नाशिक से भीमाशंकर की ओर
मित्रों ! आज 24 जनवरी हो चुकी है। हम गुड़गांव से 18 जनवरी 2020 सुबह विस्तारा एयरलाइंस से हैदराबाद एयरपोर्ट और फ़िर वहां से तुरन्त श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिये आंध्र प्रदेश में श्रीशैलम पहुंचे थे।
- हमारी हैदराबाद यात्रा का पहला दिन – मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हैदराबाद यात्रा का दूसरा दिन – चार मीनार आदि
- सालारजंग म्यूज़ियम – अद्भुत कलाकृतियों का संग्रहालय
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – औरंगाबाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन, भद्र मारुति मंदिर व बीबी का मकबरा
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – औरंगाबाद – एलोरा गुफाएं
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – बिना दरवाज़े और ताले वाला अद्भुत शनि शिंगणापुर
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – शिरडी का कण – कण साईं बाबा के निमित्त है।
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – गोदावरी के तट पर बसा नासिक और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – गोदावरी के पंचवटी तट पर एक शाम
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – लोनावला, खंडाला, एकविरा मंदिर, कार्ला गुफाएं, लॉयन प्वाइंट
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – श्री सिद्धि विनायक मंदिर मुम्बई और दिल्ली वापसी
अगले दिन वापिस हैदराबाद आकर अगले दो दिन लोकल साइट सीइंग की! 21 जनवरी को सुबह ट्रेन से औरंगाबाद पहुंचे जहां पर श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये तथा एलोरा, बीबी का मकबरा जैसे अन्य स्थानीय आकर्षण भी देखे। 22 जनवरी की सुबह औरंगाबाद से चल कर शनि शिंगणापुर होते हुए शिरडी पहुंच गये! शिरडी से अगले दिन 23 जनवरी को नाशिक पहुंचे और श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये। आज 24 जनवरी की सुबह 8 बजे नाशिक में अपने होटल से नाश्ता करके अपने अगले लक्ष्य – श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की ओर बढ़ चले हैं! आज की हमारी कुल यात्रा 320 किमी की होने वाली है। यानि, नाशिक से भीमाशंकर 201 किमी, और फिर भीमाशंकर से लोनावला 119 किमी !
अभी फिलहाल हम नाशिक – पुणे राजमार्ग पर हैं पर कुछ किमी के बाद हम इस ’हेमामालिनी के गाल’ जैसे स्मूथ और सिल्की राजमार्ग का मोह त्याग कर ओमपुरी के गाल जैसा भीमाशंकर मार्ग पकड़ लेंगे जो हमें वन्य, ग्रामीण व पहाड़ी इलाके से भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग तक पहुंचायेगा!
भीमाशंकर वाली सड़क पर कई किमी तक सह्याद्रि पर्वत की ऊंचाई नापने के बाद अब ढलान शुरु हो गया है। यानि, हम भीमाशंकर पहुंचने ही वाले हैं।
हमारी वैन के ड्राइवर महोदय हम सब को दिलासा दे रहे हैं कि मंदिर तक पहुंचने के लिये 230 पैड़ियां अवश्य उतरनी पड़ेंगी पर हमें पता भी नहीं चलेगा! इन पैड़ियों के साथ – साथ पूरे रास्ते में बाज़ार लगा हुआ मिलेगा जहां पर प्रसाद का सामान, मिल्क केक, स्वीट कॉर्न, चाय – कॉफी, मालाएं आदि मिलती रहेंगी। हमें इन सीढ़ियों पर ये सब दुकानें तो मिली हीं, पर इनके अलावा कई सारी दुकानें जंगली जड़ी – बूटियों की भी मिलीं जिनमें हर एक जड़ी / बूटी / बीज आदि पर उसका नाम व किस बीमारी में सेवन की जानी चाहिये – ये जानकारी दी गयी थी। ये जड़ी बूटी कितनी असली हैं, और कितनी प्रभावी हैं – यह तो भगवान ही जानें !
भीमाशंकर में ही है भीमा नदी का उद्गम
सीढ़ियां उतरते उतरते हमें अपने बाईं ओर एक बोर्ड भी लगा हुआ दिखाई दिया – भीमा नदी का उद्गम स्थल ! पर हम रेलिंग फलांग कर यह उद्गम स्थल देखने नहीं जा सके। संभवतः वहां तक पहुंचने का रास्ता कहीं और से है। वैसे भीमा नदी यहां से आरंभ होकर दक्षिण पूर्व दिशा में बहते हुए महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना राज्य की प्यास बुझाते हुए रायचूर जिले में कृष्णा नदी में समाहित हो जाती है। पंढरपुर में इस नदी को चन्द्रभागा के नाम से जाना जाता है क्योंकि वहां इसका आकार अर्द्ध चन्द्रमा जैसा हो जाता है।
भीमाशंकर मंदिर का महात्म्य
शिव पुराण के अनुसार भगवान राम के हाथों कुंभकर्ण के वध के तुरन्त पश्चात् कुंभकर्ण के पुत्र भीम का जन्म हुआ था। जब बड़े होने पर उसे राम के हाथों अपने पिता के वध का ज्ञान हुआ तो वह राम से बदला लेने के लिये व्याकुल हो गया। कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे “विजयी भव” वरदान दे दिया था तो बस, फ़िर तो वह आतंक का पर्याय बन गया था। भगवान शिव ने देवताओं के अनुरोध पर भीमा नाम के इस असुर से युद्ध किया और उसका वध कर दिया। फिर देवताओं के अनुरोध पर ही वह भीमाशंकर नाम से यहां सह्याद्रि पर्वत पर अवस्थित हो गये।
भीमाशंकर मंदिर की स्थिति
कई किलोमीटर तक ढलान वाले पहाड़ी मार्ग पर चलने और फिर उसके बाद मंदिर के लिये 320 सीढ़ियां उतरने के बावजूद हम समुद्र तट से 3250 फीट की ऊंचाई पर थे। वास्तव में भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग सह्याद्रि पर्वत की एक उपत्यका पर खेड तालुका में स्थित है। यहां पक्षी अभयारण्य भी है और बहुत सारे लोग यहां पर पैदल ट्रेक करते हुए आते हैं। यहां से पुणे 110 किमी दूर है। घोड़गांव और शिनोली कस्बे हमें रास्ते में मिले थे।
मंदिर के बाहर पहुंचे तो जूते – चप्पल के लिये रैक लगे हुए थे। प्राचीन नागर स्थापत्य कला से सुसज्जित काले पत्थर का मंदिर अन्ततः हमारे सामने मौजूद था। भीड़ भी बहुत अधिक नहीं थी। आराम से हम रेलिंग से होते हुए मंदिर के विशाल मंडप में और अन्ततः गर्भ गृह में जा पहुंचे। इस मंदिर का शिखर बहुत कलात्मक है और इसका निर्माण नाना फड़नवीस ने 18वीं सदी में कराया था। जब हम पहुंचे तो इस मंदिर का जीर्णोद्धार चल रहा था और इसीलिये मंदिर के शिखर तक लोहे के पाइपों का ढांचा खड़ा किया हुआ था जिस पर मज़दूर / कारीगर आदि चढ़ कर मंदिर के शिखर तक मरम्मत आदि का कार्य संभालते हैं। हमारे देखते – देखते श्रद्धालुओं का एक जत्था ढोल और मृदंग लिये हुए भजन गाते हुए वहां आ पहुंचा। पंक्तिबद्ध होकर बैठ कर बहुत मधुर स्वर में उनका भजन – कीर्तन मन को बहुत भा रहा था। मंदिर में चित्र लेने की मनाही है पर कुछ लोग मोबाइल से चित्र ले रहे थे। खैर, मैने मंडप के अन्दर पहुंच कर कोई चित्र लेना उचित नहीं समझा!
दर्शन के बाद हम पुनः 230 सीढ़ियां चढ़ते समय कभी मिल्क केक तो कभी स्वीट कॉर्न खाते हुए ऊपर पार्किंग तक पहुंच गये। दोनों ही आइटम बहुत स्वादिष्ट लगे। हर दुकान पर मिल्क केक की बहुत सारी वैरायटी मिलती हैं जिनके अलग – अलग रेट हैं! मिठाई की हर पांच सात दुकान के बाद एक दुकान स्वीट कॉर्न की थी। गर्मागर्म भुट्टों से दाने अलग करने और उन पर नमक – मिर्च – मसाला – नींबू आदि लगाने का कार्य परिवार के विभिन्न सदस्य करते हुए दिखाई दे रहे थे।
लोनावला – खंडाला के लिये प्रस्थान
दोपहर के दो बजे थे अर्थात् लंच का समय! पार्किंग के निकट एक दुकान से हम सबने एक – एक बटाटा वडा पैक कराया और अपनी वैन में बैठ कर मस्ती में खाते हुए अपने अगले गंतव्य – लोनावला / खंडाला की ओर चल पड़े !
पुणे – मुंबई के पुराने हाइवे पर स्थित होटल The Five Elements में हमारी दो रातों के लिये बुकिंग थी। नया एक्सप्रेस वे और पुराना हाईवे लोनावला में एक दूसरे से मिलते हैं। हम भीमाशंकर से आते समय उर्से तालेगांव रोड से आये थे और तालेगांव टोल प्लाज़ा से पहले एक्सप्रेस वे पर चढ़ गये। लोनावला में उतर कर पुराने हाइवे पर स्थित अपने होटल में शाम को छः बजे के लगभग पहुंच गये!
आज की कहानी बस इतनी ही ! लोनावला में दो रात और एक पूरा दिन हमें उपलब्ध था, उसका उपयोग हमने कैसे किया, ये किस्सा अगले अंक में ! आप ने इस यात्रा में हमारा साथ निभाया, इसके लिये आपका हार्दिक आभार।