प्रिय मित्रों, इस श्रंखला की पिछली कड़ियों में आपने पढ़ा कि कैसे हम दिल्ली से हैदराबाद होते हुए श्रीशैलम पहुंचे, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये, अगले दिन हैदराबाद वापसी करके चारमीनार देखी, सालारजंग म्यूज़ियम भी गये, बिड़ला मंदिर तथा हुसैन सागर लेक घूमे और अगले दिन रामोजी फिल्म सिटी का पूरे दिन का टूर किया। शाम को आपने हमारे साथ हैदराबाद से औरंगाबाद तक की रेल यात्रा करके अगले दिन सुबह घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये, खुल्ताबाद में भद्र मारुति मंदिर में शयन मुद्रा में पवनपुत्र हनुमान जी के दर्शन किये, बीबी का मकबरा देखा, पनचक्की में आटा पिसते हुए देखा, बाज़ार में गोलगप्पे खाये। यही नहीं, अगले दिन एलोरा की गुफ़ाओं को देखने के बाद औरंगाबाद से शनि शिंगणापुर भी गये जहां हमने शनि शिंगणापुर में श्री शनैश्वर देवस्थान के दर्शन भी किये।
आइये, अब हम सब शनि शिंगणापुर से शिरडी चलते हैं ताकि साईं बाबा की समाधि के दर्शन करें और अगले दिन नाशिक पहुंच सकें जहां हमें त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में अपनी हाजिरी लगानी है।
शनि शिंगणापुर से शिरडी सड़क मार्ग से यात्रा
औरंगाबाद से शनि शिंगणापुर होते हुए शिरडी आने के कारण हमें जिस सड़क से यात्रा करनी पड़ी, वह निर्माणाधीन थी अतः बीच – बीच में बहुत ऊबड़ – खाबड़ पैच मिलते रहे थे जिनके कारण, सफर लंबा न होने के बावजूद थकान काफी रही। यही वज़ह थी कि जब हम शिरडी पहुंचे तो हमारे अधिकांश सहयात्री थके हुए थे और ऊंघ रहे थे। जब हमारी टेम्पो ट्रेवलर न्यू पिंपलवाडी रोड पर स्थित दैविक होटल (Daiwik Hotel) के परिसर में आकर रुकी तो हम सभी की सबसे पहली इच्छा यही थी कि जल्द से जल्द चेक इन करके अपने – अपने कमरों में पहुंचें, फ्रेश हों, कुछ खायें पियें और उसके बाद साईं बाबा के मंदिर की ओर प्रस्थान करें।
Review – Hotel Daiwik, Shirdi
सौभाग्य से Daiwik Hotel साईं बाबा मंदिर से मुश्किल से 200-250 कदम के फासले पर ही है और टहलते – टहलते बाज़ार में से होते हुए 10-15 मिनट में मंदिर तक पहुंच जाते हैं। दैविक होटल से मंदिर की ओर जा रही सड़क एक व्यस्त बाज़ार है जिस पर एक के बाद एक ढाबे और अन्य दुकानें मौजूद हैं। मंदिर का परिसर अत्यन्त विशाल है, समाधि मंदिर में प्रवेश के लिये कई सारे प्रवेश द्वार हैं। सबसे पहले तो हमने पता किया कि हमें टिकट कहां से मिलेंगे। गेट नं. 3 पर “वरिष्ठ नागरिकों के लिये” लिखा हुआ था। वहां मौजूद सुरक्षा कर्मी ने इशारे से बताया कि वरिष्ठ नागरिकों के लिये निःशुल्क कूपन उधर मिलेंगे। अब हम सोच रहे थे कि क्या करें, कैसे करें ! वज़ह ये कि हम 9 यात्रियों में पुरुष तो सारे वरिष्ठ नागरिक थे किन्तु एक महिला 59 वर्ष की थी और एक बेटी भी थी जो 21-22 वर्ष की होगी। खैर, अपने आधार कार्ड लेकर हम उस खिड़की पर पहुंचे। उस खिड़की पर मौजूद महिला ने हमारी 59 वर्षीया महिला को भी वरिष्ठ नागरिक मान लिया और हम सब को निःशुल्क कूपन मिल गये। फिर हम दूसरी खिड़की पर गये ताकि बेटी के लिये भी कूपन खरीद सकें। यह खिड़की वहां से बहुत दूर थी, शायद एक किलोमीटर से भी अधिक चलना पड़ा। मुझे लगता है कि मंदिर की सभी दिशाओं में टिकट काउंटर उपलब्ध होंगे परन्तु किसी व्यक्ति ने हमें बिल्कुल विपरीत दिशा वाले काउंटर पर भेज दिया जिसके लिये हमें इतना अधिक चलना पड़ा। पूरे रास्ते मंदिर के दर्शनार्थियों के लिये स्टील की रेलिंग भी साथ – साथ चलती रहीं जो उस समय खाली ही थीं। जैसा कि अक्सर होता है रेलिंग में प्रवेश करने के बाद लगभग पांच – छः बार घूमते – घूमते हम मंदिर के भीतर प्रविष्ट होते हैं। यदि सारी रेलिंग भरी हुई हों तो आरंभ से अंत तक लगभग छः किलोमीटर लंबी पंक्ति हो जायेगी! यह तो हमारा सौभाग्य ही था कि हमें इतनी भीड़ का सामना नहीं करना पड़ा और लगभग आधा घंटे में ही हम दर्शन करके नीचे उतर आये थे।
टिकट लेकर हम पुनः गेट नं. 3 पर आये और सिक्योरिटी चेक से गुज़रते हुए मंदिर में प्रवेश किया।हम सीढ़ियां चढ़ कर प्रथम तल पर पहुंचे। जीने में हल्की फ़ुल्की धक्का मुक्की होती रही, क्योंकि कुछ लोग आगे निकलने का प्रयास कर रहे थे। ऊपर एक विशाल हॉल और उसमें सामने वाले कक्ष में साईं बाबा की स्वर्णजटित प्रतिमा विराजमान थी और दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ था। दुनिया भर के सेवादार भीड़ को नियंत्रित करने में लगे हुए थे और जो लोग प्रतिमा के आगे देर तक खड़े रहने का प्रयास करते, उनको जबरदस्ती वापिस भेज रहे थे।
दर्शन करके हम पुनः भूतल पर आये, साईं बाबा का संग्रहालय देखा जिसमें उनके सात्विक जीवन की झांकी देखने को मिली। उनके सात्विक, फ़टे चीथड़ों में बिताये गये जीवन में और आज मौजूद स्वर्णजटित मूर्ति और भव्य मंदिर में कहीं कोई साम्य नहीं था।
अरे, हमारा दुकानदार कौन सा था?
रात्रि का समय था, वातावरण बहुत आनन्ददायक था, काफी देर तक हम बरामदे में ही बैठ कर सुस्ताते रहे और मंदिर की व्यवस्थाओं को लेकर बातचीत करते रहे। मंदिर से बाहर निकल आये तो अपने जूते – चप्पलों की तलाश की। वास्तव में प्रसाद बेच रहे एक दुकानदार ने हम सब के जूते – चप्पल जूट के एक बैग में रख कर सड़क पर ही डाल दिये थे। अब उस बाज़ार में हमें उस दुकानदार को पहचानने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि दुकानें तो सारी एक जैसी ही थीं और हर दुकान में सामान भी एक जैसा ही बिक रहा था। सवाल सिर्फ अपने वाले दुकानदार को पहचानने का था। खैर, हम तो उसे नहीं पहचान पाये पर उसने हमें पहचान लिया और साईं बाबा की कृपा से हमें हमारे जूते – चप्पल सही सलामत वापिस मिल गये। इस बीच में हमारा एक परिवार और उनके साथ बाकी सारी महिलाएं भी द्वारका माई मंदिर में प्रवेश हेतु लाइन में लग गये थे। मुझे ये समझ नहीं आया कि साईं बाबा जिस टूटी फूटी मस्जिद में रहते थे उसको वह द्वारकामाई कहते थे। फिर ये द्वारकामाई के नाम से मन्दिर कहां से आ गया?
कैमरा लेकर पुनः आगया मैं !
वहां से बाहर निकल कर हम सब एक ढाबे में रुक कर खाना खाते हुए होटल जा पहुंचे और मैं होटल से कैमरा लेकर पुनः साईं बाबा मंदिर की ओर बढ़ चला। मंदिर में फोटो भले ही न खींच सकूं पर वाह्य परिसर की और बाज़ार की फोटो तो ले ही सकता हूं ना! 🙂 आधा पौना घंटे तक क्लिक – क्लिक करता हुआ मैं एक दूसरी गली में से होता हुआ पुनः होटल जा पहुंचा। कमर और पैर दोनों ही थकान से चूर थे अतः कैमरे को और मोबाइल को चार्जिंग पर लगा कर हम सो गये।
अब कुछ जानकारी शिरडी आने वालों के लिये भी !
शिरडी में उपलब्ध सुविधाएं –
एयर पोर्ट
शिरडी एयरपोर्ट से साईं बाबा मंदिर की दूरी 14.2 किमी है। मुंबई, पुणे, नागपुर के बाद यह सबसे व्यस्त एयरपोर्ट है जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा वर्ष 2017 में किया गया है। एयरबस A320 व बोइंग 737 जैसे बड़े हवाई जहाज यहां के 2.5 किमी लंबे रनवे का उपयोग कर सकते हैं। वैसे, इस रनवे की लंबाई 3.2 km. प्रस्तावित है। एलायंस एयर, इंडिगो और स्पाइस जैट की फ़्लाइट्स मुंबई, बंगलौर, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, इन्दौर के बीच यात्रा हेतु उपलब्ध हैं। अभी यहां पर रात्रि में लैंडिंग और टेक ऑफ की सुविधा नहीं है। एयरपोर्ट टर्मिनल अभी 300 यात्री प्रति घंटे झेल सकता है, इसे बढ़ा कर 1000 यात्री प्रति घंटे करने हेतु टर्मिनल का विस्तार कार्य चल रहा है।
रेलवे स्टेशन
रेल मार्ग से शिरडी आने वाले श्रद्धालुओं के लिये शिरडी के निकटतम दो रेलवे स्टेशन हैं – कोपरगांव (KPG) और साईं नगर शिरडी (SNSI) !
कोपरगांव Kopergaon
वर्ष 2009 तक सेंट्रल रेलवे का कोपरगांव स्टेशन ही शिरडी के लिये निकटतम स्टेशन हुआ करता था। इस स्टेशन पर उतर कर सड़क मार्ग से शिरडी के साईं बाबा मंदिर की दूरी लगभग 15 किमी है। अक्सर लोग स्टेशन के बाहर से मंदिर तक आने के लिये ऑटो पकड़ते हैं। यह स्टेशन मनमाड – अहमदनगर – डौंड ब्रांच लाइन पर है और इसका स्टेशन कोड KPG है। इस रूट पर यूं तो बहुत सारी ट्रेन हैं पर उनमें दैनिक ट्रेन कम ही हैं। जो हैं भी, उनमें कई ऐसी हैं जो कोपरगांव रुकती ही नहीं। ऐसे में मनमाड, नाशिक रोड आदि से शिरडी आने की व्यवस्था करनी होती थी।
साईं नगर शिरडी रेलवे स्टेशन (SNSI) :
वर्ष 2009 से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिये पुणतांबा स्टेशन (Station Code – PB) से 17.5 किमी लम्बी एक अलग रेल लाइन बिछा कर साईं नगर शिरडी (Station Code – SNSI) नाम से एक और रेलवे स्टेशन बनाया गया है जो मंदिर से मात्र 3.3 किमी दूर है। पुणताम्बा स्टेशन भी उसी रेल रूट पर है जिस पर कोपरगांव पड़ता है। अब मुंबई, पुणे, हैदराबाद, बंगलौर, हावड़ा, विजयवाड़ा आदि देश के विभिन्न शहरों से साईं नगर शिरडी तक आने वाली ट्रेन उपलब्ध हैं पर ये ट्रेन भी अधिकांशतः सप्ताह में दो या तीन दिन चलने वाली ही हैं। यदि आप साईं नगर शिरडी तक आने वाली ट्रेन से शिरडी आ रहे हैं तो स्टेशन से मंदिर तक आपको लाने के लिये निःशुल्क बस सेवा उपलब्ध है जो साईं अमृतधारा संस्थान द्वारा चलाई जा रही हैं। इस रेलमार्ग पर यह अंतिम स्टेशन है अर्थात् रेल लाइन इस स्टेशन तक ही बिछाई गयी है।
शिरडी में रहने की व्यवस्था –
शिरडी में VVIP नेताओं तथा करोड़पति उद्योगपतियों से लेकर फक्कड़ों और घुमक्कड़ों तक के रहने के लिये हर प्रकार की जेब और बजट के अनुरूप रहने की व्यवस्था उपलब्ध हैं। यहां पांच सितारा होटल भी मौजूद हैं, भक्त निवास भी हैं, आश्रम भी हैं, डॉरमिटरी भी हैं और मन्दिर के परिसर में चटाई डाल कर सोने वाले लोग भी मौजूद हैं। साईं अमृतधारा डॉट कॉम की शिरडी गाइड आपके लिये बहुत सहायक सिद्ध होगी। हम मध्यमार्गी लोग हैं अतः हमने अपने लिये Hotel Daiwik चुना था जिसकी शाखाएं अनेकानेक शहरों में मौजूद हैं। हमें ये होटल भी काफ़ी अच्छा अनुभव हुआ। होटल के बारे में मेरे अनुभव यहां उपलब्ध हैं।
यदि आप साईं बाबा के जीवन के बारे में जानने को उत्सुक हैं तो यहां उनका अत्यन्त रोचक जीवन चरित प्रस्तुत कर रहा हूं।
शिरडी और साईं बाबा –
यूं तो शनि शिंगणापुर और शिरडी दोनों ही महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के छोटे – छोटे गांव हैं परन्तु दुनिया में ऐसे लाखों करोड़ों लोग होंगे जिन्होंने अहमदनगर जिले का नाम भी कभी नहीं सुना होगा पर इन गांवों का नाम हमेशा उनकी जुबान पर रहता है। जहां शनि शिंगणापुर को शनि देवता का आवास माना जाता है, वहीं शिरडी की महत्ता का एकमात्र कारण साईं बाबा जैसी महान विभूति का इस स्थान से जुड़ा हुआ होना है।
शिरडी में साईं बाबा का जन्म भले ही न हुआ हो, पर यह गांव उनकी कर्मभूमि रहा है। यहां वह लगभग 60 वर्ष तक एक टूटी फूटी सी मस्जिद में रहते रहे जिसे वह द्वारका माई कहते थे, चीथड़े धारण किये रहे, अधिकांश समय योग और ध्यान में लीन रहे, भिक्षावृत्ति से अपना जीवन चलाते रहे, अगर कभी कोई श्रद्धालु महंगा सामान उनको दे गया तो उसे गांव वासियों को बांटते रहे, उन को त्याग, संयम, ईमानदारी, स्वच्छता, पवित्रता, वैराग्य की शिक्षा देते रहे, बीमार व्यक्तियों का इलाज करते रहे। कुछ उनको परम गुरु मानते थे तो कुछ फकीर या संत कहते थे, कुछ उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते थे तो कुछ उनके विरुद्ध षड्यंत्र भी करने से नहीं चूकते थे। उनकी शिक्षाओं के केन्द्र में श्रद्धा (reverence) और सबूरी (patience) रहते थे। बड़ी – बड़ी बातें करने वाले बाबा लोग तो बहुत मिलते हैं और फिर बाद में अपने कुकर्मों के कारण जेल में भी पड़े रहते हैं। परन्तु साईं की कुटिया 60 साल तक एक गरीब की कुटिया ही बनी रही, महल में परिवर्तित नहीं हुई। बाबा के बदन पर भी फटे – पुराने चीथड़े ही शोभायमान होते रहे, हीरे – जवाहरात और मोतियों के हार उनके गले में कभी नहीं आये। वह सुईं धागा जिससे वह अपने फटे – पुराने कपड़े सी लेते थे, उनके साथ ही उनकी समाधि में रख दिये गये थे। अपने पास कोई संपत्ति एकत्र न करने वाले साईं भिक्षा को ही अपने जीवन यापन का साधन बनाये रहे।
साईं बाबा कहां से आये, उनका वास्तविक नाम क्या था, कोई नहीं जानता, हिन्दू थे या मुस्लिम – यह भी बता पाना असंभव सा है। कुछ लोगों का अनुमान है कि उनका जन्म 1838 के आस पास पथरी नामक गांव में हुआ होगा। साईं बाबा अपने जन्म स्थान और अपने माता-पिता के बारे में बात करना नितान्त अनावश्यक मानते थे।
शायद 16 वर्ष की आयु रही होगी जब साईं बाबा घूमते फिरते शिरडी नामक गांव में आ पहुंचे थे। गांव वालों ने एक युवक को नीम के वृक्ष के नीचे आसन लगा कर, आंखें मूंद कर ध्यान लगाये हुए देखा तो आश्चर्य में पड़ गये कि ये छोटा सा लड़का आंखें मूंदे तपस्या क्यों कर रहा है! लगभग तीन साल तक उसी नीम के पेड़ के नीचे तपस्या करने के बाद एक दिन वह अचानक गायब हो गये और फिर वर्ष 1858 में एक परिचित मित्र चांद पाटिल के साथ साथ पुनः शिरडी में आ पहुंचे। गांव से बाहर ही खांडोबा के मंदिर के पास ही रुक गये। मंदिर का रखवाला महाल सपाति बाहर आया तो उस युवक को पहचान गया और उसके मुख से निकला, ’ओह! साईं! बस, तब से उनका नाम साईं पड़ गया। ऊम्र और सम्मान बढ़े तो साईं बाबा के नाते पहचाने जाने लगे। इसी शिरडी में और इसी द्वारका माई में 15 अक्तूबर 1918 को उन्होंने देह त्याग किया। आज की स्थिति ये है कि शिरडी में अत्यन्त भव्य साईं बाबा समाधि मंदिर मौजूद है, देश विदेश के करोड़ों लोग दर्शन के लिये आ चुके हैं, निरन्तर आते हैं, अहर्निश भोजनालय चलता रहता है, भारी भरकम चढ़ावा आता है। जिस बाबा के घर के द्वार हर किसी के लिये चौबीसों घंटे खुले रहे, आज उनकी समाधि के दर्शन के लिये 200/- का टिकट खरीदना होता है। जो साईं बाबा जीवन भर द्वारका माई में चिथड़े धारण किये हुए रहते रहे, आज उनकी स्वर्णजटित मूर्ति मंदिर में प्रतिष्ठित है। जो साईं बाबा जीवन भर संयम, ईमानदारी और वैराग्य की शिक्षा देते रहे, आज उनके लिये शिरडी में एयरपोर्ट है, फाइव स्टार होटल हैं, एक रेलवे स्टेशन शिरडी साईं नगर नाम से अलग बनाया जा चुका है। उनकी समाधि पर आशीर्वाद लेने के लिये प्रधानमंत्री से लेकर देश के सबसे बड़े उद्योगपति आते हैं। अस्तु!