ताज की नगरी आगरा के निवासी रितेश गुप्ता एक बेहतरीन घुमक्कड़ तो हैं ही, एक बहुत सुलझे हुए, मृदुभाषी और सहयोगपूर्ण इंसान भी हैं जो वर्ष 2015 से ’घुमक्कड़ी दिल से’ नामक फेसबुक ग्रुप को पूर्णतः समर्पित हैं। हमने उनसे उनके जीवन, कैरियर, परिवार, अभिरुचियों और घुमक्कड़ी को लेकर विस्तार से बातचीत की , जो हम अपने सुधी पाठकों के लिये यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि हमें जितना आनन्द उनके साथ बातचीत करने में आया, उतना ही आनन्द आपको इस बातचीत को पढ़ने में आयेगा।
संपादक – रितेश जी, कुछ अपने बारे में बताइये ना!
रि.गुप्ता – मेरा नाम – धाम तो आपको ज्ञात ही है – नाम रितेश गुप्ता, आगरा का निवासी हूं, 40 वर्ष का होने जा रहा हूं। एक अदद पत्नी और दो बच्चे हैं जो अभी छोटे हैं और स्कूल में पढ़ते हैं। इसके अलावा मेरे भाई और उनके परिवार हैं जो घुमक्कड़ी में अक्सर मेरा साथ देते हैं। सच तो ये है कि हम सब भाई सपरिवार घूमने निकलते हैं तो घुमक्कड़ी का आनन्द सौ गुना हो जाता है। पेशे से मैं एकाउंटेंट हूं और कंप्यूटर में भी बहुत रुचि रखता हूं।
संपादक – घुमक्कड़ी के क्षेत्र में आपका नाम लगभग दस वर्ष से तो सुनता आ रहा हूं। ये घुमक्कड़ी का शौक आपको विरासत में ही मिल गया था क्या? या ये शौक बाद में चर्राया है?
रि.गुप्ता – नहीं, घुमक्कड़ी विरासत में नहीं मिली है। जहां तक मुझे याद पड़ता है, बचपन में हम सब एक बार मां वैष्णों देवी के दर्शन के लिये गये थे। आगरा से जम्मू की रेल यात्रा, जम्मू से कटरा और फिर कटरा से दरबार तक की पैदल यात्रा मेरे बाल मन को कुछ ज्यादा ही भा गयी थी। रेलगाड़ी में ऊपर की बर्थ पर बैठ कर कागज़ की प्लेट में पूरी सब्ज़ी अचार का भोग लगाना, ट्रेन की खिड़की से पीछे की ओर भागते महसूस हो रहे वृक्ष, वृक्षों से आच्छादित सर्पिलाकार सड़कें, हर कदम पर जय माता दी का गगनभेदी उद्घोष, कभी पैदल तो कभी कंधे पर सवारी – सच! लौट कर घर आकर भी महीनों तक सब कुछ आंखों के आगे घूमता रहा, सब कुछ सपना जैसा महसूस होता रहा था। दोबारा कब घूमने कब जायेंगे, बस मन में हर समय यही खयाल आते थे ! अब ऐसे में घुमक्कड़ी का चस्का तो लगना ही था। इसमें मेरा क्या कुसूर है?
संपादक – ना जी ना, आपका कतई कोई कुसूर नहीं है! फिर दोबारा कब घूमने जाने को मिला?
रि.गुप्ता – अगली यात्रा तो कई साल बाद नसीब हुई पर हां, आगरा में रहते हुए भी मैं अपना घूमने का शौक विभिन्न पत्रिकाओं के ’पर्यटन विशेषांक’ पढ़ – पढ़ कर पूरा करता रहा था। इंटरनेट तो उन दिनों होता नहीं था, हां एटलस में भी मेरी रुचि काफी बढ़ गयी थी। नक्शों में आंखें गड़ाये रहता था, विभिन्न पर्यटन स्थलों की दूरी नापता रहता था ! संयोग देखिये कि अगली यात्रा भी मां वैष्णों देवी और पटनी टॉप ( काश्मीर) की ही तय हुई। इस बार मित्र मंडली साथ थी। फिर तो बस, घूमने फिरने का सिलसिला चल निकला। पहाड़ों का आकर्षण अपनी ओर खींचने लगा था सो अगली यात्रा नैनीताल को समर्पित की गयी।
संपादक – अब तक तो देश – विदेश में काफी कुछ देख लिया होगा?
रि.गुप्ता – विदेश यात्रा के नाम पर तो अभी तक सिर्फ नेपाल का ही दरवाज़ा खटखटाया है। वहां भी हम वीरगंज तक गये थे। पर अपना देश ही इतना सुन्दर और विशाल है कि एक जन्म में शायद ही इसे पूरी तरह से देखा – परखा जा सके। फिर भी, अभी तक जम्मू काश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उड़ीसा, गोवा, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेशों को और उनके मुख्य – मुख्य पर्यटन स्थलों को देखने का सुअवसर मिला है।
संपादक – लगभग पूरा भारत हो ही गया समझो !
रि. गुप्ता – नार्थ ईस्ट, महाराष्ट्र, केरल, तामिलनाडु और कर्नाटक जैसे बड़े – बड़े प्रदेश अभी देखने बाकी हैं। देखिये इनका नंबर कब लग पाता है।
संपादक – लगेगा, जल्द ही लगेगा। जब दिल में चाहत है तो यह चाहत जरूर पूरी होगी !
रि. गुप्ता – आपके मुंह में घी – शक्कर !
संपादक – वैसे आपको किस प्रकार के स्थान ज्यादा रुचिकर लगते हैं?
रि. गुप्ता – हमें तो हर चीज़ देखने में मज़ा आता है ! मन्दिर और तीर्थ भी, पुरातात्विक महत्व के भवन भी ! पर्वत और कन्दरायें भी और दूसरी ओर, दूर – दूर तक फैले हुए समुद्र तट भी। साहसिक पर्यटन भी पसन्द है और बाज़ार और मॉल भी ! रेगिस्तान से लेकर नख़लिस्तान तक कहीं भी घुमाने ले चलिये, हम खुशी – खुशी चल पड़ेंगे।
संपादक – धन्य हो प्रभु ! कुंभ के मेले में अक्सर बच्चे खो जाते हैं। आपके साथ तो ऐसा कभी नहीं हुआ ना?
रि. गुप्ता – खो गया होता तो फिर आपसे कैसे बतियाता ? दर असल मुझे भीड़ – भाड़ वाली जगह जाना कम ही पसन्द है। जहां भीड़ ज्यादा होती है, वहां गंदगी भी होती ही है। महंगाई भी चरम पर होती है।
संपादक – आप तो सच में ही बड़े समझदार निकले ! आप कैसे घूमना पसन्द करते हैं? परिवार के साथ, दोस्तों के साथ, अकेले या ऑफिस टूर ?
रि. गुप्ता – बस कुछ यूं समझ लीजिये कि अवसर वादी हूं। जैसा भी मौका हाथ लग जाये, लपक लेता हूं। पर हां, अकेले नहीं घूमता हूं। शुरुआत में तो जब भी जाते थे, तो परिवार के साथ ही जाते थे। अब मई 2015 से घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के रूप में एक विशाल परिवार मिल गया है।
संपादक – अरे हां, अपने इस घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप के बारे में भी कुछ बताइये !
रि. गुप्ता – भारत के भिन्न – भिन्न प्रदेशों और नगरों – गांवों – कस्बों में रहने वाले, अलग – अलग आजीविका से जुड़े हुए घुमक्कड़ – जिनको कल तक हम सिर्फ आभासी दुनिया के बाशिन्दों के रूप में नाम से ही जानते थे, जिनके लिखे हुए यात्रा संस्मरण पढ़ते रहते थे, आज घुमक्कड़ी दिल से नामक एक विशाल परिवार के घटक के रूप में एक दूसरे से दिल की गहराइयों से जुड़ चुके हैं। हम सब अपने सारे सुख – दुःख आपस में बांटते हैं, साथ – साथ घूमते हैं, साथ – साथ खाते – पीते हैं। हम सब के सुख – दुःख अब साझा हैं। अगर हम में से कोई भी एक तकलीफ़ में हो तो बाकी सारे के सारे उसकी सहायता करने को दौड़ पड़ते हैं। साल में कम से कम एक बार देश के किसी एक हिस्से में महामिलन का आयोजन करते हैं जिसमें अधिकांश सदस्य सपरिवार शामिल होने का प्रयास करते हैं। वर्ष 2016 में पहला महामिलन मध्य प्रदेश के ओरछा नामक ऐतिहासिक स्थान पर सम्पन्न हुआ जिसमें देश के संभवतः 14 राज्यों का प्रतिनिधित्व हो गया। 2017 में उत्तराखंड में रांसी में महामिलन का आयोजन किया गया तो वर्ष 2018 में राजस्थान के जोधपुर और जैसलमेर में हम सब साथ – साथ घूमे। इन आयोजनों में शामिल होने के लिये हर किसी के मन में उत्कंठा रहती है। कोई हवाई जहाज से पहुंचता है तो कोई ट्रेन से, कोई बस से तो कोई कार या मोटरसाइकिल से आ पहुंचता है। महामिलन के आयोजन पर जितना भी खर्च होता है, उसे सभी सदस्य आपस में बांट लेते हैं। एक महामिलन संपन्न नहीं होता कि अगले आयोजन को लेकर चर्चाएं आरंभ हो जाती हैं।
संपादक – वास्तव में अद्भुत दृश्य उपस्थित हो जाता होगा ऐसे अवसरों पर !
रि. गुप्ता – आश्चर्य की बात तो ये है कि हमारे ग्रुप में कुछ महिला सदस्य भी हैं । वास्तव में हमारे ग्रुप को एक परिवार जैसा अनुभव कराने में इन महिला सदस्यों का ही मुख्य योगदान है। कोई सब सदस्यों की बुआ बन बैठी है तो कोई दीदी तो कोई बेटी तो कोई पुत्रवधु! कोई दाल बाटी चूरमा बनाने के तरीके सिखाती है तो कोई लिट्टी चोखा की दीवानी है!
संपादक – सच में ही, सब कुछ अविश्वसनीय सा लग रहा है! ये सब मेल मुलाकात और बातचीत कैसे संभव हो पाती है?
रि.गुप्ता – व्हाट्सएप जिन्दाबाद ! वैसे तो फेसबुक पर भी हमारे 20,000 से अधिक सदस्य हो चुके हैं पर उनमें से अधिकांश पाठक हैं। व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल सभी सदस्य सक्रिय सदस्य हैं जो निरंतर एक दूसरे के संपर्क में बने रहते हैं और अन्य लोगों की सहायता को सदैव तत्पर रहते हैं।
संपादक – चलिये, वापिस आपके पर्सनल परिवार की बात करें ! आपकी घुमक्कड़ी को आपका परिवार प्रोत्साहित करता है या हतोत्साहित करता है?
रि. गुप्ता – दोनों में से कोई भी बात नहीं है। एकाउंटेंट हूं सो अपने परिवार – आजीविका और घुमक्कड़ी में सामंजस्य बैठाना जानता हूं। अपने विवेक के अनुसार निर्णय लेता हूं।
संपादक – वाह, क्या बात है! वैसे आप अपनी घुमक्कड़ी करते कैसे हैं? अपने वाहन से या पब्लिक ट्रांस्पोर्ट का उपयोग करते हैं?
रि.गुप्ता – मेरे पूरे परिवार को और मुझे, छुक – छुक रेलगाड़ी यानि भारतीय रेल की यात्रा सबसे अधिक आरामदायक और रुचिकर लगती है। जहां ट्रेन नहीं ले कर जा सकती वहां के लिये टैक्सी कर लेते हैं। अगर अपनी गाड़ी लेकर जायें तो भी ड्राइवर का प्रबन्ध कर के चलते हैं। टैक्सी से सबसे लंबी यात्रा नोएडा से मनाली की ही की है।
संपादक – आपकी सबसे यादगार यात्रा कौन सी रही है?
रि. गुप्ता – वैसे तो हमारी सभी यात्राएं यादगार रही हैं, पर फिर भी किसी एक यात्रा के बारे में बात करूं तो काश्मीर यात्रा यादगार यात्रा रही है जिसमें हम चारों भाइयों के परिवार और एक मित्र का परिवार शामिल थे। ऊधमपुर से हम लोग पहलगांव, श्रीनगर, सोनमर्ग और गुलमर्ग गये थे। खूब एंज्वाय किया था।
संपादक – क्या आपको ट्रेकिंग भी पसन्द है?
रि. गुप्ता – नहीं, मैं खुद को ट्रेकर नहीं मानता। दो-तीन किमी पैदल यात्रा को ट्रेकिंग कहा भी नहीं जाता। सबसे लंबी दूरी की ट्रेकिंग 5 किमी की ही की है जो रांसी से सनियारा बुग्याल के लिये थी।
संपादक – आप अपने यात्रा संस्मरण लिखते भी तो हैं ना?
रि. गुप्ता – जी, सफ़र है सुहाना नाम से मेरा एक व्यक्तिगत ब्लॉग है (www.safarhaisuhana.com) । समय निकाल कर उस पर अपनी यात्राओं का सचित्र विवरण देने की चेष्टा करता रहता हूं। यात्रा से लौटते ही लिखने बैठूं ऐसा तो नहीं हो पाता। कई ट्रिप ऐसी हैं जिनके बारे में अभी लिखा नहीं है। इसके अलावा फ़ेसबुक पर घुमक्कड़ी दिल से ग्रुप पर भी यात्रा संस्मरण लिखता हूं।
संपादक – आप की यात्रा की शैली क्या रहती है? बैक पैकर? लक्ज़री या मध्यमार्गी ?
रि. गुप्ता – मध्यमार्गी ही कहना चाहिये ! जब साथ में पत्नी और बच्चे भी हों तो बैक पैकर होना संभव नहीं। हम लक्ज़री में भी विश्वास नहीं रखते। रेल यात्रा का आरक्षण करा कर चलते हैं। कहां खाना है, कहां रात्रि को विश्राम करना है, यह निश्चित नहीं रहता। जहां जाते हैं, वहां पहुंच कर ही ढूंढ लेते हैं। अभी तक तो किसी असुविधा का सामना नहीं करना पड़ा।
संपादक – कभी भाषा को लेकर संवाद की समस्या भी आई है क्या? खास कर दक्षिण भारत में ?
रि. गुप्ता – मुझे लगता है कि हिन्दी न जानने वाला शायद ही हमारे देश में कोई बाकी हो ! अगर हम हिन्दी और अंग्रेज़ी बोल / समझ लेते हैं तो समस्या का कोई कारण नहीं है। उड़ीसा में एक स्थान पर ऐसी स्थिति जरूर आई थी पर हमारे स्थानीय रिश्तेदार साथ थे सो कोई दिक्कत नहीं हुई।
संपादक – वर्ष में आपके कितने टूर बन जाते हैं? दूसरे शब्दों में कहूं तो कितने – कितने दिन के बाद घुमक्कड़ी का कीड़ा कुलबुलाना शुरु कर देता है? ( खी – खी – खी !!! )
रि. गुप्ता – वर्ष में दो या तीन टूर तो बन ही जाते हैं! एक टूर अधिकतम ७ दिन का ही रखते हैं।
संपादक – यात्रा के दौरान प्रति व्यक्ति औसतन कितना बजट उचित मानते हैं?
रि. गुप्ता – ह्म्म्म ! परिवार के साथ जायें तो प्रति व्यक्ति चार से पांच हज़ार बैठ जाता है। बड़ा ग्रुप लेकर जायें तो ३ से ४ हज़ार भी काफी रहते हैं।
संपादक – क्या आपने घुमक्कड़ी के लिये कुछ लक्ष्य भी निर्धारित किये हुए हैं? जैसे – सारे ज्योतिर्लिंग के दर्शन या चारों धाम के दर्शन आदि ।
रि. गुप्ता – नहीं ऐसा कोई लक्ष्य लेकर नहीं चल रहे हैं। जहां का भी कार्यक्रम बन पाये, निकल पड़ो – यही हमारा नारा है। वैसे पहाड़ों की ओर रुख करना ज्यादा प्रिय है।
संपादक – घुमक्कड़ी आपको क्या – क्या देती है?
रि. गुप्ता – घुमक्कड़ी हम लोगों को दुनिया के रंग दिखाती है। अपने देश की अलग – अलग परम्परा, वेशभूषा और खानपान से परिचय करवाती है ।मुख्यत घुमक्कड़ी की यांदे दिल में बस जाती है जिन्हें कभी-कभी अपने ब्लॉग के रूप में उतार देता हूँ ।
संपादक – घुमक्कड़ी के दौरान किस प्रकार का व्यवहार आपको दुःखी या क्षुब्ध कर देता है?
रि. गुप्ता – व्यवहार में रुखापन या असभ्य भाषा तो हर किसी को बुरी लगती है, सो मैं भी उसका अपवाद नहीं हूं। कुछ लोग प्रवासियों को जहां तक हो सके, उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर लूटने की ख्वाहिश रखते हैं, ऐसे लोग भी पसन्द नहीं आते। दूसरी ओर, बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी मिलते हैं जो बहुत प्यार से, अपने पन से बात करते हैं, सहायता और सहयोग को इच्छुक रहते हैं। मांगी गयी जानकारी बड़े आराम से प्रदान करते हैं।
इस दृष्टि से देखूं तो मुझे काश्मीर और सिक्किम से फर्क साफ़ नज़र आता है। काश्मीर के लोगों का स्वभाव अक्सर अच्छा नहीं मिला है।
संपादक – अन्य कोई बात / संदेश जो आप घुमक्कड़ी के शौकीन लोगों को देना चाहेंगे?
रि. गुप्ता – अपने घुमक्कड़ साथियों से कहने के लिए मेरे पास ज्यादा कुछ नहीं है। फिर भी कहना चाहूँगा की घुमक्कड़ लेखक अपने अनुभव, ज्ञान और अपने सोच के आधार पर लेख लिखते हैं और अक्सर भविष्य में जाने वाले व्यक्तियों के लिये उपयोगी जानकारी देने का भरसक प्रयास करते हैं। यदि आप ऐसे लेख पढ़ते हैं और आपको पसंद आते हैं तो उनको अपने कमेंट देकर प्रोत्साहित अवश्य करें ताकि उनका आगे भविष्य में भी लिखने का उत्साह बदस्तूर कायम रहे। यदि लेख अच्छा न लगे तो भी मर्यादित और शालीन भाषा में आलोचना करें। यदि आप खुद लिख रहे हैं तो अपने लेख में अपने खींचे हुए चित्र ही लगायें। यदि किसी अन्य व्यक्ति के चित्रों का उपयोग कर रहे हैं तो उनका नाम धन्यवाद सहित अवश्य दें। अपने लेख में किसी ऐसे विषय वस्तु / चित्र का प्रयोग न करे जिससे किसी की धार्मिक भावनाओं को और मन को ठेस पहुचती हो । मैं तो चाहता हूँ कि आप खूब घूमने जाएं और घूमने के बाद यहाँ पर हम सब के साथ अपनी यात्रा की कहानी और अनुभव जरुर बाँटें ।
दूसरा, आप जिस स्थल की यात्रा पर हो वहां के नियम – कानून और प्रकृति का सम्मान जरुर करें। कोई ऐसा कार्य न करे जिससे वहां के प्रशासन या स्थानीय नागरिको को कष्ट पहुचे । गंदगी न फैलाये और ऐतिहासिक ईमारतो पर लेखन और तोड़-फोड़ बिल्कुल भी न करे । यदि आप प्रकृति का सम्मान करेंगे तो प्रकृति भी आपको अपने तरीके से पुरस्कृत करेगी । घुमक्कड़ी हमें ज्ञानवान और विवेकशील व्यक्ति बनने में बहुत मदद करती है, हमें एक बेहतर इंसान बनाती है।
तो फिर व्यस्त दिनचर्या में समय निकालिए और निकल पड़िये एक नई घुमक्कड़ी दुनिया को देखने के लिए ।
संपादक – बहुत – बहुत धन्यवाद रितेश गुप्ता ! आपसे बात करते हुए बहुत मज़ा आया। कहा जा सकता है कि ’निर्मल आनन्द’ की प्राप्ति हुई । जैसा आपके बारे में सुना था, सोचा था, आप उससे भी बेहतर अनुभव हुए। आपके स्वभाव की शालीनता और मधुरता बरबस अपनी ओर खींचती है। आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभ कामनाएं ! आपके व्हाट्स एप ग्रुप के परिवार को भी हार्दिक शुभ कामनाएं। आपकी घुमक्कड़ी यूं ही चलती रहे। आपसे फिर जल्दी ही मुलाकात होगी, यह आशा है।
रि. गुप्ता – जी, आपका हार्दिक धन्यवाद ।
वाह! आपने बहुत शानदार साक्षात्कार लिया है। औऱ रितेश जी ने भी खूबसूरती से अपना अनुभव प्रस्तुत किये।
आप दोनों को बहुत बहुत धन्यवाद 👌💐
प्रिय अभिषेक, सबसे पहला कमेंट करने का अवार्ड आपके नाम ! हार्दिक आभार।
वाह रितेश जी के बारे में पढ़कर आनंद आ गया । घुमक्कड़ तो बेहतरीन है, ही और शानदार व्यक्तित्व के मालिक भी है । आदरणीय संपादक जी का भी धन्यवाद जिनकी वजह से हम ये सब जान पाए ।
धन्यावाद पाण्डेय जी आपका दिल से
प्रिय मुकेश जी, अब मेरा टेलिस्कोप आपकी ओर घूम रहा है। तैयार रहिये ! 🙂 😉 😀
वाह रितेश जी आपकी घुम्मकड़ी की सच बताऊं तो मेरे से यकीन मानिए 💯 फीसदी मिलती जुलती है। शायद़ मुझे घुम्मकड़ी का शौक ऐसे ही लग गया। इस प्रश्नोत्तर में आपने बहुत तन्मयता से जवाबदेही की है। शानदार। ‘घुम्मकड़ी दिल से’ मिलेंगे अवश्य ही। 🙏 🙏 🌹 🌹
प्रिय सुनील मित्तल,
आपका आभार कि रितेश गुप्ता के साक्षात्कार के बहाने ही सही, आपका इस साइट पर आगमन तो हुआ। आपने न केवल पूरा साक्षात्कार पढ़ा बल्कि कमेंट भी छोड़ा। अब आते रहें, पढ़ते रहें, लिखते रहेंगे तो अच्छा लगेगा। अभी आपको और भी इंटरव्यू पढ़ने को मिलेंगे, ऐसा मेरा प्रयास रहेगा।
सादर,
सुशान्त सिंहल
रितेश को काफी सालो से जानती हूं जितना जानती हूं उससे ज्यादा ही मुझे प्यार और सम्मान मिला भी हैं। घुमक्कड़ी का शोक ओर ब्लॉग लेखन से ही मेरा नाता रितेश से जुड़ा था , तब पता नही था कि भविष्य में कभी मिलेंगे भी☺️ लेकिन ” घुमक्कड़ी दिल से” ग्रुप के कारण आज हम आपस मे मिले भी ओर हमने अपनी पहचान भी बनाई।
एक सशक्त साक्षतकार द्वारा काफी कुछ रितेश के बारे में जानने का मौका मिला । लेखक को भी अपने श्रेष्ठ संयोजन के लिए बधाई।
धन्यवाद सर जी … आपने साथ साक्षात्कार का मौका देने के लिए, आशा करता हूँ की आपके प्रश्नों के सही से जबाब दिए होगे … बाकि आपके सवाल और अन्य साक्षत्कारो से भिन्न ही रहे….अच्छा लगा आपसे बात करके ……… आपका फिर आभार दिल से…
आपसे बातचीत यूं तो हमेशा ही सुखद होती है, पर जब अपनी इस साइट के लिये की तो आपकी बातों पर काफी गौर फ़रमाया गया था और उसी से जानकारी मिली कि आप तो बहुत ही अच्छे इन्सान हैं। हमारे पाठकों के लिये आपने समय निकाला, इसके लिये आपका आभार।
रितेश को काफी सालो से जानती हूं जितना जानती हूं उससे ज्यादा ही मुझे प्यार और सम्मान मिला भी हैं। घुमक्कड़ी का शोक ओर ब्लॉग लेखन से ही मेरा नाता रितेश से जुड़ा था , तब पता नही था कि भविष्य में कभी मिलेंगे भी☺ लेकिन ” घुमक्कड़ी दिल से” ग्रुप के कारण आज हम आपस मे मिले भी ओर हमने अपनी पहचान भी बनाई।
एक सशक्त साक्षतकार द्वारा काफी कुछ रितेश के बारे में जानने का मौका मिला । लेखक को भी अपने श्रेष्ठ संयोजन के लिए बधाई।
अगर बड्डे बड्डे लोगों का इंटरव्यू करें तो बड्डी बड्डी महिलाएं भी कमेंट करने के लिये चली आती हैं ! 😉 थैंक यू दर्शन कौर बुआ! आप भी तैयार रहियेगा किसी दिन डायरी – पैन और कैमरा लेकर टपक पड़ूंगा आपके दर पर भी !
पढ़कर अच्छा लगा ।
इससे भी ज्यादा अच्छा आपका प्रस्तुतिकरण है ।
हार्दिक बधाई मित्र ।
प्रिय कश्मीर सिंह जी, आपका इस साइट पर आगमन हुआ और मैं सोता रह गया! कैसा दुर्भाग्य है मेरा! बल्कि इसे दुर्भाग्य नहीं, बल्कि लापरवाही ही कहना ज्यादा उचित है।
आपका प्यारा सा कमेंट सिर आंखों पर !
सादर,
सुशान्त सिंहल
बहुत ही सुन्दर लगा इंटरव्यू.
बातचीत में सरसता बनी रही.
प्रिय अंशुमान, आपके प्यारे से कमेंट हेतु हार्दिक धन्यवाद। कृपय आते रहें, पढ़ते रहें और लिखते भी रहें।
सुशान्त सिंहल
पहले तो मैं इसका नाम दूंगा साक्षात्कार दिल से।
इस साक्षात्कार में जो भी प्रश्न पूछे गए हैं बिल्कुल दिल की गहराइयों से उनमें शब्दों का संयोजन हुआ है और उसके बाद जो जवाब दिए गए हैं वो तो और भी गहराइयों में उतरकर एक-एक शब्दों को मोती की तरह चुनकर जवाब दिया गया है। बहुत ही बढि़या साक्षात्कार। आपके घुमक्कड़ जीवन से हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है और मिलता रहेगा। आप सदा घूमते रहें और ब्लाॅग पर लिखते रहें। मैं एक बार गूगल पर सर्च कर रहा था कि गंगोत्री कैसे जाएं तो एक ब्लाॅग दिखा था सफर है सुहाना तब हमने उसे पढ़ा था और वो एक गेस्ट पोस्ट था। फिर बाद में हम उस लिंक को सेव नहीं कर पाए और भूल गए फिर कई दिनों की मेहनत के बाद वो पोस्ट मुझे दिखा था और उसके कुछ दिनों बाद सीधा आपसे ही संवाद होने लगा फिर मुलाकात भी हुई और मुलाकातों का ये सिलसिला आगे बढ़ता गया और ये मुलाकातें तो अब होती रहेगी और होती रहेगी।
वो बात मुझे भी बहुत अखरती है कि जब किसी अनजान परदेशी को देखकर वहां के स्थानीय लोग बस उसे ठगने की फिराक में लग जाते हैं। ऐसे अनुभव से कई बार सामना हुआ है और जब उसी प्रदेश में एक अनजान समझकर दूसरा व्यक्ति मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाता है तो मन में खुशियों की तरंगे उठने लगती है। और उस व्यक्ति की यादें सदा-सदा के लिए दिल-दिमाग में बैठ जाती है और उसके चर्चे घर में भी होने लगते हैं और उसकी अच्छाइयों का गुणगान करके उसके लिए ईश्वर से उसके सुखी जीवन के लिए मन्नतें भी मांग ली जाती हैं।
प्रिय अभय,
आज कई दिन बाद इस साइट पर आना हुआ। देखा कि कुछ कमेंट्स बिना एप्रूव हुए पड़े हैं तो बड़ी शर्मिन्दगी हुई। आप यदि इतनी मेहनत से साक्षात्कार पर इतना विस्तृत कमेंट लिखें और वह अप्रूव होने में दो माह ले ले तो फिर तो हद्द ही है।
आप बढ़िया तो लिखते ही हैं। इस साइट पर आये, लिखा तो बहुत अच्छा लगा। कृपया आते रहें, लिखते रहें।
सस्नेह,
सुशान्त सिंहल
सबसे पहले शुभकामनाओं के लिए 💖 से धन्यवाद । दूसरा संपादक महोदय को भाई रितेश से मिलवाने के लिए आभार और तीसरा औऱ अंततः हमारे “घुमक्कड़ी दिल से” परिवार से लोगों का परिचय करवाने के लिए साधुवाद ।
जय सिया राम 🙏
प्रिय संजय कौशिक,
कहां थे बन्धु अब तक? आपकी प्रतीक्षा में तो हम पलक-पांवड़े बिछाये हुए जाने कब से बैठे थे! इतनी इंतज़ार न कराया करें! 🙂 चलिये, देर आयद, दुरुस्त आयद! आपके बहुत सारे धन्यवाद और आभार के लिये हमारी ओर से भी धन्यवाद।
सादर सस्नेह,
सुशान्त सिंहल
Beautiful interview… you could extract maximum from Ritesh bhai. I know him from Ghumakkar days and knew him to be very cooperative soft spoken but strong willed person.
Good wishes to him
आदरणीय तिवारी जी, आपका कमेंट पाकर हृदय गद्गद हो गया। आपका हार्दिक आभार। कृपया इस ब्लॉग पर अपना स्नेहाशीष बनाये रखें।
सादर,
सुशान्त सिंहल
शानदार व्यक्तित्व के मालिक है आप जनाब
बिल्कुल सही कहा आपने विकाश! रितेश भाई के बारे में हर किसी का यही विचार है।