- हमारी हैदराबाद यात्रा का पहला दिन – मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हैदराबाद यात्रा का दूसरा दिन – चार मीनार आदि
- सालारजंग म्यूज़ियम – अद्भुत कलाकृतियों का संग्रहालय
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – औरंगाबाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन, भद्र मारुति मंदिर व बीबी का मकबरा
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – औरंगाबाद – एलोरा गुफाएं
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – बिना दरवाज़े और ताले वाला अद्भुत शनि शिंगणापुर
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – शिरडी का कण – कण साईं बाबा के निमित्त है।
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – गोदावरी के तट पर बसा नासिक और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – गोदावरी के पंचवटी तट पर एक शाम
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग दर्शन
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – लोनावला, खंडाला, एकविरा मंदिर, कार्ला गुफाएं, लॉयन प्वाइंट
- हमारी महाराष्ट्र यात्रा – श्री सिद्धि विनायक मंदिर मुम्बई और दिल्ली वापसी
आज 23 जनवरी 2020 हो गयी है। चार ज्योतिर्लिंग के दर्शन का संकल्प लेकर हम दिल्ली से 18 जनवरी की सुबह निकले थे। अभी तक हम श्रीशैलम (आंध्र प्रदेश) में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग और औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर चुके हैं। इन दो ज्योतिर्लिंग के अलावा कल हमने शनि शिंगणापुर में श्री शनैश्वर देवस्थान तथा शिरडी में साईं बाबा के समाधि मंदिर के भी दर्शन कर लिये हैं।
अब हमारी वैन हम 9 यात्रियों को लेकर शिरडी से नाशिक की ओर 90 किमी की यात्रा पर आगे बढ़ चली है। मेरे सहयात्री अरोड़ा जी ने ड्राइवर महोदय को अपने मनपसन्द भजनों की एक पैनड्राइव दे रखी है जो सफ़र के दौरान चलती रहती है। महिलाएं आपस में बातचीत में व्यस्त हैं। मैं अपने मोबाइल पर नासिक के बारे में जानने के लिये विकीपीडिया खोले बैठा हूं और अपने इस गंतव्य स्थल के बारे में बहुत सारी नई नई जानकारी पढ़ कर चमत्कृत हो रहा हूं।
नाशिक बनाम नासिक
नाशिक की दो स्पेलिंग लोकप्रिय हैं। कुछ लोग इसे नासिक Nasik) कहते हैं और कुछ लोगों के लिये यह नाशिक (Nashik) है। मुझे नाशिक वाली स्पेलिंग पसन्द आई है और मैं उसका ही उपयोग कर रहा हूं। मुझे लगता है कि स्पेलिंग का ये अन्तर हिन्दी और मराठी भाषाओं के कारण है।
नाशिक में प्रमुख औद्योगिक इकाइयां Major Industrial Activity in Nashik
भारतीय वायुसेना के लिये युद्धक विमान Fighter Planes for Indian Air Force:
सबसे अधिक रोमांचक जानकारी जो मुझे नाशिक के बारे में मिली है वह ये कि यहां पर हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) की इकाई है जिस में भारतीय वायुसेना के लिये मिग व सुखोई विमान बनते हैं! Wow!
नाशिक में जो एयरपोर्ट है उसका मालिक भी HAL ही है और वही उसकी देख रेख करता है और अधिकतम उपयोग करता है। यह स्वाभाविक भी है! जब यहां पर वायु सेना के लिये मिग और सुखोई युद्धक विमान बनेंगे तो उनके लिये एयरपोर्ट भी तो होना चाहिये।
सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस Security Printing Press:
नाशिक में भारत सरकार का सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस है। यहां पर करेंसी नोट छपते हैं व सिक्कों की ढलाई भी होती है। वास्तव में जितनी भी सिक्योरिटी प्रिंटिंग होती है – जैसे डाक टिकट, non-judicial stamp papers, चेक बुक, ड्राफ़्ट बुक आदि, वह सब सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस में ही होती है।
Wine Capital of India: मेरे पाठक मित्रों में से कुछ को यह जानकर नाशिक से बहुत लगाव हो जायेगा कि इस शहर को Wine Capital of India माना जाता है!! 🙂 सुना है हमारे देश में 46 बड़ी – बड़ी डिस्टिलरी हैं जिनमें से 23 डिस्टिलरी अकेले नाशिक में ही हैं। अगर नाशिक अंगूर की बेटी के लिये प्रसिद्ध है तो जरूर यहां पर अंगूर की खेती भी भरपूर मात्रा में होती होगी ! सच भी है, नाशिक में high quality अंगूर बहुत अधिक मात्रा में होता है। जिधर भी जाइये, अंगूर के बाग ही बाग मिलेंगे।
नाशिक का दूसरा प्रमुख कृषि उत्पाद प्याज है। अगर दिल्ली की मंडी तक नाशिक के प्याज से भरे हुए ट्रक न आयें तो पूरे उत्तर भारत में प्याज की कीमतों में भूचाल आ जाता है।
सिल्क की साड़ियां और ड्रेस मैटीरियल Silk Sarees & Dress Material:
महिला पाठकों को भी ये जानकर हार्दिक प्रसन्नता होगी कि पैठानी सिल्क की साड़ियों के लिये भी नाशिक बहुत प्रसिद्ध है। मुझे लगता है कि औरंगाबाद और नाशिक, दोनों ही सिल्क के वस्त्रों के निर्माण में बढ़ – चढ़ कर योगदान दे रहे हैं। औरंगाबाद से घृष्णेश्वर / एलोरा मार्ग पर भी हमें बहुत सारी औद्योगिक इकाइयां दिखाई दी थीं जिनमें सिल्क की साड़ियां बन रही थीं।
नाशिक का आध्यात्मिक पक्ष
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह तो आपको पता ही है कि हम त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिये ही नाशिक जा रहे हैं। शहर से 30 किमी दूर त्र्यंबक तहसील में ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है (यानि तीन नेत्रों वाले देवता)। आपने महामृत्युंजय मंत्र तो अवश्य ही सुना होगा –
ओ३म् त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम् !
उर्वारुकमिव बंधनात, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॥
हमारे ड्राइवर महोदय बता रहे हैं कि ज्योतिर्लिंग के रास्ते में एक पहाड़ी की तलहटी में माता अंजना देवी का प्राचीन मंदिर भी है। इसके अलावा उन्होंने मुक्तिधाम के नाम से एक नये अद्भुत मंदिर की जानकारी भी दी है जहां हम शाम को जायेंगे।
महाकुंभ मेला
नाशिक में पुण्यसलिला गोदावरी नदी के तट पर प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ का मेला भी भरता है। गोदावरी नदी का उद्गम भी नाशिक में ही कहीं है।
बीच – बीच में मैं मोबाइल से ध्यान हटा कर सड़क पर डालता हूं तो मुझे भगवा धारी पैदल तीर्थयात्रियों की टोलियां भी शिरडी की ओर बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। सब की टी-शर्ट पर साईं बाबा का चित्र व समाधि मंदिर छपे हुए हैं। जैसा कि अक्सर होता है विभिन्न शहरों में उत्साही युवा अपने मित्रों के साथ मित्र-मंडल का गठन कर लेते हैं और फिर ऐसी टोलियां लेकर अपने आराध्य देव के दर्शन हेतु पैदल ही निकला करते हैं।
अभी जब हमारी वैन एक फ्लाईओवर से होती हुई नाशिक शहर की ओर बढ़ रही थी तो मुझे नाशिक रोड रेलवे स्टेशन का बोर्ड लगा हुआ दिखाई दिया। नाशिक के रेलवे स्टेशन का नाम नाशिक रोड ही है। सेंट्रल रेलवे के भुसावल स्टेशन से जुड़ा हुआ ये रेलवे स्टेशन सन् 1866 से रेलयात्रियों की सेवा कर रहा है और भारत के व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक है। यहां हर रोज़ लगभग 300 यात्री गाड़ियां रुकती हैं और औसतन दो लाख सवारियां यहां से विभिन्न स्थानों के लिये ट्रेन पकड़ती हैं। स्वच्छता के हिसाब से भी नाशिक रोड रेलवे स्टेशन को 2016 में पुरस्कृत किया गया है। नासिक रोड रेलवे स्टेशन मुम्बई –नागपुर – हावड़ा / मुंबई – इलाहाबाद – कोलकाता / मुंबई – भोपाल – नई दिल्ली रेलमार्ग पर स्थित है। वैसे ये स्टेशन नाशिक शहर से लगभग 9 किमी दूर बैठता है।
होटल क्वालिटी इन रीजेंसी (Hotel Quality Inn Regency)
और ये रहा हमारा होटल जो शिरडी – नाशिक – पुणे हाईवे पर ही है। चेक इन के बाद हमारा सामान तीसरी मंजिल पर स्थित हमारे चार कमरों में पहुंचा दिया गया है। हम शिरडी के दैविक होटल से हैवी ब्रेकफास्ट (Buffet breakfast) लेकर निकले थे जिसे अभी दो घंटे भी नहीं हुए हैं। अतः हम बिना कुछ और खाये – पिये लगभग तुरन्त ही वापिस वैन में आकर बैठ गये हैं ताकि जल्द से जल्द त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुंच सकें।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर – संक्षिप्त परिचय
जैसा कि हम सभी जानते होंगे – भारत में 12 मंदिरों को ज्योतिर्लिंग माना जाता है। मुझे अब तक इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है –
राज्य | नगर | ज्योतिर्लिंग |
गुजरात | सोमनाथ | सोमनाथ मंदिर |
गुजरात | द्वारिका | नागेश्वर मंदिर |
महाराष्ट्र | सहयाद्रि पर्वत, निकट घोडेगांव | भीमाशंकर मंदिर |
महाराष्ट्र | औरंगाबाद | घृष्णेश्वर मंदिर |
महाराष्ट्र | नाशिक | त्र्यंबकेश्वर मंदिर |
आंध्र प्रदेश | श्री शैलम | मल्लिकार्जुन मंदिर |
उत्तर प्रदेश | वाराणसी | काशी विश्वनाथ मंदिर |
मध्य प्रदेश | उज्जैन | महाकालेश्वर मंदिर |
मध्य प्रदेश | ओंकारेश्वर | ओंकारेश्वर – ममलेश्वर |
नाशिक से 30 किमी की यात्रा पूरी करने में हमें लगभग 30 मिनट ही लगे होंगे। ड्राइवर महोदय ने गाड़ी पार्किंग में लगाई। बाहर आकर मैने इधर उधर गर्दन घुमाई तो लगा कि यहां तो हर दिशा में मंदिर ही हैं। एक पहाड़ी पर सफ़ेद रंग का विशाल मंदिर नज़र आ रहा था। वहीं बगल में एक और मंदिर पर विशाल त्रिशूल भी नज़र आया। विपरीत दिशा में गर्दन घुमाई तो दो पर्वत श्रंखलाएं और एक काले रंग का गुम्बद नज़र आया। ड्राइवर महोदय ने इसी काले गुम्बद की ओर इशारा करते हुए कहा कि त्र्यंबकेश्वर मंदिर सामने दिखाई दे रहा है। आप इस बाज़ार में से होते हुए सीधे मंदिर पर ही पहुंचेंगे। हम जूते – चप्पल गाड़ी में ही निकालने लगे तो ड्राइवर ने कहा कि मंदिर के बाहर जूते – चप्पल और कैमरे आदि जमा करने की अच्छी व्यवस्था है। जूते यहां मत निकालिये, बाज़ार में नंगे पांव चलने में दिक्कत हो जायेगी।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर अत्यन्त प्राचीन मंदिर है जिस का समय – समय पर जीर्णोद्धार / पुनर्निर्माण होता चला आया है। वर्तमान मंदिर का निर्माण पेशवा बालाजी बाजीराव (नाना फडनवीस) द्वारा कराया गया था ऐसा बताया जाता है। मंदिर परिसर में मौजूद कुशावर्त कुंड, जिसे अमृतवर्षिणी कुंड कहा जाता है, श्रीमंत रावसाहेब पर्नेरकर ने बनाया था। इस कुंड के बारे में किंवदन्ती चली आ रही है कि ये शिवजी की जटाओं में से निकली हुई गंगा की धारा ही है। इसी कारण इस कुंड को गोदावरी नदी का उद्गम भी माना जाता है।
हम सब मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचे तो वहां पता चला कि मंदिर में प्रवेश हेतु 200/- रुपये का कूपन खरीदना होता है। ओह! इसका अर्थ ये हुआ कि ये मंदिर उन गरीबों के लिये तो है ही नहीं जो 200/- का प्रवेश शुल्क नहीं दे सकते! यदि किसी गरीब व्यक्ति के दिल में सच में ही भगवान के दर्शनों की प्यास है तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि भगवान अपने मंदिर से बाहर आकर उसके घर में ही दर्शन देकर प्रसन्नता अनुभव करते होंगे।
मुझे अपना कैमरा जमा करते हुए संकोच हो रहा था पर जब काउंटर पर गया तो वहां मौजूद सज्जन ने एक सूती थैले में मेरा कैमरा संभाल कर रखा और एक कागज़ पर मेरा नाम, मोबाइल नंबर, कूपन नंबर, मेरा स्थाई निवास आदि नोट कर के उस के साथ ही रखे और मुझे कूपन दे दिया। इसका लाभ ये कि अगर मेरा कूपन किसी और के हाथ लग भी जाये और वह काउंटर पर मेरा कैमरा लेने की कोशिश करे तो मेरा नाम, मोबाइल नंबर, निवास का पता आदि कुछ भी नहीं बता पायेगा और उस व्यक्ति को मेरा कैमरा तो दिया ही नहीं जायेगा बल्कि उसे पुलिस के हवाले भी किया जा सकता है।
मंदिर में दर्शन के लिये दर्शनार्थियों की बहुत लंबी लाइन नहीं थी और हम बहुत जल्दी मुख्य हॉल में पहुंच गये, जहां से गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है। इस मंदिर के शिवलिंग में अन्य सभी मंदिरों में स्थापित किये गये शिवलिंग से अलग विशेषता है और वह ये कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों देवों की छवि विराजमान है।
जैसा कि सभी व्यस्त मंदिरों में होता है, दर्शनार्थियों को रुकने नहीं दिया जाता और तुरन्त ही आगे धकेल दिया जाता है, यही हमारे साथ भी हुआ। मुझे गुरुद्वारे में जाना इसीलिये रुचिकर है। मुझे कोई वहां से धक्का देकर आगे नहीं भेजता। मैं चाहूं तो वहां पांच छः घंटे जप करता रह सकता हूं। मुझे अपने मंदिरों का व्यवसायीकरण बहुत खेदजनक लगता है। खैर!
हॉल से बाहर आकर प्रांगण में आकर मोबाइल से कुछ चित्र लिये गये क्योंकि मोबाइल की मनाही नहीं थी। मंदिर में प्रवेश द्वार और निकास द्वार अलग – अलग दिशाओं में हैं ऐसे में हमें निकास द्वार से बाहर आकर मुख्य द्वार तक बिना जूते – चप्पल के ही आना पड़ा।
जूते पहनने और कैमरा लेने के बाद जब मैने अपने साथियों को देखना चाहा तो आठों व्यक्ति गायब थे। काफी तलाश किया पर वह नहीं मिले! ऐसे में मैं अपना कैमरा लेकर मंदिर के निकास द्वार की ओर गया पर वहां भी कोई नहीं दिखाई दिया। मंदिर के गुंबद के दो – तीन चित्र लेकर वापिस आया तो मुख्य द्वार से लेकर पार्किंग तक हर दुकान में झांक – तांक करता हुआ गया पर कहीं कोई दिखाई नहीं दिया। वैन में झांक कर देखा तो वहां भी कोई नहीं! फिर दोबारा मंदिर तक आया तो वह मुझे मिल्क केक खरीदते हुए मिल गये। शुक्र है भगवान का! घरवालों की तो कोई चिन्ता नहीं, वह तो देर – सवेर मिल ही जाते पर मेरे हिस्से की मिल्क केक मुझे नहीं मिलती! 🙂
वहां से हम वापिस नासिक की ओर बढ़े तो थोड़ी सी दूरी पर ही दायें हाथ पर माता अंजनेरी हनुमान का मंदिर था। माता अंजना देवी यानि बजरंगबली हनुमान जी की मम्मी! इस मंदिर में जाने के लिये तीस-चालीस सीढ़ियां थीं। नीचे कुछ वृद्ध महिलाएं प्रसाद बेचने के लिये खड़ी थीं सो उन से प्रसाद लेकर और उनको अपने जूते – चप्पल आदि सौंप कर हम ऊपर मंदिर में पहुंचे और बड़े सुख से दर्शन करके वापिस आ गये।
नाशिक शहर में वापिस आकर मन किया कि महाराष्ट्र का staple food वड़ा पाव / मिसल पाव आदि ट्राई किये जायें। पाव भाजी तो अब पूरे देश में ही लोकप्रिय हो चुकी है और हर शादी – विवाह आदि में एक काउंटर पाव भाजी का भी लगने लगा है। इसलिये पाव क्या होती है, ये बताने की मुझे शायद जरूरत नहीं है। अब सवाल बचा कि वड़ा क्या है? ये नींबू से कुछ बड़े आकार का, आलू / प्याज / मसाला आदि का एक गोलाकार पकोड़ा होता है जिसे बेसन में डिप करके घी / तेल में तल लिया जाता है। इस बड़े को पाव के बीच में चटनी लगा कर दबा कर (यानि सैंडविच बना कर) ग्राहक को पेश किया जाता है। मिसल नाम की अगर सब्ज़ी भी दी जाती है तो वह मिसल पाव कहलाता है। मुझे मिसल में कोई मज़ा नहीं आया अतः पांच – सात जगह मैने वडा पाव खा कर ही अपनी क्षुधा शान्त कर ली थी। एक वडा पाव 15/- रुपये का मिलता रहा।
मितरों ! अब हमारे पास नाशिक में बिताने के लिये आधा दिन और पूरी रात है। कल सुबह हम लोग होटल से ही नाश्ता करके श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की यात्रा पर निकल पड़ेंगे। इससे आगे का किस्सा अब आपको कल सुनाया जायेगा। तब तक के लिये प्रणाम!
नाशिक में अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण
हमारे साथियों को नाशिक में घूमने व देखने के लिये मंदिरों की ही तलाश थी इसलिये हमने ये अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान नहीं देखे इसका मुझे बहुत दुःख रहेगा। आप यदि नाशिक जा रहे हैं तो इन स्थानों को देखने का अवश्य प्रयास करें –
- दादा फालके म्यूज़ियम : भारतीय सिनेमा के पितामह माने जाने वाले दादा साहेब फालके का जन्म 30 अप्रैल 1870 को नाशिक में ही हुआ था और उन्होंने यहां पर रहते हुए 1913 में राजा हरिश्चन्द्र फिल्म का निर्माण किया। इसके बाद नाशिक में ही स्थित अपने स्टूडियो में उन्होंने 1932 तक 95 फिल्में व 26 वृत्त चित्रों का निर्माण किया। ये म्यूज़ियम बस स्टैंड से मात्र 8 किमी की दूरी पर नाशिक – मुम्बई रोड पर ही है और फिल्मों के शौकीन लोगों को यहां बहुत आनन्द आयेगा, ऐसी आशा है।
- आर्टिलरी सेंटर : नाशिक भारतीय सशस्त्र सेना और वायु सेना का बहुत बड़ा केन्द्र है। जैसा कि मैने ऊपर भी ज़िक्र किया है, भारतीय वायु सेना के लिये सुखोई और मिग विमान नाशिक में बनाये जाते हैं। आर्टिलरी सेंटर भी एशिया का सबसे बड़ा केन्द्र है जिसको 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद यहां स्थानान्तरित किया गया था। यहां पर भारतीय सेना के अधिकारियों को बोफ़ोर्स तोप व अन्य अस्त्र – शस्त्रों को चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है।
- सिक्कों का संग्रहालय : ये नाशिक से 20 किमी दूर त्र्यंबकेश्वर मार्ग पर स्थित है और इसके बावजूद भी हमने इसे नहीं देखा। 🙁 इस संग्रहालय की स्थापना 1980 में हुई थी और ये एशिया में अपने ढंग का अनूठा संग्रहालय है और अत्यन्त आकर्षक लोकेशन पर स्थित है।
- दूधसागर फॉल्स : ये नाशिक से मात्र 8 किमी के फासले पर है और जैसा कि इसका नाम ही इंगित करता है, इस झरने में पानी इतनी ऊंचाई और वेग से गिरता है कि उसका रंग दूध जैसा नज़र आता है। सुना है कि इस पहाड़ी पर यानि झरने के स्रोत तक पहुंचने के लिये चट्टान काट – काट कर सीढ़ियां बना दी गयी हैं। जैसा कि लगभग सभी झरनों में होता है, उनका आकर्षण मानसून के दिनों में बहुत बढ़ जाता है।
मेरे अनुरोध पर मेरे मित्र व प्रख्यात घुमक्कड़ श्री चेतन शर्मा ने त्र्यंबकेश्वर मंदिर के बारे में निम्न जानकारी प्रदान की है। मैं श्री चेतन शर्मा का हार्दिक आभारी हूं।
आपको ले चलते हैं महाराष्ट्र के नासिक जिले में जहाँ से 30 किलोमीटर दूर बैठे है देवों के देव महादेव.
त्रयंबकेश्वर के स्वरूप में विराजमान शिव की नगरी में में आपका स्वागत है. बारह ज्योतिर्लिंगों में त्रयंबकेश्वर का स्थान विशेष है, और सभी शिवलिंगों के उलट यहाँ शिव अलग ही स्वरूप में विराजमान हैं.
त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की सबसे अदभुत बात यह है कि यहाँ तीन छोटे आकार के मुख बने हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक है, देखने पर यह शिवलिंग आंख के जैसे प्रतीत होता है.
मैं यहाँ तीन साल पहले अर्थात नवंबर 2017 को गया था, और वहाँ पहुंचकर मंत्रमुग्ध हो गया. ऐसा लगा मानो प्रकृति खुद शिव भक्ति में लीन होकर अपनी ममता यहाँ बिखेर रही हो.जब आप त्रयंबकेश्वर जाएंगे तो वहाँ का शिवमय वातावरण आपको सकारात्मकता से भर देगा.
त्रयंबकेश्वर मंदिर को काले पत्थरो से निर्मित किया गया है.मंदिर की बनावट और वास्तुकला आपको अकस्मात ही आकर्षित करेगी, ये शिव की उपस्थिति को दर्शाती है.मंदिर परिसर में फोटो लेना प्रतिबंधित है परन्तु मै वहाँ की सुंदरता के लालचवश एक फोटो खींच लाया था.मंदिर के बाहर शुद्ध खोये के पेड़ो की दुकानें सजी मिलेंगी, और पेड़ों की खुशबू आपको खाने पर मजबूर कर देंगी. मंदिर के बाहर गाय को हरा चारा खिलाने की विशेष परंपरा है. वहाँ स्थानीय लोग गाय और चारा लेकर बहुतायत में मिल जाएंगे, बस पैसे दिजिए और चारा खिला दीजिये. बाकि शिव पर छोड़ दीजिये. वहाँ के बाजारों में आपको सभी तरह के रूद्राक्ष मिल जाएंगे, लेकिन असली नकली में पहचान ठीक से कर लीजिएगा. वैसे वहाँ के बाजारों की रौनक भी शानदार है.सभी तरह के पारम्परिक खान पान वहाँ आपको आसानी से मिल जाएंगे.
मंदिर की दक्षिण दिशा में आपको ब्रह्मगिरी पर्वत अपनी भुजाएँ फैलाए खडा़ दिखाई देगा जहाँ माँ गोदावरी नदी का उदगम स्थान भी है. माँ गोदावरी को गौतमी गंगा भी कहा जाता है और गंगा की तरह पूज्यनीय माना जाता है.शिव महापुराण में लिखा है कि महर्षि गौतम , गोदावरी और देवताओं ने शिव से प्रार्थना की तब शिव ने यहाँ निवास किया था.
मंदिर के कुछ ही दूरी पर त्रयंबक के जंगलों से ब्रह्मगिरी पर्वत ( 1290 मीटर ) की चढाई शुरू हो जाती है. सीमेंट से बनी सीढ़ियां चढाई को सुगम बना देती है, लगभग 3.5 किलोमीटर की ट्रेकिंग करके आप शिखर पर पहुँच जाएंगे. ब्रह्मगिरी पर्वत के शिखर पर आप माँ गोदावरी के उदगम स्थल के दर्शन और पूजा कर सकते हो.
ठहरने के लिए ब्रह्मगिरी पर्वत से कुछ सौ मीटर पहले होमस्टे वगैरह बने हुए हैं जहाँ से हरियाली का मनमोहक नजारे मिलतें है.
जय बाबा त्रयंबकेश्वर
– चेतन शर्मा
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