दोनों ही रेस्टोरेंट को तलाशने में कोई भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। जब उसको हमारी कोई बात नहीं सुननी होती थी तो भाषा की समस्या का बहाना बना देता था। ऐसे में हम सड़क पर वेज रेस्टोरेंट वाले बोर्ड की तलाश में निगाहें दौड़ाते रहे और जो भी पहला ठीक – ठाक सा रेस्टोरेंट दिखाई दिया, अपना टेम्पो ट्रेवलर रुकवा कर वहां भोजन कर लिया था और उसके बाद ही चारमीनार और सालारजंग की ओर रुख किया था।
बिड़ला मंदिर परिसर
बिड़ला मंदिर परिसर में सिर्फ मन्दिर ही नहीं है, बल्कि और भी कई सारे संस्थान वहां पर हैं। जैसे B.M. Birla Planetarium, 3 D Universe, B.M. Birla Science Museum, G.P. Birla Library, Nirmala Birla Gallery of Modern Art, G.P. Birla Observatory, Dinosore Museum etc. ये सब नौबत पहाड़ नामक 280 फ़ीट ऊंची एक पहाड़ी पर बने हुए हैं और उन तक पहुंचने के लिये हमारी वैन को काफ़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ी! शायद इस चढ़ाई की वज़ह से ही ड्राइवर महोदय यहां आना नहीं चाह रहे होंगे। खैर, वाहन पार्किंग में खड़ा करके मेरे बाकी सारे सहयात्री मंदिर की ओर बढ़ चले और मैं सुलभ टॉयलेट की तलाश में इधर – उधर पूछताछ करने लगा। एक सज्जन ने बताया कि ये जो लाल रेलिंग वाली सीढ़ियां डायनासोर म्यूज़ियम की ओर जा रही हैं, उधर ही सार्वजनिक शौचालय का साइनबोर्ड लगा हुआ है।
क्या आपने कभी नर्क के दर्शन किये हैं? यदि नहीं और दर्शन करने की इच्छा हो तो बिड़ला मंदिर परिसर की पार्किंग के ऊपर बने हुए डायनासोर म्यूज़ियम के पब्लिक टॉयलेट में हो आइये। टॉयलेट सीट में मल तैरता हुआ मिलेगा, पानी की टोंटी खोलेंगे तो उसमें से पानी नहीं निकलेगा, सीट में या दीवार पर वाटर जैट भी लगा हुआ नहीं होगा और न ही आसपास कहीं साबुन दिखाई देगा। यदि आपकी जेब में कुछ कागज़ / टिशु पेपर वगैरा निकल आयें तो बस, उनसे अपना शरीर साफ़ करने का असफ़ल प्रयास करके, बिना हाथ धोये, आप शर्मिन्दगी से भरे हुए बाहर निकल आइये।
स्वाभाविक रूप से मैं स्वयं को इतना स्वच्छ और इस योग्य नहीं मान रहा था कि अब बिड़ला मन्दिर में दर्शनार्थी बन कर लाइन में लगूं और भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करूं! सो मन्दिर की सीढ़ियों के पास ही फ़र्श पर बैठ गया और जब तक मेरी श्रीमती जी और परिवार के बाकी सारे सहयात्री मन्दिर से नीचे उतर कर आयें, विकीपीडिया खोल कर बिड़ला मन्दिर के बारे में जानकारी एकत्र करता रहा। काश, बिड़ला मंदिर हैदराबाद का प्रबन्धन जितनी चिन्ता कैमरा और मोबाइल को मन्दिर परिसर से बाहर रखने के लिये करता है, उसका दशमांश भी टॉयलेट की सफ़ाई के लिये करता तो देश, समाज व धर्म के लिये अधिक कल्याणकारी होता।
विकीपीडिया के अनुसार 13 एकड़ भूभाग पर बिड़ला फ़ाउंडेशन द्वारा श्वेत धवल संगमरमर से निर्मित इस मंदिर के निर्माण में 10 वर्ष का समय लगा था और 1976 में स्वामी रंगनाथानन्द जी ने इस मंदिर का लोकार्पण किया था। रामकृष्ण मिशन के स्वामी रंगनाथानन्द जी का नाम मुझे इसलिये स्मरण रह गया क्योंकि हम लोगों ने अपने एक कार्यक्रम में उनको देहरादून में आमंत्रित किया था और उनके भाषण ने हमें बहुत प्रभावित किया था। स्वामी रंगनाथानन्द जी की सलाह मानते हुए इस मंदिर में घंटे – घड़ियाल नहीं लगाये गये हैं क्योंकि स्वामी जी का मानना था कि इस मंदिर को ध्यान व साधना के लिये उपयुक्त स्थान माना जाये तो इसका महत्व और अधिक होगा। सुना है कि इस मंदिर से पूरी हुसैन सागर लेक और हैदराबाद – सिकंदराबाद का विहंगम दृश्य दिखाई देता है, पर मैं मंदिर में ऊपर तक गया ही नहीं सो इस विहंगम दृश्य से भी वंचित रह गया।
आधा – पौना घंटे बाद जब वह नीचे आये तो मुझसे पूछा कि मैं मन्दिर में क्यों नहीं आया? अब मैं उनसे क्या कहता? खैर, हम सब वैन में बैठ कर वापिस चल दिये। यदि आप बिड़ला मंदिर जाना चाहें तो बता दूं कि हमारे ड्राइवर महोदय के कथन के सर्वथा विपरीत ये मंदिर सप्ताह में सातों दिन सुबह 7 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुलता है। बस, दोपहर में 12 से 3 बजे तक भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन उपलब्ध नहीं होते हैं।
हुसैन सागर लेक
मित्रों, मैं वर्ष 1987 में भी एक सप्ताह के लिये हैदराबाद आया था और उस समय की हैदराबाद की जो धुंधली यादें मेरे साथ थीं, उनमें से एक हुसैन सागर लेक की भी थी। यद्यपि मेरी पत्नी और बाकी सब साथियों ने थकान के कारण हुसैन सागर लेक पर रुकने में अनिच्छा जाहिर करते हुए सीधे होटल जाने का फ़ैसला किया, मुझे मालूम था कि मेरे मित्र श्री कश्मीर सिंह हम सब से मिलने को आतुर थे और अगर मैं हैदराबाद आकर भी बिना उनसे मिले वापिस चला गया तो हम दोनों को ही बहुत निराशा और दुःख होगा। अतः मैने वैन को होटल जाने दिया और खुद लेक के द्वार के पास उतर गया।
हुसैन सागर लेक के प्रवेश द्वार पर पहुंच कर अपने मित्र को फोन किया और गूगल मैप पर अपनी लोकेशन बताई तो वह पांच सात मिनट में ही अपनी कार लेकर आ गये। हमने पहले लेक की पूरी परिधि का कार से ही चक्कर लगाया और फिर जहां – जहां पार्किंग की सुविधा मिली, कार खड़ी करके लेक के किनारे – किनारे टहलते और बतियाते रहे और लेक के सौन्दर्य को निहारते रहे। सड़क और वाहनों की लाइटें पानी में झिलमिलाती हुई बहुत भली लग रही थीं। लेक की रेलिंग और सड़क के बीच में काफी चौड़ा फुटपाथ बना हुआ है जिस पर शाम को काफ़ी भीड़ हो जाती है।
अगर आपको ध्यान हो, मैने चारमीनार के बारे में आपको बताया था कि उसका निर्माण सन् 1591 में कुतुब शाही सल्तनत द्वारा कराया गया था। चारमीनार से भी पहले इसी सन् 1562-63 में इसी सल्तनत के इब्राहिम कुली कुतुब शाह द्वारा हुसैन सागर लेक का भी निर्माण कराया गया और इसके लिये मूसी नदी की सहायक नदी के जल का उपयोग किया गया। जैसे नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली जुड़वां शहर हैं ऐसे ही हैदराबाद और सिकन्दराबाद भी जुड़वां शहर हैं जिनको जोड़ने का दायित्व यही लेक निभाती है। अगर आप ड्रोन से देखें तो इस लेक का आकृति दिल के जैसी है और यही कारण है कि 27 सितंबर 2012 को इसे Heart of the World के खिताब से नवाजा गया था। इसकी वज़ह ये है कि दिल की आकृति लिये हुए आकार में इससे बड़ी संरचना पूरे विश्व में और कहीं नहीं है।
कश्मीर सिंह जी ने ये भी बताया कि गर्मी के दिनों में जब लेक की तलहटी में गंदगी जमा होती है तो पानी में काफ़ी बदबू आती है। शुक्र है कि हम जनवरी के ठंडे मौसम में लेक की ओर से आ रही ठंडी – ठंडी हवा का आनन्द ले रहे थे। वैसे इस लेक की नियमित अन्तराल पर सफ़ाई के लिये व्यापक प्रबन्ध किये जाते हैं। इस लेक का एक और प्रमुख आकर्षण इसके मध्य में मौजूद भगवान बुद्ध की 16 मीटर ऊंची और 350 टन वज़न की विशाल प्रतिमा है जो सफ़ेद ग्रेनाइट की एक ही चट्टान में से गढ़ी गयी है। इस लेक में नौका विहार के लिये अलग – अलग आकार प्रकार की नौकाएं – स्टीमर आदि उपलब्ध हैं। इस लेक की अधिकतम गहराई 32 फ़ीट है। मैं सिर्फ़ छः फ़ीट लम्बा हूं और मुझे तैरना भी नहीं आता है, अतः मैं पानी से अक्सर दूर ही रहना पसन्द करता हूं।
मेरा कैमरा सुबह से सालारजंग म्यूज़ियम तक नॉन-स्टॉप चल ही रहा था अतः हुसैन सागर लेक पर दो-चार फ़ोटो क्लिक करने के बाद कैमरे की बैटरी हिम्मत हार गयी। कश्मीर सिंह जी ने कहा कि अब घर चल कर खाना खाते हैं, उसके बाद मैं आपको होटल छोड़ दूंगा। बस, हम उनकी कार में बैठ कर हिमायत नगर में उनके Home, Sweet Home पहुंचे और पारिवारिक वातावरण में शानदार दावत उड़ा कर, भाभीजी को सादर प्रणाम कर हम वापिस होटल की ओर बढ़ चले। हमारा होटल लकड़ी का पुल नामक स्थान पर था और उसका नाम भी Hotel Wood Bridge Grand ही था।
मित्रों, अब कल का दिन मेरी हैदराबाद – महाराष्ट्र यात्रा का सबसे मनोरंजक दिन होने जा रहा है क्योंकि कल को हमें विश्वविख्यात रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर करना है। आपने बाहुबली फ़िल्म तो देखी ही होंगी और इस सवाल का जवाब पाने के लिये बाहुबली फ़िल्म का अगला व अंतिम भाग भी जरूर देखा होगा कि ’कटप्पा ने आखिर बाहुबली को क्यों मारा?’ इन बाहुबली फ़िल्मों की शूटिंग भी रामोजी फ़िल्म स्टूडियो में ही हुई थी और वहीं महिष्मती साम्राज्य के भव्य सैट सजाये गये थे।
ऐसे में आप समझ ही सकते हैं कि मेरे जैसे फ़ोटोग्राफी के शौकीन व्यक्ति के लिये रामोजी फ़िल्म सिटी का टूर कितना ज्ञानवर्धक होने जा रहा है। यदि आप चाहते हैं कि थोड़ा सा ज्ञान आपके साथ भी बांटा जाये तो अगली कड़ियों का इंतज़ार कीजिये। तब तक के लिये विदा ! नमस्कार !
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